गुनाहों की बख्शिश और इस्तिग़फार अज़कार की बरकत | tauba istigfar se dil chamakta hai

क्या आप गुनाहों के बोझ तले दबे हुए हैं? क्या मुसीबतें आपको घेरे हुई हैं? इस ब्लॉग पोस्ट में जानिए पैग़म्बर ए इस्लाम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम द्वारा बताए

इंसान खता का पुतला है हर शख़्स से गलती होती है कभी नज़र से कभी ज़बान से और कभी दिल से मगर अल्लाह तबारक व तआला की रहमत इस कदर वसीअ है कि अगर कोई बंदा सच्चे दिल से तौबा करे इस्तिग़फार करे और अपने रब के सामने झुक जाए तो वह गुनाहों को ऐसे मिटा देता है जैसे सूखे दरख्त से पत्ते झड़ते हैं इस पोस्ट में जिसमें हम कुरआन और हदीस की रोशनी में जानेंगे कि इस्तिग़फार तस्बीहात और अज़कार कैसे हमारी दुनिया और आख़िरत को संवार सकते हैं।

गुनाहों को झाड़ने का बेहतरीन वसीला तस्बीहात

हज़रत अनस रज़ी अल्लाह तआला अन्हा से रिवायत है वह फरमाते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक सूखे पेड़ के पास से गुज़रे आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी लाठी मुबारक से उसकी एक डाली पर मारा तो उसके पत्ते  झड़कर ज़मीन पर बिखर गए इस पर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया अलहम्दुलिल्लाह (सारी तारीफ़ अल्लाह के लिए है) सुब्हान अल्लाह (अल्लाह की ज़ात मुनज़्ज़ह और पाक है) ला इलाहा इल्लल्लाह (अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं) और अल्लाहु अकबर (अल्लाह सबसे बड़ा है) कहने वाले बन्दे के गुनाह इस तरह झड़ जाते हैं जैसे इस पेड़ के पत्ते झड़ गए।

इस हदीस में एक बेहद ख़ूबसूरत तश्बीह (मिसाल) दी गई है। गुनाहों में मुलव्वस इंसान एक सूखे हुए पेड़ की तरह है उसके गुनाह उस पर चिपके हुए पत्तों की तरह हैं और यह पाक कलिमात असा (छड़ी) की तरह हैं जो  गुनाहों को सूखे पत्तों की तरह झड़ा देती है और इंसान को गुनाहों के बोझ से आज़ाद कर देती है।

मुसीबतों के दरवाज़े बंद करने वाला कलिमा

हज़रत मकहूल हज़रत अबू हुरैरा रज़ी अल्लाह तआला अन्हु से रिवायत करते हैं। हज़रत अबू हुरैरा रज़ी अल्लाह तआला अन्हु फरमाते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझसे इरशाद फरमाया ला हौला वला कुव्वता इल्ला बिल्लाह तर्जुमा (न तो बुराई से बचने की ताकत है और न ही नेकी करने की ताक़त मगर अल्लाह की मदद से) ज़्यादा पढ़ा करो क्योंकि यह जन्नत के खज़ानों में से एक है।

हज़रत मकहूल आगे फरमाते हैं "जो कोई ‘ला हौला वला कुव्वता इल्ला बिल्लाह और वल मंजा मिनल्लाह इल्ला इलैह (और अल्लाह के सिवा कोई पनाह देने वाला नहीं) पढ़ा करे तो अल्लाह तआला उससे सत्तर मुसीबतों के दरवाज़े बंद फरमा देगा जिनमें से सबसे हल्की मुसीबत फ़क़ीरी (गरीबी)है। इसका मतलब यह है कि अगर इस वज़ीफे को पढ़ने वाले को कभी माल की गरीबी आ भी जाए तो भी वह दिल का फ़क़ीर (गरीब) नहीं बनेगा। यानी इस वज़ीफे का आमिल दिल का भी गनी (अमीर) होगा और माल का भी क्योंकि जो इंसान अपने आप को अपने रब के हवाले कर देता है वह यक़ीनन ग़ैर (दुनिया) से बे-परवाह हो जाता है।

निनानवे बीमारियों की दवा

हज़रत अबू हुरैरा रज़ी अल्लाह तआला अन्हु से ही एक और रिवायत है। वह फरमाते हैं कि रसूल करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया ला हौला वला कुव्वता इल्ला बिल्लाह निनानवे बीमारियों की दवा है जिनमें सबसे सख्त बीमारी ग़म है। यह कलिमा न सिर्फ बाहरी बीमारियों के लिए शिफा है बल्कि दिल के ग़म और चिंता जैसी अंदरूनी बीमारियों के लिए भी बेहतरीन दवा है।

जन्नत के खज़ाने से निकला हुआ कलिमा

हज़रत अबू हुरैरा रज़ी अल्लाह तआला अन्हु से एक तीसरी रिवायत में मिलता है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया "क्या मैं तुम्हें वह कलिमा न बता दूं जो अर्श के नीचे से आया है और जन्नत के खज़ानों में से है? वह है ‘ला हौला वला कुव्वता इल्ला बिल्लाह। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इसके मानी भी समझाए कि इसका मतलब क्या है 'तर्जुमा'न तो नेकी करने की ताक़त है और न बुराई से बचने की हिम्मत, मगर अल्लाह तआला की तौफ़ीक़ से। जब कोई मोमिन बन्दा यह कलिमात पढ़ता है तो अल्लाह तआला फरमाता है "मेरा बन्दा फरमाबरदार हो गया और उसने अपने आप को मेरे हवाले कर दिया। जो बन्दा इस कलिमे को बहुत ज़्यादा पढ़ता है,अल्लाह तआला फरिश्तों से फरमाता है देखो फलां बन्दे ने अपने आप को मेरे सुपुर्द कर दिया है अब मैं उसकी हर बात का वाली और वारिस बन गया हूं। अल्लाह की यह कितनी बड़ी नेमत है जो किसी बन्दे को नसीब हो जाए। बिल्कुल वैसे ही जैसे एक छोटा बच्चा अपने आप को अपनी माँ के हवाले कर देता है तो उसकी सारी फ़िक्रें माँ उठा लेती है और बच्चा हर तरह की चिंता से आज़ाद हो जाता है। हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ी अल्लाह तआला अन्हुमा से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया ‘सुब्हान अल्लाह’ सारी मखलूक की सलात (इबादत) है अलहम्दुलिल्लाह शुक्र का कलिमा है ला इलाहा इल्लल्लाह इख्लास का कलिमा है और अल्लाहु अकबर ज़मीन और आसमान के दरमियान की हवा को भर देता है। और जब बन्दा कहता है ‘ला हौला वला कुव्वता इल्ला बिल्लाह’ तो रब ज़ुल जलाल वल इकराम फरमाता है ‘मेरा बन्दा मेरा हुक्म मानने वाला हो गया और उसने अपने आप को मेरे सुपुर्द कर दिया।

यह बात भी याद रखने वाली है कि हर मखलूक अपनी ज़बान-ए-हाल से अपने रब की तस्बीह करती है। अल्लाह तआला का इरशाद है और कोई चीज़ ऐसी नहीं है जो उसकी हम्द के साथ तस्बीह न करती हो। (कुरान)। यह एक हक़ीकत है कि हर चीज़ को अल्लाह की पहचान हासिल है और वह अपनी हालत और अपनी ज़बान से रब ए कायनात की तस्बीह करती है। सहाबा ए किराम रज़ी अल्लाह तआला अन्हुम खाने के निवाले की तस्बीह सुनते थे। यहाँ तक कि पेड़ों की हरी-भरी टहनियाँ भी तस्बीह पढ़ती हैं। इसी लिए सरकार ए कायनात सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दो कब्रों पर ताज़ी हरी टहनियाँ लगाकर फरमाया था कि उनकी तस्बीह की वजह से उन कब्र वालों के अज़ाब में तखफ़ीफ़ (कमी) होगी।

अल्लाह की बे इन्तेहा बख्शिश

अल्लाह की रहमत की कोई सीमा नहीं है। हज़रत अनस रज़ी अल्लाह तआला अन्हा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि अल्लाह तआला फरमाता है "ऐ औलाद ए आदम! जब तक तू मुझसे दुआ मांगता रहेगा और मुझसे उम्मीद रखेगा, तब तक मैं तेरी खामियों और गुनाहों के बावजूद तुझे माफ़ करता रहूंगा मैं बे-परवाह हूं। ऐ इंसान! अगर तेरे गुनाह आसमान तक पहुंच जाएं फिर तू मुझसे माफ़ी मांगे तो मैं तुझे माफ़ कर दूंगा मुझे कोई परवाह नहीं होगी। ऐ औलाद ए आदम! अगर तू ज़मीन भर के गुनाहों के साथ मेरे पास आए मगर इस हालत में आए कि तूने किसी को मेरा शरीक नहीं ठहराया तो मैं भी ज़मीन भर माफ़ी के साथ तेरे पास आऊंगा।

हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ी अल्लाह तआला अन्हुमा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया 'अल्लाह तआला ने फरमाया' जो यह जाने कि मैं माफ़ करने पर क़ादिर हूं तो मैं उसे माफ़ कर दूंगा, मुझे कोई परवाह नहीं होगी, बशर्ते कि वह मेरा किसी को शरीक न ठहराए। यह बहुत ही उम्मीद बढ़ाने वाला इरशाद है। जो मोमिन अपने रब को अज़ाब देने और माफ़ करने पर क़ादिर मानता है, फिर भी अगर उससे कोई गुनाह सरज़द हो जाए और वह तौबा करले, तो रब ए करीम अपने फज़ल व करम से उसे ज़रूर माफ़ फरमाएगा।

हर तंगी और गम से निजात

हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ी अल्लाह तआला अन्हुमा से ही एक और रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया "जो (साहिबे ईमान ) इस्तिग़फार को अपनी आदत बना लेता है, तो अल्लाह तआला उसे हर तरह की तंगी और हर तरह के ग़म से निजात अता फरमाएगा,और उसे ऐसी जगह से रिज़्क (रोज़ी) देगा जहां से उसे  गुमान (अंदाज़ा) भी नहीं होगा। इस्तिग़फार करने वाले को रब ज़ुल जलाल ग़ैब के खज़ानों से रोज़ी माल औलाद इज़्ज़त और शान सब कुछ अता फरमाता है। इस्तिग़फार का सबसे बेहतरीन वक़्त सुबह का वक़्त है, यानी तहज्जुद या फज्र की नमाज़ का वक़्त। क़ुरान ए मजीद में अल्लाह तआला ने अज़ीम ईमान वालों की शान बयान करते हुए फरमाया है कि वह लोग कहते हैं "ऐ हमारे रब! हमारे गुनाह माफ़ फरमा और हमें दोज़ख के अज़ाब से बचा ले।(सूरह आल-ए-इमरान,) यह वह लोग हैं जो सब्र करने वाले सच्चे अदब वाले अल्लाह की राह में खर्च करने वाले और रात के आखिरी पहर इस्तिग़फार करने वाले होते हैं। दूसरी जगह फरमाया "बेशक परहेज़गार (मुत्तक़ी) बाग़ों और चश्मों में होंगे, वह अपने रब का दिया हुआ ले रहे होंगे। बेशक वह इससे पहले (दुनिया में) नेक लोग थे। वह रात में बहुत कम सोया करते थे और रात के आखिरी पहर इस्तिग़फार किया करते थे।(सूरह अज़-ज़ारियात,)

इस्तिग्फार का फायदा दिल का चमकना 

इस्तिग़फार का एक और फ़ायदा यह है कि इससे दिल चमकने लगता है। हज़रत अबू हुरैरा रज़ी अल्लाह तआला अन्हा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया "मोमिन जब गुनाह करता है तो उसके दिल पर एक स्याह दाग लग जाता है। अगर वह तौबा करले और इस्तिग़फार करे तो उसका दिल साफ़ और चमकदार हो जाता है। और अगर वह गुनाह ही बढ़ाता रहे तो यह स्याही बढ़ती जाती है, यहाँ तक कि दिल पर छा जाती है। यही वह ज़ंग है जिसका ज़िक्र अल्लाह तआला ने फरमाया है उनके किए हुए (बुरे) अमलों ने उनके दिलों पर ज़ंग लगा दिया है।(क़ुरान) गुनाह दिल को मैला करते हैं और गुनाहों की ज्यादती दिल के ज़ंग का सबब बनती है। नेक अमाल और ख़ास तौर पर बुज़ुर्गों की सोहबत (संगत) दिल की सफ़ाई का ज़रिया होती है।

हज़रत अबू सईद रज़ी अल्लाह तआला अन्हा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया शैतान ने कहा 'ऐ मेरे रब! तेरी इज़्ज़त की क़सम मैं तेरे बन्दों को तब तक बहकाता रहूंगा जब तक उनकी रूहें उनके जिस्मों में हैं। रब ज़ुल जलाल ने फरमाया 'मुझे अपनी इज़्ज़त और अपनी बुलंदी की क़सम, जब तक वह मुझसे माफ़ी मांगते रहेंगे (इस्तिग़फार करते रहेंगे) मैं उन्हें माफ़ करता रहूंगा। यहाँ 'बहकावे' से मुराद यह है कि शैतान इंसान को अच्छे अक़ीदे या अच्छे अमाल से अलग करने की कोशिश करता है। शैतान ने कहा कि मैं बन्दों के मरने तक कोशिश करूंगा कि वह बद-अक़ीदा या बद-अमल हो जाएं। अगर यह न कर सका तो उन्हें नेकी से रोक दूंगा। अगर यह भी न हुआ तो बड़ी नेकी से रोककर छोटी नेकी में लगा दूंगा। इब्लीस की यह कोशिश बन्दे के आखिरी सांस तक जारी रहती है। हम अल्लाह की पनाह मांगते हैं शैतान के शर से।

एक ख़ास इस्तिग़फार जो बहुत बड़े गुनाहों की बख्शिश के लिए फाएदे मंद है, वह हज़रत बिलाल बिन यसार बिन ज़ैद रज़ी अल्लाह तआला अन्हा से मिलता है, जो नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ग़ुलाम थे। वह फरमाते हैं कि मेरे वालिद ने मेरे दादा से रिवायत की कि उन्होंने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को फरमाते सुना "जो कोई यह पढ़ा करे 'असतग्फ़िरुल्लाहल्लज़ी ला इलाहा इल्ला हुवल हय्युल क़य्यूमु व अतूबु इलैह' (मैं उस अल्लाह से माफ़ी मांगता हूं जिसके सिवा कोई माबूद नहीं, वह  ज़िंदा है, काइम रखने वाला है, और मैं उसी की बारगाह में तौबा करता हूं), तो उसके गुनाह माफ़ कर दिए जाएंगे, भले ही वह जिहाद के मैदान से भागा हुआ हो। जिहाद के मैदान में दुश्मन के सामने से बुज़दिली की वजह से भाग जाना बहुत बड़ा गुनाह है, लेकिन इस इस्तिग़फार की बरकत से इंशा अल्लाह वह भी माफ़ हो सकता है। यह इस्तिग़फार बहुत बड़े गुनाहों की माफ़ी के लिए बहुत मुफीद है।

औलाद की दुआ से दरजे का बुलंद होना

हज़रत अबू हुरैरा रज़ी अल्लाह तआला अन्हु से एक बहुत ही ख़ास रिवायत है। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया "बेशक अल्लाह तआला एक नेक बन्दे के दरजे को बुलंद फरमाता है। तो वह बन्दा अर्ज़ करता है 'या इलाही! मुझे यह बुलंद दरजा कहां से मिला?' तो रब ज़ुल जलाल इरशाद फरमाता है 'तेरी औलाद के तेरे लिए मगफिरत की दुआ करने की वजह से।

इस हदीस से कुछ अहम बातें मालूम हुईं

1.  नेक औलाद सदक़ा ए जारिया और अल्लाह की रहमत है, जो माँ-बाप के दुनिया से जाने के बाद भी उनके लिए दुआ, इस्तिग़फार और ईसाले सवाब करके उन्हें कब्र में फ़ायदा पहुंचाती रहती है।

2.  मोमिनों की शफ़ाअत (सिफारिश) सच्ची है और उसका फ़ायदा मुरदे को पहुंचता है। फिर तो नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शफ़ाअत तो सुब्हान अल्लाह, क्या ही बड़ी चीज़ है।

3.  औलाद को चाहिए कि वह अपने माँ-बाप को दुआ ए खैर में याद रखे और नमाज़ में सलाम फेरने से पहले "रब्बनग़फिर ली व लि वालिदय्या" (ऐ हमारे रब! मुझे माफ़ कर और मेरे माँ-बाप को भी माफ़ कर) ज़रूर पढ़े।

दुआ फ़ौत शुदा लोगों के लिए तोहफ़ा है

हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ी अल्लाह तआला अन्हुमा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया "मुरदा (मय्यत) कब्र में डूबने वाले एक फरयादी (मदद मांगने वाले) की तरह होती है, जो अपने माँ-बाप, भाई और दोस्त की  दुआओं के पहुंचने का इंतज़ार करती रहती है। फिर जब उसे कोई दुआ पहुंच जाती है तो वह दुआ उसे दुनिया और दुनिया की सारी नेमतों से भी ज़्यादा प्यारी लगती है। और अल्लाह तआला ज़मीन वालों की दुआ से कब्र वालों को सवाब के पहाड़ अता फरमाता है। और यक़ीनन ज़िंदा आदमी का अपने फ़ौत शुदा लोगों के लिए बख्शिश की दुआ करना उनके लिए एक तोहफ़ा है। हमें चाहिए कि हम तोहफ़ों और हदियों का सिलसिला जारी रखें। ज़िंदा लोगों को भी तोहफ़े देते रहना चाहिए, इससे मुहब्बत बढ़ती है। और फ़ौत शुदा लोगों को अच्छे नेक अमाल का तोहफ़ा देते रहना चाहिए, यानी उनके लिए दुआ करते रहना चाहिए, उनके नाम से सदक़ा करते रहना चाहिए। अल्लाह तआला उनके गुनाहों को माफ़ फरमाता है और उनके दरजों को बुलंद करता है।

ख़ातमा

आज के दौर में जब हर तरफ़ फ़ितना, गुनाह और बे-हयाई का तूफ़ान है, एक मोमिन के लिए  अल्लाह की तरफ़ रुजू करना है। इस्तिग़फार, तस्बीहात और नेक अमाल के ज़रिए हम अपने दिल को सैक़ल कर सकते हैं, दुनिया की तंगी से राहत पा सकते हैं और आखिरत की भलाई हासिल कर सकते हैं। हर रोज़ "सुब्हान अल्लाह", "अलहम्दुलिल्लाह", "अल्लाहु अकबर", "ला इलाहा इल्लल्लाह", और "ला हौला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाह" को अपनी ज़बान पर लाना और दिल से इस्तिग़फार करना, हमारी ज़िन्दगी को बदल सकता है। अल्लाह तबारक व तआला हमें इस्तिग़फार की आदत और तस्बीह की मिठास नसीब फरमाए। अल्लाह तआला से दुआ है कि वह हमें इन पर अमल करने की तौफ़ीक़ अता फरमाए और अपनी  रहमत से नवाज़े। आमीन।

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