नमाज़ का फलसफा
इंसान, जिस्म और रूह के मजमूअा का नाम है। जिस्म की तक़वीत और आराइश व ज़ीबाइश के तो हज़ारों अस्बाब मुहैया हैं और हमा वक़्त इस का ख़याल है मगर जो असली चीज़ है यानी रूह इस की सफ़ाई और तक़वीत की कोई परवाह नहीं। जब कि ये इंतिहाई ज़रूरी अम्र है। इस मक़ाम पर पहुँच कर सवाल ये पैदा होता है कि आख़िर वो कौन से अस्बाब और वसाईल हैं जिन्हें अपना कर इंसान अपनी रूह को मज़बूत और तावाना बना सकता है?
इस का जवाब ये है कि चूँकि रूह ग़ैर मरई शै है (चीज़ जो देखी न जा सके) इस लिए इस की ग़िज़ा भी ऐसी ही चीज़ होनी चाहिए जिस के असरात ग़ैर मरई हों और वह ज़िक्र इलाही है। और ज़िक्र इलाही की कई सूरतें हैं मसलन तस्बीह, तिलावत, दरूद शरीफ़ का वर्द और ज़िक्र व अज़कार वग़ैरह और इन तमाम के मजमूअा का नाम नमाज़ है इसी लिए इसे अफ़ज़लुल इबादत के नाम से पुकारा जाता है। मख़लूक़ के ख़ालिक़ से मिलने का सब से अहम और आसान ज़रिया नमाज़ है जैसा कि हदीस शरीफ़ में फ़रमाया गया है कि बन्दा जब सज्दा की हालत में होता है तो उस वक़्त वह अल्लाह से सब से ज़्यादा क़रीब होता है। [मुस्लिम शरीफ़]
और इसी वजह से क़ुरान और हदीस में इस की बड़ी ताकीद आई है। इस की अहमियत का अंदाज़ा इस से भी लगाया जा सकता है कि क़ुरान मजीद में मुख़्तलिफ़ अन्दाज़ में सौ से ज़्यादा मक़ामात पर इस की तरफ़ तवज्जोह दिलाई गई है और अहादीस तो बे-शुमार हैं। कुछ आयात और अहादीस मुबारका यहाँ पेश की जा रही हैं।
नमाज़ की अहमियत क़ुरान पाक की रोशनी में
नमाज़ को अल्लाह अज़्ज़ व जल अपना ज़िक्र क़रार देते हुए इरशाद फ़रमाता है।
أَقِمِ الصَّلَاةَ لِذِكْرِي
[ता हा आयत 14]
और मेरी याद के लिए नमाज़ क़ायम रख।
नमाज़ की फ़र्ज़ियत का तज़किरा करते हुए बारी तआला का फ़रमान आलिशान है।
إِنَّ الصَّلَاةَ كَانَتْ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ كِتَابًا مَوْقُوتًا
[अल-निसा आयत 103]
बेशक नमाज़ मुसलमानों पर वक़्त बाँधा हुआ फ़र्ज़ है।
नमाज़ बुराइयों को मिटा कर नेकियों में इज़ाफ़ा करती है। इरशाद-ए-बारी तआला है:
أَقِمِ الصَّلَاةَ طَرَفَيِ النَّهَارِ وَزُلَفًا مِنَ اللَّيْلِ إِنَّ الْحَسَنَاتِ يُذْهِبْنَ السَّيِّئَاتِ ذَلِكَ ذِكْرَى لِلذَّاكِرِينَ
[सूरह हूद पारा 12 - आयत 114]
और नमाज़ क़ायम रखो दिन के दोनों किनारों और कुछ रात के हिस्सों में, बेशक नेकियाँ बुराइयों को मिटा देती हैं। यह नसीहत है नसीहत मानने वालों को।
नमाज़ की अहमियत का अंदाज़ा इस से लगाया जा सकता है कि इस की अदायगी ईमान की अलामत और इसे छोड़ना कुफ़्र का शिआर क़रार दिया गया है।
أَقِيمُوا الصَّلَاةَ وَلَا تَكُونُوا مِنَ الْمُشْرِكِينَ
[सूरह रूम पारा 21 - आयत 31]
और नमाज़ क़ायम रखो और मुशरिकों से न हो।
मोमिन की सिफ़ात का तज़किरा करते हुए अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त फ़रमाता है:
الَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِالْغَيْبِ وَيُقِيمُونَ الصَّلَاةَ وَمِمَّا رَزَقْنَاهُمْ يُنْفِقُونَ
[सूरह बक़रह पारा 1 - आयत 3]
वह जो बे देखे ईमान लाएँ, और नमाज़ क़ायम रखें और हमारी दी हुई रोज़ी में हमारी राह में उठाएँ।
बे-नमाज़ियों को जहन्नुम में डाला जाएगा वह जब
बढ़ रहे होंगे तो पूछने वाला पूछेगा। क्यों? किस अमल की बुनियाद पर जहन्नुम में डाला जा रहा है? तो बे-नमाज़ी कहेंगे।
قَالُوا لَمْ نَكُ مِنَ الْمُصَلِّينَ
[अल-मुद्दस्सिर पारा 29 - आयत 43]
वह बोले हम नमाज़ न पढ़ते थे।
बे-नमाज़ियों का जहन्नुम में कहाँ ठिकाना हो गा इस की निशानदही करते हुए बारी तआला मुनब्बिह कर रहा है।
فَخَلَفَ مِنْ بَعْدِهِمْ خَلْفٌ أَضَاعُوا الصَّلَاةَ وَاتَّبَعُوا الشَّهَوَاتِ فَسَوْفَ يَلْقَوْنَ غَيًّا إِلَّا مَنْ تَابَ
[सूरह मरयम पारा 16 - आयत 59]
तो उन के बाद उन की जगह वह ना-ख़लफ़ आए जिन्हों ने नमाज़ें गँवाईं और अपनी ख़्वाहिशों के पीछे हुए तो अनक़रीब वह दोज़ख़ में ग़ै का जंगल पाएँगे। मगर वह जो तौबा कर लें।
नमाज़ में सुस्ती करने वालों का हाल बयान करते हुए अल्लाह तआला ख़बरदार कर रहा है।
فَوَيْلٌ لِلْمُصَلِّينَ الَّذِينَ هُمْ عَنْ صَلَاتِهِمْ سَاهُونَ
[सूरह माऊन पारा 30 - आयत 4-5]
तो उन नमाज़ियों की ख़राबी है जो अपनी नमाज़ से भूल बैठे हैं।
ज़िक्र इलाही से रोकने वाली चीज़ों का तज़किरा नेज़ न मानने की सूरत में अंजाम से बा-ख़बर करते हुए इरशाद-ए-बारी तआला है:
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تُلْهِكُمْ أَمْوَالُكُمْ وَلَا أَوْلَادُكُمْ عَنْ ذِكْرِ اللَّهِ وَمَنْ يَفْعَلْ ذَلِكَ فَأُولَئِكَ هُمُ الْخَاسِرُونَ
[बक़रह पारा 2 - आयत 238]
وَقُومُوا لِلَّهِ قَانِتِينَ
और खड़े हो अल्लाह के हुज़ूर अदब से।
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا ارْكَعُوا وَاسْجُدُوا وَاعْبُدُوا رَبَّكُمْ وَافْعَلُوا الْخَيْرَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ
[हज्ज पारा 17 - आयत 77]
ऐ ईमान वालो! रुकू' करो और सज्दा करो और अपने रब की बंदगी करो और भले काम करो इस उम्मीद पर कि तुम्हें छुटकारा हो।
قَدْ أَفْلَحَ الْمُؤْمِنُونَ الَّذِينَ هُمْ فِي صَلَاتِهِمْ خَاشِعُونَ
[मोमिनून पारा 18 - आयत 1-2]
बेशक मुराद को पहुँचे ईमान वाले जो अपनी नमाज़ में गिड़गिड़ाते हैं।
अहादीस मुबारका
हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु ने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से दरयाफ़्त किया। अल्लाह के नज़दीक कौन सा अमल सब से ज़्यादा महबूब है? फ़रमाया बर वक़्त नमाज़ अदा करना। इब्ने मसऊद ने कहा फिर? फ़रमाया वालिदैन की इताअत करना। इब्ने मसऊद बोले उस के बाद कौन सा? फ़रमाया जिहाद फ़ी सबीलिल्लाह।[बुख़ारी]
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया हर चीज़ की एक निशानी है और ईमान की निशानी नमाज़ है।
अस्सलातु इमादुद्दीन - नमाज़ दीन का सतून है।
जुइलत क़ुर्रतु ऐनी फिस्सलाह - मेरी आँखों की ठंडक नमाज़ में रखी गई है।
फ़लसफ़ा-ए-नमाज़
नमाज़ सिर्फ़ लब हिलाने और उठक बैठक का नाम नहीं बल्कि इसमें दीनी, दुनियावी, रूहानी और जिस्मानी हर तरह के फ़वाइद पोशीदा हैं। सर-दस्त कुछ पेश हैं।
ज़ाहिरी सफ़ाई
अदायगी-ए-नमाज़ के लिए सब से पहली शर्त तहारत व पाकीज़गी है। इस के बग़ैर बन्दा नमाज़ में दाख़िल ही नहीं हो सकता। ज़ाहिरी सफ़ाई सुथराई बातिन की सफ़ाई की तरफ़ मुतवज्जिह करती है। सफ़ाई और सुथराई से जहाँ इंसान देखने में जाज़िब-ए-नज़र लगता है वहीं ख़ुद उस की अपनी तबीअत पर मुसर्रत और नशात आमिज़ रहा करती है जो दीनी और और दुनियावी दोनों कामों के अंजाम देही में मुआविन हुआ करती है।
बातिनी सफ़ाई
नमाज़ बातिन को क़ुव्वत व तवानाई अता करने का सब से अहम और मज़बूत ज़रिया है। रूहानी कमज़ोरियों ने आज दुनिया में न जाने कितनी बीमारियों को जन्म दे दिया है कि हर तरफ़ हाहा कार मचा हुआ है। इस पर क़ाबू पाने के लिए क़ुरआन-ए-हकीम का नुस्खाए बे-ख़ता बयान करते हुए अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है।
أَلَا بِذِكْرِ اللَّهِ تَطْمَئِنُّ الْقُلُوبُ - तर्जुमा: ख़बरदार! अल्लाह के ज़िक्र से दिलों को इत्मिनान हासिल होता है।
[सूरह रअद आयत २८]
और हदीस पाक में आया है।
हज़रत अबूहुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु रिवायत करते हैं कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा से दरयाफ़्त फ़रमाया तुम ऐसे आदमी के बारे में क्या कहते हो जिस के घर के दरवाज़े पर एक नहर हो और वह आदमी हर दिन उस नहर में पाँच मर्तबा ग़ुस्ल करता हो क्या उस आदमी के बदन पर किसी तरह की कोई गंदगी बाक़ी रहेगी? सहाबा ने अर्ज़ किया। या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ऐसे आदमी के जिस्म पर किसी तरह की गंदगी बाक़ी नहीं रहेगी। इस पर हुज़ूर ने इरशाद फ़रमाया। यही मिसाल पंजगाना नमाज़ों की है। अल्लाह तआला इस के ज़रिए बन्दों के गुनाह माफ़ फ़रमा देता है।[बुख़ारी व मुस्लिम]
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जब तुम में से कोई नमाज़ पढ़ता है उस वक़्त वह अपने परवरदिगार से मुनाजात करता है उसे चाहिए कि अपने दाहिने तरफ़ न थूके बल्कि अपने बाएँ पाँव के नीचे थूके।[बुख़ारी]
हुज़ूर अक़्दस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक मर्तबा मौसम-ए-सरमा में मदीना शरीफ़ से बाहर तशरीफ़ ले गए पत्त झड़ का मौसम था दरख़्तों के पत्ते झड़ रहे थे। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक दरख़्त की दो टहनियों को पकड़ा (उन्हें हिलाया) पत्ते झड़ने लगे आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ऐ अबूज़र!
हज़रत अबूज़र रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया। या रसूलल्लाह! मैं हाज़िर हूँ। आप ने फ़रमाया देखो जब कोई मुसलमान नमाज़ पढ़ता है और उस के ज़रिए अल्लाह की ख़ुशनूदी चाहता है तो उस के गुनाह उसी तरह झड़ जाते हैं जिस तरह इस दरख़्त के पत्ते झड़ रहे हैं।
[मसनद इमाम अहमद]
जिस्मानी क़ुव्वत
नमाज़ पढ़ने से इंसान जिस्मानी तौर पर सिहतमंद और तवाना रहता है। जदीद मेडिकल साइंस ने तो इस बात को बहुत वाज़ेह तौर पर साबित कर दिया है कि नमाज़ में जहाँ रूहानी फ़ायदे हैं वहीं जिस्मानी फ़ायदे भी बेशुमार हैं। नमाज़ एक ऐसी वर्ज़िश है कि जिस से इंसान के जिस्मानी अज़ा बहुत मुतवाज़िन रहते हैं। क़वी अज़ा के अलावा नसों पर भी इस के ख़ुशगवार असरात मुरततिब होते हैं। साइंस की नज़र में हल्की वर्ज़िश में नमाज़ को बहुत उम्दा तरीक़ा कार बताया गया है। रोज़ाना पाँच वक़्त इस वर्ज़िश की वजह से इंसान के अन्दरूनी अज़ा खुल कर हरकत करते रहते हैं। उठने बैठने, चलने फिरने हत्ता कि इस वर्ज़िश का असर आदमी की बीनाई पर भी पड़ता है। तज़किरतुल वाइज़ीन में लिखा है हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नमाज़ पढ़ने से दस फ़ायदे हासिल होते हैं। इन में से एक यह भी बयान किया गया है कि बदन तमाम बीमारियों से महफ़ूज़ रहता है।
रूहानी क़ुव्वत
नमाज़ से इंसान की रूहानियत बुलंद होती है। नमाज़ की कसरत बन्दे को कुदसी सिफ़ात बना देती है। जैसा कि हदीस क़ुदसी है।
जब बन्दा नवाफ़िल की कसरत से मेरा क़ुरब हासिल करता है तो मैं उसे अपना महबूब बना लेता हूँ फिर मैं उस के कान हो जाता हूँ जिन से वह सुनता है, उस की आँखें हो जाता हूँ जिन से वह देखता है उस के हाथ हो जाता हूँ जिन से वह पकड़ता है, उस के पाँव हो जाता हूँ जिन से वह चलता है अगर वह मुझ से कोई सवाल करें तो मैं उन्हें अता करता हूँ और अगर किसी चीज़ से पनाह माँगें तो मैं उन की हिफ़ाज़त करता हूँ।
[बुख़ारी]
बन्दा अपनी इबादात और रियाज़ात से जब यह मक़ाम हासिल कर लेता है तो फिर दुनिया की तमाम ताक़तें उस के सामने हीच हो जाती हैं। अब वह दुनियावी अस्बाब और वसाईल से बे-नियाज़ और मुस्तगनी हो जाता है। नमाज़ और दूसरी इबादात की कसरत जब बन्दे के मामूलात-ए-ज़िंदगी बन जाते हैं तो रहमत-ए-ख़ुदावंदी पुकार पुकार कर कहती है।
हम तो माइल बह करम हैं कोई साइल ही नहीं
राह दिखलाएँ किसे कोई रह-रव-ए-मंज़िल ही नहीं
तकरार-ए-अमल
नमाज़ दिन में पाँच मर्तबा फ़र्ज़ है और वह भी रोज़ाना आख़िर इस तकरार का फ़ायदा क्या है? इस तकरार के फ़ायदे को आसानी से समझने के लिए वह हदीस पाक पेश नज़र रखनी पड़ेगी जिस में फ़रमाया गया है।
अल्लाह की इबादत तुम इस तरह करो कि तुम उसे देख रहे हो और अगर यह क़ुव्वत मयस्सर न आए तो यह ख़याल तो ज़रूर जमाओ कि अल्लाह तुम को देख रहा है।[बुख़ारी शरीफ़ किताबुल ईमान हदीस 47]
तो नमाज़ रोज़ाना और बार बार पढ़ाने का मक़सद यह है कि बन्दा के ज़हन में यह बात अच्छी तरह नक़्श कर जाए कि ख़ुदा मुझे देख रहा है। और जब यह बात मुनक़्श हो जाएगी तो फिर बन्दा गुनाहों से बचता नज़र आएगा और नमाज़ का यही मतलूब भी है जैसा कि इरशाद-ए-बारी है:
बेशक नमाज़ बे-हयाई और बुरी बातों से रोकती है। [सूरह अनकबूत पारा 21 - आयत 45]बन्दा जब नमाज़ का पाबन्द हो जाता है तो उस के ज़हन में यह बात बैठ जाती है कि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त मुझे देख रहा है। अब जब भी कोई क़दम उठाता है तो उस से पहले वह सोचता है कि आया मेरा यह क़दम अच्छाई की तरफ़ उठ रहा है या बुराई की तरफ़ अगर उसे महसूस हो जाता है कि मेरा क़दम नेकी की बजाय बुराई की तरफ़ बढ़ रहा है तो फ़ौरन अपने क़दम पीछे हटा लेता है कि मेरा रब मुझे देख रहा है। इस तरह पंजगाना नमाज़ के ख़याल में डूबे रहने या बिलफ़ज़ दूसर नमाज़ का पाबिन्द होजाने से इंसान गुनाहों से बचने लगता है।
नमाज़ का फ़ाएदा
हज़रत इमाम ग़ज़ाली अपनी मशहूर किताब मुकाश्फ़तुल्क़ुलूब में फ़रमाते हैं कि बाज़ उलमा का बयान है और हदीस पाक से भी साबित है कि जो नमाज़ की पाबन्दी करता है अल्लाह तआला उसे पाँच चीज़ों से नवाज़ता है।
(1) उस से तंगी ख़त्म कर दी जाती है।
(2) उसे अज़ाब-ए-क़ब्र नहीं होगा।
(3) नामा-ए-आमाल उसे दाएँ हाथ में दिया जाएगा।
(4) पुल-सिरात से वह बिजली की तरह गुज़रेगा।
(5) जन्नत में बिला हिसाब दाख़िल होगा।
तर्क-ए-नमाज़ का वबाल
नमाज़ के मज़कूर फ़वाइद के होते हुए इस से पहलू तही करना हत्ता कि छोड़ देना कितना बड़ा वबाल हो गा इस का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। चश्म-कशाई और हुसूल-ए-इबरत के लिए कुछ बातें पेश हैं।
हज़रत उबादा बिन सामित रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा कि मुझे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सात बातों की वसीयत फ़रमाई। किसी को अल्लाह के साथ शरीक न ठहराओ चाहे तुम्हें टुकड़े टुकड़े कर दिया जाए। या जला दिया जाए या फाँसी पर लटका दिया जाए। जान बूझ कर नमाज़ न छोड़ो क्योंकि जिस ने जान बूझ कर नमाज़ छोड़ दी वह दीन से निकल गया। [तबरानी]
जो शख़्स नमाज़ अदा नहीं करता उस का दीन में कोई हिस्सा नहीं। और जिस ने वुज़ू सहीह नहीं किया उस की नमाज़ सहीह नहीं। [बज़्ज़ाज़]
जिस की एक नमाज़ फ़ौत हो गई गोया उस का घराना और माल हलाक हो गया। [बैहकी]
हासिल-ए-कलाम यह कि नमाज़ बहुत ही अहम इबादत है। इस का छोड़ना दीनी और दुनियावी दोनों ऐतिबार से नुकसानदेह है। हर हाल में इस की हिफ़ाज़त करनी चाहिए। शैतान हमेशा
इस की अदायगी में रोड़े डालता है। हर तरह से इस से दूर रखने की कोशिश करता है। मगर जिन के दिल ख़ौफ़-ए-इलाही से लबरेज़ हैं वह शैतान के हर वार को नाकाम बना कर अल्लाह के महबूब बन्दों में अपना नाम लिखा लेते हैं। मौला तबारक व तआला हर मुसलमान को नमाज़ का आदी बनाए। और अपने अहकाम पर अमल करना आसान कर दे। मन्हियात से बचने की तौफ़ीक़ मरहमत फ़रमाए। आमीन सुम्म आमीन बिजाह-ए-सैय्यिदिल मुरसलीन सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम।