मेरे अजीज़ भाइयो और बहनो! इंसान का दिल, अल्लाह का अता किया हुआ एक अनमोल ख़ज़ाना है। यही दिल अगर पाकीज़ा हो तो ईमान की रोशनी से जगमगाता है, और यही दिल अगर नफ़रत और बुग्ज़ से भर जाए तो अंधेरों का मसकन बन जाता है।
नफरत का असर
याद रखिए! जब दिल में नफ़रत उतरती है तो सबसे पहले इंसान की नज़र का ज़ाविया बदल जाता है। वह दूसरों की खूबियाँ देखना भूल जाता है, वह आदमियों को हिकारत से देखता है छोटी छोटी बातों में बुराई तलाश करता है। नफ़रत इंसान को अंधा कर देती है, जैसे धुआँ आँखों को जला देता है। इसी तरह नफरत की आग इंसान को जला देती है और जब यह नफरत की आग का धुआँ ज़्यादा हो जाए तो इंसान की ज़बान पर भी छा जाता है। फिर उसका अंजाम यह होता है के ज़बान से बदकलामी, ग़ीबत, बोहतान और तल्ख़ लहजा निकलने लगता है।
नफरत से क्या क्या नुकसान होता है
मेरे भाइयो! नफ़रत यहीं नहीं रुकती। यह इंसान को दिल के सुकून से महरूम कर देती है। जिस के दिल में नफ़रत हो, उस की रातें बेचैन, उस के ख़्वाब परेशान और उस का दिल हमेशा बोझिल रहता है। वह किसी को ख़ुश देख कर जलता है, और किसी की कामयाबी को अपनी नाकामयाबी समझता है। और अगर यह नफ़रत आगे बढ़ती जाए तो इंसान इंतिक़ाम की राह पर निकल खड़ा होता है, यहाँ तक कि बा'ज़ अवक़ात ज़ुल्म, ज़्यादती और हत्ता कि क़ त्ल व ख़ू न रेज़ी तक जा पहुँचता है। तारीख़ गवाह है कि नफ़रत ने ख़ानदान तोड़े, क़ौमें बर्बाद कीं, और तहज़ीबों को जला कर ख़ाक कर दीं हैं।
कुरान का हुक्म
दोस्तों! क़ुरान हमें बार बार याद दिलाता है कि "वला यजरिमन्नकुम शनआनु कौमिन अला अल्ला तअदिलू, इ'दिलू हुवा अक़रबु लित्तक़वा" यानी किसी क़ौम की दुश्मनी तुम्हें इंसाफ़ से न रोक दे, इंसाफ़ करो, यही तक़वा के क़रीब है। सुब्हान अल्लाह! इस्लाम हमें यह सिखाता है कि अगर तुम्हें किसी से इख़्तिलाफ़ भी हो तो नफ़रत तुम्हें अदल और अख़्लाक़ से महरूम न कर दे।
हदीस की रौशनी में
रसूल ए अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया "ला यू'मिनु अहदुकुम हत्ता युहिब्बा लि-अख़ीहि मा युहिब्बु लि नफ़सिह" तुम में से कोई शख़्स उस वक़्त तक कामिल मोमिन नहीं हो सकता जब तक अपने भाई के लिए वही न चाहे जो अपने लिए चाहता है। ग़ौर कीजिए! यह कैसा अज़ीम मे'यार है? कि ईमान की तकमील भी मुहब्बत और ख़ैरख़्वाही के साथ जड़ी हुई है, न कि नफ़रत और दुश्मनी के साथ।
सीरते नब्वी की मिसाल
फ़त्ह ए मक्का का वह अज़ीम मंज़र भी याद कीजिए, जब आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के सामने वही दुश्मन खड़े थे जिन्होंने सालहा साल तक आप को सताया, आप के साथियों को शहीद किया, मक्का से निकाला। मगर आप ने क्या फ़रमाया? "इज़्हबू फा अनतुमुत तुलक़ा" — जाओ, आज तुम सब आज़ाद हो। यह है नफ़रत के मुक़ाबले में मुहब्बत और मुआफ़ी का सबसे बड़ा एलान, जिस ने दिलों को बदल दिया और दुश्मनों को दोस्त बना दिया।
नफरत का अंजाम
मेरे अजीज़ो! हमें सोचना होगा कि नफ़रत का अंजाम क्या है? नफ़रत हमें क़रीब नहीं लाती, बल्कि दूर कर देती है। नफ़रत दिलों में दीवारें खड़ी करती है, रिश्तों को काट देती है, और क़ौम को कमज़ोर बना देती है। अगर हम चाहते हैं के हमारी ज़िन्दगी में सुकून हो, मुहब्बत और बरकत हो, तो दिल को नफ़रत से पाक करना होगा दिल को मोहब्बत के इत्र से मुअत्तर करना होगा।
नफरत का इलाज
इस का इलाज क्या है?
सबसे पहला इलाज है मुआफ़ी - दूसरों की ग़लतियों को मुआफ़ करो, ताकि अल्लाह तुम्हें मुआफ़ करे।
दूसरा इलाज है हुस्न ए ज़न - दूसरों के बारे में अच्छा गुमान रखो, क्योंकि बुरा गुमान नफ़रत को बढ़ाता है।
तीसरा इलाज है ज़िक्र व दुआ - दिल को अल्लाह के ज़िक्र से नर्म करो, दुआ माँगो कि "या अल्लाह! मेरे दिल से कीना और बुग्ज़ को दूर फरमा दे"।
और चौथा इलाज है अमली नेकी - अगर किसी से दिल में नफ़रत हो तो उस के साथ इहसान करो, क्योंकि इहसान दिल के ज़हर को मिठास में बदल देता है।
इबरत और पैगाम
मेरे प्यारे भाइयो और बहनो!
याद रखें,नफ़रत एक आग है, जो सब से पहले उसी के दिल को जला देती है जो इसे पालता है। और मुहब्बत एक ख़ुशबू है, जो दूसरों तक पहुँचने से पहले अपने मालिक को मुअत्तर कर देती है। हमें फ़ैसला करना है कि हम अपने दिल को आग से जलाना चाहते हैं या ख़ुशबू से महकाना चाहते हैं।
अल्लाह हम सब को दिल की पाकीज़गी, मुहब्बत, अफ़व व दरगुज़र और भाई चारे की दौलत अता फरमाए। आमीन।