ज़िक्र और अज़कार की फज़ीलत अमल जो जन्नत में ले जाएं

इस पोस्ट में आप कुछ ऐसे मुबारक ज़िक्र और अज़कार पढ़ेंगे जिनके पढ़ने से बेपनाह सवाब मिलता है और गुनाह माफ हो जाते हैं। मुख्तलिफ ज़िक्र अज़कार की फज़ीलत इस...

अस्सलामु अलैकुम दोस्तों ज़िक्र और अज़कार ईमान वालों का रूहानी सहारा हैं। ये वो नेक आमाल हैं जो इंसान को अल्लाह तआला के करीब करते हैं, गुनाहों की माफी का जरिया बनते हैं और दिलों को इत्मिनान बख्शते हैं। इस पोस्ट में कुछ ऐसे मुकर्रर अज़कार बयान किए जा रहे हैं जिनके पढ़ने से न सिर्फ गुनाहों की माफी मिलती है बल्कि जन्नत का रास्ता भी आसान हो जाता है। उम्मीदे रहमत है कि ये अज़कार पढ़कर और अमल में लाकर हम सबको इसका बेहिसाब सवाब नसीब हो।

बाद नमाज़ आयतुल कुरसी का विर्द

हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम का इरशाद मुबारक है

जो शख्स हर नमाज़ के बाद आयतुल कुरसी पढ़े तो उसे मौत के सिवा कोई चीज जन्नत के दाखले से नहीं रोक सकेगी

यानि मरते ही वह जन्नत में दाखिल होगा  पहले रूहानी तौर पर और बाद में कयामत के दिन जिस्मानी तौर पर

और जो शख्स बिस्तर पर लेटते वक्त इसे पढ़ ले तो अल्लाह तआला उसके घर और उसके पड़ोसी के घर और आसपास के घर वालों पर अमन उतार देता है

यानि उसकी बरकत से पूरा मोहल्ला चोरी आग लगने या किसी नागहानी आफत से सुबह तक महफूज़ रहता है

यह अमल बहुत मुजर्रब है और हर मोमिन को इसे अपनी ज़िन्दगी का हिस्सा बना लेना चाहिए

समंदर की झाग के बराबर गुनाह माफ

हज़रत अबू हुरैरा रदीअल्लाहु अन्हु फरमाते हैं

हुज़ूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने फरमाया

जो कोई फज्र की नमाज़ के बाद सौ बार "सुब्हानअल्लाह" और सौ बार "ला इलाहा इल्लल्लाह" कहे उसके गुनाह बख्श दिए जाएंगे

अगर्चे वो गुनाह समंदर की झाग के बराबर क्यों न हों

(निसाई, कंज़ुल उम्माल)

यह वज़ीफा इतना आसान और बरकत वाला है कि हर सुबह अगर इसे आदत बना लिया जाए तो इंसान के नामएअमाल से गुनाह मिटते जाएंगे और दिल पाकीज़ा होता जाएगा

हज़ार नेकियां और हज़ार गुनाह माफ

हजरत सअद बिन अबी वक़ास रदीअल्लाहु अन्हु फरमाते हैं

हम रसूल करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर थे

आपने फरमाया

क्या तुममें से कोई इतना आजिज़ है कि रोज़ाना हज़ार नेकियां हासिल न कर सके

सहाबा ने अर्ज़ किया  या रसूलल्लाह वो कैसे मुमकिन है

फरमाया जो शख्स सौ बार "सुब्हानअल्लाह" पढ़े उसके लिए हज़ार नेकियां लिख दी जाएंगी और उसकी हज़ार खताएं माफ कर दी जाएंगी

सुब्हानअल्लाह पढ़ने में कितनी फज़ीलत है — सौ बार पढ़ने से हज़ार नेकियां और हज़ार गुनाहों की माफी दोनों हासिल होती हैं

सवाब में वज़नी और रहमान को प्यारे कलिमात

हज़रत अबू हुरैरा रदीअल्लाहु अन्हु फरमाते हैं

नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने फरमाया

दो कलिमे ऐसे हैं जो ज़बान पर हल्के हैं मगर तराज़ू में बहुत वज़नी और रहमान को प्यारे हैं

वो हैं

सुब्हानल्लाहि वबिहम्दिही सुब्हानल्लाहिल अज़ीम

यह दोनों कलिमात कयामत के दिन बहुत भारी होंगे

क्योंकि यह कलिमात रब्बे ज़ुलजलाल के नाम की पाकी बयान करते हैं

जो इन्हें ज़िक्र में शामिल करता है वह खुद भी अल्लाह का प्यारा बन जाता है और उसकी ज़बान भी नूरानी हो जाती है

ला इलाहा इल्लल्लाह सबसे भारी पलड़ा

हज़रत अबू सईद खुदरी रदीअल्लाहु अन्हु फरमाते हैं

हुज़ूर आका अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने फरमाया

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया

ए मेरे रब मुझे वह कलिमा सिखा जिससे मैं तुझे याद किया करूं

अल्लाह तआला ने फरमाया  ए मूसा कह "ला इलाहा इल्लल्लाह"

हज़रत मूसा ने कहा  या रब यह तो सारे बंदे ही कहते हैं मैं तो कुछ खास चाहता हूं

रब्बे ज़ुलजलाल ने फरमाया

ए मूसा अगर सातों आसमान और उनके बाशिंदे और सातों ज़मींनें एक पलड़े में रख दी जाएं और "ला इलाहा इल्लल्लाह" दूसरे पलड़े में रखा जाए तो "ला इलाहा इल्लल्लाह" वाला पलड़ा भारी होगा (मिश्कात)

ला इलाहा इल्लल्लाह का वज़ीफा तमाम वज़ाइफ से आला और अफज़ल है क्योंकि ये इस्म पाक खुद रब्बे कायनात का नाम है जो तमाम मखलूक से बेहतर है

उंगलियां बोलेंगी तस्बीह का सुन्नत तरीका

हज़रत यसीरा रदीअल्लाहु अन्हा जो मुहाजिरात में से हैं फरमाती हैं

हमें नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने फरमाया

ए बीबियों तस्बीह तहलील और अल्लाह की पाकी बयान करना लाज़िम कर लो

उंगलियों पर गिना करो क्योंकि उंगलियों से सवाल होगा

उन्हें गोयाई बख्शी जाएगी और वह हमारे आमाल की गवाही देंगी

कभी गाफ़िल मत रहना वरना रहमत से महरूम रह जाओगी (मिश्कात)

इससे मालूम हुआ कि उंगलियों पर तस्बीह करना नबी का तरीका है और यह हमारे हक में गवाही का सबब बनेगा

हर मुसलमान को चाहिए कि अपने आज़ा को नेक कामों में मशगूल रखे

खुलासा

दोस्तों इन तमाम अज़कार में बेपनाह बरकतें और रहमतें छिपी हुई हैं

इनमें हर एक अमल इंसान को गुनाहों से पाक करता है और जन्नत के करीब ले जाता है

जो शख्स इन अज़कार को अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी का हिस्सा बना लेगा

उसके लिए दुनियावी सुकून और आखिरत की कामयाबी दोनों नसीब होंगी

दुआ

ए अल्लाह हमें ज़िक्र करने की तौफीक अता फरमा


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