अख्लाक ए हसना
हुस्न-ए-अख़लाक़ एक ऐसी सिफ़त है जो इंसानी शख़्सियत को निखारती और मुआशरती ज़िंदगी को संवारती है। नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम का अख़लाक़-ए-मुबारक आला तरीन और बेमिसाल था, जो रहती दुनिया तक इंसानियत के लिए मशअल-ए-राह है। आप सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ने अपने किरदार-ओ-अमल से अख़लाक़-ए-हसना के ऐसे अमली नमूने पेश किए जो हर इंसान के लिए क़ाबिल-ए-तक़लीद हैं। सहाबा-ए-किराम रज़ी अल्लाहु अन्हुम ने आपके अख़लाक़-ए-करीमा को बयान करते हुए कहा कि आप सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम मेहरबान और अफ़्व-ओ-दर्गुज़र के पैकर थे।
अख़लाक़-ए-नबवी की एक झलक
हज़रत आयशा सिद्दीका रज़ि अल्लाहु अन्हा फरमाती हैं: मैंने हज़ूर सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम को कभी इस तरह हँसते नहीं देखा कि आपका सारा मुँह खुल गया हो। आप सिर्फ़ मुस्कुरा देते थे। (बुख़ारी)
आप सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम एक-एक बात को अलग-अलग बयान फ़रमाते थे। अगर कोई शख़्स आपके जुमलों को गिनना चाहता, तो गिन सकता था। (बुख़ारी व मुस्लिम)
हज़रत जाबिर रज़ि अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हज़ूर सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम जब गुफ़्तगू फ़रमाते, तो एक-एक जुमला अलग-अलग अदा फ़रमाते और ठहर-ठहर कर बात करते। (अबू दाऊद)
हज़रत अब्दुल्लाह बिन सलाम से रिवायत है कि हज़ूर सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम जब गुफ़्तगू फ़रमाते, तो आपकी निगाह अक्सर आसमान की तरफ़ रहती। (अबू दाऊद)
हज़रत अनस रज़ि अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम जब किसी से मुसाफ़ा फ़रमाते, तो अपना हाथ उस वक़्त तक उससे अलग न करते, जब तक वह शख़्स खुद आपका हाथ न छोड़ देता। इसके अलावा, आप उसकी तरफ़ से मुँह न फेरते, जब तक वह मुँह मोड़कर न चला जाता। (तिरमिज़ी)
हज़रत काब बिन मालिक रज़ि अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि जब हज़ूर सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम किसी वाक़े या बात से ख़ुश होते, तो आपका चेहरा-ए-मुबारक इस तरह खिल उठता, जैसे वह चाँद का टुकड़ा हो। (बुख़ारी व मुस्लिम)
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अबी औफ़ा से रिवायत है: हज़ूर सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ज़िक्र-ए-इलाही ज़्यादा करते, ग़ैर-ज़रूरी बातें न करते, नमाज़ को तवील और ख़ुत्बे को मुख़्तसर रखते। बेवाओं और मिस्कीनों के साथ चलने में कोई आर महसूस न करते और उनमें से हर एक का काम कर देते।
(नसाई दारमी)
हज़ूर सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम के अख़लाक़ का ये आलम था कि आप दोशीज़ा लड़कियों से भी ज़्यादा शर्मीले थे। आपकी हर अदा में शर्म व हया का असर वाज़ेह था।
हज़रते उम्मे-सलमा रदी-अल्लाहु अन्हा का बयान
हज़रत उम्मे सलमा रज़ि अल्लाहु अन्हा फरमाती हैं कि एक मरतबा सरकार सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम मकान पर तशरीफ़ लाए। चेहरा-ए-अक़दस मग़मूम था। मैंने सबब दरयाफ़्त किया, तो फरमाया कि कल जो सात दिनार आए थे, शाम आ गई, मगर अभी तक बिस्तर पर पड़े हैं। (मुस्नद इमाम अहमद हंबल)
एक दफ़ा आप सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम नमाज़ के लिए तैयार हुए। एक बद्दू आया और दामन-ए-अक़दस थाम कर बोला, "मेरा ज़रा सा काम रह गया है, ऐसा न हो कि भूल जाऊँ, पहले इसे कर दीजिए।" आप उसके साथ तशरीफ़ ले गए, उसका काम सरअंजाम फ़रमा कर फिर नमाज़ अदा फ़रमाई।
इज़हार-ए-नुबुव्वत से पहले अब्दुल्लाह बिन अबी हम्सा ने आप सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम से कुछ मामला किया और आपको बिठाकर चले गए कि आकर हिसाब कर देता हूँ। इत्तिफ़ाक़ से उन्हें ख़याल न रहा। तीन दिन के बाद आए, तो देखा कि नबी सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम उसी जगह तशरीफ़ रखते हैं। आपने उन्हें देखकर फरमाया, "तीन दिन से यहाँ तुम्हारे इंतज़ार में बैठा हूँ।" (अबू दाऊद)
हज़रत आयशा सिद्दीका रज़ि अल्लाहु अन्हा का बयान
हज़रत आयशा सिद्दीका रज़ि अल्लाहु अन्हा फरमाती हैं कि हज़ूर सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ने कभी किसी से अपना ज़ाती इंतिक़ाम नहीं लिया। बुराई के बदले दरगुज़र और माफ़ फ़रमा देते थे। आप सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ने कभी-किसी को अपने हाथ से नहीं मारा।
हज़रत अली रज़ि अल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि हज़ूर सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम नरमख़ू, मेहरबान तबीयत और ख़ंदा-जबीं थे। सख़्त मिज़ाज और तंगदिल न थे।
हज़रत अनस रज़ि अल्लाहु अन्हु, जो आपके ख़ास ख़ादिम थे, फरमाते हैं, "मैंने दस बरस आपकी ख़िदमत की, मगर आपने कभी किसी मामले में बाज़-पुर्स न फ़रमाई।" (शमाइल तिर्मिज़ी)
हज़ूर सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम का करज़ा चुकाना और सख़ावत
एक बद्दू ने निहायत सख़्ती से हज़ूर सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम से अपने क़र्ज़ का मुतालबा किया। सहाबा ने उसे डांटा और कहा, "तुझे मालूम है, तू किससे हमकलाम है?" हज़ूर सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ने फरमाया, "तुमको बद्दू का साथ देना चाहिए था, क्योंकि इसका हक़ है।" फिर आपने कर्ज़ा अदा करने का हुक्म दिया। (इब्ने माजा)
एक मरतबा एक शख़्स ख़िदमत-ए-अक़दस में हाज़िर हुआ और देखा कि आपकी बकरियों का रेवड़ दूर तक फैला हुआ है। उसने दरख़्वास्त की, तो आपने तमाम बकरियाँ उसे अता फ़रमा दीं। उसने अपने क़बीले में जाकर कहा, "इस्लाम क़बूल कर लो। मोहम्मद सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ऐसे फ़य्याज़ हैं कि मुफ़लिस होने की परवाह नहीं करते।" (बुख़ारी)
मक्का में क़ुरैश के सरदारों की पेशकश
मक्का में रूसा-ए-क़ुरैश जब हर क़िस्म की तदबीरों से थक गए, तो उन्होंने हज़ूर सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम के सामने हुकूमत का तख़्त, ज़र-ओ-जवाहिर का ख़ज़ाना और हुस्न की दौलत पेश की। इन में हर एक चीज़ बड़े से बड़े बहादुरों के क़दम डगमगा देने के लिए काफ़ी थी, लेकिन आपने निहायत हिक़ारत के साथ उनकी इस दरख़्वास्त को ठुकरा दिया।
आख़िरकार, आख़िरी मोनिस-ओ-हमदम, हज़रत अबू तालिब ने भी साथ छोड़ना चाहा, तो यह ग़ौर-ओ-फ़िक्र का आख़िरी लम्हा और अज़्म-ओ-इस्तेक़लाल का आख़िरी इम्तेहान था। उस वक़्त आपने जो कलिमात फ़रमाए, आलम-ए-काएनात में सबात-ओ-पामर्दी के इज़्हार का सबसे आख़िरी तरीक़ा-ए-तअबीरी थे। आपने फ़रमाया:
"चचा, अगर क़ुरैश मेरे दाएँ हाथ में सूरज और बाएँ हाथ में चाँद रख दें, तब भी मैं अपने ऐलान-ए-हक़ से बाज़ न आऊँगा।" (इब्ने हिशाम)
ख़िदमत-ए-अक़दस और ज़ोहद का आलम
अक्सर ख़ुद्दाम ख़िदमत-ए-अक़दस में पानी लेकर आते कि आप हाथ डाल दें ताकि वो मुतबर्रिक हो जाए। जाड़ों का मौसम और सुबह का वक़्त होता, मगर हज़ूर सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम फिर भी इंकार न फ़रमाते। (अबू दाऊद)
ज़ोहद-ओ-क़नाअत और फ़क़्र-ए-इख़्तियारी का यह आलम था कि ब-वक़्त-ए-विसाल, आपकी ज़िरह एक यहूदी के पास गिरवी थी। जिन मुक़द्दस कपड़ों में विसाल फ़रमाया, उन में ऊपर तले पैवंद लगे हुए थे। बिस्तर-ए-अक़दस में खजूर की छाल भरी हुई थी। (बुख़ारी)
हज़रत आयशा रज़ि अल्लाहु अन्हा फ़रमाती हैं, "हज़ूर सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम के लिए कभी कपड़ा लेकर के नहीं रखा गया।"
अख़लाक़ और बेहतरीन आदात
ग़रज़ कि अज़्म-ओ-इस्तेक़लाल, शुजाअत, अमानत, रास्त-गुफ़्तारी, अहद की पाबंदी, ज़ोहद-ओ-क़नाअत, अफ़्व-ओ-हिल्म, दुश्मनों से दरगुज़र और हुस्न-ए-सुलूक, ग़रीबों से मोहब्बत-ओ-प्यार, दुश्मनों के हक़ में दुआ-ए-ख़ैर, बच्चों पर शफ़क़त, ग़ुलामों से अच्छा सलूक, मस्तूरात से नेक बर्ताव, हयवानात पर रहम, औलाद से मोहब्बत, हुस्न-ए-सुलूक, हुस्न-ए-मुआमला, जूद-ओ-सखा, अदल-ओ-इंसाफ़, ईसार-ओ-क़ुर्बानी, मेहमान नवाज़ी, और सदक़े से परहेज़—ग़रज़ कि तमाम आला से आला औसाफ़ के पयकर-ए-जमील थे।
हज़ूर सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम के ख़साइल-ओ-शमाइल के वाक़ियात को बयान किया जाए, तो इसके लिए दफ़्तर दरकार है।
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