तिजारत के फ़ज़ाइल व अहकाम और उसूल व आदाब मुहतरम हज़रात! आज के दौर में जब हर शख़्स माल व दौलत के पीछे भाग रहा है ज़िंदगी का बड़ा हिस्सा बिज़नेस नौकरी और रोज़ी-रोटी के मसाइल में गुज़रता है तो ऐसे वक़्त में यह जानना बेहद ज़रूरी हो जाता है कि इस्लाम तिजारत और कारोबार के बारे में क्या तालीम देता है।
इस्लाम सिर्फ़ इबादत का मज़हब नहीं बल्कि यह ज़िंदगी के हर शोबे के लिए मुकम्मल निज़ाम रखता है इबादत मुआमलात अख़लाक़ और ख़ास कर के तिजारत (व्यापार) के बारे में भी।
इस पोस्ट में हम कुरआन-ए-मजीद की आयतों और हदीस-ए-मुबारका की रौशनी में तिजारत के फ़ज़ाइल अहकाम और उसूल व आदाब जानेंगे। साथ ही बुज़ुर्गान-ए-दीन के तजुर्बात और तिजारत के इंसानी व समाजी असरात को भी समझेंगे।
आइए पूरी तहरीर बग़ौर पढ़ें ताकि न सिर्फ़ इल्म में इज़ाफ़ा हो बल्कि अगर आप तिजारत करते हैं तो आप अपना कारोबार भी इस्लामी तरीक़े से कर सकें और बरकात हासिल करें।
मुसलमान को हराम माल खाना जाइज़ नहीं
अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَأْكُلُوا أَمْوَالَكُمْ بَيْنَكُمْ بِالْبَاطِلِ إِلَّا أَنْ تَكُونَ تِجَارَةً عَنْ تَرَاضٍ مِنْكُمْ
ऐ ईमान वालो! आपस में एक दूसरे के माल नाहक़ न खाओ मगर यह कि कोई सौदा तुम्हारी बाहमी रज़ामंदी का हो। (कन्ज़ुल ईमान)
इस आयत से साफ़ मालूम होता है कि मुसलमान को हराम तरीक़े से माल हासिल करना जाइज़ नहीं। चोरी सूद (ब्याज) जुआ रिश्वत मिलावट धोखाधड़ी झूठी क़सम या किसी भी ग़ैर-शरई तरीक़े से हासिल किया गया माल बातिल और हराम है।
तिजारत और मुआमलात की अहमियत
शरीअत-ए-इस्लामिया ने तिजारत को बड़ी अहमियत दी है। दीन-ए-इस्लाम हलाल कारोबार की हौसला-अफ़ज़ाई करता है और हर उस तरीक़े से मना करता है जिस में धोखा या फ़रेब हो।
कुरआन मजीद में फ़रमाया गया
وَأَحَلَّ اللَّهُ الْبَيْعَ وَحَرَّمَ الرِّبَا
और अल्लाह तआला ने हलाल किया बैअ (ख़रीद व फ़रोख़्त) को और हराम किया सूद को। (सूरतुल बक़रह, आयत 275)
यानी तिजारत हलाल है और सूद हराम।
बुज़ुर्गाने दीन और तिजारत
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एलान-ए-नुबुव्वत से पहले तिजारत फ़रमाते थे और पूरे अरब में "सादिक़" और "अमीन" के नाम से मशहूर थे। सहाबा-ए-किराम में भी बड़े-बड़े ताजिर थे हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़िअल्लाहु अन्हु ताजिर थे हज़रत उस्मान ग़नी रज़िअल्लाहु अन्हु अरब के बड़े दौलतमंद ताजिर थे। इमामे आज़म अबू हनीफ़ा रज़िअल्लाहु अन्हु भी ताजिर थे और तिजारत से हलाल रिज़्क़ कमा कर अपना और अपने अहल व अयाल का ख़र्च चलाते थे।
तिजारत सुन्नते रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
जब नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ख़ुद तिजारत की और उम्मत को इस पर अमल करने की तरग़ीब दी तो यह कारोबार सिर्फ़ मुआशरत का हिस्सा नहीं बल्कि सुन्नत-ए-रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बन गया।इसलिए तिजारत में बे-पनाह बरकत है।
तिजारत के नाम पर लूट
आज का अलमिया यह है कि तिजारत ईमानदारी से नहीं की जाती। ग्राहक से धोखा मिलावट झूठ और नाप-तौल में कमी आम हो चुकी है। जबकि इस्लाम ऐसे कारोबार को हराम क़रार देता है।
इस्लामी तिजारत कुरआन व हदीस की रौशनी में
कुरआन मजीद में इरशाद है
يَا أَيُّهَا الرُّسُلُ كُلُوا مِنَ الطَّيِّبَاتِ وَاعْمَلُوا صَالِحًا
ऐ पैग़म्बरो! पाकीज़ा चीज़ों में से जो चाहो खाओ और नेक अमल करो। (सूरतुल मोमिनून, आयत 51)
इससे मालूम होता है कि नेक अमल हलाल रिज़्क़ पर मौक़ूफ़ हैं। जो शख़्स हराम कमाएगा उसका अमल क़बूल नहीं होगा।
सच्चे और अमानतदार ताजिर का मक़ाम
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया
التَّاجِرُ الصَّدُوقُ الْأَمِينُ مَعَ النَّبِيِّينَ وَالصِّدِّيقِينَ وَالشُّهَدَاءِ
सच्चा और अमानतदार ताजिर अंबिया, सिद्दीक़ीन और शुहदा के साथ होगा। (तिर्मिज़ी)
क्या ही बड़ा मक़ाम है सच्चे ताजिर के लिए!
अल्लाह तआला पेशेवर मोमिन को पसंद करता है
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया
إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ الْمُؤْمِنَ الْمُحْتَرِفَ
अल्लाह तआला पेशेवर मोमिन को पसन्द फ़रमाता है। (तबरानी)
यानी मेहनत कर के हलाल कमाना अल्लाह को पसंद है।
सब से अच्छी कमाई कौन सी?
हदीस में आया
عَمَلُ الرَّجُلِ بِيَدِهِ وَكُلُّ بَيْعٍ مَبْرُورٍ
सबसे अफ़ज़ल कमाई वह है जो आदमी अपने हाथों से काम कर के कमाए और वह तिजारत जो ईमानदारी से हो। (मुसनद अहमद)
हराम कमाई का अंजाम
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया
لَا يَدْخُلُ الْجَنَّةَ جَسَدٌ نَبَتَ مِنْ سُحْتٍ
वह जिस्म जन्नत में दाख़िल नहीं होगा जो हराम ख़ुराक से पला हो। (बैयहक़ी)
यानी हराम कमाई से इंसान ख़ुद भी जहन्नुमी बनता है और अपनी औलाद को भी जहन्नुम की तरफ़ धकेलता है।
तिजारत करने के कुछ उसूल व ज़वाबित
1. माल की हद से ज़्यादा तारीफ़ न करें।
2. अगर माल ऐबदार है तो ख़रीदार को बताना ज़रूरी है।
3. नाप-तौल में कमी न करें।
4. अस्ल क़ीमत छुपा कर धोखा न दें।
5. ग्राहकों से नाजायज़ ज़्यादा मुनाफ़ा न लें।
ताजिर को कैसा होना चाहिए?
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया
إِنَّ أَطْيَبَ الْكَسْبِ كَسْبُ التُّجَّارِ
बेशक सब से पाकीज़ा कमाई उन ताजिरों की है जो झूठ न बोलें ख़ियानत न करें वादा पूरा करें और नाप-तौल में कमी न करें। (शोअबुल ईमान)
इख्तिताम
हज़रात! इस्लाम ने तिजारत को इबादत का दर्जा दिया है बशर्ते कि वह ईमानदारी सच्चाई और अमानतदारी के साथ की जाए। आज के दौर में अगर मुसलमान इस्लामी उसूलों के मुताबिक़ तिजारत करें तो न सिर्फ़ दुनियावी तरक़्क़ी पाएँगे बल्कि आख़िरत में भी अंबिया, सिद्दीक़ीन और शुहदा के साथ होंगे।
अल्लाह तआला हमें हलाल रोज़ी कमाने और अपनी तिजारत को शरीअत के मुताबिक़ करने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए। आमीन।