ज़ियारत ए कुबूर उर्स और इल्म ए गैब सहीह बुखारी की एक हदीस से दस अहकाम का इस्तिदलाल

इस मज़मून में सहीह बुखारी की हदीस से ज़ियारत ए कुबूर उर्स इल्म ए ग़ैब वगैरह और दस अहम इस्लामी अहकाम का सबूत पेश किया गया है।

सहीह बुखारी की रोशनी में इस्लामी तालीमात में हर हदीस सिर्फ एक बयान नहीं होती बल्कि उसमें कई अहम मसाइल और उसूल होते हैं सहीह बुखारी की एक हदीस में हज़रत उकबा बिन आमिर रदी अल्लाहु अन्हु की रिवायत से हमें न सिर्फ रसूल ए करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम की शफकत और रहनुमाई का पता चलता है बल्कि इससे दस अहम मसाइल का इस्तिनबात भी होता है इस हदीस में हुज़ूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम की शुहदा ए उहद की कब्रों पर ज़ियारत और नमाज़ पढ़ने से लेकर उम्मत के लिए हिदायत और दीन में मआशरत की कई अहम बातें बयान हुई हैं इसमें उर्स का सबूत ज़ियारत ए कुबूर की अहमियत गुनाहों से बचने की नसीहत और उम्मत के आमाल पर नजर रखने की बात शामिल है आइए इस हदीस से निकलने वाले मसाइल को तफसीली तौर पर समझते हैं।

हदीस का मतन

सहीह बुखारी किताब अल हौज़ जिल्द 2 सफ्हा 975 पर हज़रत उकबा बिन आमिर जहनी सहाबी रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जो कि हज़रत अमीर मुआविया के दौर में मिस्र के गवर्नर थे फिर गवर्नरी से मअज़ूल होकर मिस्र ही में 58ह को आप का विसाल हुआ और सहाबा किराम और ताबिईन इज़ाम की एक बहुत बड़ी जमात ने आप से अहादीस रिवायत फरमाई हैं अकमाल से रिवायत है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक दिन शुहदा ए उहद की तरफ उनकी ज़ियारत की नीयत से घर से निकले पस आप अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने उहद के शहीदों पर नमाज़ ए जनाज़ा की तरह नमाज़ पढ़ी फिर वापस मिम्बर पर तशरीफ लाए और फरमाया मैं तुम्हारा पेश रौ और गवाह हूँ और खुदा की कसम मैं इस वक्त हौज़ ए कौसर को देख रहा हूँ और बेशक मुझे ज़मीन के तमाम खजानों की चाबियाँ अता की गई हैं और कसम बखुदा यकीनन तुम लोगों पर मैं शिर्क में मुब्तिला होने का खतरा महसूस नहीं करता यानि तुम शिर्क नहीं करोगे लेकिन यह मुझे खतरा है कि तुम दुनिया में रागिब और आपस में हसद करोगे। बुखारी शरीफ

हदीस से निकलने वाले मसाइल

पहला मसला ज़ियारत कुबूर

इस हदीस से मुंदरजा ज़ेल मसाएल मालूम हुए ज़ियारत कुबूर के इरादे से शुहदा व सालेहीन की कब्रो पर जाना सुन्नत ठहरा क्योंकि हुज़ूर अलैहिस्सलाम शुहदा ए उहद की शहादत के आठ साल बाद उनकी कब्रो पर तशरीफ ले गए और अकेले नहीं बल्कि बहुत सारे सहाबा किराम के साथ।

दूसरा मसला उर्स का सबूत

इस हदीस से उर्स का सबूत भी मिला क्योंकि आपने मिम्बर पर जल्वा गर हो कर खिताब भी फरमाया इसका मतलब यह हुआ कि आपके लिए पेशल मिम्बर लाया गया वर्ना कब्रिस्तान में मिम्बर का क्या काम उर्स में यही कुछ होता है इसके अलावा जो कुछ होता है ढोल ढुम्का नाच गाना इसके हम काइल नहीं हैं बल्कि यह हवाई किसी दुश्मन ने उड़ाई होगी सही उर्स में कब्रो की ज़ियारत के साथ सिर्फ वअज़ व तबलीग का सिलसिला होता है।

तीसरा मसला शुब्ह का इजाला

अगर कोई यह कहे कि यह सारा सिलसिला सहाबा के सामने हुआ लेहाज़ा इन्हीं के साथ खास है इसलिए इन्हीं को मुखातब कर के फरमाया गया तो इसका जवाब यह है कि फिर हदीस का आखरी जुमला कि तुम दुनिया में रागिब हो जाओगे और एक दूसरे पर हसद करने लगोगे भी सहाबा किराम के लिए मानना पड़ेगा हालांकि कौन मुसलमान है जो उन नुफुस ए कुदसिया के बारे में यह अकीदा रखे।

चौथा मसला ज़ियारत कुबूर इबादत नहीं

तफसीर सावी जिल्द 1 सफा 245 पर इमाम सावी वब्तगू इलैहिल वसीला की तफसीर में लिखते हैं औलिया किराम की कब्रो की ज़ियारत करने वाले मुसलमानों को इस लिए काफिर कहना कि ज़ियारत कुबूर गैरुल्लाह की इबादत है यह बिलकुल खुली गुमराही है ज़ियारत कुबूर गैरुल्लाह की इबादत नहीं बल्कि अल्लाह की मोहब्बत की अलामत है।

पांचवा मसला सलात का मतलब

अल्लामा किरमानी शरह बुखारी कहते हैं कि हदीस में सलात से मुराद नमाज़ ए जनाजा में पढ़ी जाने वाली दुआ है तसमिया अल कुल बिसमिल जुज जबकि दीगर शारेहीन हदीस ने इससे नमाज़ ए जनाजा ही मुराद ली है और इसको हुज़ूर अलैहिस्सलाम की खुसूसियात में शुमार किया है।

छठा मसला पेश रौ का मतलब

हुज़ूर अलैहिस्सलाम हमारे पेश रौ हैं यानी हम से पहले अल्लाह की बारगाह में हाजिर हो कर हमारी बख्शिश और शफाअत का इन्तिजाम फरमाने वाले हैं क्योंकि फर्त अरबी जबान में उस शख्स को कहते हैं जो किसी जमाअत से आगे जा कर उसकी जरूरतों का इन्तिजाम करने वाला हो।

सातवां मसला गवाही का इल्म

हुज़ूर अलैहिस्सलाम हमारे जाहिरी व बातिनी आमाल से बाखबर हैं क्योंकि बगैर देखे और बगैर जाने गवाही देना जायज नहीं है हालाँकि आपने फरमाया व अना शहीद अलैकुम मैं तुम्हारा गवाह हूँगा बल्कि आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम सारी उम्मतों के गवाह होंगे वजिएना बिका अला हाउलाए शहीदा लिहाजा आप पहले पिछले हर इंसान के आमाल से ख्वाह वो जाहिरी हों या बातिनी बाखबर हैं मगर जो खुद बेखबर हैं वो आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम को भी बेखबर जानते हैं।

आठवां मसला निगाहे नुबुव्वत

निगाहे नुबुव्वत की बुलंदी का अन्दाजा कौन कर सकता है कि शुहदाए उहद के मज़ारात पर जल्वा गर हो कर हौजे कौसर को मुलाहिजा फरमारहे हैं लिहाजा आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के अअजा ए मुबारक और उनकी ताकत को अपने ऊपर कयास नहीं किया जा सकता कि हम तो दीवार के पीछे ना देख सकें और हमारे आका ऊपर निगाह उठाएं तो अर्शे मुअल्ला को देख लें और नीचे निगाह करें तो तहतुस सरा को देख लें ऊँची बीनी की रिफात पे लाखों सलाम।

नवां मसला मफातिहुल गैब

हुज़ूर अलैहिस्सलाम अल्लाह तआला के तमाम खजानों के मालिक बना दिए गए क्योंकि चाबियाँ देने का यही मतलब हो सकता है और मफातिह भी जमअ है बल्कि मुन्तहा अल्जुमूअ है और खजाइन भी जमअ है तो जमअ जमअ की तरफ मसाफ हो तो तकसीम अहाद इलल अहाद के कानून के मुताबिक एक एक खजाने की चाबी का मिलना साबित हुआ और गैब भी एक खजाना है व इन्दहु मफातिहुल ग़ैब लिहाजा आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम को इल्म ए गैब का खजाना भी अता कर दिया गया मगर बेखबर बेखबर जानते हैं लिहाजा जाहिरी खजाने फुतूहाते रोम फारस या सोना चांदी पीतल तांबा हीरे जवाहरात तेल पेट्रोल हों या बातिनी खजाने ईमान हिदायत तकवा वगैरह हों सब कुछ हुज़ूर अलैहिस्सलाम के कब्जे में है और आप इनमें मालिकाना तसर्रुफ फरमाते हैं हज़रत अबू हुरैरा ये हदीस सुना कर फरमाते थे व अंनतुम तनतसीलूनहा ज़मीन के खजाने जो हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम को दिए गए तुम इन्हें निकाल कर मुतामत्ता हो रहे हो फुतूहात की तरफ इशारा था बल्कि यूं कहा जाए तो नारवा न होगा तमाम नबातात जमादात व हैवानात भी ज़मीन के खजाने हैं जानवरों के नुत्फे भी ज़मीन से हासिल होने वाली गिजाओं का नतीजा हैं बल्कि बादल बारिश ओले कौस व कज़ह हालह रअद बरक भी इन खजानों में शामिल हैं क्योंकि तमाम फिजाई कायनात भी ज़मीन से उठने वाले बुखारात की पैदावार है जब हदीस में उमूम है और मकाम भी मकाम मद्ह है तो हम तख्सीस कर के बुख्ल से क्यों काम लें।

दसवां मसला मोहब्बत ए रसूल और शिर्क का इंकार

दो जहां की नेमतें हैं उनके खाली हाथ में आशिकाने मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की अपने आका सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम और आपके गुलामों औलिया किराम सहाबा किराम व अहले बैत एजाम के साथ मोहब्बतों के मुख्तलिफ अंदाज देख कर उनको मुशरिक करार देना सरासर ज्यादती है और मनशाए नुबुव्वत के खिलाफ है क्योंकि हुज़ूर अलैहिस्सलाम खुद फरमा रहे हैं कि मुझे तुम से शिर्क का कोई खतरा नहीं और पहले बयान हो चुका कि शिर्क नहीं करोगे का जुमला सिर्फ दौर ए सहाबा के साथ खास नहीं है वरना अगला जुमला भी उन्हीं के लिए मानना पड़ेगा बाकी रहा आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का ये फरमान कि कबीला दोस की औरतें जब तक बुतों का तवाफ नहीं करेंगी कयामत न आएगी तो ये सिर्फ एक कबीला की चंद औरतों का जिक्र है ना कि उमूमी उम्मत का लिहाजा इस फरमान की आड़ में सुवाद ए आज़म को मुशरिक गरदानना अदल व इंसाफ का खून करने के मुतरादिफ है सहाबा किराम अलैहिम रिदवान नबी करीम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की उन तमाम अज़मतों और शानों को तस्लीम करने वाले थे और ज़ियारत कुबूर के मौके पर भी हुज़ूर अलैहिस्सलाम का उनके सामने अपनी अज़मत व शान का मौजू बयान करना और नमाज़ रोजे और दीगर अहकामात में से कुछ भी न बयान करना इससे सहाबा किराम के जौक ए आशिक का पता चलता है कि उनका अकीदा ये था कि मंषा यही है सिलसिला कील व काल की होती रहे तारीफ तेरे हुस्न व जमाल की।

हदीस के आखरी जुम्ले में गैब की बहुत बड़ी खबर है जो कयामत तक को मुहीत है और जिस की सदाकत का हम खुद मुशाहिदा कर रहे हैं वो कौनसी दुनियावी रगबत होगी जो आज के मुसलमानों में नहीं है और हसद इस हद तक पहुँच गया है कि हर तरफ मुसलमान ही मर रहे हैं और मुसलमानों के आपस के इख्तलाफात से गैरमुस्लिम नाजायज फायदा उठाकर मुसलमानों को गाजर मुळी की तरह काट रहे हैं और पानी की तरह उनका खून बहा रहे हैं ऐसे हालात में भी दुश्मनान ए अज़मत ए रिसालत मआब अलैहिस्सलाम कुरआन व सुन्नत की सही तअबीरात के जरिए मुसलमानों की सही रहनुमाई न करेंगे तो याद रखें मिट गए मिटते हैं मिट जाएंगे अअ दा तेरे न मिटा है न मिटेगा कभी चर्चा तेरा।

एक ईमान अफरोज वाकिआ

बाकी रहा हुज़ूर अलैहिस्सलाम के करम का मामला तो वह न हुदूद व कुयूद का पाबन्द है और न ही जिन्दगी व मौत इसके रास्ते में हाइल हो सकती हैं इस पर एक तवील वाकिया लिख कर बात खत्म करते हैं और वाकिया भी खानदान वलीअल्लाह का कि जिनको हर कोई मानने का दावेदार है हज़रत शाह वलीअल्लाह मोहद्दिस देहलवी रहमतुल्लाह अलैह अपने वालिद माजिद हज़रत शाह अब्दुल रहीम साहब अलैहिर्रहमा के हालात में लिखते हैं तरजुमा हज़रत फरमाते थे कि एक दफाअ मुझे बुखार हुआ और मर्ज ने तूल पकड़ा कि जिंदगी की उम्मीद न रही उस वक्त एक ऊंघ सी आई और हज़रत शैख अब्दुल अजीज साहब जाहिर हुए और फरमाया ऐ फर्जंद हज़रत पैगम्बर अलैहिस्सलाम तेरी बीमार पुरसी के लिए तशरीफ ला रहे हैं और शायद कि इस तरफ से तशरीफ लाएं और इसी तरफ तेरे पांव हैं चारपाई को ऐसे तरीक पर बिछाना चाहिए कि तेरे पांव उस तरफ न हों मैं बेदार हुआ मगर कलाम करने की ताकत नहीं थी हाजिरीन को इशारा किया कि मेरी चारपाई को उस तरफ से फेर दें उस वक्त हज़रत रिसालत पनाह तशरीफ लाए और फरमाया ऐ बेटे तेरा क्या हाल है उस कलाम की शीरिनी मुझ पर ऐसी गालिब आई कि एक अजीब किस्म का वज्द और बका और इज़्तराब मुझ पर ज़ाहिर हुआ हुज़ूर अलैहिस्सलाम ने मुझको इस तरीक से आगोशे रहमत में लिया कि आपकी रेश मुबारक मेरे सर पर थी आपकी कमीस मुबारक मेरे अश्कों से तर हो गयी और आहिस्ता आहिस्ता उस वज्द ने तस्कीन पाई उस वक्त मेरे दिल में आया कि मुद्दतें गुजर गयीं मुए मुबारक की आरजू रखता हूं कितना ही करम हो अगर इस वक्त कोई चीज इस कबील से मरहमत फरमाएं इस ख्याल पर हुज़ूर मुत्तला हुए और रेश मुबारक पर हाथ फेरा और दो बाल मुबारक मेरे हाथ में दिए मेरे दिल में गुजरा कि ये दो बाल आलम ए शहादत में भी बाकी रहें गे या नहीं हुज़ूर इस ख्याल पर भी मुत्तला हुए और फरमाया कि ये दो बाल उस आलम में भी बाकी रहें गे बाद अजां आपने सेहत कुल्ली और उमर के लंबा होने की बशारत दी उस वक्त मैं बेदार हो गया और मैंने चराग तलब किया मगर इन बालों को अपने हाथ में न पाया गमनाक हुआ और हुज़ूर अलैहिस्सलाम की तरफ तवज्जोह की और हुज़ूर अलैहिस्सलाम ने फरमाया ऐ फरजंद ए दाना आगाह हो जा कि इन बालों को हमने इहतियातन तकिया के नीचे रखा है वहाँ से तू पाएगा मैं बेदार हुआ और बालों को वहाँ से पाया और ताअजीम के साथ एक जगह महफूज कर दिया बाद अजां फरमाया इन दो बालों के ख्वास में से एक ये है कि अव्वल आपस में मिले होते हैं जब दुरूद शरीफ पढ़ा जाए तो दोनों अलग अलग सीधे खड़े हो जाते हैं दूसरा ये कि एक मर्तबा तीन मुनकिरों ने इमतिहान चाहा मैं इस बेअदबी से राजी ना था जब मुनाजिरा ने तूल पकड़ा तो वो अजीज बगरज इम्तिहान इन दो बालों को धूप में ले गए तो फौरन बादल का एक टुकड़ा जाहिर हुआ और उस ने बालों पर साया कर दिया हालाँकि आफताब बहुत गर्म था और अब्र का मौसम हरगिज ना था एक ने तौबा की दूसरे ने कहा ये इत्तिफाकी वाकिया है दोबारा फिर बालों को निकाला फिर बादल का टुकड़ा जाहिर हुआ तो दूसरे ने भी तौबा की तीसरे ने कहा ये भी इत्तिफाकिया कजिया है तीसरी दफा फिर धूप में निकाला फिर बादल का टुकड़ा जाहिर हुआ तीसरा भी ताइबीन की लड़ी में मुनसलिक हो गया तीसरा ये कि एक मर्तबा बहुत लोग बराए ज़ियारत जमा थे मैंने आकर हर चंद कोशिश की कि चाबी लग जाए और ताला खुल जाए ताके हम सब लोग ज़ियारत कर लें मगर ताला नहीं खुलता था मैं अपने दिल की तरफ मुत्तवज्जा हुआ मालूम हुआ कि फलाँ आदमी जुनबी है उसकी शामते जनाबत की वजह से कुफल नहीं खुलता मैंने ऐबपोशी की और सब को तजदीद ए तहारत का हुक्म दिया जब जुनबी इस मजमा में से बाहर चला गया कुफ्ल आसानी से खुल गया और हम सब ने ज़ियारत की हज़रत वाला ने आखिर उम्र में तबरुकात को तकसीम फरमाया तो इन दो मुबारक बालों में से एक कातिबे हुर्फ शाह वली उल्लाह को भी इनायत फरमाया वल्हम्दु लिल्लाह रब्बुल आलामीन।

यहाँ से हज़रत शाह अब्दुल रहीम साहब रहमतुल्लाह अलैह की बुज़ुर्गी और हुज़ूर अलैहिस्सलाम से इश्क और आपके मुए मुबारक से अकीदत व मोहब्बत का बखूबी पता चलता है और इसके अलावा एक बहुत बड़ा मसला भी समझ में आ गया कि हज़रत शाह अब्दुल रहीम साहब ने केवल खयाली सूरत नहीं देखी थी बल्कि हुज़ूर अनवर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम जिस्मे अक्दस के साथ तशरीफ फरमा हुए थे क्योंकि बाल मुबारक जो अता फरमाए वो जुज़्वे जिस्म थे और शाह साहब ने बचश्म खुद देखा कि आपने अपनी मुजस्सम रेश मुबारक से अलग करके अता फरमाए और फिर रेश मुबारक का हिस्सी ताल्लुक हुज़ूर अलैहिस्सलाम के जिस्मे अतहर से था जिससे साबित हो गया कि हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम जिस्मे मोकद्दस के साथ वहाँ तशरीफ फरमा हुए थे गो दूसरों ने नहीं देखा जैसे हज़रत जिबराईल अलैहिस्सलाम मज्लिसे अक्दस में बज़ाते खुद तशरीफ लाए और हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के सिवा उनको कोई न देखता था हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इसी लिए इर्शाद फरमाया है तरजुमा जिसने मुझ को ख्वाब में देखा तो बेशक उसने मुझ ही को देखा क्योंकि शैतान मेरी सूरत में मुतामस्सल नहीं हो सकता हालत बता रही है यह कैफ व सुरूर की इस अंजुमन यह खास नजर है हुज़ूर की सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

ज़ियारत ए कुबूर कब्रों की ज़ियारत क्या है और इसकी क्या अहमियत है?

जी हाँ,सहीह बुखारी की हदीस के मुताबिक़ नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने शोहदा ए उहद की कब्रों की ज़ियारत की और नमाज़ ए जनाज़ा की तरह नमाज़ पढ़ी। इससे साबित होता है कि सालेहीन और शोहदा की कब्रों की ज़ियारत सुन्नत है। यह गैरुल्लाह की इबादत नहीं,बल्कि अल्लाह से मोहब्बत की निशानी है।

उर्स में कौन से काम जायज़ हैं?

हदीस में ब्यान है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने क़ब्रिस्तान में मिम्बर पर बैठ कर लोगों को ख़िताब किया। इससे साबित होता है कि उर्स के दौरान वअज़,नसीहत और दीन की तबीलीग जायज़ है। हालाँकि ढोल नगारे या नाच गाना जैसी क़बीह और गैर-शरिअ अमल जाइज़ नहीं।

क्या नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इल्म ए ग़ैब अता किया गया है?

जी हाँ, हदीस में साफ़ तौर पर बताया गया है मुझे ज़मीन के तमाम ख़ज़ानों की चाबियाँ अता की गई हैं मुफस्सिरीन के मुताबिक़ इन ख़ज़ानों में इल्म ए ग़ैब भी शामिल है,जो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अता किया गया है।

क्या औलिया से मोहब्बत करना शिर्क है?

बिलकुल नहीं। हदीस में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने साफ़ फरमाया कि उन्हें अपनी उम्मत के शिर्क में पड़ने का खतरा नहीं बल्कि दुनिया की लालच और हसद का खतरा है। इसलिए औलिया से मोहब्बत रखना शिर्क नहीं बल्कि अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मोहब्बत की निशानी है।

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