अल्लाह का ज़िक्र और इंसान की ग़फ़लत | फ़ज़ाइल ए ज़िक्र व बरकत और इख़लास भरा वाक़िया

हर मख़लूक अल्लाह की तस्बीह में मशगूल है, लेकिन इंसान गाफ़िल हो गया है। इस लेख में पढ़ें ज़िक्रे इलाही की अहमियत और दिल को रोशन करने वाले वाक़ियात।

अस्सलामु अलैकुम इस तहरीर में आप अल्लाह के ज़िक्र की फ़ज़ीलत के बारे में पढ़ेंगे कुरान मजीद सुरह बक़रह में अल्लाह फरमाता है फ़ज़कुरूनी अज़कुरकुम वशकुरूली वला तक्फ़ुरून यानी पस तुम मेरी याद करो मैं तुम्हें याद करूंगा और मेरा शुक्र करो और मेरी ना शुक्री ना करो एक बुज़ुर्ग फरमाते हैं जब अल्लाह मुझे याद करता है तो मैं जान जाता हूँ लोगों ने हैरान होकर पूछा कि वह कैसे उन्होंने फरमाया क्या तुमने कुरान की वह आयत नहीं पढ़ी अल्लाह फरमाता है फ़ज़कुरूनी अज़कुरकुम यानी तुम मुझे याद करो मैं तुम्हें याद करूंगा। सुब्हानअल्लाह

अल्लाह बंदों को कैसे याद करता है

तुम मुझे याद करो मैं तुम्हें याद करूँगा यानी तुम मुझे हम्दो सना तस्बीह तहलील और तक़द्दुस से याद करो मैं फरिश्तों में तुम्हारा ज़िक्र करूंगा तुम तौबा और इस्तिग़फ़ार से मुझे याद करो मैं मग़फ़िरत और बख्शिश से तुम्हें याद रखूंगा तुम दुआ और सवाल से मुझे याद करो मैं जूद और अता से तुम्हें याद करूंगा तुम ताअत और इबादत से मुझे याद करो मैं नेअमत और रहमत से तुम्हें याद करूंगा तुम राहत और सुकून में मुझे याद करो मैं बलाओं और मुसीबतों के वक्त तुम्हें याद करूंगा तुम इख़लास और मुहब्बत से मुझे याद करो मैं क़ुर्ब और लिका से तुम्हें याद करूंगा।

सारी मख़लूक अल्लाह की तस्बीह बयान करती है

जमादात नबातात चरिंद परिंद हैवान हवा दरख़्त पानी मिट्टी आसमान वाले ज़मीन वाले इनमें बसने वाली तमाम मख़लूक सब अल्लाह की तस्बीह में मशगूल है हवा की सरसराहट तस्बीह है दरवाज़ा खुलने की आवाज़ तस्बीह है पानी गिरने की आवाज़ तस्बीह है।

पत्थर आपस में टकराते हैं तो वह भी तस्बीह करते हैं नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमान है कि मैं उस पत्थर को पहचानता हूँ जो मेरे एलाने नुबुव्वत से पहले मुझे सलाम किया करता था। (मुस्लिम शरीफ)

इंसान अल्लाह के ज़िक्र से गाफ़िल है

गर्ज़ यह कि तमाम मख़लूक अल्लाह की हम्दो सना और तस्बीह में मशगूल है बे जान चीज़ें लकड़ी पत्थर भी उसके ज़िक्र में मसरूफ़ हैं लेकिन जो उसके ज़िक्र से गाफ़िल हुआ उसने नुकसान उठाया हदीस शरीफ में है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं किसी दरख़्त पर कुल्हाड़ा उसी वक़्त चलता है जब वह ज़िक्रे इलाही से गाफ़िल हो जाता है और जो जानवर यादे खुदा से गाफ़िल होता है वह ज़िबह कर दिया जाता है जो परिंदा या जानवर जब तक ज़िक्रे इलाही में मसरूफ़ रहता है वह आज़ाद रहता है जहाँ उस पर ग़फ़लत तारी होती है वह क़ैद या ज़िबह कर दिया जाता है इससे मालूम हुआ कि सारी मख़लूक अल्लाह के ज़िक्र में मसरूफ़ है मगर इंसान जो अशरफ़ुल मख़लूकात है वही गाफ़िल है अल्लाह ने इंसान को इज़्ज़त दी अक्ल दी रिज़्क़ दिया रोटी कपड़ा मकान आँखें कान हाथ पाँव सब अता किए कायनात की हर चीज़ इंसान के लिए बनाई लेकिन आज इंसान अल्लाह की याद से गाफ़िल है मुसलमान परेशान हैं जिल्लत में हैं रुसवाई में हैं क्योंकि उन्होंने अल्लाह के ज़िक्र से ग़फ़लत की है अगर इज़्ज़त चाहते हो कामयाबी चाहते हो तो अल्लाह का ज़िक्र करो अपने दिलों को ज़िक्रे इलाही से तर रखो कुरान मजीद में अल्लाह फरमाता है सूरह अहज़ाब में या अय्युहल्लज़ीना आमनुज़कुरुल्लाहा ज़िकरन कसीरा वसब्बिहूहू बुकरतन व असीला ए ईमान वालों अल्लाह का कसरत से ज़िक्र किया करो और सुबह शाम उसकी तस्बीह किया करो।

अल्लाह की याद में मसरूफ़ रहने वाला ग़ुलाम

एक वाक़िया अल्लामा शहाबुद्दीन क़ुल्यूबी ने अपनी किताब में दर्ज किया है एक आदमी ने एक ग़ुलाम खरीदा ग़ुलाम ने कहा ऐ मेरे आक़ा मैं तीन शर्तें लगाता हूँ पहली यह कि आप मुझे फ़र्ज़ नमाज़ से न रोकेंगे दूसरी यह कि दिन में जो हुक्म दें मगर रात को न दें तीसरी यह कि मेरे लिए एक जुदा कमरा रख दें जहाँ कोई और दाख़िल न हो आक़ा ने कहा मैंने शर्तें क़बूल की ग़ुलाम ने एक टूटा फूटा कमरा पसन्द किया आक़ा ने पूछा यह कमरा क्यों पसन्द किया ग़ुलाम ने कहा ऐ मेरे आक़ा क्या आप नहीं जानते कि टूटा घर भी अल्लाह की याद की बरकत से रोशन हो जाता है ग़ुलाम दिन में अपने आक़ा की ख़िदमत करता और रात को अल्लाह की इबादत एक रात आक़ा ने देखा कि कमरा रोशन है ग़ुलाम सजदे में है और उसके सर पर आसमान और ज़मीन के दरमियान एक क़न्दील लटक रही है वह कह रहा था ऐ अल्लाह तूने मुझ पर अपने आक़ा की ख़िदमत लाज़िम कर दी अगर यह मसरूफ़ियत न होती तो मैं दिन रात तेरी ही इबादत करता इसलिए मेरा उज़्र क़बूल फ़रमा आक़ा यह सब देखता रहा सुबह हुई तो वह मंज़र खत्म हो गया।

अगली रात उसने अपनी बीवी को भी साथ लाकर देखा वही मंज़र था उन्होंने ग़ुलाम को बुलाकर कहा तुम अल्लाह के लिए आज़ाद हो ताकि तुम पूरी तवज्जो से अपने मौला की इबादत कर सको ग़ुलाम ने आसमान की तरफ देखा और कहा ऐ मेरे रब राज़ खुल गया अब मैं ज़िंदगी नहीं चाहता और उसी वक़्त उसकी रूह परवाज़ कर गई रहमतुल्लाह तआला अलैह।

सबक और नसीहत

देखा आपने वह कितना मुख़लिस और ज़ाकिर ग़ुलाम था उसकी आरज़ू सिर्फ यह थी कि अल्लाह जाने और कोई न देखे कमाल दर्जे का इख़लास था।

मुफ़्ती आज़म अली रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं।

नफ़्स बदकार ने दिल पर क़यामत तोड़ी

अमल नेक किया भी तो छुपाने न दिया

मेरे आमाल सियह ने किया जीना दुश्वार

ज़हर खाता तेरे इरशाद ने खाने न दिया

मौला तबारक व तआला हर मोमिन को इख़लासे निय्यत के साथ ज़िक्र और इबादत करने की तौफ़ीक़ रफ़ीक़ अता फरमाए आमीन सुम्मा आमीन।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

सवाल 1. ज़िक्रे इलाही क्या है?

जवाब: अल्लाह तआला की याद, उसकी हम्दो सना, तस्बीह, तहलील और इस्तिग़फ़ार को ज़िक्रे इलाही कहा जाता है। यानी अल्लाह को दिल, ज़बान और अमल से याद करना ही ज़िक्रे इलाही है।

सवाल 2. अल्लाह के ज़िक्र की फ़ज़ीलत क्या है?

जवाब: कुरान में अल्लाह फरमाता है “फ़ज़कुरूनी अज़कुरकुम” यानी “तुम मुझे याद करो, मैं तुम्हें याद करूंगा। ज़िक्रे इलाही से दिल को सुकून, रूह को तसल्ली और ज़िन्दगी में बरकत हासिल होती है।

सवाल 3. इंसान के ग़ाफ़िल होने का क्या मतलब है?

जवाब: जब इंसान दुनियावी कामों में मशगूल होकर अपने ख़ालिक़ यानी अल्लाह की याद से दूर हो जाता है, उसे ग़ाफ़िल कहा जाता है। ऐसा इंसान धीरे-धीरे रूहानी सुकून रिज्क की तंगी और बरकत से महरूम हो जाता है।

सवाल 4. आज के मुसलमान के लिए ज़िक्रे इलाही क्यों ज़रूरी है?

जवाब: आज इंसान परेशानियों, तनाव और रुसवाई में उलझा है क्योंकि वह ज़िक्रे इलाही से ग़ाफ़िल हो गया है। अगर मुसलमान अल्लाह का ज़िक्र करें, तस्बीह और इस्तिग़फ़ार अपनाएँ, तो उनकी ज़िन्दगी में सुकून, बरकत और कामयाबी लौट सकती है।

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