फज़ाइल औलिया ए किराम।
अस्सलामु अलैकुम दोस्तों : इस पोस्ट में आप औलिया ए किराम का मक़ाम व मर्तबा और फज़ाइल के बारे में पढ़ेंगे,।
दोस्ती भी क्या चीज़ है, नेकियों की दोस्ती आदमी को नेक बनाती है, और बुरों की दोस्ती बुरा बनाती है, एक दोस्ती ऐसी भी हुई के, एक तालाब में एक मेंढक रहा करता था, और उसी तालाब के किनारे एक चूहा भी रहता था, आपस में उनकी दोस्ती हुई, जब दोस्ती हो गई तो, मेंढक तालाब के किनारे आ जाता, और चूहा अपने बिल से बाहर निकल आता, और दोनों में गुफ्तो शुनीद होती, बातें हुआ करतीं,।
एक दिन चूहे ने मेंढक से कहा, भई तुम तो तालाब में रहते हो, और में सूराख़ में रहता हूं, अगर कभी किसी को ज़रुरत महसूस हो, और फ़ौरन मिलना हो तो कैसे एक दुसरे को खबर कर सकते हैं, तो आपस में तै किया के, एक धागा ले लिया जाए, और उसका एक सिरा तुम अपनी टांग में बाँध लो, और दूसरा सिरा, में अपनी दुम ने बाँध लेता हूं, जब यह बात तै हो गई तो, डोरा बाँध लिया गया, और जब ज़रुरत पड़ती, चूहा धागे को खींच लेता, और मेंढक तालाब के किनारे आ जाता, फिर जब मेंढक को ज़रुरत पड़ती, तो धागे को खींच लेता, और चूहा बिल से बाहर आ जाता, बातचीत हो जाती,।
इत्तेफाक ऐसा हुआ कि एक दिन चूहा बाहर निकला और जैसे वह अपने बिल से निकला तो फौरन चील ने झपटा मारा और चूहे को लेकर उड़ गया, चूहा और मेंढक दोनों एक धागे में बंधे हुए थे, अब चूहा के साथ मेंढक भी चील का शिकार बन चुका था, चूहे के साथ में मेंढक भी चला जा रहा था और देखने वाले हैरत ज़िदह हैं कि मामला क्या है, चूहा तो जा ही रहा है, यह मेंढक क्यों जा रहा है, पता चला कि दोनों में दोस्ती हो गई थी और दोनों ने खुद को एक धागे से बांध लिया था, अल्लाह ऐसी दोस्ती से बचाए, के जिससे किसी की जान खतरे में पड़ जाए, सबसे बुरी वह दोस्ती है जिससे ईमान खतरे में पड़ जाए, और दुनिया व आखिरत सब कुछ तबाह व बर्बाद हो जाए।
दोस्तों: दोस्ती अच्छी चीज़ भी है, अच्छों की दोस्ती नेक बनाती है, और बदों की दोस्ती बद बनाती है, हकीकत में वही दोस्त होता है, जो आदमी को मुसीबत के वक्त में काम आए, परेशानियों में हाथ बटाए हज़रत शेख सादी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं, “ दोस्त वह होता है के अपने दोस्त का हाथ पकड़ ले, आजज़ी और परेशानी के वक़्त” दोस्तों हाथ पकड़ने का मफ़हूम क्या है, मतलब यह के मुसीबत के मौके पर उसकी मदद करे, उसकी दिल जोई करे, जहां तक हो सके उसका हाथ बटाए, उसकी मदद करने की हत्ता उल इमकान कोशिश करे,।
एक बार का वाक्या है कि किसी का एक नादान दोस्त था, नादान दोस्त भी होते हैं, दोनों दोस्त साथ में कहीं चले जा रहे थे, इत्तेफाक से दोस्त का कोई दुश्मन मिल गया, और उसको मारना शुरू कर दिया, तो उसका नादान दोस्त अपने दोस्त का हाथ पकड़ लिया ज़ाहिर है कि जब उसका हाथ ही पकड़ लिया तो दुश्मन को और मौका मिल गया और उसकी अच्छी पिटाई कर दी, जब दुश्मन चला गया तो उस आदमी ने अपने नादान दोस्त से कहा, के भाई तुमने तो गज़ब ही कर दिया, तुमने यह नहीं समझा कि जब तुम मेरा हाथ ही पकड़ लोगे तो हम उसको मारने का जवाब कैसे देंगे, ऐसी सूरत में हम अपना दिफा भी नहीं कर सकते, नादान दोस्त ने जवाब दिया, के तुम नहीं जानते के शेख सादी ने फ़रमाया है के, “परेशानी के आलम में अपने दोस्त का हाथ पकड़ लो, इसीलिए मैंने तुम्हारा हाथ पकड़ लिया, दोस्तों: उस नादान दोस्त ने हज़रत शेख सादी अलैहिर्रहमह के शअर का मतलब ही नहीं समझा: अल्लाह तआला ऐसे नादान दोस्तों से सबको महफूज़ रखे (आमीन)
औलिया ए किराम के फज़ाईल व खसाइस।
अल्लाह तआला क़ुरान में इरशाद फरमाता है।
तर्जुमा : *बेशक अल्लाह-के-वलियों को ना कुछ खौफ है ना कुछ गम*,
खबरदार हो जाओ के अल्लाह के दोस्तों पर ना कोई खौफ तारी होता है ना कोई गम, अल्लाह के दोस्त कौन हैं? औलिया ए किराम रिज़वानुल्लाहि तआला अलैहिम अजमइन, इस दोस्ती का इज़हार रब्बे काएनात फरमा रहा है, औलिया ए किराम ने अपनी ज़ुबान से यह नहीं फरमाया के हम अल्लाह के दोस्त हैं, बल्के औलिया ए किराम की शान तो यह होती है के, वह अपनी दोस्ती को छुपाते हैं, ज़ाहिर नहीं होने देते, लेकिन अल्लाह तआला इरशाद फरमा रहा है,
तर्जुमा: खबरदार हो जाओ के खुदा के दोस्तों पर ना कोई खौफ तारी है और ना वह गमगीन होते हैं, ज़ाहिर है के खौफ क्यों तारी हो, और गमगीन क्यों हों, इसलिए के अल्लाह सबसे बड़ा है (अल्लाहु अकबर) अल्लाह सबसे बड़ा है, और जब सबसे बड़े से उनकी दोस्ती हो गई तो अब उन्हें किस बात का खौफ हो और किस बात का गम हो इसलिए अल्लाह के इन नेक बन्दों को ना किसी तरह का कोई खौफ होता है ना गम होता है।
मुसलमानों: अल्लाह तआला को अपने दोस्त कितने प्यारे हैं, इसका अंदाज़ा इस वाक़िआ से लगाइए के अल्लाह का एक बंदा कयामत के दिन अल्लाह की बारगाह में हाज़िर होगा, और रब तआला उससे दरयाफ्त फरमाएगा के तुम दुनिया से क्या लाए, तो वह अर्ज़ करेगा, ए करीम व रहीम परवरदिगार, मैंने इतनी इतनी फर्ज़ नमाज़ें पढ़ीं, और इतने इतने नवाफिल भी पढ़े, और वह कहेगा कि मैंने फर्ज़ रोज़े भी रखे, मैंने रमज़ान के पूरे रोज़े रखा, और इसके साथ-साथ नफिल रोज़े भी बेशुमार रखे, ए अल्लाह तूने मुझे दिया था, तो मैंने तेरे रास्ते में खूब ज़कात भी दी, और इसके साथ ही साथ मैंने सदका व खैरात भी खूब किया, और तेरे लिए हज फर्ज़ भी अदा किया, और इसके साथ-साथ बहुत से नफिल हज भी अदा किया यह सब बयान करने के बाद, अल्लाह तआला इरशाद फरमाएगा
, तर्जुमा : क्या तूने मेरे किसी दोस्त से दोस्ती की, या मेरे किसी दुश्मन से दुश्मनी की। मुसलमानों: इस हदीस शरीफ से मालूम हुआ के औलिया ए किराम की दोस्ती भी बहुत बड़ी चीज़ है, इसीलिए फराइज़ व नवाफिल का ज़िक्र करने के बाद, अल्लाह तआला ने औलिया ए किराम की दोस्ती का सवाल फरमाया, इसी तरह अल्लाह के दुश्मनों से दुश्मनी यानी उनको बुरा जानना और उनसे ताल्लुक मुन्क़ता करना भी ज़रूरी है, यहां यह बात भी याद रखें कि जो रसूलुल्लाह का दुश्मन होगा, वह अल्लाह का भी दुश्मन होगा, अल्लाह का दुश्मन, रसूलुल्लाह का दुश्मन है, तो गोया रसूलुल्लाह की दुश्मनी मोल लेना, अल्लाह की दुश्मनी मोल लेना है, इनकी दुश्मनी अल्लाह की दुश्मनी है, तो खुदारा जहां आप औलिया ए किराम रिज़वानुल्लाहि तआला अलैहिम अजमइन से दोस्ती का दम भरते हैं, और उनको अपना मददगार जानते हैं, उनको खुदा की बारगाह में वास्ता बनाते हैं, वहां रसूलुल्लाह के दुश्मनों से भी दूर रहिए, यह लोग अल्लाह के दोस्तों के दुश्मन हैं, और जो दोस्त का दुश्मन होता है, वह भी दुश्मन होता है।
दोस्तों: कुरान मजीद में इरशादे रब्बानी है
तर्जुमा: *सुन लो, बेशक अल्लाह-के-वलियों को ना कुछ खौफ है ना कुछ गम,*, यानी खबरदार हो जाओ के खुदा के दोस्तों पर ना कोई खौफ तारी होता है, और ना वह गमगीन होते हैं।
वली किसे कहते हैं।
आज लोग वली के मामले बड़ा धोखा खा जाते हैं, जिसको चाहते हैं वली समझ बैठते हैं, कोई पागल नज़र आया, दीवाना नज़र आया, तो उसको आप वली बना लिए, उसको वली समझ लिया, और उसके पीछे पड़ गए, कोई चलता फिरता आदमी मैला कुचैला, बाल बिखरे हुए, लोग उसको वली समझने लगते हैं, मालूम हुआ के लोग वलियों को समझने में बहुत धोखा खाते हैं, लेकिन कुरान ने खुद फर्मा दिया, के वली कौन हैं, वली वह लोग हैं जो मोमिन और मुत्तक़ी हैं, रब तआला कुरान मजीद में इरशाद फरमाता है
तर्जुमा, वह जो ईमान लाए, और परहेज़गारी करते हैं, वली वह हज़रात हैं जिन्होंने ईमान लाया और तकवा और परहेज़गारी इख़्तियार की जो अल्लाह से डरते हैं और तकवा व परहेज़गारी इख़्तियार करते हैं, हकीकत में वही अल्लाह के वली होते हैं, वलियों का मुकाम बहुत ही अरफा व आला, और बुलंद व बाला है, यह अल्लाह के ऐसे मकबूल बंदे हैं के, कल कयामत के दिन जब सारी दुनिया के लोग परेशान होंगे और नफ़्सी नफ़्सी का आलम होगा, उस वक़्त इन औलिया ए किराम कि शानो शौकत का ज़हूर होगा, इसको समझने के लिए कयामत का पस मनज़र समझना होगा।
रोज़े महशर और औलिआ ए किराम।
दोस्तों: कयामत कोई मामूली चीज़ नहीं, वह खतरात से भरा हुआ एक दिन है, कयामत के बारे में रब तआला ने इरशाद फरमाया
तर्जुमा, बेशक कयामत का ज़लज़ला बड़ी सख्त चीज़ है, दोस्तों कयामत जब काइम होगी, तो ज़मीन तांबे की बना दी जाएगी, और सूरज जो आज ज़मीन से बहुत दूर हज़ारों बरस की राह पर है, वह सर पर आ चुका होगा, ज़रा सोचिए के कयामत का दिन कैसा दिन होगा, और फिर ज़रा सोचिए कि वह दिन कैसा दिन होगा, हज़ार बरस का एक दिन होगा, नफ्सी नफ्सी का आलम होगा, लोग परेशान होंगे, लोगों को इतना पसीना निकलेगा के लोग अपने पसीने में गोते खा रहे होंगे, किसी के टखने तक पसीना होगा, किसी के घुटने तक होगा, किसी की कमर तक होगा, किसी के सीने तक होगा, किसी के गले तक होगा, अल्लाह तआला कयामत की होलनाकियों से हमें और आपको और सबको महफूज़ रखे, आमीन।
उस दिन कैसा अजीब मंज़र होगा, और उस दिन अम्बिया ए किराम अलैहिमुस्सालतु वस्सलाम भी परेशान होंगे, अम्बिया ए किराम को अपने आमाल पर परेशानी नहीं होगी, बल्कि उन्हें अपनी उम्मत के आमाल की वजह से परेशानी होगी, कयामत के दिन सरकारे दो आलम हुज़ूर अलैहिस्सलातु-वस्सलाम की मसरूफियत के बारे में सहाबा ए किराम में से किसी ने पूछा था, या रसूलअल्लाह, यहां तो हम आपकी ज़ियारत कर लेते हैं आपसे मुलाकात कर लेते हैं, लेकिन मैदान ए कयामत में आपसे कहां मिलेंगे, तो सरकार ने इरशाद फरमाया था, कि तुम्हें अगर तलाश करना हो तो मीज़ाने अमल पर तलाश करना, के जहां नामा ए आमाल तौले जा रहे होंगे, वही मिलेंगे। देखो अल्लाह के प्यारे रसूल अपनी उम्मत को किस कदर चाहने वाले हैं कि मीज़ाने अमल पर, जहां उम्मतियों के अमल तौले जा रहे हैं, वहां पर आप तशरीफ़ फरमा होंगे, अर्ज़ किया के वहां अगर मुलाकात ना हो, आप अलैहिस्सलातु-वस्सलाम ने इरशाद फरमाया के अगर वहां मुलाकात ना हो तो हौज़े कौसर पर तलाश कर लेना, के सरकार उस दिन प्यासों को पानी पिला रहे होंगे, फिर फरमाया के अगर वहां न मिल सकूं तो मुझे पुलसिरात पर तलाश कर लेना, के उम्मती पुल से गुज़र रहे होंगे, तो अल्लाह-के-रसूल अलैहिस्सलातु-वस्सलाम, वहां खड़े होकर लोगों को गुज़ार रहे होंगे!
यहां यह भी समझिए के पुल किस कदर खतरनाक होगा वह पुल बाल से ज़्यादा बारीक और तलवार से ज़्यादा तेज़ होगा, और आलम यह है के लोग कट-कट कर गिर रहे होंगे, चलते हैं दौड़ते हैं, फिर कट-कट कर गिरते हैं, लेकिन अल्लाह के कुछ बंदे ऐसे भी होंगे जो इस तरह गुज़र रहे होंगे, जैसे बिजली एक किनारे पर चमकी और दूसरे किनारे पर चली गई, अल्लाह के प्यारे रसूल, रब्बे सल्लिम, रब्बे सल्लिम की सदाएं बलंद कर रहे होंगे के, ए रब तू इनको सलामती से गुज़ार दे, सलामती से गुज़ार दे।
दोस्तों उस दिन आलम यह होगा के अम्बिया ए किराम अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम अपनी उम्मतों के लिए परेशान होंगे, लेकिन एक जमाअत ऐसी भी होगी, जो अर्शे इलाही के साए तले चैन व आराम की नींद सो रही होगी, उनकी हालत यह होगी के उन पर अम्बिया ए किराम अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम को भी रश्क आ रहा होगा, वह सोने के तख़्तों पर अर्शे इलाही के नीचे आराम फरमा रहे होंगे, यह कौन लोग होंगे, यह औलिया ए किराम रिज़वानुल्लाहि तआला अलैहिम अजमइन होंगे, दोस्तों देखो यह हैं, अल्लाह के दोस्त, इनसे दोस्ती अल्लाह की दोस्ती है, इनसे दुश्मनी अल्लाह से दुश्मनी है, इसीलिए तो अल्लाह ताला ने इरशाद फरमाया
तर्जुमा, क्या तूने मेरे किसी दोस्त से दोस्ती की, या मेरे किसी दुश्मन से दुश्मनी की,,।
औलिया ए किराम से वाबस्तगी.
दोस्तों: जिन दोस्तों की दोस्ती का दम भरते हो उनका दामन करम पकड़ लो, और दामन पकड़ने का मतलब यह नहीं होता है के, सिर्फ ज़बानी दावा किया जाए, के हमने गौसे आज़म का दामन पकड़ लिया, बल्के दामन पकड़ने का यह मतलब होता है के, तुम उनके नक्शे कदम पर चलो, उनकी ज़िन्दगियों को अपनाओ, उनकी सीरत अपनाओ, उनकी सूरत को अपनाओ, उनकी एक-एक अदा को देखो, और उनके नक्शे कदम पर चलो, दामन पकड़ने का मतलब यही होता है। लेकिन कितने अफसोस का मकाम है कि आज मुसलमान औलिया ए किराम की मोहब्बत का दम भरते हैं और गौसे आज़म से मोहब्बत रखते हैं लेकिन यह नहीं गौर करते के, अल्लाह-के-रसूल अलैहिस्सलातु-वस्सलाम के चाहने वाले, यह गौसे आज़म रज़ीअल्लाहु अन्हु, जो के सरकार के खानवादे से ताल्लुक रखते हैं, कितने मुत्तक़ी और कैसे परहेज़गार थे, कितनी नमाज़ें पढ़ा करते थे किस अंदाज़ में रोज़ा रखा करते थे, गौसे आज़म के रोज़े का आलम यह था कि गौसे आज़म जब दुनिया में तशरीफ लाए, तो चांद रात है, रमज़ान की पहली रात है और सुबह पहला रोज़ा है, रात के वक्त दुनिया में जलवा अफरोज़ हुए और पहले ही दिन से आपने रोज़ा रखना शुरू कर दिया, पीराने पीर सय्यदेना गौसे आज़म रदीअल्लाहु अन्हु के मानने वालों ज़रा सोचो और गौर करो के सय्यदेना गौसे आज़म रदीअल्लाहु अन्हु मां की गोद में रोज़ा रख रहे हैं, और तुम्हारा आलम यह है कि रोज़ा से ग़ाफ़िल नज़र आते हो, सय्यदेना गौसे आज़म रदीअल्लाहु अन्हु की नमाज़ों का यह आलम है की नमाज़ पढ़ते हैं तो सारी सारी रात नमाज़ पढ़ते हैं, इशा की नमाज़ पढ़ लेने के बाद रात भर नमाज़ नफिल, सय्यदेना गौसे आज़म रदीअल्लाहु अन्हु पढ़ा करते थे, हमारा यह नारा के गौसे आज़म का दामन नहीं छोड़ेंगे यह खोखला नारा है, जब हम उनके नक्शे कदम पर नहीं चलते हैं तो हम उनका दामन ही नहीं पकड़ा, छोड़ने की बात अलग है, हकीकत में तो यह होना चाहिए के हमारी ज़िंदगी सय्यदेना गौसे आज़म रदीअल्लाहु अन्हु की ज़िंदगी का आईनादार होना चाहिए,।
अफ़सोस का मक़ाम है के आज मुसलमान अमल से बहुत दूर हो चुका है, यह सच है कि अम्बिया ए किराम अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम और बिल खुसूस सरकारे दो आलम हुज़ूर अलैहिस्सलातु-वस्सलाम की मोहब्बत हमारे दिलों में है, यह सच है के सरकार गौसे आज़म रज़ीअल्लाहु अन्हु के हम चाहने वाले हैं औलिया ए किराम से हमें मुहब्बत है, लेकिन देखने में यह भी आ रहा है कि अमली तौर से मुसलमान बिल्कुल गाफिल हो चुका है आज का मुसलमान अल्लाह के नेक बन्दों की अमली ज़िंदगी से बिल्कुल ना आशना होता चला जा रहा है और जिसके दिल में जो आ रहा है वह करता चला जा रहा है अल्लाह तआला मुसलमानों को अमले सालेह की तौफीक अता फरमाए। दोस्तों: पीराने पीर गौसे आज़म दस्तगीर की ज़िंदगी सरकारे दो आलम हुज़ूर अलैहिस्सलातु-वस्सलाम की ज़िंदगी का नमूना थी, सरकारे दो आलम हुज़ूर अलैहिस्सलातु-वस्सलाम की ज़िंदगी को अगर आप देखना चाहते हैं, आपकी सीरत को देखना चाहते हैं, तो सरकारे गौसे आज़म की सूरत को आप देखें, सरकारे दो आलम हुज़ूर अलैहिस्सलातु-वस्सलाम की सूरत, आपकी नज़र में आ जाएगी, और सरकारे गौसे आज़म रदीअल्लाहु अन्हु की सीरत को देखेंगे तो, अल्लाह के प्यारे रसूल की सीरत याद आ जाएगी, और इतना क़ुर्ब है के, अल्लाह, अल्लाह, हर मामले में क़ुर्ब नज़र आ रहा है, हुजूर गौसे आज़म रदीअल्लाहु तआला अन्हु खुद फरमाते हैं, कि मेरा हर कदम रसूलुल्लाह के कदम पर है, मालूम हुआ के गौसे आज़म रदीअल्लाहु अन्हु का कोई अमल ऐसा नहीं होता था, के जो सुन्नते रसूल के खिलाफ हो, अल्लाह-के-रसूल अलैहिस्सलातु-वस्सलाम के नवासे सय्येदेना गौसे आज़म रदीअल्लाहु अन्हु के, खसाइल व आदात और उनकी ज़िंदगी सरकारे दो आलम हुज़ूर अलैहिस्सलातु-वस्सलाम की ज़िंदगी की आइना दार है. अल्लाह-के-रसूल अलैहिस्सलातु-वस्सलाम का एक बड़ा मोजज़ा था के सरकार ने एक मर्तबा हज़रत अनस रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु के यहां एक दावत में दस्तरख्वान से हाथ पोंछ लिए थे, और उससे अपना मुंह साफ कर लिया था, हज़रत अनस रदी अल्लाहु अन्हु ने एक मर्तबा अपने दोस्तों को दावत दी तो वह आए, ख़ादिमा जो दस्तरख्वान लेकर आई थी वह गंदा था, हज़रत अनस ने फरमाया कि इसको तंदूर में डाल दो जब उसे तंदूर में डाला गया तो उसे बिल्कुल जल जाना चाहिए था, लेकिन जब उसको हुक्म दिया निकालने का और वह कपड़ा निकाला गया, तो वह बहुत साफ सुथरा हो गया। अहबाब को बहुत ताज्जुब हुआ के कपड़ा को आग ने जलाया नहीं, बल्कि देखने में आया कि यह और साफ सुथरा हो गया, कितना गंदा था लेकिन साफ सुथरा हो गया तो हज़रत अनस ने फरमाया कि एक मर्तबा हुज़ूर अहमदे मुज्तबा मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम का दस्ते अक़दस इससे मस हो गया था, इस कपड़े से छू गया था, यह सरकार का मौजज़ा है के अब इस कपड़े को आग नहीं जला सकती। दोस्तों जिस कपड़े को हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम हाथ लगा दें, उसे आग नहीं जलाती है, तो जो उम्मती इश्क़े रसूल और आप अलैहिस्सलातु-वस्सलाम की ताज़ीम व अदब के सबब आपका मक़बूल बारगाह हो जाए, उसे कैसे जहन्नम कि आग जला सकती है, रब तआला कि रहमत से उम्मीद है के आशिकाने दरबारे रिसालत को इश्क़े मुस्तफा के सबब निजात हासिल हो जाएगी।
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