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mendak ko kyon nahin marna chahiye हदीस ए रसूल से जानें

हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम और मेंढक

इस्लाम हर मख़लूक़ को अहमियत देता है और हमें अल्लाह की बनाई हर चीज़ से मोहब्बत करने की तालीम देता है। हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ने न सिर्फ इंसानों, बल्कि जानवरों और हर किसी से रहमत और करम का सुलूक किया। इस रिवायत में हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम और एक मेंढक के दरमियान का वाक़िया बयान किया गया है, जिसमें तस्बीह की अहमियत और अल्लाह की मख़लूक़ की तस्बीह पढने का ज़िक्र है।  

क़ुरआन मजीद में है  

तर्जमा: जो चीज़ आसमानों और ज़मीन में है, वह अल्लाह की तस्बीह करती है।  

तस्बीह पढने वाली मेंढक

हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ने फ़रमाया:  

तर्जमा: मेंढक-को मत-मारो, क्योंकि वह बहुत-ज़्यादा अल्लाह (तआला) की तस्बीह-करता है। और उसकी-तस्बीह यह है”  

"पाक है वह ज़ात जिसकी दरिया के मौजों के दरमियान भी इबादत की जाती है।"

मेंढक के पास हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम तशरीफ ले गए।

हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम एक दरख़्त के नीचे बैठे थे। आपके गोश-ए-मुबारक में मेंढक की तस्बीह की आवाज़ आई। आप उठकर मेंढक के पास तशरीफ़ ले गए। हज़रत जिब्रईल हाज़िर हुए और अर्ज़ किया:  

"या रसूलअल्लाह! यह मेंढक छह माह से प्यासा था। चालीस दिन गुज़र चुके हैं, यह पानी के दरमियान ऐसा मशग़ूल है कि बारिश की उसे अब तक खबर नहीं हुई।"  

आप इसे देखकर रोने लगे और फ़रमाया:  

"ऐ मेंढक! तुझे मुबारक हो, क्योंकि तूने मेरे रब की अरबी ज़बान में तस्बीह की है, इसलिए तू मेरा दोस्त है।"  

आप सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ने मेंढक से पूछा:  

"तू अल्लाह की कितनी बार तस्बीह करता है?"  

मेंढक ने अर्ज़ किया:  

"ऐ अल्लाह के रसूल! मैं एक दिन में दो हज़ार बार अल्लाह की तस्बीह पढ़ता हूँ।"  

तस्बीह की अहमियत और फ़ज़ीलत

आप सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ने फ़रमाया:  

ए मोमिन, तू-देख कि मेंढक अल्लाह की किस क़दर-तस्बीह करता है और तू बेकार-रहता है।"  

आप सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:  

"सब तस्बीहों की सरदार तस्बीह: 

सुब्हानल्लाहि, वल्हम्दुलिल्लाहि, वला-इलाहा, इल्लल्लाहु, वल्लाहु-अकबर, है।  

जो एक बार यह तस्बीह पढ़े, उसे दस हज़ार गुलाम आज़ाद करने का सवाब मिलेगा और अपनी जगह से न उठे मगर बख्शा हुआ।"  

तस्बीह की बरकतें

आप सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ने फ़रमाया:  

*2 कल्मे ज़ुबान-पर हल्के हैं, मीज़ान-में-वज़्नी हैं और अल्लाह (तआला) के-नज़दीक प्यारे हैं। और वह दोनों कल्मे*

“सुब्हानल्लाहि-वबिहम्दिही, सुब्हानल्लाहिल-अज़ीम, वबि-हम्दिहि, हैं।"  

हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ने फ़रमाया:  

"जो शख्स *सुब्हानल्लाहि-वबिहम्दिही* कहे, तो उसके लिए अल्लाह तआला दस लाख नेकियां लिखता है, दस लाख बुराइयां दूर करता है और जन्नत में उसके दस लाख दर्जे बुलंद करता है।  

जो शख़्स हर रोज़ नमाज़-ए-फ़ज्र से पहले सौ मरतबा पढ़े, उसके गुनाह दूर किए जाते हैं, अगरचे समुंदर की झाग के बराबर हों।"  

एक और हदीस में इरशाद फ़रमाया:  

"जो शख़्स इन कलिमात को सुबह-शाम सौ-सौ मरतबा कहे, अल्लाह तआला उसके नामा-ए-आमाल में मक़बूल हज का सवाब लिखता है।"  

दोस्तों: यह वाक़िया हमें सिखाता है कि हर मख़लूक़ अल्लाह की तस्बीह में मशग़ूल है, फिर इंसान को तो अल्लाह की इबादत में सबसे आगे होना चाहिए। तस्बीह न सिर्फ दिल को सुकून देती है, बल्कि हमारे गुनाहों की माफ़ी का ज़रिया भी है। हमें चाहिए कि हम तस्बीह को अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाएँ और अल्लाह का कुर्ब और उसकी रज़ा हासिल करने की कोशिश करें।


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