हुज़ूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम के ख़ुत्बे की असर-अंगेज़ी
हज़ूर नबी-ए-करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम के ख़ुत्बे और वअज़ की तासीर और आपकी आवाज़ और तर्ज़-ए-ख़िताब ऐसा होता, जो पत्थर दिलों को मोम कर देता और सुनने वालों के दिलों में ख़ौफ़-ए-ख़ुदा, और मोहब्बत-ए-रसूल भर देता। जुमा, ईद और दूसरे खास मौक़ों पर दिए गए ख़ुत्बे, इंसानियत के लिए रहनुमाई का अज़ीम सरमाया भी थे।
हज़ूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम का ख़ुत्बा व वअज़ रिक्क़त-अंगेज़ी और तासीर में दर हक़ीक़त मुअजिज़ा-ए-इलाही था।
पत्थर से पत्थर दिल आपका ख़ुत्बा सुनकर नरम हो जाते। जुमा के ख़ुत्बे में आम तौर पर ज़ुहद, हुस्न-ए-अख़लाक़, ख़ौफ़-ए-क़यामत, अज़ाब-ए-क़ब्र, तौहीद और सिफ़ात-ए-इलाही बयान फ़रमाते थे। हफ़्ते में अगर कोई अहम वाक़िआ पेश आता, तो उसके मुताल्लिक हिदायत फ़रमाते।
हुज्जत-उल-वदा हज़ूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम की उम्र-ए-पाक का आख़िरी ख़ुत्बा था। इस मौक़े पर हज़ूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने एक लाख सहाबा को क़ुसवा नामी ऊंटनी पर सवार होकर ख़िताब फ़रमाया। उस ज़माने में आवाज़ पहुँचाने के लिए लाउडस्पीकर तो नहीं थे, लेकिन हज़ूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम का ये इजाज़ था कि पूरे मजमा को आवाज़ बराबर पहुँच रही थी। यहाँ तक कि दौरान-ए-ख़ुत्बा हज़ूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने एक सहाबी से फ़रमाया: "बैठ जाओ।"
हज़रत अब्दुल्लाह बिन रवाहा कहते हैं: "बैठ जाओ" की आवाज़ मैंने अपने घर पर सुनी और उसी हुक्म-ए-नबवी की तामील में ताज़ीमन बैठ गया।
हज़रत अल्लामा जलालुद्दीन सियूती रहमतुल्लाह अलैह ने इस मौज़ू की मुतअद्दिद अहादीस "ख़साइस-ए-कुबरा" में ज़िक्र की हैं कि ख़ुत्बा-ए-मुबारक की आवाज़ परदा-नशीन मस्तुरात को उनके घरों में भी पहुँच रही थी।
दोस्तों: आपने पढ़ा हुज़ूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम के खुत्बा मुबारक की तासीर और आपकी आवाज़ मुबारक के बारे में, के मजमा कितना ही बड़ा क्यों न होता , आवाज़ सबको बराबर पहुँच जाती।
अस्सलातु वस्सलामु अलैका या रसूलअल्लाह
अस्सलातु वस्सलामु अलैका या हबीबअल्लाह
अस्सलातु वस्सलामु अलैका या नबीअल्लाह
व,अला आलिका व अस्हाबिका या रसूलअल्लाह।
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