अस्सलामु अलैकुम आज में इस पोस्ट में अल्लाह तआला की याद करने यानि ज़िकरुल्लाह की जो फ़ज़ीलत है वह बताने वाला हूँ !
खुदा को याद करने वालों की फज़ीलत
الذِينَ يَذْكُرُونَ اللَّهَ قِيَامًا وَقُعُودًا وَعَلَى جُنُوبِهِمْ
तर्जमा: अल्लाह तआला फरमाता है, वही ईमानदार है जो याद करते हैं, अल्लाह तआला को तीनों हालतों में, खड़े हुए, बैठे हुए और लेटे हुए, हर हालत में खुदा की याद में रहना, बाइसे निजात व फ्लाहे-दारैन है।
इर्शाद होता है-
وَاذْكُرُ اللَّهَ كَثِيرًا لَّعَلَّكُمْ تُفْلِحُوْنَ
तर्जमा: "अल्लाह तआला की याद बहुत करो ताकि तुम को निजात मिले"।
जो लोग खुदा की याद से ग़ाफिल रहे बड़े ही नुक्सान व ख़सारे में रहे।
इर्शाद होता है-
مَنْ أَعْرَضَ عَنْ ذِكْرِى فَإِنَّ لَهُ مَعِيشَةً ضَنْقًا وَنَحْشُرُهُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ.
तर्जमा: "जो शख़्स मेरी याद से ग़ाफिल रहा यकीनन उसके लिए रोज़ी तंग की जाएगी, रोज़े कियामत में वह अंधा उठाया जाएगा"। यहां रोज़ी से मुराद जन्नत की महरूमी है।
दोस्तों, हासिल यह कि खुदा को याद न करना बर्बादी का बाइस है। हर वक़्त की याद ज़ुबान व दिल से जारी रखना दोनों जहां की बेहतरी और राहे निजात है।
अल्लाह से अच्छा गुमान रखें
हदीस शरीफ में है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि, 'हक सुब्हानुहू तआला का फरमान है कि मेरा बन्दा मेरे साथ जो गुमान रखता है, बस मैं उसी के साथ हूं, अगर वह मुझे दिल में पोशीदा याद करता है, तो मैं भी पोशीदा याद करता हूं, अगर वह पुकार कर या जमाअत में याद करता है, तो उसको उस से बेहतर जमाअत में याद करता हूं।
हदीसे कुदसी में है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया कि 'हक तआला फरमाता है कि जो मुझे अपने दिल में याद करता है, उसको मैं मलाएका की जमाअत में याद करता हूं, जो मुझे किसी जमाअत में याद करता है, तो मैं उसको रफीके आला में याद करता हूं।
इस हदीस शरीफ से भी यह बात साबित हुई कि जो शख़्स दिल और गोशए तंहाई में खुदा की याद करता है तो खुदावंद तआला अपने फरिश्तों में उस की शोहरत कर देता है।
ज़िक्र करने में दिखावा न हो
ज़ाकिर यानी ज़िक्र करने वाले को चाहिए कि जहां तक हो, लोगों को दिखलावे की नीयत न रखे, अगर यह ख़्याल दिल में रख कर ज़िक्र करे कि लोग मुझे ज़ाकिर व शाग़िल जानें तो यह ज़िक्र उस का हक तआला के नज़दीक काबिले कुबूल नहीं, बल्कि रियाकारी की वजह से ईमान बर्बाद हो जाएगा। लोगों को दिखलावे का काम मिस्ल आग के हैं कि ईमान को खा जाता हैं जहां तक हो सके इख़्लास से काम ले। जब इख़्लास से काम लिया जाएगा तो खुदावन्द तआला खुद उस को मशहूर कर देगा। मिनजानिबुल्लाह वह मशाहीर में से होगा। जैसा औलियाए साबिकीन गुज़रे हैं।
فَاذْكُرُونِي أَذْكُرُكُمْ
तर्जमा: तुम मुझको याद करो मैं तुम को याद करता हूं। याद करने से मुराद गुनाहों की बख़्शिश है! फिर इर्शाद होता है।
وَاذْكُرُ رَبُّكَ فِى نَفْسِكَ تَضَرُّعًا وُخِيفَةً
तर्जमा: अपने रब की याद अपने दिल मे आजिज़ी व ख़ौफ से किया करो।
फिर इर्शाद होता हैः
وَلَذِكْرُ اللَّهِ أَكْبَر
तर्जमा: अल्लाह की याद सब से बड़ी चीज़ है।
हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया कि, आदमी का कोई अमल, अज़ाबे इलाही से बचाने वाला 'ज़िकरुल्लाह' से बढ़ कर नहीं।
सहाबा ने अर्ज किया, "या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ! खुदाए तआला की राह में जिहाद करना भी नहीं।" आप ने फरमाया कि राहे खुदा में जिहाद भी नहीं। मगर इस सूरत में कि अपनी तलवार से इतना मारे कि तलवार टूट जाए। फिर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि जिस किसी को यह पंसद हो कि जन्नत के गुलज़ारों में टहलता फिरे तो उस को चाहिए कि खुदाए तआला का बहुत ज़िक्र करे।
अल्लाह को राज़ी करने वाला अमल
हुज़ूर नबी करीम से किसी ने दरयाफ़्त किया कि "या रसूलुल्लाह इंसान के लिए कौनसा अमल अच्छा है जिस से खुदा राज़ी हो, उस को जन्नत में आला मकाम मिले। इरशाद हुआ कि सब से अफज़ल यह है कि उस की जुबान व दिल खुदा की याद में और उस की रूह भी खुदा की याद से परवाज़ करे। फिर आप ने इर्शाद फरमाया कि भला मैं तुम को वह बात न बताऊँ जो तुम्हारे सब आमाल में बेहतर हो..... और तुम्हारे मालिक के नज़दीक बहुत सुथरी और तुम्हारे दरजात में सब से ऊँची और तुम्हारे हक में सोने और चांदी के देने से बेहतर और तुम्हारे लिए इस अमर से भी बेहतर हो कि अपने दुश्मनों से दोचार हो उन की गर्दनें मारो और वह तुम्हारी गर्दनें मारें। सहाबा ने कहा, "या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाइए, आपने फरमाया, कि, "अल्लाह तआला का हमेशा ज़िक्र किया करो"!
ज़िक्र न करने वाले प्यासे उठेंगे
बुख़ारी में मरवी है कि दुनिया से सब नफ़्स प्यासे उठेंगे, बजुज़ अल्लाह की याद करने वालों के उनको प्यास न होगी। हासिल यह कि अल्लाह तआला को याद करने वालों की फज़ीलत में सदहा आयात व अहादीस वारिद हैं, और जो खुदा तआला की याद से ग़ाफिल हैं उन की मज़म्मत में भी सदहा "आयात व अहादीस मौजूद हैं।
दोस्तों यह बात याद रखें आपके क़राबतदार अज़ीज़ो अकारिब रिश्तादार माल व औलाद व हुकूमत कोई साथ न देंगे। बजुज़ ज़िक्रे इलाही के।
दुआ है, अल्लाह हमें ज़िक्रे इलाही की तौफीक अता फरमाए आमीन
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