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muslim ladkiyan aur fitna e irtidad असबाब व इलाज

 

इस्लाम में ज़िनाकारी व बदकारी से बचने का नुस्खा क्या

अऊज़ु बिल्लाहे मिनश शैतानिर रजीम

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम 

हालीया दिनों में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से जिस तेज़ी के साथ मुस्लिम लड़कियों का ग़ैर-मुस्लिम लड़कों के साथ इश्क़ व मुआशक़ा और हिंदूआना रस्म-ओ-रिवाज के मुताबिक़ शादी कर लेने की तसवीरें और वीडियोज़ मौसूल हो रही हैं, वो मुस्लिम समाज के अंदर बहुत ज़्यादा बेचैनी और इज़्तेराबी कैफ़ियत पैदा कर रही हैं।  

यह भी एक हकीकत है कि जितनी खबरें मौसूल हो रही हैं और जितनी तसवीरें और वीडियोज़ आ रही हैं, वो सब की सब सही नहीं बल्कि बहुत सी फ़र्ज़ी कहानियां, झूठी खबरें और अफवाहें भी हैं जिन्हें सोची-समझी साज़िश के तहत फैलाने का काम किया जा रहा है। ताकि हिंदुत्वादी शिद्दत पसंद तंज़ीमें अपने नापाक अज़ाइम को पाय-ए-तक्मील तक आसान तरीकों से पहुंचा सकें। मगर सारी खबरें झूठी भी नहीं हैं। मुअतमद ज़राए से मालूम हुआ है कि पहले के मुकाबले इसमें बहुत तेज़ी आती जा रही है।  

और आये दिन मुल्क के किसी न किसी सूबा व ज़िला से ऐसी खबरें आही जाती हैं जिससे हमारी ग़ैरत का जनाज़ा निकल जाता है।

एक ही मुल्क के हर सूबा व ज़िला और बस्ती में साथ साथ हिन्दू मुस्लिम का इज्तिमाई ज़िन्दगी गुज़ारने की वजह से शाज़ व नादिर ऐसे वाक़ियात पेश आ जाते थे जिसमें एक मुस्लिम लड़के को किसी ग़ैर मुस्लिम लड़की से या एक मुस्लिम लड़की को ऐसे ग़ैर मुस्लिम लड़के से मोहब्बत हो गई और नतीजा भाग कर कोर्ट मैरिज करने तक पहुँच गई मगर ये किसी भी धर्म के मानने वालों के नज़दीक दुरुस्त अमल नहीं बल्कि इस्लाम में तो इस तरह की शादी सिरे से मुनअक़िद ही नहीं हो सकती। मगर मुतशद्दिद **** तंज़ीमें अब मुल्क में फ़िर्क़ावारियत और दंगे फसाद बरपा करने और मुल्क की अमन व शांति को भंग करने के लिए एक मुनज़्ज़म साज़िश के तहत मुस्लिम लड़के की ग़ैर मुस्लिम लड़की के साथ हराम मोहब्बत व शादी को "लव जिहाद" का नाम देकर इन चीज़ों को मुसलमानों के अज़ाइम से जोड़ चुके हैं और अब इसके खिलाफ पूरी क़ुव्वत के साथ ताग़ूती ताक़तें मैदान में आ चुकी हैं, जहाँ मामला उनकी अपनी लड़कियों का आता है तो "लव जिहाद" और दूसरी तरफ़ खुद मुनज़्ज़म साज़िश के तहत मुस्लिम लड़कियों को जाल में फंसा कर प्यार व मोहब्बत का नाम देकर शादी करा देते हैं। ये कैसी दोगली पॉलिसी है? ज़रूरी है कि हुकूमत-ए-हिंद और अदालत-ए-उज़मा इस तरफ़ मज़बूत क़दम उठाएं ताकि इस मामले का हल निकाला जा सके। अब इनका मक़सद हर एक पर वाज़ेह हो चुका है कि ज़्यादा से ज़्यादा मुस्लिम लड़कियों को अपने जाल में फंसा कर शादी-ब्याह और घूमने-फिरने की आज़ादी का लालच दे कर उनके ईमान का सौदा किया जाए और उन लड़कियों की ज़िंदगियाँ तबाह कर दी जाएं। अब तो इस तरह की खबरों से सोशल मीडिया भर चुके हैं आए दिन मुस्लिम लड़कियों का इस्लाम और अपने ख़ानदान को छोड़ कर मुशरिकीन के साथ शादी कर लेने और फिर कुछ ही दिनों के बाद उनके इबरतनाक अंजाम की खबरें सोशल मीडिया पर गश्त करने लगती हैं। साल भर क़ब्ल अख़बार की सुर्ख़ी बनने वाली ये खबर मज़हब छोड़ कर शादी करने वाली ”…….” का इबरतनाक अंजाम यानी बाहर घुमाने की फ़रमाइश करने पर शौहर “……” ने क़त्ल कर दिया क़ुलूब व अज़हान को झंझोड़ने वाली थी। इसी तरह मेरठ से खबर आई कि "....." और "......." नामी लड़कियों के आशिक "........" और “........" ने इन दोनों को दर्दनाक तरीके से ज़द-ओ-क़ुब कर के मार दिया।

यक़ीनन ये खबरें और ये लड़कियाँ बाकी इस तरह के नापाक इरादा रखने वाली लड़कियों के लिए सरापा इबरत का निशान हैं मगर सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने वाली लड़कियाँ उनके इबरतनाक अंजाम की परवाह किए बग़ैर अपने आशिकों पर एतमाद कर के उनके साथ चली जाती हैं हालाँकि उनका भी अंजाम वही होता है, अगर मारी नहीं गईं तो उन्हें भी बे-यार-ओ-मददगार छोड़ दिया जाता है और फिर न ही उन्हें अपने (नाम-निहाद) आशिकों के घर पनाह मिलती है और न ही वालिदैन के घर। तअज्जुब तो इस बात पर है कि इस्लाम की वो मुक़द्दस शहज़ादियाँ जिन्हें उनके दीन-ओ-मज़हब ने सबसे ज़्यादा पर्दे का हुक्म दिया और उन्हें बार-बार मुतनब्बेह किया जाता रहा कि ग़ैर तो ग़ैर अपनों (ग़ैर-महरम मुसलमान) से भी हया करें और अपनी निगाहें नीची करें मगर क्या वजह है कि हमारी इस्लामी बहनों की निगाहें ग़ैर-इस्लामी मर्दों से लड़ने लग गई हैं? क्या वजूहात हैं जो इस्लामी तर्ज़-ए-अमल से उनको बग़ावत करने पर माइल करने लगी हैं? क्यों उनके क़दम लड़खड़ाने लगे हैं? क्यों एक मुसलमान घराने में पैदा होने वाली शहज़ादियाँ अपनी इज़्ज़त-ओ-इस्मत का सौदा करने को तैयार बैठी हैं और जाइज़ तरीके पर निकाह कर के घर बसाने की बजाए अपनी दुनिया-ओ-आख़िरत सब कुछ तबाह कर रही हैं???

अगर इन असबाब व अलल पर निगाह करते हैं तो ये वजूहात सामने आते हैं।


(1) क़ुलूब में ख़ौफ़-ए-ख़ुदा व मोहब्बत-ए-रसूल अलैहिस्सलाम का फ़ुक़दान

(2) मुस्लिम घरानों में इस्लामी और मज़हबी माहौल की जगह मग़रिबी माहौल की पज़ीराई

(3) असरी तालीमात से हद दर्जा लगाव, क़ुरआन व सुन्नत और दीनी व इस्लामी तालीमात से दूरी

(4) लड़के और लड़कियों को असरी आला तालीम दिलाने की ख़ातिर शादी में ताख़ीर करना।

(5) वक़्त गुज़ारी के लिए फ़िल्में, ड्रामे, सीरियल्स, कॉमेडी और फहश व हया सोज़ वीडियोज़ देखना।

(6) लड़के और लड़कियों का असरी उलूम के हुसूल की ख़ातिर ऐसे कॉलेज और यूनिवर्सिटीज़ का रुख़ करना जहाँ बाहमी इख़्तिलात को ग़लत निगाह से नहीं देखा जाता बल्कि मर्द व औरत का क़दम से क़दम मिला कर चलना तरक़्क़ी की राहें हमवार करना समझा जाता है, लड़कों की लड़कियों से दोस्ती को मअयूब नहीं समझा जाता बल्कि इसे भी फ़ैशन के तौर पर देखा जाता है और उनकी हौसला अफ़ज़ाई की जाती है।

(7) ग़ैर मुस्लिम लड़कों से मुस्लिम लड़कों की दोस्ती और उन्हें बख़ुशी अपने घरों तक लाना।

(8) लड़कियों का अपने भाई के ग़ैर मुस्लिम दोस्तों से बे तकल्लुफ़ हो जाना।

(9) वालिदैन का अपने बच्चों की निगरानी न करना बल्कि उन्हें आज़ादी के नाम पर हर तरह की खुली छूट दे देना।

(10) लड़कियों का ख़ुद से पारचून की दुकानों पर जा कर बनाओ सिंगार का सामान ख़रीदना। 

(11) बिला ज़रूरत बग़ैर किसी महरम के अकेले ही मार्केट में ज़ेवरात की दुकानों में जाना।

(12) लड़कियों का घर से बाहर मुकम्मल बन-संवर कर निकलना

(13) हर घर में बल्कि हर फ़र्द के हाथों में एंड्रॉइड मोबाइल का होना।

(14) शादी-ब्याह में जहेज़ के नाम पर लड़के वालों की तरफ़ से लूट-खसोट भी इर्तिदाद की एक बड़ी वजह है। ग़रीब घराने की लड़कियाँ शादी के इंतज़ार में घरों में बैठी रह जाती हैं, कहीं से उनका रिश्ता नहीं आता और अगर आता भी है तो होश उड़ा देने वाली मांगों के सामने लड़की के बाप और भाई को इनकार करने के सिवा और कोई चारा नज़र नहीं आता। औरतों की तादाद मर्दों की बनिस्बत ज़्यादा है फिर औरतों में तलाक़ याफ़्ता या बेवा की भी एक बड़ी तादाद है। ऐसे में ग़ौर करना चाहिए कि क़ुदरत होते हुए भी एक शादी पर इक्तिफ़ा कर लेना कहीं इर्तिदाद का सबब तो नहीं बन रहा। यह सारी वह वजहें हैं जिनसे आज हमारी नस्ल नव बहकती, बिगड़ती और अपने दीन व मजहब से बग़ियाना रवैया इख़्तियार करती जा रही है। अगर यही सिलसिला रहा और उनकी बेहतरीन तालीम व तरबियत और उनकी हरकतें व सकनात पर कड़ी निगाह नहीं रखी गई और जो हालिया ख़बरें मौसूल हो रही हैं उससे होश के नाख़ून न लिए गए तो वह दिन दूर नहीं जब हम अपनी औलाद की ज़लील हरकतों से ज़िल्लत व रूसवायी के गड्ढे में जा गिरेंगे और हमारा हाल ना-गुफ्ता बिह हो जाएगा और आने वाली नस्लें इस बे-हयाई और गलत रोई का हमें ज़िम्मेदार ठहराएंगी।  

इसलिए वक़्त रहते हमें अपनी इस्लामी हिस्स महसूस करनी और ग़फलत की दबीज़ चादर को परे हटा कर बेदार होना होगा और अपने घरों को इस्लामी तालीमात और इस्लामी महौल से आरा'स्ता करना होगा तभी जाकर हम ऐसी ज़िल्लतों से महफूज़ हो सकते हैं। क्योंकि इसका वाहिद और सबसे बेहतरीन हल इस्लामी महौल और इस्लामी क़वानीन पर हत्ता -उल -इम्कान अमल पेरा होना है। अब हमारे लिए जानना ज़रूरी है कि इस्लाम में इस तअल्लुक़ से क्या हुक्म सादिर हुआ है। ताकि इस फ़ितना-ए-इरतिदाद पर लगाम लगाना आसान हो सके। 

इस्लाम में मुशरिकीन से शादी 

क़ुरआन मजीद में अल्लाह रब्बुल-इज़्जत ने इर्शाद फरमाया। 

तरजुमा कंजुल-इमान: और शिर्क वाली औरतों से निकाह न करो जब तक वो मुसलमान न हो जाएं। और बेशक मुसलमान लौंडी मुश्रीका से बेहतर है, हालांकि वह तुम्हें भाती हो और मुशरिकों के निकाह में न दो जब तक वह ईमान न लाएं और बेशक मुसलमान ग़ुलाम मुशरिक से बेहतर है हालांकि वह तुम्हें भाता हो। वह दोज़ख़ की तरफ बुलाते हैं और अल्लाह जन्नत और माफ़ी की तरफ बुलाता है अपने हुक्म से।  

ख़ुलासा यह है कि इंसानी फ़ितरत है कि खूबसूरत और पुर कशिश चीज़ों की तरफ तबियत का मैलान ज़्यादा होता है मगर हर अच्छी रखने वाली चीज़ की क़ुर्बत फ़ायदा मन्द नहीं होती। ठीक इसी तरह एक मर्द का खूबसूरत औरत की तरफ तबियत और ज़हन का मैलान फ़ितरी है मगर यह जवाज़ की हद में हो तो सुकून बख्श है वरना इसके मुज़िर नताइज से तारीख पुर है। इस लिए मुशरिक मर्द या मुशरिका औरत से एक मुसलमान की शादी नहीं हो सकती हालांकि वह खूबसूरती के एतबार से जितने अच्छे भले मालूम होते हैं क्योंकि यह अच्छी दिखने वाली ऐसी चीज़ है कि इससे जान और जान से क़ीमती शै ईमान के लिए ज़हर-ए-हलाहल है। 

मज़कूरा आयत करीमा शादी ब्याह के ज़रिये फितना-ए-इर्तिदाद से बचने का मुकम्मल हल है। लेकिन साथ में ज़िना कारी व बदकारी से बचने के मुताल्लिक जितनी ज़्यादा इहतियाती तदाबीर अपनाने का इस्लाम ने आपस में हुक्म दिया है उस से कहीं ज़्यादा इहतियात गैर मुस्लिमों और मुशरिकों से अपनाना होगा। तब ही जा कर हम इस तबाही से बच सकते हैं।

इस्लाम में ज़िनाकारी व बदकारी से बचने का नुस्खा क्या

अल्लाह रब्बुल-इज़्जत ने क़ुरआन मुक़द्दस में इर्शाद फरमाया:

तरजुमा कंजुल-इमान: मुसलमान मर्दों को हुक्म दो अपनी निगाहें कुछ नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें यह उनके लिए बहुत सुथरा है बेशक अल्लाह को उनके कामों की ख़बर है। और मुसलमान औरतों को हुक्म दो अपनी निगाहें कुछ नीची रखें और अपनी पारसाई की हिफाज़त करें और अपना बनाव-सिंगार ज़ाहिर न करें।

ज़िना के क़रीब भी जाने से मना

तरजुमा कंजुल-इमान: और बदकारी के पास न जाओ बेशक वह बेहयाई है और बहुत ही बुरी राह

क़ुरआन मुक़द्दस ने इस दर्जा मर्द और औरत को पर्दा का हुक्म दिया अगर इस पर मुसलमान अमल पैरा हो जाएं तो इंशा अल्लाह समाज से बेहयाई, बे-पर्दगी और मग़रिबी ज़ेहनियत का भूत दिमाग से निकल जाएगा और लड़कियों का गैर मुसलमान लड़कों से रस्म व राह रखना तो बड़ी दूर की बात है मुसलमान अजनबी मर्दों से भी पर्दा करने लगेंगी। इसके लिए इमामे मसाजिद और उलमा-ए-किराम को चाहिए कि वह पर्दा और इस्लामी तालीमात के मुताल्लिक ख़वातीन-ए-इस्लाम के पाकीज़ा वाक़ियात मसाजिद व मुहाफ़िल में सुनाएं और बेटियों के बाप और भाईयों की ज़हन साज़ी करें ताकि वह अपने-अपने घरों की बहन, बेटी और बहुओं के अंदर हया और इफ्फत व पाकीज़गी और पारसाई का जज़्बा बेदार कर सकें। ज़ेल में ख़वातीन-ए-इस्लाम के कुछ ईमान अफ़रोज़ वाक़ियात क़लमबंद किए जाते हैं जो कार-आमद होंगे।

उम्मुल मोमिनीन हज़रत सौदाह का पर्दा

उम्मुल मोमिनीन हज़रत सौदाह रज़ी अल्लाह अन्हा से अर्ज़ की गई: आप को क्या हो गया है कि आप बाक़ी अज़्वाज की तरह हज करती हैं न उमरा? तो आप रज़ी अल्लाह अन्हा ने फरमाया: मैंने हज व उमरा कर लिया है, चूँकि मेरे रब ने मुझे घर में रहने का हुक्म फरमाया है। लिहाज़ा खुदा की क़सम! अब मैं पैग़ाम-ए-अजल (मौत) तक घर से बाहर न निकलूंगी, रावी फरमाते हैं: अल्लाह की क़सम! आप रज़ी अल्लाह अन्हा घर के दरवाज़े से बाहर न निकलीं यहाँ तक कि आपका जनाज़ा ही घर से निकाला गया।

उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा का पर्दा

उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा सिद्दीका रज़ी अल्लाह अन्हा फरमाती हैं: जब मैं अपने उस घर में दाख़िल होती जिसमें रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम और मेरे वालिद दफन हैं तो इस ख़्याल से अपनी ओढ़नी न लेती कि यहाँ तो मेरे शौहर और वालिद हैं, मगर जब से उमर फ़ारूक़ रज़ी अल्लाह अन्हु वहां दफन हुए तो ख़ुदा की क़स्म! मैं उनसे शर्म के बाइस पर्दे में हाज़िर होती हूँ।

(मुसनद अहमद ब हवाला सहाबियात और पर्दा स: 34)

बेटा खोया है, हया नहीं

अबू दाऊद शरीफ़ में है कि हज़रत उम्म खल्लाद रज़ी अल्लाह अन्हा का बेटा जंग में शहीद हो गया। आप रज़ी अल्लाह अन्हा उनके बारे में मालूमात हासिल करने के लिए नक़ाब डाले बारगाह रिसालत में हाज़िर हुईं तो इस पर किसी ने हैरत से कहा: इस वक्त पर्दे में हैं! कहने लगीं: मैंने बेटा खोया है हया नहीं।

(अबू दाऊद शरीफ़, किताबुल जिहाद, बाब-ए-फ़ज़ल क़िताल हदीस नंबर 3488)

हालत मर्ज़ में बे-पर्दा हो जाने की फिक्र

अता बिन अबी रबह से रिवायत है वह फरमाते हैं कि हज़रत अब्दुल्लाह इब्न अब्बास रज़ी अल्लाह अन्हु ने मुझसे इर्शाद फरमाया: क्या मैं तुझे जन्नती औरत न दिखाऊँ? मैंने अर्ज़ किया: क्यों नहीं ज़रूर दिखाइए! फरमाया: ये काली औरत नबी अलैहिस्सालतु वस्सलाम की बारगाह में आई और अर्ज़ की: मुझे मिर्गी का दौरा पड़ता है तो मैं बे-पर्दा हो जाती हूँ तो अल्लाह रब्बुल इज़्जत की बारगाह में मेरे लिए दुआ फरमाइए! हुज़ूर ने इर्शाद फरमाया: अगर तू चाहे तो सबर कर और तेरे लिए जन्नत हो और अगर तू चाहे तो मैं अल्लाह से दुआ कर दूं कि वह तुझे आफियत अता फरमाए। तो उसने अर्ज़ की: मैं सबर करूंगी फिर उसने इल्तिजा की के मैं बे-पर्दा हो जाती हूँ आप दुआ फरमाएं कि मेरी बे-सतरी न हुआ करे तो हुज़ूर अलैहिस्सालतु वस्सलाम ने इसके लिए दुआ फरमा दी।

(रियाज़ुस्सालेहीन, बाबुस्सबर स: 23 मजलिस अल-बर्कात जामिआ अशरफिया मुबारकपुर)

कपड़े के धागे पर भी गैर महरम की निगाह नहीं पड़ी

शेख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी रहमतुल्लाह अलैह अख़बारुल अख़ियार में फरमाते हैं कि एक मर्तबा खुश्क साली हुई, लोगों ने बहुत दुआएं कीं मगर बारिश नहीं हुई, तो शेख़ निज़ामुद्दीन अबू अल-मुअय्यद रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी वालिदा माजिदा के पाकीज़ा दामन का एक धागा अपने हाथों में लिया और बारगाह रब्बुल इज़्जत में यूं अर्ज़ की: ऐ अल्लाह! यह उस ख़ातून के दामन का धागा है जिस पर कभी किसी नामहरम की नज़र न पड़ी, मौला इसके तुफैल से बारिश की रहमत नाज़िल फरमा। मुहद्दिस देहलवी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं कि अभी शेख़ निज़ामुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह ने यह जुमला कहा ही था कि छमाछम बारिश बरसने लगी।

अख़बारुल अख़ियार स: 294

मज़कूरा रिवायतें और वाक़ियात में ख़वातीन-ए-इस्लाम और उनके सरपरस्तों के लिए नसीहत है कि वह भी अपनी घर की औरतों को पर्दा का एहतमाम कराएं, हिजाब की फज़ीलत और बेहयाई की तबाही के नुक़सानात को बताएं ताकि इस्लामी बहनें इससे सबक़ हासिल करें और पर्दे में रहने का ज़ेहन हमेशा के लिए बना लें और घर में इस तरह का माहौल बनाएं कि ज़िना और उसके लवाज़मात व असबाब जैसी बुराईयाँ घरों और समाज व मुआशरे से निकल जाएं।

ज़िना के असबाब नौ हैं।

(1) बे-पर्दा औरतों का अजनबी लोगों में चलना फिरना

(2) अजनबी से ख़लवत में बैठना, मिलना मिलाना

(3) भड़कीला फैनिशी लिबास पहनकर अजनबी के सामने आना

(4) मख्लूत तालीम

(5) फिल्म और ड्रामे और तसवीरें देखना

(6) गाने नाच और तबले सारंगी सुनना

(7) चुस्त लिबास पहनना

(8) सुर्खी पाउडर लगाकर आम महफिलों में आना

(9) दुकानों में कारोबार औरतों के हाथ में देना जबकि गैर मर्द भी ग्राहक हों। शरीयत में अजनबी हर वह शख्स है जिससे निकाह जायज़ हो।  

(तफ्सीर नाईमी जिल्द 15 स: 167)

इन तमाम इहतियाती तदाबीर के बावजूद शामत-ए-नफ्स की वजह से किसी से ज़िना सरज़द हो जाए तो फिर शरीयत ने इसकी सज़ा मुकर्रर की है, अगर दोनों यानी ज़ानी और ज़ानिया गैर शादीशुदा हों तो उन्हें सौ कोड़े मारने हैं और शादीशुदा हों तो उन्हें संगसार करना है। अगर इस इस्लामी क़ानून को नाफ़िज़ कर दिया जाए तो समाज से बहुत हद तक ज़िना जैसी बुराई का ख़ात्मा हो जाएगा। मगर चूँकि यहाँ इस्लामी क़ानून न होने की वजह से मज़कूरा सज़ा नहीं दी जा सकती, इसलिए समाज के लोग मुनासिब सज़ा तजवीज़ करेंगे और न मानने की सूरत में समाजी बायकॉट करने का हुक्म है ताकि यह बुराई जड़ से ख़त्म हो।

अब क़ाबिल-ए-ग़ौर बात यह है कि जब आपसी हुक्म इतना शदीद है तो गैरों के साथ का कितना शदीद हुक्म होगा। यकीनन इसमें ईमान व अक़ीदा और जिस्म व जान सब का ख़तरा है, इस लिए इसके सद्द-ए-बाब के लिए हर मुमकिन कोशिश की जाए।

अल्लाह रब्बुल इज़्जत क़ौम की बेटियों को इस बला से महफूज़ रखे। आमीन


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