अस्सलामु अलैकुम इस पोस्ट में जनाज़ा के मुतअल्लिक़ अहकाम व मसाइल बयान किए गए हैं कुरान मजीद की आयत अल्लाह फरमाता है फस्तबिकुल ख़ैरात ऐनमा तकूनू यअति बिकुमुल्लाहु जमीअन इन्नल्लाहा अला कुल्लि शयइन कदीर।
इस आयत करीमा में अल्लाह तआला ने इरशाद फ़र्माया है कि नेकी करने में पहल करो या सबक़त ले जाओ और तुम जहाँ कहीं भी होंगे अल्लाह तआला तुम्हारे आमाल की जज़ा के लिए तुम्हें इकट्ठा करेगा बे शक वह हर बात पर क़ुदरत रखता है।
अल्लाह तआला के इस फ़रमान के तहत नेकियों में सबक़त हासिल करने की तरग़ीब देते हुए मैं इस आर्टिकल में जनाज़े और उससे मुतअल्लिक़ कुछ अहम मालूमात और जानकारी काराईन के पेश कर रहा हूँ मुझे उम्मीद है कि इस जानकारी से आपको काफ़ी फ़ायदा और आपकी जानकारी में इज़ाफ़ा होगा।
जनाज़ा में शिरकत के फ़ज़ाइल व सवाब
हर वह काम नेकी है जिससे किसी को फ़ायदा पहुँचे और उसमें ख़ुद ग़रज़ शामिल न हो रास्ते से कोई रोड़ा या पत्थर हटाना भी नेकी है ऐसी नेकियाँ तो बे शुमार हैं लेकिन आख़िरी नेकी अगर किसी की जमा की जाए वह यह है कि जब वह मरे तो उसके कफ़न दफ़्न का इंतज़ाम करे इस बात की भी सब में इस्तिताअत नहीं हो सकती तो कम अज़ कम जनाज़ा जाए तो सब के साथ चले चारपाई को कन्धा दे और नमाज़ ए जनाज़ा अदा करे और मय्यत के हक़ में दुआ करे कि उसकी मग़फ़िरत हो।
भला बताइए तो अगर किसी के हक़ में दुआ करने से उसकी मग़फ़िरत हो जाए उससे बड़ी कोई नेकी उस मय्यत के हक़ में हो सकती है ज़रा सोचिए हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा आए के मिस्दाक़ अल्लाह के हुज़ूर दुआ करने में न कोई पैसा ख़र्च हो न कोई बोझ उठाना पड़े फिर मय्यत की बख़्शिश का सामान और बदले में नेकियाँ बे शुमार क्योंकि जहाँ भी हम होंगे अल्लाह तआला बुला के नेकी का अज्र देगा।
दोस्तो ऐसी मुफ़्त की नेकियों से पीछे नहीं हटना चाहिए बल्कि बमुताबिक़ फ़रमान ए ख़ुदावंदी फस्तबिकुल ख़ैरात नेकी करने में पहल करनी चाहिए ताकि दूसरे को भी फ़ायदा पहुँचे और ख़ुद को भी नेकियाँ हासिल हों।
दोस्तों नमाज़ ए जनाज़ा अदा करने से एक तो मय्यत के लिए बख़्शिश दूसरे ख़ुद अपने लिए सवाब बहारे शरीअत में है कि मय्यत अगर पड़ोसी या किसी रिश्तेदार या नेक शख़्स की हो तो उसके जनाज़े के साथ जाना नफ़्ल नमाज़ अदा करने से अफ़्ज़ल है।
हदीस शरीफ़ में है हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़र्माया अगर कोई ईमान वाला सवाब और नेकी के लिए मुसलमान के जनाज़े के साथ जाए हत्ता कि उसकी नमाज़े जनाज़ा अदा करे और उसके दफ़्न से फ़ारिग़ हो तो वह दो क़ीरात अज्र ले कर लौटता है और एक क़ीरात उहद पहाड़ के बराबर है और जो नमाज़ पढ़ कर दफ़्न से पहले वापस हो जाए वह एक क़ीरात के बराबर सवाब ले कर लौटता है! मुत्तफ़िक़अलैह मिश्कात।
जनाज़ा ले जाने में जल्दी करना
हमारे लोग जनाज़ा ले जाने में जल्दी नहीं करते बल्कि किसी के मरने पर जब तक अक्सर रिश्तेदार या अज़ीज़ पहुँच न जाएँ जनाज़ा घर से नहीं निकाला जाता हालाँकि जनाज़ा ले जाने में जल्दी करनी चाहिए।
हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम का इरशादे गिरामी है जनाज़ा ले जाने में जल्दी करो अगर वह नेक है तो उसे भलाई की तरफ ले जाने में जल्दी करनी चाहिए अगर वह नेक नहीं तो उसे अपनी गर्दनों के साथ बाँध रखना बुरा है! मुत्तफ़िक़अलैह मिश्कात।
बुख़ारी की रिवायत है कि हज़रत तलहा बिन बरा रज़ियल्लाहु अन्हु बीमार हो गए हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वत्तस्लीम उनकी ईयादत के लिए तशरीफ़ ले गए और उनके हाल को देख कर फ़र्माया तलहा वफात पाने वाले हैं जब फ़ौत हो जाएँ तो मुझे इत्तिला देना और दिन में जल्दी करना क्योंकि मुस्लिम मय्यत के लिए ना मुनासिब है कि उसे अपने घर वालों में बंद कर के रखा जाए।
मय्यत की आवाज़ और उसकी कैफ़ियत
हज़रत अबू सईद रज़ियल्लाहु अन्हु रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़र्माया जब जनाज़ा चारपाई पर रखा जाता है और आदमी उसको अपनी गर्दनों पर उठाते हैं पस अगर वह नेक होता है तो कहता है मुझे आगे ले जाओ अगर बदकार होता है तो अपनी अहल को कहता है ऐ हलाकत मुझे कहाँ ले जा रहे हो इंसान के इलावा उसकी आवाज़ हर शे सुनती है अगर इंसान सुन लें तो बेहोश हो जाएँ! रवाहुल बुख़ारी मिश्कात।
दोस्तो मय्यत किस क़दर जल्दी चाहती है कि उसे क़ब्र की तरफ ले जाया जाए बशर्ते कि वह नेक हो लेकिन अगर बदकिरदार है तो उसका रखना सरासर नहूसत है।
जनाज़ा उठाने का मसनून तरीक़ा
भाइयों जैसा कि लोगों के एक दूसरे पर कुछ हुकूक हैं जिन को हुकूकुल इबाद कहते हैं इन हुकूक में एक मोमिन पर यह हक है कि वह उसके जनाज़े के साथ जाए और नमाज़े जनाज़ा अदा करे और जनाज़े को कन्धा दे इस तरह यह आख़िरी हुकूक ए दुनयवी भी पूरे करे।
शहनशाह ए दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हज़रत सअद बिन मुआज़ रज़ियल्लाहु अन्हु का जनाजा ख़ुद उठाया और फ़र्माया जो शख़्स जनाज़े के साथ जाए और उसे तीन मर्तबा उठाए कन्धा दे पस तहक़ीक़ उसने हक अदा किया जो उस पर था! रवाहुत तिरमिज़ी मिश्कात।
कन्धा देने का मसनून तरीक़ा यह है कि यक़े बअद दीगरे चारों पायों को कन्धा दे और हर बार दस दस क़दम चले पहले दाएँ सिरहाने को फिर दाएँ पाइन्ती को फिर बाएँ सिरहाने को और फिर बाएँ पाइन्ती को कन्धा दे और हर बार दस क़दम चल कर चालीस क़दम पूरे करे क्योंकि हदीस ए पाक में है कि जो चालीस क़दम जनाज़ा उठा कर चले उसके चालीस कबीरा गुनाह मिटा दिए जाएँगे।
हदीस पाक में यह भी है कि जो जनाज़े के चारों पायों को कन्धा दे अल्लाह तआला उसे ज़रूर बख़्श देगा बहारे शरीअत।
जनाज़े के साथ चलने के आदाब
जनाज़ा ले जाने में सिरहाना आगे की तरफ होना चाहिए बहारे शरीअत जनाज़ा माकूल तेज़ी के साथ ले जाना चाहिए यानी न बहुत तेज़ और न आहिस्ता और इस तरह चलना चाहिए कि मय्यत को झटका न लगे।
जनाज़े के दाएँ या बाएँ की बजाय पीछे चलना चाहिए और अगर कोई आगे जा रहा हो तो इतना दूर हो कि साथियों में शुमार न हो आलमगीरी बहवाला बहारे शरीअत सवार अगर जनाज़े के पास से गुज़रे तो उसे उतर जाना चाहिए।
औरतों की शिरकत
औरत का जनाज़े के साथ जाना ना जाइज़ और मना है नोहा करने वालियों को ख़ास तौर पर सख़्ती से मना किया जाए हज़रत इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु अगर औरतों को जनाज़े में देखते तो फ़र्माते वापस चली जाओ क्योंकि तुम ज़ौरातिन ग़ैर माजूरात हो यानी गुनाहों का बोझ उठाने वाली और अज्र से ख़ाली हो फ़र्माते तुम ज़िन्दों को फ़ितने में डालती हो और मुरदों को नोहा करके ईज़ा पहुँचाती हो! तज़किरतुल मौला वल कुबूर।
बातचीत और हंसी मज़ाक न करे
जनाज़े के साथ चलने वाले को ख़ामोशी से चलना चाहिए मौत और क़ब्र के हालात और क़ब्र का ख़ौफ़ दिल में लाना चाहिए हँसने और बातें करने की बजाय कलिमा ए शहादत और दरूद ए शरीफ का विर्द करना चाहिए।
हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु ने एक शख़्स को जनाज़े के साथ हँसते देखा तो उससे फ़र्माया जनाज़े में हँसता है मैं तुझ से कभी कलाम नहीं करूँगा! दुर्रे मुख़्तार बहवाला बहारे शरीअत।
नमाज़ ए जनाज़ा में कसरत की फ़ज़ीलत
जितने ज़्यादा आदमी जनाज़े में शिरकत करें मय्यत की बख़्शिश का उसी क़दर ज़्यादा इमकान है उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु अन्हा फ़र्माती हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़र्माया कोई ऐसी मय्यत नहीं जिस पर मुसलमानों की एक जमाअत नमाज़ अदा करे कि जिन की तअदाद सौ तक पहुँच जाए और वह उसके लिए शफाअत करें और उस से उसकी बख़्शिश न हो! रवाहु मुस्लिम मिश्कात।
चालीस अफ़राद की फ़ज़ीलत
हज़रत कुरैब जो इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु के ग़ुलाम थे फ़र्माते हैं कि इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु का फ़र्ज़न्दे अर्ज़मंद फ़ौत हो गया तो आप ने फ़र्माया ऐ कुरैब देखो तो जनाज़े के लिए लोग जमा हो गए हैं वह कहते हैं कि मैं गया और वापस आ कर बताया कि लोग जमा हैं तो फ़र्माया जनाज़ा ले चलो क्योंकि फ़रमान ए रिसालत अलैहिस्सलात वस्सलाम है जो मुसलमान मर जाए उस पर चालीस मुसलमान नमाज़े जनाज़ा पढ़ें तो अल्लाह तआला उनकी सिफारिश उसके हक में क़बूल फ़र्माता है और वह बख़्शा जाता है! रवाहु मुस्लिम मिश्कात।
तीन सफ़ों का सवाब
हज़रत मालिक बिन हुबैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़र्माया जिस मुसलमान की नमाज़े जनाज़ा मुसलमानों की तीन सफ़ें पढ़ लें उस पर शफाअत वाजिब हो जाती है! रवाह इब्ने माजा मिश्कात।
उलेमा ए किराम का अमल इमाम तिरमिज़ी फ़र्माते हैं कि उसी हदीस की वजह से मालिक बिन हुबैरा रज़ियल्लाहु अन्हु जब लोगों को क़लील देखते तो तीन सफ़ें बना लेते! मिश्कात।
नेकियों में सबक़त
अल्लाह तआला के फ़रमान फस्तबिकुल ख़ैरात नेकियों में सबक़त ले जाओ पर अमल करते हुए हमें जनाज़े में शिरकत को मामूली नहीं समझना चाहिए यह ऐसी अज़ीम नेकी है जिस में न सिर्फ़ मय्यत को फ़ायदा पहुँचता है बल्कि ख़ुद शिरकत करने वाले के लिए भी बेपनाह सवाब है।
हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम की दुआ
उन्होंने अल्लाह तआला से पूछा या अल्लाह जो शख़्स तेरी रज़ा के लिए जनाज़े के साथ क़ब्र तक जाए उसकी क्या जज़ा है अल्लाह तआला ने फ़र्माया उसकी मौत पर फ़रिश्ते उसके जनाज़े के साथ जाएँगे और मैं उसकी रूह पर रहमत नाज़िल करूँगा।
आखरी कलाम
जनाज़ा के साथ जाना उसे कंधा देना और नमाज़ ए जनाज़ा अदा करना मुसलमान का दूसरे मुसलमान पर अहम हक़ है। यह एक ऐसी इबादत है जिसमें न तो पैसा खर्च होता है और न ही ज़्यादा मेहनत, लेकिन इसका सवाब बहुत ज़्यादा है। हमें चाहिए कि हम फ़रमान ए इलाही फ़स्तबिक़ुल ख़ैरात के मुताबिक नेकी करने में पहल करें और जनाज़ा में शरीक हों उसे कंधा देने और नमाज़ ए जनाज़ा अदा करने की पूरी कोशिश करें।
