इस्लाम में ज़िनाकारी व बदकारी से बचने का नुस्खा क्या अस्सलामु अलैकुम दोस्तों आज के समय में जहाँ सोशल मीडिया और आधुनिक माहौल हमारी बेटियों और जवानों को बेपर्दगी और ग़लत रिश्तों की तरफ खींच रहा है, वहाँ यह जानना बेहद जरूरी है कि इस्लाम ने ज़िनाकारी और बदकारी से बचने के लिए क्या नुस्ख़े बताए हैं। इस पोस्ट में हम क़ुरआन और हदीस की रोशनी में समझेंगे कि मुसलमान मर्द और औरत कैसे अपनी इज्ज़त, हया और इमान को बचा सकते हैं और समाज से बेहयाई को दूर रख सकते हैं।
सोशल मीडिया और मौजूदा हालात
हालीया दिनों में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से जिस तेज़ी के साथ मुस्लिम लड़कियों का गैर-मुस्लिम लड़कों के साथ इश्क व मुआशका और हिंदूआना रस्म-ओ-रिवाज के मुताबिक़ शादी कर लेने की तसवीरें और वीडियोज़ मौसूल हो रही हैं वो मुस्लिम समाज के अंदर बहुत ज़्यादा बेचैनी और इज़्तेराबी कैफ़ियत पैदा कर रही हैं
यह भी एक हकीकत है कि जितनी खबरें मौसूल हो रही हैं और जितनी तसवीरें और वीडियोज़ आ रही हैं वो सब की सब सही नहीं बल्कि बहुत सी फ़र्ज़ी कहानियां झूठी खबरें और अफवाहें भी हैं जिन्हें सोची-समझी साज़िश के तहत फैलाने का काम किया जा रहा है ताकि हिंदुत्वादी शिद्दत पसंद तंज़ीमें अपने नापाक अज़ाइम को पाय-ए-तक्मील तक आसान तरीकों से पहुंचा सकें मगर सारी खबरें झूठी भी नहीं हैं मुअतमद ज़राए से मालूम हुआ है कि पहले के मुकाबले इसमें बहुत तेज़ी आती जा रही है
समाज पर असर और बेदारी की ज़रूरत
और आये दिन मुल्क के किसी न किसी सूबा व ज़िला से ऐसी खबरें आही जाती हैं जिससे हमारी ग़ैरत का जनाज़ा निकल जाता है
एक ही मुल्क के हर सूबा व ज़िला और बस्ती में साथ साथ हिन्दू मुस्लिम का इज्तिमाई ज़िन्दगी गुज़ारने की वजह से शाज़ व नादिर ऐसे वाक़ियात पेश आ जाते थे जिसमें एक मुस्लिम लड़के को किसी ग़ैर मुस्लिम लड़की से या एक मुस्लिम लड़की को ऐसे ग़ैर मुस्लिम लड़के से मोहब्बत हो गई और नतीजा भाग कर कोर्ट मैरिज करने तक पहुँच गई मगर ये किसी भी धर्म के मानने वालों के नज़दीक दुरुस्त अमल नहीं बल्कि इस्लाम में तो इस तरह की शादी सिरे से मुनअक़िद ही नहीं हो सकती
मगर मुतशद्दिद तंज़ीमें अब मुल्क में फ़िर्क़ावारियत और दंगे फसाद बरपा करने और मुल्क की अमन व शांति को भंग करने के लिए एक मुनज़्ज़म साज़िश के तहत मुस्लिम लड़के की ग़ैर मुस्लिम लड़की के साथ हराम मोहब्बत व शादी को लव जिहाद का नाम देकर इन चीज़ों को मुसलमानों के अज़ाइम से जोड़ चुके हैं और अब इसके खिलाफ पूरी क़ुव्वत के साथ ताग़ूती ताक़तें मैदान में आ चुकी हैं
मुस्लिम लड़कियों को जाल में फँसाने की साज़िश
जहाँ मामला उनकी अपनी लड़कियों का आता है तो लव जिहाद और दूसरी तरफ़ खुद मुनज़्ज़म साज़िश के तहत मुस्लिम लड़कियों को जाल में फंसा कर प्यार व मोहब्बत का नाम देकर शादी करा देते हैं ये कैसी दोगली पॉलिसी है ज़रूरी है कि हुकूमत-ए-हिंद और अदालत-ए-उज़मा इस तरफ़ मज़बूत क़दम उठाएं ताकि इस मामले का हल निकाला जा सके
अब इनका मक़सद हर एक पर वाज़ेह हो चुका है कि ज़्यादा से ज़्यादा मुस्लिम लड़कियों को अपने जाल में फंसा कर शादी-ब्याह और घूमने-फिरने की आज़ादी का लालच दे कर उनके ईमान का सौदा किया जाए और उन लड़कियों की ज़िंदगियाँ तबाह कर दी जाएं
अब तो इस तरह की खबरों से सोशल मीडिया भर चुके हैं आए दिन मुस्लिम लड़कियों का इस्लाम और अपने ख़ानदान को छोड़ कर मुशरिकीन के साथ शादी कर लेने और फिर कुछ ही दिनों के बाद उनके इबरतनाक अंजाम की खबरें सोशल मीडिया पर गश्त करने लगती हैं
इबरतनाक वाक़ियात
साल भर क़ब्ल अख़बार की सुर्ख़ी बनने वाली ये खबर मज़हब छोड़ कर शादी करने वाली …… का इबरतनाक अंजाम यानी बाहर घुमाने की फ़रमाइश करने पर शौहर …… ने क़त्ल कर दिया क़ुलूब व अज़हान को झंझोड़ने वाली थी
इसी तरह मेरठ से खबर आई कि ….. और …… नामी लड़कियों के आशिक …… और …… ने इन दोनों को दर्दनाक तरीके से ज़द-ओ-क़ुब कर के मार दिया
मौजूदा हालात से सबक़ हासिल करने की ज़रूरत
यक़ीनन ये खबरें और ये लड़कियाँ बाकी इस तरह के नापाक इरादा रखने वाली लड़कियों के लिए सरापा इबरत का निशान हैं मगर सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने वाली लड़कियाँ उनके इबरतनाक अंजाम की परवाह किए बग़ैर अपने आशिकों पर एतमाद कर के उनके साथ चली जाती हैं
हालाँकि उनका भी अंजाम वही होता है अगर मारी नहीं गईं तो उन्हें भी बे-यार-ओ-मददगार छोड़ दिया जाता है और फिर न ही उन्हें अपने आशिकों के घर पनाह मिलती है और न ही वालिदैन के घर
गिरती हया और दीन से दूरी
तअज्जुब तो इस बात पर है कि इस्लाम की वो मुक़द्दस शहज़ादियाँ जिन्हें उनके दीन-ओ-मज़हब ने सबसे ज़्यादा पर्दे का हुक्म दिया और उन्हें बार-बार मुतनब्बेह किया जाता रहा कि ग़ैर तो ग़ैर अपनों से भी हया करें और अपनी निगाहें नीची करें मगर क्या वजह है कि हमारी इस्लामी बहनों की निगाहें ग़ैर-इस्लामी मर्दों से लड़ने लग गई हैं
क्या वजूहात हैं जो इस्लामी तर्ज़-ए-अमल से उनको बग़ावत करने पर माइल करने लगी हैं क्यों उनके क़दम लड़खड़ाने लगे हैं क्यों एक मुसलमान घराने में पैदा होने वाली शहज़ादियाँ अपनी इज़्ज़त-ओ-इस्मत का सौदा करने को तैयार बैठी हैं
गिरावट की वजूहात
अगर इन असबाब व अलल पर निगाह करते हैं तो ये वजूहात सामने आते हैं
(1) क़ुलूब में ख़ौफ़-ए-ख़ुदा व मोहब्बत-ए-रसूल अलैहिस्सलाम का फ़ुक़दान
(2) मुस्लिम घरानों में इस्लामी और मज़हबी माहौल की जगह मग़रिबी माहौल की पज़ीराई
(3) असरी तालीमात से हद दर्जा लगाव क़ुरआन व सुन्नत और दीनी व इस्लामी तालीमात से दूरी
(4) लड़के और लड़कियों को असरी आला तालीम दिलाने की ख़ातिर शादी में ताख़ीर करना
(5) वक़्त गुज़ारी के लिए फ़िल्में ड्रामे सीरियल्स कॉमेडी और फहश वीडियोज़ देखना
(6) लड़के और लड़कियों का असरी उलूम की ख़ातिर ऐसे कॉलेज और यूनिवर्सिटीज़ का रुख़ करना जहाँ मर्द व औरत का क़दम से क़दम मिला कर चलना तरक़्क़ी समझा जाता है
(7) ग़ैर मुस्लिम लड़कों से मुस्लिम लड़कों की दोस्ती और उन्हें अपने घरों तक लाना
(8) लड़कियों का अपने भाई के ग़ैर मुस्लिम दोस्तों से बे तकल्लुफ़ हो जाना
(9) वालिदैन का अपने बच्चों की निगरानी न करना
(10) लड़कियों का अकेले बाज़ार जाना
(11) बन-संवर कर घर से निकलना
(12) मोबाइल का हर हाथ में होना
(13) जहेज़ की लानत और शादी में देरी
इस्लामी माहौल की ज़रूरत
अगर यही सिलसिला रहा और निगरानी न हुई तो वो दिन दूर नहीं जब हमारी औलाद की हरकतों से ज़िल्लत व रूसवायी का सामना करना पड़ेगा
इसलिए हमें अपनी इस्लामी हिस्स महसूस करनी और घरों को इस्लामी तालीमात और माहौल से आरा'स्ता करना होगा तभी जाकर हम ऐसी ज़िल्लतों से महफूज़ हो सकते हैं
इस्लाम में मुशरिकीन से शादी का हुक्म
क़ुरआन मजीद में अल्लाह रब्बुल-इज़्जत ने इर्शाद फरमाया
तरजुमा कंजुल-इमान
और शिर्क वाली औरतों से निकाह न करो जब तक वो मुसलमान न हो जाएं और बेशक मुसलमान लौंडी मुश्रीका से बेहतर है हालांकि वह तुम्हें भाती हो और मुशरिकों के निकाह में न दो जब तक वह ईमान न लाएं
नतीजा
ख़ुलासा यह है कि इंसानी फ़ितरत है कि खूबसूरत चीज़ों की तरफ तबियत का मैलान ज़्यादा होता है मगर हर अच्छी चीज़ की क़ुर्बत फ़ायदा मन्द नहीं होती
ज़िनाकारी से बचाव के क़ुरआनी उसूल
अल्लाह रब्बुल-इज़्जत ने क़ुरआन में इर्शाद फरमाया
मुसलमान मर्दों को हुक्म दो अपनी निगाहें नीची रखें और मुसलमान औरतों को हुक्म दो अपनी निगाहें नीची रखें और अपनी पारसाई की हिफाज़त करें
ज़िना के क़रीब भी न जाओ
तरजुमा कंजुल-इमान
और बदकारी के पास न जाओ बेशक वह बेहयाई है और बहुत ही बुरी राह
पर्दा का हुक्म और उसकी अहमियत
अगर मुसलमान अमल करें तो समाज से बेहयाई बे-पर्दगी और मग़रिबी ज़ेहनियत खत्म हो जाएगी
उम्मुल मोमिनीन का पर्दा
हज़रत सौदाह और हज़रत आयशा रज़ी अल्लाह अन्हुमा के पर्दे के वाक़ियात
हया की मिसालें
हज़रत उम्म खल्लाद और वह औरत जिसका मिर्गी के दौरान भी हया का ख्याल रहा
हया से रहमत की बारिश
शेख़ निज़ामुद्दीन की वालिदा के दामन का धागा और बारिश की रहमत
पर्दे की तालीम और घर का माहौल
मज़कूरा रिवायतें और वाक़ियात में ख़वातीन और उनके सरपरस्तों के लिए नसीहत है कि घरों में हया और इफ्फ़त का माहौल बनाएं
ज़िना के असबाब
(1) बे-पर्दा औरतों का अजनबी में चलना
(2) अजनबी से मिलना
(3) भड़कीला लिबास
(4) मखलूत तालीम
(5) फिल्में और तसवीरें
(6) गाने और नाच
(7) चुस्त लिबास
(8) सज-संवर कर महफ़िल में आना
(9) कारोबार औरतों के हाथ में देना जबकि गैर मर्द ग्राहक हों
ज़िना की सज़ा
अगर ज़िना सरज़द हो जाए तो शरीयत ने सज़ा मुकर्रर की है
गैर शादीशुदा हों तो सौ कोड़े और शादीशुदा हों तो संगसार करना
आखिर में दुआ
अल्लाह रब्बुल-इज़्जत क़ौम की बेटियों को इस बला से महफूज़ रखे आमीन
