sabr सब्र

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सब्र की पहाड़ 

अस्सलामु अलैकुम दोस्तों अगर हम पर कोई छोटी मोटी तकलीफ परेशानी मुसीबत आ जाती है तो हम बे सबरी का मुज़ाहिरा करने लगते हैं सब्र का दामन हमारे हाथ से छूट जाता है लेकिन आप इस पोस्ट में आगे पढ़ेंगे के एक औरत पर कैसे मुसीबतों का पहाड़ टूटता है मगर फिर भी वह उस पर सब्र करती है , और यकीनन इस हिकायत में हमारे लिए सबक मौजूद है !

बैतुल्लाह के तवाफ़ के दौरान शेख अबुल हुसैन सिराज की नज़र एक औरत पर पड़ी वह नहायत हसीनों जमील और खूबरू थी आपने फ़ौरन निगाहें हटाते हुए अपने आपसे कहा बखुदा मैंने आजतक ऐसा चेहरा नहीं देखा शायद यह इसकी खुश हाली और फिक्रो गम से आज़ादी का नतीजा है औरत ने आपकी यह बात सुन ली उसने कहा आप यह क्या कह रहे हैं वल्लाह में ग़मों से चूर चूर हूँ और मेरा दिल रंजो आलाम से ज़ख़्मी है अपने दरयाफ्त फरमाया तुझे कौनसा गम ला हक है वह बोली एक दिन मेरे शौहर ने एक बकरी कुर्बान किया करीब ही मेरे दोनों छोटे बच्चे खेल रहे थे एक शीर ख्वार मेरी गोद में था में खाना पकाने में मसरूफ हो गई दोनों लड़कों में से बड़े ने दूसरे से कहा में तुझे बताऊँ के अब्बा जान ने बकरी को कैसे जिबह किया छोटे ने कहा हाँ बताओ बड़े ने छुरी हाथ में ली भाई को ज़मीन पर लिटाया और ज़िबह कर दिया भाई का खून और तड़पता देखकर खुद पहाड़ पर भाग गया इसका बाप उसकी तलाश में गया मगर उसे न पा सका क्यूंकि भेड़िए ने उसे फाड़ खाया था मेरा शौहर भी पहाड़ से ज़िन्दा वापस न आ सका प्यास की शिद्दत और गर्मी ने उसकी भी जान लेली ज़िबह शुदा लड़के की आवाज़ सुनकर में उसे देखने गई और शीर ख्वार बच्चा चूल्हे के पास छोड़ गई उसने गरम हांडी अपने ऊपर उंडेल ली और जल कर हलाक हो गया मेरी इन तमाम बच्चों से बड़ी एक बेटी भी थी जिसकी शादी हो चुकी थी वह अपने शौहर के घर रहती थी इन वाकिआत की खबर उसको पहुंची तो वह सदमा को बर्दाश्त न कर सकी और तड़प तड़प कर मर गई अब सिर्फ तन्हा में रह गई हूँ जो इन तमाम ग़मों का बोझ लिए ज़िन्दगी के दिन पूरे कर रही हूँ !

आपने इसकी दास्ताने गम सुनी तो बेहद मुताअज्जिब हुए और पूछा आखिर तूने इन तमाम आज़माइशों पर सब्र कैसे कर लिया उसने जवाब दिया जो भी सब्र और बेसब्री पर गौर करेगा तो उनको अलग अलग पाएगा पस अगर खुशहाली ज़ाहिर करके सब्र इख्तियार किया तो इसका अंजाम बेहतर और फल मीठा होगा और अगर बे सबरी में मुब्तिला रहा तो उसका अंजाम बुरा और अज्रो सवाब से महरूम रहेगा लिहाज़ा में भी सब्र कर रही हूँ और इन मुसीबतों के बाइस पैदा होने वाले आंसू मेरे दिल पर गिर रहे हैं इतना कहकर वह औरत आपके पास से रुखसत हो गई ! (रौज़ुर रय्याहीन स. 219) 

हासिल मुताला : मुसीबत पर सब्र करना यकीनन बहुत अहम व अज़ीम व बाइसे बरकत काम है इसकी अज़मत का अंदाज़ा पारा बारह सूरह हूद की आयते पाक से बखूबी लगाया जा सकता है के, तर्जमा: मगर वह लोग जिन्होनें सब्र किया और अच्छे काम किए उनके लिए बख्शिश और बड़ा सवाब है !


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