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Miladunnabi की बरकत

 


अस्सलामु अलैकुम दोस्तों इस पोस्ट में आपको यह बताने वाला हूँ के मिलाद की बरकत और फज़ीलत क्या है 

मीलाद मुबारक की फज़ीलत

हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि वो लोग जो अल्लाह तआला के ज़िक्र  के लिऐ एक जगह जमअ (इकट्ठा) होते हैं, और उस से उनका मक़सद रज़ाऐ इलाही के बगैर और कुछ नही होता तो उन लोगों को आसमान से एक निदा करने वाला निदा करता है, उठो तुम्हारे सारे गुनाह बख्श दिऐ गऐ हैं, और तुम्हारी बुराइयों को नेकियों मे तबदील कर दिया गया है। 

फ़रिश्ते ज़मीन पर घुमते रहते हैं 

हुजूर अलैहिस सलातो वस सलाम ने फरमाया अल्लाह तआला के बाज़ फरिशते हैं, जो ज़मीन मे सय्याहत के लिऐ मुक़र्रर हैं, जब वो किसी कौम को अल्लाह तआला का ज़िक्र करते हुऐ पाते हैं, तो एक दूसरे को आवाज़ देते हैं, इधर आओ ये है तुम्हारा मसूद पस सब आ जाते हैं। और आसमान तक खुला (खाली जगह) को भर देते हैं। 

अल्लाह फरिश्तों से पूछता है 

अल्लाह तआला सब जानता है, लेकिन फरिश्तों से पूँछता है, मेरे बंदो को क्या करते हुऐ तुमने छोड़ा, वो फरिशते अर्ज़ करते हैं हमने उन्हें छोड़ा इस हाल मे कि वो तेरी हम्द कर रहे थे, तेरी बड़ाई बयान कर रह थे, और तेरी पाकी बयान कर रहे थे, अल्लाह तआला उनसे दरयाफ्त करता है कि उन्होंने मुझे देखा है फरिशते जवाब देते हैं नहीं, अल्लाह तआला फरमाता है कि अगर वो मुझे देख लेते तो उनकी क्या कैफियत होती, फरिशते अर्ज़ करते हैं, अगर वो तुझे देख लेते तो वो तेरी तसबीह तहमीद और तमहीद पर और ज़्यादा हरीस होते, फिर अल्लाह तआला उनसे पूँछता है, क्या वो किसी चीज़ से पनाह माँग रहे थे अल्लाह तआला के फरिशते अर्ज़ करते हैं, इलाही वो आग के अज़ाब से पनाह माँग रहे थे, अल्लाह तआला फरमाता है, क्या उन्होंने आतिशे जहन्नम को देखा है, फरिशते कहते हैं नहीं, अल्लाह तआला फरमाता है, अगर वो उसे देख लेते तो वो उस से और ज़्यादा दूर भागते, फिर अल्लाह तआला पूँछता है, कोई चीज़ तलब भी कर रहे थे फरिशते कहते हैं, कि जन्नत, अल्लाह तआला फरमाता है, क्या उन्होंने उसको देखा है? फरिशते कहते हैं नहीं, अल्लाह तआला फरमाता है उनकी क्या कैफियत होती अगर वो जन्नत को देख लेते, फरिशते कहते हैं, अगर वो उसको देख लेते तो उसके हुसूल के लिऐ और ज़्यादा ख्वाहिश का इज़हार करते अल्लाह तआला फरमाता है अय फ़रिश्तों मे तुम्हें गवाह बनाता हूँ, कि मैने उनको बख्श दिया है। 

मिलाद की महफ़िल में बेठने वाला इन्सान बदबख्त नहीं रहता 

फरिशते अर्ज़ करते हैं। कि उस महफिल मे एक ऐसा आदमी भी था जो उस मक़सद के लिऐ वहाँ नही आया था बल्कि उसे कोई और हाजत थी अल्लाह तआला फरमाता है। मेरा ज़िक्र करने वाले बंदे वो लोग हैं। कि जिनके पास बैठने वाला बद बख्त नही रहता. यानी वो आदमी अगरचे मेरे ज़िक्र के लिऐ उस महफिल में शरीक नही हुआ था. लेकिन अहले ज़िक्र की हम नशीनी तो उसे नसीब हुई थी. जो ऐसे लोगो के पास बैठ जाऐ उसकी सकावत (बद बख्ती) सआदत (नेक बख्ती) से बदल जाती है।.

(दलाइलुल खैरात शरीफ)

दोस्तों यह है मिलाद शरीफ की फज़ीलत और बरकत !


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