आज कल मुस्लिम समाज में एक अलमिया यह देखने में आ रहा है कि कई लड़कियां ग़ैर-मुस्लिम लड़कों से शादियां कर के दीन से दूर हो रही हैं। इस की एक बड़ी वजह हमारी अपनी बनाई हुई मसनूई रस्में और शादी के बे-जा इख़राजात हैं। हम ने अल्लाह और उस के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बनाए हुए आसान और बरकत वाले निज़ामे निकाह को एक मुश्किल, महंगा और मुश्किल से गुज़रने वाला मरहला बना दिया है। इस का नतीजा यह निकल रहा है कि ग़रीब और मुतवस्सित तबके के लोग शादी के इख़राजात उठा नहीं पा रहे, जिस से लड़कियों की शादियां मुश्किल हो गई हैं और वह मायूस हो कर दूसरे रास्ते इख़्तियार कर रही हैं। हमारा फ़र्ज़ बनता है कि हम अपने समाजी रवैयों को बदलें और शादी को सादगी के साथ बेजा फुज़ूल खर्ची से बचते हुए शादी को सुन्नत के मुताबिक करने की कोशिश करें।
निकाह सुकून का ज़रीया
अल्लाह तआला ने कुरआन मजीद में इरशाद फ़रमाया: وَمِنْ آيَاتِهِ أَنْ خَلَقَ لَكُم مِّنْ أَنفُسِكُمْ أَزْوَاجًا لِّتَسْكُنُوا إِلَيْهَا وَجَعَلَ بَيْنَكُم مَّوَدَّةً وَرَحْمَةً ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِّقَوْمٍ يَتَفَكَّرُونَ (सूरह अर-रूम, आयत: 21)
तर्जुमा: उस की निशानियों में से यह है कि उस ने तुम्हारे लिए तुम्हारी ही जिन्स से जोड़े बनाए के उनसे आराम पाओ, और तुम्हारे आपस में मुहब्बत और रहमत रखी। बे-शक इसमें ग़ौर व फ़िक्र करने वालों के लिए निशानियां हैं। इस आयते मुबारक में अल्लाह तआला ने अज़्दवाजी ज़िंदगी का मक़सद वाजेह फ़रमाया है: सुकून। शौहर और बीवी एक दूसरे के लिबास हैं, एक दूसरे की तकमील और सुकून का बाइस हैं। यह रिश्ता महज़ एक मुआहदा नहीं बल्कि बाहमी मुहब्बत और रहमत का पाक बंधन है। अल्लाह की यह अज़ीम नेमत हमारी अपनी बनाई हुई मुश्किलात और रस्मों की वजह से एक बोझ नहीं बननी चाहिए।
इस्लामी और मग़रिबी समाज का फर्क
इस्लामी समाज ख़ानदानी निज़ाम को बुनियादी अहमियत देता है। इस की बुनियाद बाहमी ज़िम्मेदारी, एहतिराम और सुकून पर रखी गई है। जहां मियां बीवी एक दूसरे के लिए सुकून का सामान हों, वहां से ही एक सहतमंद ख़ानदान जन्म लेता है, जो पूरे समाज के अम्न व सुकून की बुनियाद का बाइस बनता है।
इसके बरअक्स, मग़रिबी समाज में औरत और मर्द के ताल्लुक़ात को सिर्फ़ जिस्मानी लुत्फ़ पर क़ायम किया गया। नतीजा यह निकला कि वहाँ नाजायज़ औलादें आम हो गईं, तलाक़ों की दर बढ़ गई, ख़ानदानी निज़ाम तबाह हो गया, और ज़हनी-नफ़्सियाती बीमारियाँ तेज़ी से बढ़ीं।
ज़हनी अमराज में इज़ाफ़ा, और समाजी बे-चैनी की सूरत में निकला है। इन समाजों में हर तरह की मादी आसाइश के बावजूद लोग ज़हनी सुकून से महरूम हैं। हमें उन की अंधी तक़लीद करने की बजाय अपने इस्लामी उसूलों पर फ़ख़्र करना चाहिए और उन्हें अपनी ज़िंदगियों में नाफ़िज़ करना चाहिए।
बीवी का फ़र्ज़ शौहर के लिए सुकून का बाइस बनना
आयते मुबारक से यह सबक़ भी मिलता है कि औरत को शौहर के सुकून और आराम का ख़्याल रखना चाहिए। नबीए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बीवी के इस फ़र्ज़ की अहमियत पर रोशनी डालते हुए इरशाद फ़रमाया उस ज़ात की क़सम जिस के क़ब्ज़ए क़ुदरत में मेरी जान है, जब कोई मर्द अपनी बीवी को अपने बिस्तर पर बुलाए और वह इन्कार कर दे, तो अल्लाह तआला उस औरत से नाराज़ रहता है यहां तक कि उस का शौहर उस से राज़ी हो जाए। (सहीह मुस्लिम) अगर मर्द अपनी बीवी को अपने बिस्तर पर बुलाए और वह न आए और मर्द नाराज़ हो जाए तो सुबह तक फ़रिश्ते उस औरत पर लअनत करते रहते हैं। (सहीह मुस्लिम)
यह अहादीस बाहमी हुकूक की अदायगी पर ज़ोर देती हैं। जिस तरह बीवी का शौहर पर हक़ है, उसी तरह शौहर का भी बीवी पर हक़ है कि वह उसे अपनी तरफ़ से किसी परेशानी में न डाले और उस के सुकून का ख़्याल रखे।
शादी को आसान बनाइए
निकाह हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से चली आ रही एक मुबारक सुन्नत है। यह नस्ले इंसानी के तसल्सुल और सालेह समाज की तशकील का ज़रीया है। नबीए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इसे रिज़्क में वुसअत का बाइस क़रार दिया है। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद है निकाह के ज़रीए रिज़्क तलाश करो। (जामे सग़ीर)
हमारे प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और आप के सहाबा ए किराम की शादियां इंतिहाई सादगी से अंजाम पाईं। हज़रत फ़ातिमा अज़-ज़हरा रज़ियल्लाहु अन्हा के निकाह में सादगी को देखा जा सकता है। शरीअत ने किसी मुख़्सूस शादी हॉल, भारी पड़ताल, आतिशबाज़ी या फ़ज़ूल ख़र्ची को लाज़िम नहीं ठहराया। बल्कि निकाह को मस्जिद में इलानिया तौर पर मुनअक़द करना मुस्तहब है, ताकि बरकत हासिल हो और इस का इलान हो जाए।
मेहर वलीमा और जहेज़ सुन्नत की रोशनी में
मेहर शरीअत में कम से कम मेहर दस दिरहम (तक़रीबन 30.618 ग्राम चाँदी या उसकी कीमत) है इससे कम नहीं।ज़्यादा महर भी मुक़र्रर कर सकते हैं लेकिन हमें याद रखना चाहिए के नबीए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आसान मेहर को बेहतर क़रार दिया है "औरतों में बेहतरीन वह है जिस का मेहर अदा करना आसान हो। (मुअज्जम कबीर) मेहर की रक़म का कम होना औरत के लिए बरकत और नेक फ़ाल की अलामत है।
वलीमा
वलीमा करना सुन्नत है, लेकिन इसमें इसराफ़ से बचना ज़रूरी है। नबीए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी अज़्वाजे मुतह्हरात के वलीमे इंतिहाई सादगी से किए। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत सफिय्या रदी अल्लाहु अन्हा से निकाह फरमाने के बाद वलीमा किया जिसमें सिर्फ खजूर और घी का हलवा था (बुखारी) यानी वलीमा भी सादगी से हो सकता है लाखों के खर्च करने की ज़रुरत नहीं। आज हम वलीमे में हज़ारों रुपए फ़ज़ूल ख़र्ची करते हैं, जो सुन्नत के बिलकुल ख़िलाफ़ है।
जहेज़
जहेज़ का कोई इस्लामी तसव्वुर नहीं है। यह एक समाजी बुराई है जिस ने ग़रीब घरानों के लिए शादी को एक मुश्किल तरीन काम बना दिया है। लड़की के वालिदीन पर जहेज़ का दबाव डालना, उन से लाखों रुपए का सामान मांगना और इस के बग़ैर शादी से इन्कार कर देना यह सब नाजाइज़ और गुनाह के काम हैं।
इरतिदाद की एक बड़ी वजह महंगी शादियां और जहेज़ का बोझ
यह एक कड़वी हक़ीक़त है कि मुस्लिम लड़कियों के मुरतद होने की एक बड़ी वजह हमारी अपनी पैदा की हुई महंगी शादियों की रुसुमात हैं। जब एक ग़रीब आदमी अपनी बेटी की शादी के लिए जहेज़ और दूसरे इख़राजात का बोझ नहीं उठा पाता, तो बेटी की उम्र बढ़ती जाती है। इस मायूसी के आलम में वह किसी भी ऐसे रास्ते को इख़्तियार कर सकती है जो उसे इस मुश्किल से निजात दिला सके। हमारे समाज के वह लोग भी इस के ज़िम्मेदार हैं जो शादियों में फ़ज़ूल ख़र्ची को मेयार समझते हैं और दूसरों पर दबाव डालते हैं।
पैग़ामे अमल तब्दीली की इब्तिदा हम से
वक़्त आ गया है कि हम अपने रवैयों का जाइज़ा लें।
1. समाजी बेदारी: हमें अपने इलाक़ों और घरानों में आसान शादियों की एक तहरीक चलानी होगी। लोगों को समझाना होगा कि शादी के फ़ज़ूल इख़राजात और जहेज़ जैसी बुराइयों से कैसे बचा जाए।
2. मज़हबी रहनुमाई: उलमाए किराम और दीनी जमाअतों को इस सिलसिले में आगे आना चाहिए और लोगों को सुन्नत के मुताबिक़ शादियां करने की तरग़ीब देनी चाहिए।
3. नौजवानों की रहनुमाई: नौजवान लड़के और लड़कियां ख़ुद भी अपने वालिदीन को समझाएं कि वह कम से कम इख़राजात में शादी करने पर राज़ी हों।
4. ख़ुसूसी तवज्जोह: उन इलाक़ों और तबक़ों पर ख़ुसूसी तवज्जोह दी जाए जहां यह मसाइल ज़्यादा हैं। नीज़, आला तालीम याफ़्ता लड़कियों के लिए मुनासिब रिश्तों के इंतज़ाम की भी फ़िक्र की जाए।
सुन्नत पर अमल करने में ही हमारी निजात है
हमें अपने रब के हुक्म और अपने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत पर अमल करते हुए शादी को एक आसान और ख़ुशगवार अमल बनाना होगा। अगर हम ने अपनी रस्म व रिवाज को शरीअत पर तरजीह दी तो इस के नताइज हमारे सामने हैं। आइए, अहद करें कि हम अपनी आने वाली नस्लों के लिए एक बेहतर, पुर्सुकून और इस्लामी माहौल बनाएंगे। अल्लाह तआला हमें अमल की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए। आमीन।