हाजत रवाई मदद और परदा पोशी इस्लाम का खूबसूरत पैग़ाम सहीह बुखारी की हदीस की रौशनी में

इस्लाम आपसी मुहब्बत मदद और परदा पोशी की तालीम देता है सहीह बुखारी की हदीस की रौशनी में इन आमाल की अहमियत और फज़ीलत जानिए।

इस्लाम अपने मानने वालों को आपसी मुहब्बत, भाईचारे और इंसानियत की तालीम देता है। यही वजह है कि हमारे दीन में किसी मुसलमान की मदद करना, उसकी हाजत रवाई करना और उसकी गलतियों की परदा पोशी करना सिर्फ़ नेक अमल ही नहीं, बल्कि इसमें बड़ा सवाब है और अल्लाह की रहमत हासिल करने का ज़रिया है।

आज हम सहीह बुखारी की एक अज़ीम हदीस की रौशनी में उन्हीं इस्लामी तालीमात पर बात करेंगे जो एक मुसलमान की ज़िंदगी को खूबसूरत, उसके रिश्तों को मजबूत और आपस में भाईचारा का जज़्बा पैदा करती है। और इस  हदीस से हमें यह भी मालूम होता  है कि मुसलमान का मुसलमान पर  क्या हक़ है और अल्लाह तआला ने इन आमाल पर कौन-कौन सी बड़ी खुशखबरियाँ अता फ़रमाई हैं।

हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमान मुबारक

एक मुसलमान दूसरे मुसलमान का भाई है न वह उस पर ज़ुल्म करता है और न उसे बे यार ओ मददगार छोड़ता है। जो शख्स अपने किसी (मुसलमान) भाई की हाजत रवाई (जरूरत पूरी) करता है अल्लाह उसकी हाजत रवाई फरमाता है। और जो शख्स किसी मुसलमान की दुनियावी मुश्किल हल करता है अल्लाह उसकी क़यामत की मुश्किलों में से कोई मुश्किल हल फरमाएगा। और जो शख्स किसी मुसलमान की परदा पोशी करता है अल्लाह तआला क़यामत के दिन उसकी परदा पोशी फरमाएगा।

(सहीह बुखारी, किताब-अल-मज़ालिम, हदीस नंबर 2310, रवायत: हज़रत अब्दुल्लाह इब्न-ए-उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा)

हदीस शरीफ की तशरीह

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया एक मुसलमान दूसरे मुसलमान का भाई है इस हदीस पाक का पहला जुम्ला ही पूरे इस्लामी समाज की तसवीर पेश कर देता है। यहाँ भाई होने का मतलब सिर्फ रिश्तेदारी नहीं, बल्कि एक ऐसा पाक रिश्ता है जो ईमान की बुनियाद पर कायम होता है। हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मदीना मुनव्वरा में हिजरत के बाद सबसे पहला काम यही किया था कि मुहाजिरीन और अन्सार के बीच मुवाखात (भाईचारा) कायम फरमाया।

कुरआन मजीद में है बेशक सारे मोमिन आपस में भाई हैं। (सूरह अल हुजुरात)

यानी हर मुसलमान चाहे वह किसी भी देश किसी भी नस्ल किसी भी रंग का हो वह दूसरे मुसलमान का भाई है। इस भाईचारे की ताकत दुनिया के हर रिश्ते से बढ़कर है।

फिर हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया न वह उस पर ज़ुल्म करता है और न उसे बे यारो मददगार छोड़ता है।

इस्लामी भाईचारे की दो बुनियादी शर्तें

पहली शर्त ज़ुल्म न करना ज़ुल्म यानी अत्याचार सिर्फ मार-पीट या ज़बरदस्ती तक महदूद नहीं है। बल्कि किसी का हक़ मारना किसी की इज्ज़त से खेलना किसी को उसके हक़ से महरूम करना किसी की बदनामी करना ये सब ज़ुल्म की क़िस्में हैं। एक मुसलमान का दूसरे मुसलमान पर किसी भी तरह का ज़ुल्म करना हराम है।

दूसरी शर्त बे यारो मददगार न छोड़ना

यानी जब कोई मुसलमान मुसीबत में हो परेशानी में हो उसकी मदद करना हर मुसलमान का फर्ज़ है। चाहे वह मदद पैसे की हो शिराकत की हो या सलाह की हो। हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया तुम में से कोई शख्स मोमिन नहीं हो सकता जब तक कि वह अपने भाई के लिए वही चीज़ पसंद न करे जो अपने लिए पसंद करता है। (सहीह बुखारी)

हाजत रवाई

फिर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया जो शख्स अपने किसी भाई की हाजत रवाई करता है अल्लाह उसकी हाजत रवाई फरमाता है

हाजत रवाई यानी किसी की ज़रूरत को पूरा करना। ये ज़रूरत चाहे छोटी हो या बड़ी अगर कोई मुसलमान अपने भाई की ज़रूरत पूरी करता है तो अल्लाह तआला उसकी दुनिया और आख़िरत की ज़रूरतें पूरी फरमाता है।

हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो शख्स किसी मोमिन की दुनियावी परेशानियों में से एक परेशानी दूर करता है तो अल्लाह तआला क़यामत के दिन उसकी परेशानियों में से एक परेशानी दूर करेगा। (सहीह मुस्लिम)

यहाँ हाजत से मुराद सिर्फ पैसे की ज़रूरत नहीं बल्कि हर वो चीज़ है जिसकी इंसान को ज़रूरत हो  चाहे वह रास्ता बताना हो किसी की शादी में मदद करना हो किसी बीमार की देखभाल करना हो या किसी के लिए नौकरी ढूंढना हो।

दुनिया की मुश्किल दूर करना

हुज़ूर ने फिर फरमाया  जो शख्स किसी मुसलमान की दुनियावी मुश्किल हल करता है अल्लाह उसकी क़यामत की मुश्किलों में से कोई मुश्किल हल फरमाएगा

क़यामत का दिन इतना सख्त और डरावना होगा कि इंसान अपने माँ-बाप और अपनी औलाद से भी नहीं पूछेगा। ऐसे में अगर अल्लाह तआला किसी की मुश्किल आसान कर दे तो इससे बड़ी कोई सआदत नहीं हो सकती।

हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया मोमिनों पर तरस खाओ, जिन पर अल्लाह तआला तरस खाए।(सहीह बुखारी) यानी जो दूसरों पर रहम करता है अल्लाह उस पर रहम करता है। जो दूसरों की मुश्किलें आसान करता है अल्लाह उसकी मुश्किलें आसान करता है।

पर्दा पोशी करना

आखिर में हुज़ूर ने फ़रमाया जो शख्स किसी मुसलमान की परदा पोशी करता है अल्लाह तआला क़यामत के दिन उसकी परदा पोशी फरमाएगा "परदा पोशी" यानी किसी की बुराई या गलती को छुपाना। इंसान गलतियों का पुतला है कोई न कोई गलती सबसे हो जाती है। अगर कोई मुसलमान किसी दूसरे मुसलमान की गलती देखे और उसे छुपा दे, तो अल्लाह तआला क़यामत के दिन उसकी गलतियों को छुपाएगा।

हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो शख्स किसी मुसलमान की दुनिया में शर्मिंदगी दूर करता है अल्लाह तआला क़यामत के दिन उसकी शर्मिंदगी दूर करेगा। (सहीह मुस्लिम)

याद रखें, परदा पोशी का मतलब ये नहीं कि बुराई को बढ़ावा दिया जाए बल्कि नेक नियत से गलती को छुपाया जाए और अलग से उसे सुधारने की कोशिश की जाए।

खुलासा

मेरे प्यारे भाइयो, हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये फरमान हमें एक पूरा इस्लामी सिस्टम अता फरमाता है। ये हमें सिखाता है कि हम सब आपस में भाई हैं  इसलिए हमें आपसी मुहब्बत हमदर्दी और इज्ज़त के साथ रहना चाहिए। हमें किसी पर ज़ुल्म नहीं करना  चाहे वह ज़बानी हो माली हो या किसी और तरह का। और हमें एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए  चाहे वह पैसे की मदद हो वक़्त की मदद हो या किसी और तरह की। हमें एक-दूसरे की गलतियाँ छुपानी चाहिए  न कि उन्हें दुनिया में उजागर करना।

इस हदीस पाक में तीन वादे की खुश खबरी सुनाई गई है

पहली अल्लाह तआला दुनिया में हाजत रवाई फरमाता है दूसरी अल्लाह तआला आख़िरत में मुश्किलों से निजात अता फरमाएगा तीसरी अल्लाह तआला क़यामत के दिन परदा पोशी फरमाएगा

दोस्तों आओ, हम अज़्म करें कि हम इस पाक हदीस पर पूरी तरह अमल करेंगे। हम अपने मुसलमान भाइयों की मदद करेंगे, उनकी गलतियाँ छुपाएंगे, और किसी पर ज़ुल्म नहीं करेंगे। अल्लाह तआला हम सबको इस पाक हदीस पर अमल करने की तौफीक अता फरमाए। आमीन।

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