आज की इस पोस्ट में हम बात करेंगे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इताअत की और बताएँगे के रसूल की इताअत हकीकत में अल्लाह ही की इताअत है।
जिसने रसूल की इताअत की उसने अल्लाह की इताअत की
अल्लाह तआला कुरान मजीद में फरमाता है मयीं युतिउर्रसूल फ़क़द अता अल्लाह।
तर्जुमा
जिसने रसूल का हुक्म माना बेशक उसने अल्लाह का हुक्म माना।
आयत का शाने नुजूल
तफसीर
इस आयत के नाज़िल होने का सबब यह है के नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जिसने मेरी इताअत की तो उसने अल्लाह की इताअत की और जिसने मुझसे मोहब्बत की तो उसने अल्लाह से मोहब्बत की।
इस पर कुछ मुनाफिकीन ने कहा कि यह आदमी यह चाहता है कि जिस तरह नसारा ने ईसा इब्ने मरियम को रब बना लिया उसी तरह हम भी इसे रब मान लें।
इस पर अल्लाह तआला ने यह आयत नाज़िल फरमाई के जिसने रसूल के हुक्म देने और मना करने में उनकी इताअत की तो उसने मेरी इताअत की।
यानि रसूल अल्लाह की इताअत हकीकत में अल्लाह ही की इताअत है।
हज़रत हसन फरमाते हैं के अल्लाह ने रसूल की इताअत को अपनी इताअत करार दिया है।
इससे मुस्लिमीन को हुज्जत हासिल होती है।
हज़रत इमाम शाफई रहमतुल्लाह अलैहि का बयान
हज़रत इमाम शाफई फरमाते हैं के जिन फराइज़ को अल्लाह ने अपनी किताब में फर्ज़ किया है मसलन हज नमाज़ ज़कात।
अगर इनके ताल्लुक से रसूल का बयान न होता तो हम उन्हें अदा करने का तरीका ही नहीं जान पाते और न ही हम कोई इबादत अदा कर सकते।
जब रसूल इतने बुलंद और बाला मर्तबा पर फाइज़ हैं तो रसूल पाक की इताअत हकीकत में अल्लाह ही की इताअत होगी। ख़ाज़िन जिल्द 1 सफा 400
अल्लाह की इताअत हुज़ूर की इताअत के बगैर नहीं
वज़ाहत
इस आयत में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने अपनी इताअत और बंदगी को अपने प्यारे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इताअत में समेट दिया है।
अपनी फरमाबरदारी का मदार अपने महबूब की फरमाबरदारी पर रखा है
एतिराज़ करने वाले मुनाफिकीन को साकित और शर्मसार करने वाला जवाब अता फरमाते हुए पूरी दुनिया को इस बात पर तंबीह फरमाया के मेरे महबूब रसूल का कोई भी फरमान कोई भी हुक्म या मना हरगिज़ मेरी मर्ज़ी के खिलाफ नहीं।
बल्कि उनका हर हुक्म और मना मेरा ही हुक्म और मना है।
उनकी इताअत और पैरवी रज़ा और खुशनूदी मेरी इताअत और खुशनूदी है।
उनकी ना फरमानी और हुक्म उदूवली दरहकीकत मेरी ना फरमानी और हुक्म उदूवली है।
रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मर्तबा
इस मफ़हूम से खूब अयाँ होता है के अल्लाह तआला ने रसूल बा वक़ार को अपना नाइब और खलीफाए मुतलक बनाया है।
उन्हें इख्तियार कामिल दे रखा है के वह जिस तरह चाहें निज़ामे दीन और शरीअत में तसर्रुफ फरमाएं।
कायनाते आलम में हर किसी को अपना मुतीअ और फरमाबरदार समझें।
क्योंकि वह मेरे महबूब हैं।
जो भी मेरे तहत इताअत है सब उनके तहत इताअत हैं।
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने अपने रसूल मक़बूल को यह अज़मत और रिफअत बख्शी के आपके बारे में यूं फरमा दिया।
जिस किसी ने मेरे महबूब की इताअत की उसने हकीकत में मेरी इताअत की।
गोया बे इताअते रसूल अल्लाह तआला की इताअत का तसव्वुर ही नहीं हो सकता चे जाएका उसका वजूद हो।
मालूम हुआ के रसूले मुख्तार अल्लाह के महबूब और मुज़हरे अतम हैं।
उन्हें उसकी मिल्कियत में तसर्रुफ और इख्तियार हासिल है।
और उनकी इताअत के बगैर अल्लाह की इताअत का सवाल ही नहीं पैदा हो सकता।
सरकार आला हज़रत का फरमान
अशआर
में तो मालिक ही कहूंगा के हो मालिक के हबीब
यानि महबूब व मुहिब में नहीं मेरा तेरा
साबित हुआ के जुमला फराइज़ फरोअ हैं
असलुल उसूल बंदगी उस ताजवर की है
यानि मैं तो रसूल को मालिक ही कहूंगा क्योंकि आप मालिके हकीकी अल्लाह तआला के महबूब हैं।
जो मिल्कियत मुहिब की होती है वह महबूब की भी होती है।
क्योंकि मुहिब और महबूब में मेरा और तेरा नहीं चलता।
बल्कि दोनों की मिल्कियत एक ही मानी जाती है।
और दूसरे शेर में यह बताया गया के मज़कूरा आयत और तफसील से साबित हुआ के तमाम फराइज़ फरअ और नाइब हैं।
असल फर्ज़ और असल बंदगी कौनैन की शहनशाही का ताज रखने वाले ताजदारे रसूल बा वक़ार की इताअत और बंदगी है।
और उनकी बंदगी के बगैर अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बंदगी नहीं हो सकती।
