चार नेमतें और उनके चार इनामात अज़ीज़ हज़रात! अल्लाह तआला का हम सब पर यह करम और इनाम है कि उसने हमें ईमान, इस्लाम और मोहब्बत-ए-रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दौलत से नवाज़ा। आज की हमारी पोस्ट का मौज़ूअ एक बड़ी अहम हदीस है, जो हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु से मर्वी है। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया। जिसे चार चीज़ों की तौफ़ीक़ दी गई उसे चार इनामात से नवाज़ा जाएगा।
पहली नेमत ज़िक्र की तौफ़ीक़
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं: "जिसे ज़िक्र की तौफ़ीक़ मिली तो अल्लाह तआला भी उसे याद करता है। कुरआन ए करीम फुरकान ए हमीद में इरशाद ए बारी तआला है: فَاذْكُرُوْنِيْ اَذْكُرْكُمْ तुम मुझे याद करो, मैं तुम्हें याद करूँगा।
दोस्तों ज़रा सोचिए के जब इंसान अल्लाह तआला को याद करता है तो अल्लाह तआला भी हमें याद फरमाता है। जन्नत का मालिक, अर्श ए अज़ीम का ख़ालिक, अपने फ़रिश्तों के सामने उसका ज़िक्र करता है। यह कितनी बड़ी नेमत है के हम अल्लाह तआला को याद करें उसका ज़िक्र करें तो अल्लाह भी हमें याद फरमाता है।
और दोस्तों अल्लाह तआला का ज़िक्र इंसान के दिल का सुकून है। और जो अल्लाह तआला को याद करता है, अल्लाह तआला उसकी मुश्किलें आसान कर देता है। सुब्हान अल्लाह, दोस्तों हमारी नमाज़, तस्बीह, तिलावत, सब अल्लाह का ज़िक्र है। दोस्तों आप अगर चाहते हो कि अल्लाह तआला की मदद तुम्हारे शामिल ए हाल रहे तो, सुबह-शाम उसका ज़िक्र करते रहो।
दूसरी नेमत दुआ की तौफ़ीक़
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: जिसे दुआ की तौफ़ीक़ दी गई उसकी दुआ ज़रूर क़बूल होगी। कुरआन मजीद में अल्लाह तआला फरमाता है: اُدْعُوْنِيْ اَسْتَجِبْ لَكُمْ तुम मुझे पुकारो, मैं तुम्हारी दुआ क़बूल करूँगा। दुआ मोमिन का हथियार है। दुआ करने से अल्लाह तआला खुश होता है और जो अल्लाह तआला से दुआ नहीं करता अल्लाह तआला उस से नाराज़ होता है।
दोस्तों: कभी हमारी दुआ फ़ौरन क़बूल हो जाती है, कभी देर से, और कभी अल्लाह उससे बेहतर चीज़ अता कर देता है। मिसाल के तौर पर जैसे बच्चा माँ से कुछ मांगता है, माँ उसे वही देती है जो उसके लिए बेहतर हो। इसी तरह अल्लाह तआला हमें वह चीज़ अता फरमाता है जो हमारे लिए बेहतर हो।
तीसरी नेमत शुक्र की तौफ़ीक़
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं: जिसे शुक्र की तौफ़ीक़ मिली उसे और ज़्यादा अता किया जाएगा। कुरआन ए करीम में है: لَئِنْ شَكَرْتُمْ لَاَزِيْدَنَّكُمْ अगर तुम शुक्र करोगे तो मैं तुम्हें ज़रूर ज़्यादा दूँगा।
अज़ीज़ाने गिरामी अल्लाह तआला का शुक्र अदा करते रहें ज़बान से अल्हम्दु लिल्लाह कहना यह भी शुक्र हैं। और इस तरह से भी शुक्र अदा किया जाता है के अल्लाह तआला का जब शुक्र अदा करना हो तो सीधा खड़ा हो जाए मुंह काबा शरीफ के तरफ हो और दिल में शुक्र अदा करने का पक्का इरादा हो और सीधा अल्लाहु अकबर कहता हुआ सजदे में चला जाए और तीन बार सुब्हाना रब्बियल आला कहे, और फिर खडा हो जाए, इस तरह से भी शुक्र अदा कर सकते हैं।
दोस्तों: और शुक्र यह भी है कि अल्लाह ने हमें जो नेमतें दिया है जैसे नाक कान हाथ पांव आंख वगैरह, तो इनका सही इस्तेमाल किया जाए। जैसे आँख मिली है तो हराम न देखो, ज़बान मिली है तो ग़ीबत न करो, माल मिला है तो अल्लाह की राह में ख़र्च करो। यही शुक्र है।
चौथी नेमत इस्तिग़फार की तौफ़ीक़
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: जिसे इस्तिग़फार की तौफ़ीक़ मिली, अल्लाह तआला उसे मग़फिरत का परवाना अता फ़रमाएगा। कुरआन में है: وَمَنْ يَغْفِرُ الذُّنُوْبَ اِلَّا اللهُ "अल्लाह के सिवा कौन गुनाह माफ़ कर सकता है।
इंसान खता का पुतला है,हम सब गुनाहगार हैं, छोटी-बड़ी ग़लतियाँ हमसे होती रहती हैं। मगर जब हम अल्लाह से अपने गुनाहों की मुआफी मांगते अल्लाह तआला की बारगाह में सच्चे दिल से तौबा करते हैं तो अल्लाह माफ़ कर देता है।
खात्मा और नसीहत
अज़ीज़ हज़रात! यह चार नेमतें, ज़िक्र, दुआ, शुक्र, इस्तिग़फार असल में हमारी कामयाबी का रास्ता हैं। अगर हम इन्हें अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बना लें तो हमारी दुनिया भी बेहतर होगी और आख़िरत भी रोशन होगी।
दोस्तों, आओ, आज इरादा करें कि सुबह-शाम अल्लाह का ज़िक्र करेंगे। हर नमाज़ के बाद दुआ करेंगे। हर नेमत पर अल्हम्दु लिल्लाह कहेंगे। अल्लाह का शुक्र अदा करेंगे। रोज़ाना इस्तिग़फार करेंगे। अल्लाह तआला हमें इन चार नेमतों पर अमल करने की तौफ़ीक़ दे, और हमारी ज़िंदगी को रहमतों और बरकतों से भर दे।