सहाबा ए किराम का अक़ीदा, नबी ज़िंदा हैं।
सहाबा ए किराम का अक़ीदा था के, आक़ा व मौला सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम , विसाले ज़ाहिरी के बाद रोज़ा ए अतहर में ज़िंदा हैं, इसलिए हज़रत अबू बकर रदी अल्लाहु अन्हू ने विसाल से क़ब्ल यह वसीयत फरमाई के., मेरा जनाज़ा, हुज़ूर नबी करीम रऊफुर्रहीम सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम हुजरा-ए-मुबारका के सामने रख देना,. और इजाज़त तलब करना, अगर दरवाज़ा खुल जाए , और इजाज़त मिल जाए, तो मुझे हुजरा-ए-मुबारक के अंदर दफन करना , वर्ना आम क़ब्रिस्तान में दफन कर देना,. सहाबा किराम ने ऐसा ही किया, जब आप का जनाज़ा रोज़ा ए मुबारका के सामने रखा गया, तो दरवाज़ा खुल गया, और रोज़ा ए अक्दस से आवाज़ आई,) (दोस्त को दोस्त के पास ले आओ,।
(तफसीर कबीर/ख़साइस उल कुबरा)
सुब्हान अल्लाह
निगाहे नुबुव्वत।
हज़रत अनस बिन मालिक रदीअल्लाहु अन्हु से मर्वी है। के नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया। पहले ज़ैद ने झंडा उठाया, वह शहीद हो गए। फिर जाफर ने झंडा उठाया, तो वह भी शहीद हो गए। फिर अब्दुल्लाह बिन रवाहा ने उठाया, वह भी शहीद हो गए। नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम यह फरमा रहे थे, और आपकी चश्माने मुबारक से आंसू बह रहे थे। फिर आपने फरमाया, अब खालिद बिन वलीद ने झंडा ले लिया, तो अब मुसलमानों को फतह नसीब हो गई है।
(बुखारी शरीफ)
यह जंगे मौता का वाक़िआ है। जो 8 हिजरी में मुल्के शाम में बैतुल मुक़द्दस के करीब, मदीना मुनव्वरा से हज़ारों मील की मुसाफत पर हो रही थी। और महबूबे खुदा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, मदीना तय्यबा में मुलाहिज़ा फरमा रहे थे। और अपने सहाबा को, वहां के हालात से वाकिफ करा रहे थे। और यके बाद दीगरे , शहीद होने वाले सहाबा के नाम भी बता रहे हैं। और जां निसारों की शहादत पर आंसू भी बह रहे हैं,। मालूम हुआ, वाक़ई आप दाना ए कुल। खत्मे रुसुल। हादी ए सुबुल हैं। जो अपनी निगाहे नुबुव्वत से जंग का मुशाहिदा फरमा रहे थे।
हुज़ूर का मोअज्ज़ा।
हज़रत जाबिर फ़रमाते हैं कि हुदैबिया के रोज़ लोग प्यास से दोचार हुए और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास एक बर्तन था, जिस से वज़ू फरमा रहे थे। जब लोग हुज़ूर की ख़िदमत में हाज़िर हुए तो आपने पूछा क्या मामला है ? लोगों ने कहा या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, हमारे पास वुज़ू करने और पीने के लिये पानी नहीं है। बस यही था जो इस बरतन के अन्दर हुज़ूर की खिदमत में पेश कर दिया गया। रावी का बयान है कि आप ने बरतन में अपना हाथ डाल दिया तो आप की उंगलियों से चश्मों की तरह पानी फूट निकला तो हमने पिया और वुज़ू किया। रावी कहते हैं मैं ने हज़रत जाबिर से पूछा कि तूम-कितने लोग थे, आप ने फरमाया अगर 100 हज़ार भी होते तो वो पानी काफी हो जाता, लेकिन हम पंदरह सौ थे।
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दुआ मुबारक।
हज़रत जाबिर इब्ने अब्दुल्लाह से मरवी है कि, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि, हर नबी को एक मकबूल दुआ मांगने का हक दिया गया, जो उन्होनें अपनी उम्मत के लिये मांग ली, और मैंने अपनी इस मख्सूस दुआ को, बरोज़े कयामत अपनी उम्मत की शफाअत के लिये बचा रखा हैं।
खुशबु मुबारक।
हज़रत उम्मे सलमा रदीअल्लाहु अन्हा से मरवी है, के उन्होंने फरमाया के, जिस दिन रसूलअल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का विसाल मुबारक हुआ, मैंने अपना हाथ हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सीना ए मुबारक पर रख दिया, उसके बाद कई जुमा गुज़र गए, में खाना खाती, वज़ू करती, मगर मेरे हाथ से उस दिन की खुश्बू न गई।
सुब्हानअल्लाह
(मदारेजुन्नुबुव्वत)
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