हज़रत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह जिन्हें गरीब नवाज़ कहा जाता है हिंदुस्तान में इस्लाम की तबलीग और मोहब्बत अमन व इंसानियत का पैग़ाम लाने वाले सूफी संत थे आपका मजार ए मुबारक अजमेर शरीफ़ (भारत) में वाक़े है जो आज भी मरजा ए खलाइक है।आइये आपकी सवानेह हयात के बारे में तफसील से जानते हैं।
पैदाइश
हज़रत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह का विलादत-ए-मुबारक 14 रजबुल-मुरज्जब सन 537 हिजरी, सोमवार के दिन खुरासान के कस्बा संज़र में हुआ। आप नजीबुत्तरफ़ैन हसनी और हुसैनी सादात के खानदान से थे।
वालिदैन ए किराम
आपके वालिदे माजिद ख्वाजा गयासुद्दीन हसन रहमतुल्लाह अलैह शहर के मशहूर अमीर और ताजिर थे। दौलत के साथ-साथ इल्म और फिक्र में भी बुलंद मकाम रखते थे। आपकी वालिदा माजिदा एक आबिदा ज़ाहिदा और खुदा-तरस ख़ातून थीं।
तालीम व तर्बियत
इब्तिदाई तालीम आपने अपने वालिदैन की निगरानी में हासिल की। पंद्रह साल की उम्र में आला तालीम के लिए समरकंद और बुखारा का सफर इख़्तियार किया जो उस वक़्त इस्लामी उलूम के मरकज़ माने जाते थे।
वहां आपने कुरआन पाक हिफ़्ज़ किया और तफ़सीर हदीस, फ़िक़्ह और दीगर उलूम में महारत हासिल की। इल्मे ज़ाहिरी की तकमील के बाद आपने इशारा ए ग़ैबी से एक मुर्शिद ए कामिल की तलाश शुरू की।
मुर्शिद की तलाश और बैअत
समरकंद से इराक़ होते हुए जब नेशापुर पहुंचे तो वहां के बुज़ुर्ग शैखुश शुयूख सय्यिदेना हज़रत ख्वाजा हारूनी रहमतुल्लाह अलैह के पास पहुँचे जिनका नसब ग्यारह वस्सतों से हज़रत अली रज़ीअल्लाहु अन्हु तक पहुंचता था। आपने उनके हाथ पर बैअत की और इबादत व रियाज़त में मशगूल हो गए।
आपके मुर्शिद हज़रत हारूनी रहमतुल्लाह अलैह आपकी खिदमत और इबादत से इतने मुतास्सिर हुए कि फरमाया
मोइनुद्दीन महबूब-ए-खुदा हैं मुझे उनकी मुरीदी पर फख्र है।
सफर ए मक्का व मदीना
हज़रत शैख हारूनी रहमतुल्लाह अलैह के साथ आपने हज्जे बैतुल्लाह शरीफ का सफर इख़्तियार किया। तवाफ़ ए काबा के बाद आपके मुर्शिद ने आपको बारगाह ए इलाही में पेश किया और आपकी मक़बूलियत के लिए दुआ की।
ग़ैब से आवाज़ आई
मोइनुद्दीन हमारा दोस्त है हमने उसे कुबूल किया और उसे इज़्ज़त बख्शी।
मदीना मुनव्वरा में हाज़िरी के दौरान जब आपने सलाम पेश किया तो जवाब आया
वालेकुम अस्सलाम या कुतुबुल मशायख
ये खिताब ए खास अता हुआ और उसी रात आपने हज़रत रसूल ए पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत की। आपको हिंदुस्तान में इस्लाम की तबलीग़ का हुक्म मिला।
खिलाफत ए उज़्मा और सफर ए हिंद
मुर्शिद ए कामिल ने आपको ख़िर्का शरीफ़ अता किया और खिलाफत ए उज़्मा से नवाज़ा। फिर आप बगदाद शरीफ़ पहुँचे जहाँ गौसुल आज़म शैख अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर होकर चिल्ला कशी की और फयूज़ात ए बातिनी हासिल किए।
इसके बाद आप लाहौर से पैदल सफर करते हुए हिंदुस्तान पहुँचे। सन 587 हिजरी (1191-92 ईस्वी) में आपने अजमेर की सरज़मीन पर कदम रखा।
आपके रूहानी नूर से लोग दायरा ए इस्लाम में दाख़िल होने लगे। कहा जाता है कि रास्ते में आपने सात सौ हिंदुओं को मुसलमान किया और पूरी ज़िंदगी में नब्बे लाख गैर-मुस्लिमों को कलमा पढ़वाया जो तारीख़ ए आलम में एक रिकॉर्ड है।
तबलीग़ और रूहानी निज़ाम
हिंदुस्तान में आपने सिलसिला ए चिश्तिया की बुनियाद रखी और ऐसा मज़बूत रूहानी निज़ाम कायम किया जो आज तक जारी है। आपकी शख्सियत से इल्म, अमल, तसव्वुफ़ और इन्सानियत की खुशबू फैली।
आपकी दरगाह में अमीर-ग़रीब हिंदू-मुसलमान सभी हाज़िर होते। लंगरखाना हर वक्त खुला रहता था और कोई भूखा वापस नहीं लौटता था। यही वजह है कि आप गरीब नवाज़ के लक़ब से मशहूर हुए।
खानदान और औलाद
अजमेर शरीफ में क़याम के दौरान आपने दो निकाह फरमाए।
पहली ज़ौजा बीबी अस्मतुल्लाह जो हाकिम ए अजमेर की बेटी थीं।
दूसरी बीबी उम्मतुल्लाह थीं जो एक हिन्दू राजा की बेटी थीं वोह कलमा पढ़ कर अपनी ख़ुशी से दाखिल ए इस्लाम हुईं थीं।
आपके तीन साहबज़ादे थे
ख्वाजा फखरुद्दीन ख्वाजा हिसामुद्दीन और ख्वाजा ज़िआउद्दीन।
आपकी एक साहिबज़ादी थीं बीबी हाफ़िज़ा जमाल जो औरतों में दीन की तबलीग़ करती थीं।
इबादत और अख़लाक
आपकी ज़िंदगी शरीअत और तरीक़त से रोशन थी। पांच वक्त की नमाज़ जमात से अदा करते, अक्सर रोज़ा रखते और रोज़ाना एक बार कुरआन ख़त्म करते थे।
आप ईशा के वुज़ू से फज्र की नमाज़ अदा करते थे।
खुराक बहुत कम थी, लेकिन ग़रीबों के लिए हर वक़्त तंदूर गरम रहता था।
विसाल ए मुबारक
ख्वाजा गरीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैह का विसाल 6 रजबुल-मुरज्जब 634 हिजरी (1236 ईस्वी), सोमवार के दिन हुआ।
विसाल ए हक हासिल होते ही आपकी पेशानी मुबारक पर खते नुरानी मैं ये नक्श उभरा।
अल्लाह तआला का हबीब अल्लाह तआला की मोहब्बत में विसाल पा गया।
दरगाह ए अजमेर शरीफ़
आपका मजार ए मुबारक अजमेर शरीफ़ (भारत) में वाक़े है जो आज भी मरजा ए खलाइक है।
हर साल पहली रजब से छठी रजब तक उर्स मुबारक मनाया जाता है जिसमें दुनिया भर से लाखों ज़ायरिन हाज़िर होते हैं और बरकत हासिल करते हैं।
आखरी कलाम
ख्वाजा गरीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैह ने हिंदुस्तान की सरज़मीन पर इस्लाम की जो बुनियाद रखी, वो इन्सानियत, मोहब्बत, बराबरी और अमन का पैग़ाम थी।
आपका फैज़ आज भी बरक़रार है और आपका नाम मोहब्बत और इंसानियत की निशानी बन चुका है।
