अस्सलामु अलैकुम दोस्तों, इस आर्टिकल में हम नमाज़ के अहकाम, उसके मसाइल, और नमाज़ के सही तौर-तरीकों पर रौशनी डालेंगे। नमाज़ इस्लाम का दूसरा रुक्न है और ईमान के बाद सबसे अहम इबादत है। नमाज़ के अहकाम व मसाइल और शराइते नमाज़ का हर मुसलमान को जानना ज़रूरी है।
नमाज़ के अहकाम व मसाइल
शराइते नमाज़
शराइते नमाज़ की तफसील
याद रखने की बात
ईमान और अक़ीदा की दुरुस्तगी के बाद एक मुसलमान पर सबसे पहला इस्लामी फ़रीज़ा नमाज़ है। कुरआन व हदीसे कुदसी और हदीसे नब्वी (क़ौली व अमली) से उसकी बहुत ज़्यादा ताकीद आई है। यहाँ तक कि जो नमाज़ को फ़र्ज़ न माने या उसको हल्का जाने तो वह काफ़िर है। हाँ! जो न पढ़े वह गुनाहे कबीरा का मुर्तकिब है जिसका ख़ुदा भला करे क्योंकि आख़िरत में उसका सिला जहन्नम है।
हर मुसलमान आक़िल व बालिग मर्द व औरत को यह मालूम होना चाहिए कि छः चीजें ऐसी हैं जिनके बगैर यह बड़ा फ़र्ज़ शुरू ही न होगा। उन छः बातों को 'शराइते नमाज़' कहते हैं:
(1) तहारत (2) सतरे औरत (3) वक़्त (4) इस्तिक़बाले क़िब्ला (5) नीयत (6) तकबीर तहरीमा ।
पहली शर्त 'तहारत' यानी नमाज़ी का बदन, कपड़े और जिस्जगाह नमाज़ पढ़ रहा है वह हर किस्म की निजासत से पाक हो!
दूसरी शर्त 'सतरे औरत' यानी मर्द को नाफ से लेकर घुटनों तक अपने बदन को छुपाना ज़रूरी है, और औरतों के लिए हाथ कलाई पांव टखनों तक सिर्फ चहरा की टिकली के सिवा तमाम बदन का छुपाना ज़रूरी है।
तीसरी शर्त 'वक्त' का माना यह है के जिस नमाज़ का जो वक़्त मुक़र्रर है उसी वक़्त में वह नमाज़ पढ़ी जाए। मिसाल के तौर पर ज़ुहर का वक़्त है तो ज़ुहर की ही नमाज़ पढ़ेंगे, ज़ुहर के वक़्त में असर की नमाज़ नहीं पढ़ सकते !
चौथी शर्त 'इस्तिक़बाले क़िब्ला' यानी किब्ला की तरफ मुंह करना।
पाँचवीं शर्त 'नीयत' का माना यह है। कि जिस वक़्त की जो नमाज़ पढ़ना है, फ़र्ज़ पढ़ना हो या वाजिब पढ़ना हो या सुन्नत पढ़ना हो या नफ़्ल पढ़ना हो या क़ज़ा पढ़ना हो, दिल में उस नमाज़ का पक्का इरादा करना के यह नमाज़ और वक़्त की नमाज़ पढ़ रहा हूँ।
छठी शर्त 'तकबीर तहरीमा' है यानी अल्लाहु अकबर कहने के बाद नमाज़ शुरू कर देना। यह तकबीर कहते ही नमाज़ शुरू हो गई। अब अगर कुछ बोला, खाया पिया या कोई ख़िलाफ़े नमाज़ काम किया तो नमाज़ बाक़ी नहीं रहेगी।
पहली पाँच शर्तों का तक्बीरे तेहरीमा से पहले और नमाज़ ख़त्म होने तक मौजूद होना ज़रूरी है वरना नमाज़ न होगी। नमाज़ की अहमियत: नमाज़ हर मुसलमान पर फर्ज़ है। इसे सही तरीके से अदा करने के लिए शराइते नमाज़ को जानना और उन पर अमल करना बहुत ज़रूरी है। यह हमारी इबादत को मुकम्मल बनाती है और अल्लाह की रहमत और मग़फिरत हासिल करने का सबसे बेहतरीन ज़रिया है।