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nabi ki shan be misal जिस्म मुबारक के बाज़ खसाइस


हज़ूर सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम के जिस्म मुबारक के बाज़ खसाइस हदीस की रौशनी में:  

हज़ूर सैयद-ए-आलम सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम की ज़ात-ए-अक़दस के जिस गोशे पर भी नज़र डाली जाए, शान-ए-बेमिसाल का ज़हूर होता है। सहाबा-ए-किराम (रज़िअल्लाहु अन्हुम) ने आपकी खूबियों को बयान किया है, जो हदीस और तवारीख में दर्ज हैं।  

हज़ूर सैयद-ए-आलम सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्ल की ज़ात-ए-अक़दस के जिस गोशे पर भी नज़र डाली जाए, शान-ए-बेमिसाल का ज़हूर होता है। 

चेहरा ए मुबारक और दन्दान ए मुबारक की चमक 

सहाबा-ए-किराम (रज़िअल्लाहु अन्हुम) फरमाते हैं कि आपके रुख़सार ऐसे थे गोया कि सफ़हा-ए-रुख़सार पर सोने का पानी छलक रहा हो। दंदान-ए-मुबारक मोतियों से ज़्यादा चमकदार थे। उनसे नूर छनता था। जब आप तबस्सुम फरमाते, अंधेरे में उजाला हो जाता था। 

लुआब ए मुबारक से शिफा और  बरकत 

लुआब-ए-मुबारक हर मर्ज़ के लिए शिफ़ा था। यहाँ तक कि खारे कुएं मीठे हो जाते थे।  

आवाज़ मुबारक की तासीर 

आप सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम की आवाज़ की तासीर यह थी कि मुर्दे ज़िंदा हो जाते थे। 

चश्म ए मुबारक और देखने की ताक़त 

चश्म-ए-मुक़द्दस के लिए अंधेरा हिजाब न था,आप अंधेरे और उजाले में यकसां देखते थे। 

मुए मुबारक का तबर्रुक 

मुए--मुबारक बाइस-ए-खैर-ओ-बरकत थे और सहाबा-ए-किराम (रज़िअल्लाहु अन्हुम) उन्हें तबर्रुक के तौर पर रखते थे। 

कान मुबारक 

गोश-ए-अक़दस सारी कायनात के फरियाद रस थे; दूर और नज़दीक की आवाज़ सुन लेते थे। 

 दस्त ए मुबारक से  शिफा 

दस्त-ए-मुबारक अल्लाह तआला की नेमतों का ख़ज़ाना था। जिस चेहरे पर हाथ फेर देते, वह चमकने लगता और बीमार शिफ़ा पाते। 

खुश्बू और पसीना मुबारक 

बदन-ए-मुबारक क़ुदरती तौर पर खुशबूदार था; जिस राह से गुज़रते, वह रास्ता खुशबू से महक जाता। 

उँगलियाँ मुबारक 

उंगलियों का इजाज़ यह था कि उनसे पानी के चश्मे जारी हो जाते थे। 

आपका जिस्म मुबारक 

जिस्म-ए-अक़दस बे-साया था। मक्खी भी अदब करती थी और जिस्म-ए-पाक पर न बैठती थी। 

पसीना-ए-मुबारक खुशबूदार था। सहाबा आपके पसीने को इत्र में मिलाते ताकि इत्र में खुशबू ज़्यादा हो जाए।  

हुज़ूर का क़ल्ब मुबारक 

हज़ूर सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम की आँखें सोती थीं, मगर क़ल्ब-ए-मुबारक हमेशा बेदार रहता था। 

आपके बगल बुबरक 

बग़ल-मुबारक  खुशबूदार थे। 

गर्दन मुबारक 

गर्दन चांदी की सुराही थी। 

पेशानी मुबारक 

पेशानी-ए-मुबारक रोशन चिराग़ की तरह थी पेशानी के हर क़तरे से नूर का फ़व्वारा जारी होता था। 

बोल मुबारक 

हज़ूर सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम के तमाम फुज़लात तैय्यबा-ताहिरा थे। 

रफ़्तार मुबारक और ख़ातिम-ए-नुबूव्वत

रफ़्तार की यह कैफ़ियत थी कि कोई शख़्स हज़ूर सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम से आगे न बढ़ सकता था।  

पुश्त-ए-मुबारक पर ख़ातिम-ए-नुबूव्वत चांदी की तरह सफेद थी। 

हज़रत अली फरमाते हैं 

चेहरा-ए-अक़दस जमाल-ओ-जलाल-ए-इलाही का मज़हर-ए-अतम था। सहाबा-ए-किराम आपके चेहरा-ए-अक़दस को चांद-ओ-सूरज बताते थे। हज़रत अली (रज़िअल्लाहु अन्हु) फरमाते हैं कि हज़ूर सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम के हुस्न-ओ-जमाल की मिसाल न तो आपसे पहले देखी गई और न आपके बाद देखी जाएगी। (ख़साइस-ए-कुबरा)  


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