हर मुसलमान की ज़िंदगी में कुछ ऐसे लम्हे आते हैं जब वो अपनी की हुई पढ़ाई कुरान की तिलावत ज़िक्र अज़्कार और नेक अमल का सवाब अपने अज़ीज़ों की रूहों तक पहुँचाना चाहता है। यही वह वक़्त होता है जब फातेहा दी जाती है। फातेहा इसाल ए सवाब का एक खूबसूरत ज़रिया है। इस पोस्ट में आप जानेंगे कि फातेहा देने का मुकम्मल तरीका क्या है, किन सूरतों और आयतों की तिलावत की जाती है,किस तरतीब से दुआ की जाती है, और इस अमल के पीछे की रूहानी हिकमत क्या है। अगर आप दिल से चाहते हैं कि मुझे भी फातेहा का तरीका आ जाए,तो यह पूरा तरीका आपके लिए फातेहा देने और ईसाल ए सवाब करने और सीखने का ज़रिया बन जाएगा।
फातेहा देने का तरीका
फातेहा देना जाइज़ और मुस्तहब अच्छा और पसंदीदा अमल है। इसका तरीका कुछ इस तरह है कि जब फातेहा दें तो वुज़ू कर लें, यह बेहतर है। रुख क़िबला की तरफ़ रखें, और जिन चीज़ों का सवाब भेजना है ख़ास कर खाना या शीरनी, उन्हें सामने रखें। अगर वहाँ कई लोग मौजूद हों तो तिलावत के वक़्त सब खामोश रहें, किसी से बात न करें।
दरूद शरीफ़
सबसे पहले तीन मर्तबा दरूद शरीफ़ पढ़ें।
दरूद शरीफ़: अल्लाहुम्मा सल्लि अला सैय्यिदिना व मौलाना मुहम्मदिव्व वबा रिक वसल्लिम सल्लू अलैहि सलातँव व सलामन अलैका या रसूलल्लाह अगर यह दरूद शरीफ़ याद न हो तो जो भी दरूद आपको याद हो, वही पढ़ लें।
तिलावत की शुरुआत
अब तिलावत इस तरह करें अऊज़ु बिल्लाहि मिनश शैतानिर रजीम फिर बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम पढ़ें।
सूरह काफ़िरून
क़ुल या अय्युहल काफ़िरून
ला अ'बुदु मा ता'बुदून
व ला अंतुम आबिदूना मा अ'बुद
व ला अना आबिदुम मा अबदतुम
व ला अंतुम आबिदूना मा अ'बुद
लकुम दीनुकुम व ली या दीन
सूरह इख़लास (तीन बार)
हर बार बिस्मिल्लाह के साथ पढ़ें।
क़ुल हुवल्लाहु अहद
अल्लाहुस्समद
लम यलिद व लम यूलद
व लम यकुल्लहु कुफुवन अहद
सूरह फ़लक़
बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम
क़ुल अऊज़ू बि रब्बिल फ़लक़
मिन शर्री मा ख़लक़
व मिन शर्री ग़ासिकिन इज़ा वक़ब
व मिन शर्रिन नफ़्फ़ासाति फिल उक़द
व मिन शर्री हासिदिन इज़ा हसद
सूरह नास
बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम
क़ुल अऊज़ू बि रब्बिन नास
मलिकिन नास
इलाहिन नास
मिन शर्रिल वस्वासिल ख़न्नास
अल्लज़ी युवस्विसु फी सुदूरिन नास
मिनल जिन्नति वन नास
सूरह फातिहा
बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम
अलहम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन
अररहमानिर रहीम
मालिकि यौमिद्दीन
इय्याका ना'बुदु व इय्याका नसतईन
इह्दिनस्सिरातल मुस्तक़ीम
सिरातल्लज़ीना अनअमता अलैहिम
ग़ैरिल मग़दूबि अलैहिम व लद्दाल्लीन
आमीन
सूरह बक़रह आलिफ़ लाम मीम से मुफ़्लिहून तक
बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम
अलिफ़ लाम मीम
ज़ालिकल किताबु ला रैबा फ़ीह हुदल लिल मुत्तक़ीन
अल्लज़ीना यू’मिनूना बिल ग़ैबि व युक़ीमूनस्सलात
व मिम्मा रज़क़नाहुम युन्फिक़ून
वल्लज़ीना यू’मिनूना बिमा उन्ज़िला इलैका व मा उन्ज़िला मिन क़ब्लिक
व बिल आख़िरति हुम यूक़िनून
उलाइका अला हुदम मिर रब्बिहिम
व उलाइका हुमुल मुफ़्लिहून
पाँच आयतें मुबारका
व इलाहुकुम इलाहुव वाहिद
ला इलाहा इल्ला हुवर रहमानुर रहीम
इन्ना रहमतल्लाहि क़रीबुम मिनल मुहसिनीन
व मा अर्सलनाका इल्ला रहमतल्लिल आलमीन
मा काना मुहम्मदुन अबा अहदिम मिर रिजालिकुम
व लाकिन रसूलल्लाहि व ख़ातमन नबिय्यीन
व कानल्लाहु बि कुल्लि शैइन अलीमा
इन्नल्लाहा व मलाइकतहू युसल्लूना अलन्नबिय्य
या अय्युहल्लज़ीना आमनू सल्लू अलैहि व सल्लिमू तसलीमा
जब यह आयत पढ़ी जाए तो एक बार दरूद शरीफ़ पढ़ें।
आख़िरी आयतें
सुब्हाना रब्बिका रब्बिल इज़्ज़ति अम्मा यसिफून
व सलामुन अलल मुरसलीन
वल हम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन
फातेहा में बख्शने का तरीका
जब यह सारी तिलावत मुकम्मल हो जाए, तो दुआ के लिए हाथ उठाएँ और अर्ज़ करें
या अल्लाह, जो कुछ पढ़ा गया, अगर उसमें कोई ग़लती हो गई हो तो उसे माफ़ फरमा और अपनी बारगाह में क़बूल फरमा।
या अल्लाह, इस तिलावत, ज़िक्र और इसाल-ए-सवाब के लिए जो खाना या शीरनी रखी गई है, उस पर अज्र व सवाब अता फरमा।
या अल्लाह, हम इस सब का सवाब अपने प्यारे नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में पेश करते हैं, क़बूल फरमा।
या अल्लाह, इस सवाब को तमाम अम्बिया, मुरसलीन, सहाबा, औलिया, ताबेईन, और तमाम मोमिनीन व मोमिनात की रूहों को पहुँचा।
ख़ास तौर पर (यहाँ उस अज़ीज़ का नाम लें जिनको सवाब पहुँचना है), उनको सवाब पहुँचा।
या अल्लाह, हम सब पर रहमत फरमा, हमारी दुआ क़बूल फरमा।
आख़िर में सब लोग अपने हाथ चहरे पर फेर लें।
फातेहा का मक़सद और निचोड़
जब इंसान तिलावत, दरूद, और दुआ के ज़रिए अपने रब की याद में मग्न होता है, तो उसकी रूह सुकून पाती है।
फातेहा का असल मक़सद यही है कि हम अपने गुज़रे हुए अज़ीज़ों को याद करें,उनके लिए दुआएं करें,और अपने रब से मग़फ़िरत की तलब रखें।
इस अमल में दरूद शरीफ़ से लेकर सूरह फ़ातिहा तक हर एक लफ़्ज़ एक नूर है, जो पढ़ने वाले के दिल को भी रोशन करता है और जिनके नाम सवाब भेजा जा रहा है उनकी रूह को भी राहत पहुँचाता है।
आख़िर में जब हम हाथ उठाकर दुआ करते हैं तो ये इबादत का वो लम्हा होता है जिसमें अल्लाह तआला अपने बंदे की दुआ कुबूल करता है।
इसलिए फातेहा देते वक़्त ख़ुलूस,आदब और मोहब्बत को अपने दिल में ज़िंदा रखें क्योंकि यही वो चीज़ है जो इस अमल को क़ुबूलियत के दर्जे तक ले जाती है।
सवाल: फातेहा देना क्या होता है?
जवाब: फातेहा देना एक अमल है जिसमें मुसलमान कुरआन की तिलावत,दरूद शरीफ़ और दुआ के ज़रिए अपने गुज़रे हुए अज़ीज़ों की रूह को सवाब भेजते हैं। इसे इसाल-ए-सवाब कहा जाता है और यह जाइज़ व मुस्तहब अमल है।
सवाल:फातेहा देने के लिए कौन-कौन सी सूरह पढ़ी जाती हैं?
जवाब: फातेहा के दौरान आमतौर पर ये सूरहें पढ़ी जाती हैं 1.सूरह काफ़िरून 2.सूरह इख़लास (तीन बार) 3.सूरह फ़लक़ 4.सूरह नास 5.सूरह फातिहा साथ ही कुछ आयात सूरह बक़रह से और पाँच आयते मुबारका भी शामिल की जाती हैं।
सवाल: क्या फातेहा सिर्फ़ बुज़ुर्गों या मरहूमों के लिए दी जाती है?
जवाब: अक्सर फातेहा मरहूमों की रूह को सवाब पहुँचाने के लिए दी जाती है, लेकिन इसे किसी भी नेक मकसद से पढ़ा जा सकता है जैसे किसी काम की बरकत, बीमारी से शिफ़ा, या रहमत की दुआ के लिए। अहम बात यह है कि नीयत साफ़ हो और दिल में ख़ुलूस हो।
सवाल: फातेहा देते वक़्त कौन-सी बातों का ख्याल रखना चाहिए?
जवाब: फातेहा के वक़्त वुज़ू करना बेहतर है, क़िबला की तरफ़ रुख़ रखें, और पूरा माहौल खामोश व इख़लास भरा हो। तिलावत और दुआ के दौरान किसी से बातचीत न करें। सबसे अहम बात यह है कि दरूद-ए-पाक से शुरुआत और दुआ पर इख़लास के साथ ख़त्म करें।