बचों की परवरिश और तालीम हर मां बाप की सबसे अहम ज़िम्मेदारी है। सही परवरिश न सिर्फ बच्चे की शख़्सियत को निखारती है बल्कि उसे नेक फरमांबर्दार और समाज के लिए भलाई करने वाला इंसान बनाती है। आजकल ज़्यादातर मां बाप दुनियावी तालीम पर ध्यान देते हैं लेकिन बच्चों की दीनी तालीम और अच्छे अखलाक पर कम ध्यान दिया जाता है। इस ब्लॉग में हम बच्चों की सही परवरिश,और दूध पिलाने की अहमियत, ग़ोद लेने के मसअले और उनकी इस्लामी तालीम के बारे में बात करेंगे।
बच्चों की सही परवरिश और तालीम
बचों की परवरिश और तालीम वालिदैन की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है। वालिदैन का फ़र्ज़ है कि वो अपने बचों को न सिर्फ दुनियावी तालीम दिलाएँ बल्के उनकी दीनी तालीम और तरबियत पर भी मुकम्मल तवज्जो दें। एक बच्चा अगर छोटी उम्र से ही इस्लामी तालीम व तरबियत हासिल करे तो वह बड़े हो कर नेक, फरमांबर्दार और वालिदैन व बड़े का अदब करने वाला इंसान बनेगा।
बच्चों का खर्च और माँ का दूध
इस्लाम में बीवी और बच्चों का खर्च मर्द के ज़िम्मे है और माँ का यह फ़र्ज़ है कि वह अपने बच्चों को दूध पिलाए। माँ का दूध बच्चों के जिस्मानी और ज़ेहनी नशो-नुमा के लिए निहायत मफ़ीद है। कुरान मजीद में अल्लाह तआला ने फ़रमाया "वलवालिदातु युर्दीना अव्लादहुन्ना हवलयने कामेलयने" तर्जुमा और माएँ दूध पिलाएँ अपने बच्चों को पूरे दो बरस। (सूरत अल-बक़रा,सूरत 2,आयत (233)
मालूम हुआ के बच्चे को दूध पिलाने की जो मुद्दत है वह दो साल है दो साल के बाद बच्चा या बच्ची को माँ का अपना दूध पिलाना जाईज़ नहीं है।
बाज़ औरतें दूध पिलाने के मुआमले में इस बात का ख्याल और लिहाज़ नहीं रखती और दूध पिला देती हैं अपने भाई बहन के बच्चों को इससे से यह होता है के जब बच्चे बड़े होते हैं तो इनके साथ निकाह करने में मसअला दर पेश आता है। यह बात याद रखें के जिस बच्चे को उसकी ढाई साल की उम्र में औरत दूध पिला दे तो उस औरत के बच्चे उस दूध पीने वाले के रज़ाई भाई बहन बन जाएँगे जिस से निकाह हराम हो जाएगा। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद मुबारक है "जिस तरह से सगे बहन भाई से निकाह हराम है ऐसे ही रज़ाई बहन भाई से निकाह हराम है (सहीह मुस्लिम)
ख्याल रहे दूध पीने से हुरमत उसी के साथ होगी यानी जिसने दूध पिया है सिर्फ उसी के साथ हुरमत होगी दूसरे बहन भाई उस की रज़ाई माँ के बच्चों से निकाह कर सकते हैं। अब इसको एक मिसाल से भी समझ लीजिये ताके बात साफ़ हो जाए जैसा के ज़ैद ने हिंदा का दूध पिया तो हिंदा की बेटी से ज़ैद का निकाह हराम है। लेकिन ज़ैद के दूसरे भाई हिंदा की बेटी से निकाह कर सकते हैं। मतलब यह के जिसने हिन्दा का दूध पिया है उसका निकाह हिन्दा के बच्चों से हराम है और जिन्होंने हिन्दा का दूध नहीं पिया है उनका हिन्दा के बच्चों से निकाह जाइज़ है।
बच्चा ग़ोद लेना
बच्चा गोद लेना जाइज़ है किसी दुसरे के बच्चे को गोद लिया जा सकता है लेकिन देखने में यह भी आता है के जो बच्चे का बाप है उसके बाप की जगह अपना नाम इस्तेमाल किया जाता है तो यह बिलकुल भी जाइज़ नहीं है बच्चे का जो बाप है तो बच्चे की वल्दियत में उसके बाप का नाम ही इस्तेमाल किया जाये न के उसका जिसने बच्चे को गोद लिया है कुरान मजीद में इर्शादे बारी तआला है "उदऊहुम लिआबाइहिम हुवा अक्सतु इन्दल्ल्लाह" तर्जुमा: यानी उन्हें उन के बाप ही का कह कर पुकारो यह अल्लाह के नज़दीक ज़्यादा ठीक है। (अल-अहज़ाब)
बच्चों की इस्लामी परवरिश की अहमियत
अक्सर देखा जाता है कि वालिदैन अपने बच्चों की इस्लामी परवरिश पर तवज्जो नहीं देते। छोटी उम्र में बच्चों को गाली देने, नाचने और बे अदबी की तालीम दी जाती है और वालिदैन खुश हो जाते हैं। फिर जब बच्चा बड़ा हो कर बिग़ाड़ की तरफ जाता है और घर में बदतमीज़ी करता है तो वालिदैन तावीज़ या किसी बाबा के पास जाते हैं ताके बच्चा सुधर जाए।
अगर इब्तिदाई उम्र से ही बच्चों की परवरिश इस्लामी तालीमात के मुताबिक की जाती, तो बच्चे फरमांबर्दार, नमाज़ी और बड़ों की इज़्ज़त करने वाले बनते।
दुनियावी और दीनी तालीम का तवाज़ुन
आजकल वालिदैन बच्चों को दुनियावी तालीम के हासिल करने के लिए काफ़ी कोशिश करते हैं, चाहे वह डॉक्टर या इंजिनियर बनें। लेकिन दीनी तालीम की तरफ उनकी तवज्जो बहुत कम होती है। वालिदैन को चाहिए के बच्चों को इस्लामी तालीम से भी आरास्ता करें हाफ़िज़ बनायें आलिम बनाएं जब बच्चा कुरान का हाफ़िज़ बन जाए तो चाहिए के हर साल तरावीह पढ़ाने पर ज़ोर देना चाहिए।।
बच्चों से सही सवाल करना
देखने में यह भी आता है के अगर बच्चा स्कूल नहीं गया तो वालिदैन उससे सवाल करते हैं। लेकिन अगर बच्चा मदरसा नहीं गया या नमाज़ नहीं पढ़ी तो अक्सर वालिदैन खामोश रह जाते हैं। वालिदैन का फ़र्ज़ है कि वे बच्चों को दुनियावी तालीम के साथ-साथ दीनी तालीम भी दें और उन्हें नमाज़ी और बाअदब बनाएं।
क़यामत में वालिदैन से पूछा जाएगा
इस हदीस पर वालिदैन को ख़ुसूसन ग़ौर करना चाहिए। क़ियामत के दिन औलाद के बारे में यही गिरफ़्त में आएँगे। अगर सिर्फ वालिदैन ही अपनी औलाद की दीनी तरबियत व तालीम की तरफ भरपूर तवज्जो दे लें तो इल्मे दीन से दूरी का मसअला हल हो सकता है। मगर अफ़सोस कि दुनयवी उलूम सिखाने में तो वालिदैन हर क़िस्म की तकलीफ ग़वारा कर लेंगे स्कूल की फीस भी देंगे किताबें भी ख़रीदेंगे और न जाने क्या क्या करेंगे लेकिन इल्मे दीन जो उन सब की बनिस्बत ज़रूरी और मुफ़ीद है उस के बारे में कुछ भी तवज्जो नहीं देंगे।
दीनी तालीम की अहमियत
इंसान के मरने के बाद उसके अमल मुन्क़ता हो जाते हैं मगर तीन चीज़ें कि मरने के बाद भी यह अमल ख़त्म नहीं होते उसके नामा ए आमाल में लिखे जाते हैं सदक़ा जारिया और इल्म जिस से नफ़ा हासिल किया जाता हो और औलादे सालिह जो उसके लिए दुआ करती है। इसी लिए बच्चों को इस्लामी तालीम देना और उनमें अच्छे आदाब नमाज़ और नेक कामों की आदत डालना बहुत ज़रूरी है। के मरने के बाद भी नेक और सालीह औलाद हमें फायेदा पहुंचाए।
अल्लाह तआला तमाम वालिदैन को अपने बच्चों की सही परवरिश और तालीम की तौफ़ीक अता फरमाए। आमीन
आख़री कलमात
बच्चों की सही तरबियत और तालीम में वालिदैन का किरदार सबसे अहम है। अगर बचपन से ही बच्चों को इस्लामी तालीम और अच्छे आदाब सिखाए जाएँ तो वह बड़े होकर फरमांबर्दार नमाज़ी और नेक इंसान बनते हैं। अल्लाह तआला हम सब को इस नेक काम की तौफ़ीक अता फरमाए कि हम अपनी औलाद को सही रास्ता दिखाएँ। याद रखें हम अपने बच्चों को दीनी तालीम और नेक आदाब सिखायेंगे तो इसका सवाब भी हमें ज़िंदा हैं तो भी मिलेगा और इस दुनिया से जाने के बाद भी मिलेगा।
सवाल 1: बच्चों की सही परवरिश में मां बाप की सबसे पहली ज़िम्मेदारी क्या है
जवाब: मां बाप का पहला फ़र्ज़ है कि वे अपने बच्चों को छोटे से ही इस्लामी तालीम और अच्छे आदाब सिखाएं।
सवाल 2: माँ का दूध कितने साल तक बच्चा पी सकता है
जवाब: इस्लाम के मुताबक माँ को अपने बच्चों को पूरे दो साल तक दूध पिलाना चाहिए।
सवाल 3: क्या सिर्फ दुनियावी तालीम पर ध्यान देने से बच्चा नेक इंसान बन सकता है
जवाब: नहीं, दुनियावी तालीम के साथ-साथ बच्चों को इस्लामी तालीम और अच्छे आदाब भी सिखाना ज़रूरी है, तभी वह फरमांबर्दार और नेक इंसान बन सकता है।
सवाल 4: बच्चों को दीनी तालीम देना क्यों ज़रूरी है
जवाब: बच्चों की दीनी तालीम उनकी शख़्सियत अच्छे आदाब और समाज में उनकी अच्छाई और भलाई के कामों के लिए अहम है। इसके बिना सिर्फ दुनिया की तालीम से बच्चा नेक बन जाए मुश्किल है तो नेक बन्ने के लिए दीनी तालीम देना ज़रूरी है।
