इस्लाम एक ऐसा मुकम्मल निज़ाम है जो इंसानियत, रहमदिली और मददगार बनने की तालीम देता है। इन्हीं अज़ीम तालीमात में से एक है भूकों को खाना खिलाना। खाना खिलाने का अमल इतना पसंदीदा है कि इसे अफ़ज़ल इस्लाम कहा गया है।
खाना खिलाने को अफ़ज़ल इस्लाम क्यों कहा गया
खाना खिलाना जूदो सख़ा सख़ावत और दरियादिली और मकारिमे अख़लाक़ आला किरदार की निशानी है। जब इंसान किसी भूखे शख़्स को खाना खिलाता है,तो इससे उसकी अच्छी खूबियाँ और नेक अख़लाक़ ज़ाहिर होती हैं। दूसरी तरफ़,ग़रीब और मिस्कीन को राहत मिलती है,भूख का ख़ात्मा होता है और समाज में रहम व मोहब्बत फैलती है।
हदीस कौनसा इस्लाम अफ़ज़ल है
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अम्र रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि एक शख़्स ने हुज़ूर नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से अर्ज़ किया “कौनसा इस्लाम अफ़ज़ल है? यानी फ़र्ज़ इबादात के बाद कौनसा अमल सबसे बेहतरीन है। हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया “खाना खिलाना।
इस हदीस मुबारक से हमें मालूम हुआ कि खाना खिलाना सिर्फ़ सख़ावत नहीं बल्कि बेहतरीन अख़लाक़ और अल्लाह की रज़ामंदी का ज़रिया है। तंगदस्ती के बावजूद किसी भूखे को खिलाना, इंसान के ईमान और करम का अलामत है।
कुरआन से सबक़ तंगदस्ती में ईसार करने वाला
अल्लाह तआला ने कुरआन में ऐसे लोगों की तारीफ़ फ़रमाई जो दूसरों को अपने ऊपर तरजीह देते हैं, भले ही वो खुद मुहताज क्यों न हों। “और अपनी जानों पर तरजीह देते हैं,अगरचे उन्हें शदीद मुहताजी हो। (सूरह अल-हश्र, आयत 9)
हज़रत अबू तल्हा रज़ियल्लाहु अन्हु का वाक़िआ
एक बार हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में एक भूखा मिस्कीन आया।
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया “जो इसको मेहमान बनाएगा,अल्लाह उस पर रहमतें नाज़िल करेगा। हज़रत अबू तल्हा (रज़ियल्लाहु अन्हु) उसे अपने घर ले गए। घर में बस बच्चों के लिए थोड़ा सा खाना था। उन्होंने अपनी बीवी से कहा, “बच्चों को किसी तरह सुला दो,और जब हम खाने बैठें तो चिराग़ बुझा देना। फिर उन्होंने मेहमान के साथ बैठकर ऐसे दिखाया जैसे वो भी खा रहे हों, ताकि मेहमान बेफ़िक्री से खा सके। वो रात भूखे गुज़ार दी, मगर अल्लाह की रज़ा हासिल कर ली। सुबह जब वो हज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुए, तो आपने ख़ुशख़बरी दी कि “अल्लाह तआला तुमसे राज़ी हुआ।
अहले बैत की इख़लास भरी कुर्बानी
हज़रत अली करमल्लाहु वजहु,हज़रत फ़ातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा, हज़रत हसन और हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हुमा का एक मशहूर वाक़िआ है,जो खालिस नीयत,सख़ावत,और सब्र का बेहतरीन नमूना है।
मन्नत और रोज़े
उन्होंने मन्नत मानी कि अगर उनके बच्चे सेहतयाब हो गए,तो वो तीन दिन रोज़ा रखेंगे। जब बच्चे सेहतयाब हो गए, उन्होंने मन्नत पूरी करने के लिए रोज़े रखे।
पहला दिन
इफ़्तार के वक़्त एक मिस्कीन आया और बोला, “अल्लाह के नेक बंदो! मैं भूखा हूँ, मुझे खाने को दो। उन्होंने सारा खाना उसे दे दिया और खुद सिर्फ़ पानी पीकर सो गए।
दूसरा दिन
दूसरे दिन एक यतीम आ गया और खाने को माँगा। उन्होंने फिर सारा खाना उसे दे दिया और खुद सिर्फ़ पानी पर सब्र किया।
तीसरा दिन
तीसरे दिन एक कैदी आया और खाने की दरख़्वास्त की। उन्होंने फिर पूरा खाना उसे दे दिया और खुद भूखे रह गए।
अल्लाह तआला को उनका ये अमल इतना पसंद आया कि कुरआन में आयात नाज़िल फ़रमाई “और वे अल्लाह की मोहब्बत में खाना खिलाते हैं मिस्कीन,यतीम और कैदी को। (और कहते हैं कि) हम तुम्हें सिर्फ़ अल्लाह की रज़ा के लिए खिलाते हैं, न तुमसे कोई बदला चाहते हैं,न शुक्रिया। (अलकुरान)
अहले बैत के अमल से मिलने वाले सबक़
1.इख़लास खालिस नीयत उन्होंने सिर्फ़ अल्लाह की रज़ा के लिए अमल किया,न कोई बदला चाहा न तारीफ़।
2.सख़ावत और बख़्शीश ग़रीब, यतीम और ज़रूरतमंदों की मदद करना इस्लाम की अहम तालीमात में से है।
3.सब्र और तवक्कुल लगातार तीन दिन भूखे रहकर भी उन्होंने सब्र किया और अल्लाह पर भरोसा रखा।
नतीजा और पैग़ाम
दोस्तों!भूकों को खाना खिलाना एक ऐसा अमल है जिससे अल्लाह तआला ख़ुश और राज़ी होता है। यह अमल इंसान के दिल को नरम,अख़लाक़ को बेहतरीन,और रूह को पाक बनाता है। हमें भी चाहिए कि हम अपनी ज़िंदगी में इस सुन्नत को ज़िंदा करें भूकों, यतीमों और ज़रूरतमंदों को खाना खिलाएँ,अल्लाह की रज़ा के लिए,न कि दिखावे के लिए।
अल्लाह तआला हमें भी तौफ़ीक़ दे कि हम भूकों को खिलाएँ, उनकी मदद करें और उसकी रज़ा हासिल करें।
सवाल. इस्लाम में भूखों को खाना खिलाने की क्या अहमियत है?
जवाब: इस्लाम में भूखों को खाना खिलाना बहुत बड़ा नेक अमल माना गया है। हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि “खाना खिलाना अफ़ज़ल इस्लाम में से है। इस अमल से इंसान के अख़लाक़ की बेहतरीन झलक मिलती है और अल्लाह तआला की रहमत और रज़ा हासिल होती है।
सवाल.क्या कुरआन में भूखों को खाना खिलाने का ज़िक्र है?
जवाब: जी हाँ, कुरआन में कई जगह खाना खिलाने की फ़ज़ीलत बयान की गई है। कुरान में अहले बैत के वाक़िआ का ज़िक्र है, जहाँ उन्होंने मिस्कीन, यतीम और कैदी को खाना खिलाया और कहा “हम तुम्हें सिर्फ़ अल्लाह की रज़ा के लिए खिलाते हैं, न तुमसे कोई बदला चाहते हैं, न शुक्रिया।
सवाल. भूखों को खाना खिलाने से क्या सवाब मिलता है?
जवाब: जो इंसान अल्लाह की रज़ा के लिए भूखों को खिलाता है, अल्लाह तआला उसकी रोज़ी में बरकत देता है, गुनाह माफ़ करता है और आख़िरत में जन्नत की नेअमतों से नवाज़ता है। यह अमल इंसान को रहमत और सवाब दोनों दिलाता है।
सवाल.क्या खाना खिलाना सिर्फ़ ग़रीबों को ही ज़रूरी है?
जवाब: खाना खिलाना सिर्फ़ ग़रीबों तक सीमित नहीं, बल्कि मेहमानों, पड़ोसियों और मुसाफ़िरों को खिलाना भी सुन्नत और सवाब का काम है। अल्लाह की रज़ा नीयत पर निर्भर करती है चाहे अमल छोटा हो या बड़ा, अगर नीयत पाक है तो सवाब अज़ीम है।