Allah ne kis nemat par ahsan jataya जानिए जवाज़बुक पर

और भला एहसान क्यों न जताया जाए कि सरकार के सद्क़े में हमें सब कुछ मिला है। अगर सरकार की विलादत मक़सूद न होती तो कायनात का वुजूद न होता।

अस्सलामु अलैकुम दोस्तों!अल्लाह तआला की नेअमतें बेहिसाब हैं, मगर सोचने की बात है कि अल्लाह ने अपनी किसी नेअमत पर एहसान नहीं जताया। आसमान ज़मीन पानी हवा अक़्ल इल्म सब कुछ उसकी नेअमत है लेकिन किसी पर एहसान नहीं जताया। हाँ एक नेअमत ऐसी है जिस पर अल्लाह तबारक व तआला ने ख़ुद एहसान जताया वो कौन सी नेअमत है? आइए इस पोस्ट में तफ़सील से जानते हैं कि वो नेअमत कौन सी है और क्यों वो सारी नेअमतों की जान और ईमान वालों के लिए सबसे बड़ी रहमत है।

कुरान अज़ीम में अल्लाह तआला फरमाता है  लक़द मन्नल्लाहु व अलल मोमिनीना इज़ बअसा फ़ीहिम रसूला (आले इमरान 164/4)

अल्लाह का बड़ा एहसान

बेशक अल्लाह का बड़ा एहसान हुआ। मुसलमानों पर कि उन्हीं में से एक रसूल भेजा। (कन्ज़ुल ईमान)

दोस्तों! रब्ब तबारक व तआला का लाख लाख शुक्र व एहसान है कि उसने हमें और आप को बेशुमार नेअमतों से मालामाल फ़रमाया। उसकी किन किन नेअमतों का तज़किरा किया जाए आप जिधर निगाह उठा कर देखिए उसकी नेअमत का जलवा नज़र आएगा। आसमान उसकी नेअमत ज़मीन उसकी नेअमत हवा उसकी नेअमत पानी उसकी नेअमत खाना उसकी नेअमत दाना उसकी नेअमत चाँद उसी की नेअमत सूरज उसकी नेअमत जिस्म उसकी नेअमत जान उसकी नेअमत क़ुरआन उसकी नेअमत और ईमान उसकी नेअमत।

अल्लाह की नेअमतें बेशुमार एहसान जताया एक पर

हज़रात! इंसानों की क्या मजाल कि उसकी नेअमतों को शुमार कर सके। ख़ुद अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फ़रमाता है व इन तअुद्दू नेअमतल्लाहि ला तुह्सूहा (पारा 14, आयत 18) और अगर अल्लाह की नेअमतें गिनो तो उन्हें शुमार न कर सकोगे। मगर परवरदिगारे आलम का करम देखिए उसने अपने बंदों को अंगिनत नेअमतों से नवाज़ा मगर किसी नेअमत पर एहसान नहीं जताया।

अक़्ल व शऊर से नवाज़ा मगर एहसान नहीं जताया

इल्म व फ़न से नवाज़ा मगर एहसान नहीं जताया

आसमान का शामियाना लगाया मगर एहसान नहीं जताया

ज़मीन का फ़र्श बिछाया मगर एहसान नहीं जताया

आसमान से पानी बरसाया मगर एहसान नहीं जताया

ज़मीन से दाना उगाया मगर एहसान नहीं जताया

चाँद की चाँदनी से नवाज़ा मगर एहसान नहीं जताया

सूरज की रोशनी से नवाज़ा मगर एहसान नहीं जताया

कहकशाँ के जमाल से नवाज़ा मगर एहसान नहीं जताया

फूलों की निगाहत से नवाज़ा मगर एहसान नहीं जताया

माल व दौलत की कसरत से नवाज़ा मगर एहसान नहीं जताया

इज़्ज़त व अज़मत से नवाज़ा मगर एहसान नहीं जताया

दिल व दिमाग़ से नवाज़ा मगर एहसान नहीं जताया

आँखें अता कीं मगर एहसान नहीं जताया

आँखों को बीनाई अता की मगर एहसान नहीं जताया

कान में क़ूव्वते समाअत अता की मगर एहसान नहीं जताया

ज़बान को क़ूव्वते गोयाई अता की मगर एहसान नहीं जताया

हाथ को पकड़ने की सलाहियत अता की मगर एहसान नहीं जताया

पाँव में चलने की सकत अता की मगर एहसान नहीं जताया

मुख्तसिर ये कि अल्लाह तबारक व तआला ने इंसानों को वुजूद बख़्शा मगर एहसान नहीं जताया।

रसूलों को भेजा पर एहसान नहीं जताया

हज़रात! यूँही अल्लाह तबारक व तआला ने लोगों की हिदायत के लिए अंबिया ए किराम को दुनिया में भेज कर एहसाने अज़ीम फ़रमाया मगर परवरदिगारे आलम ने कहीं ये नहीं फ़रमाया कि ऐ लोगो! मैंने आदम को सफीउल्लाह बना कर भेजा इसलिए तुम्हारे ऊपर एहसान किया। नूह को नजीबुल्लाह बना कर भेजा इसलिए तुम्हारे ऊपर एहसान किया। इबराहीम को खलीलुल्लाह बना कर भेजा इसलिए तुम्हारे ऊपर एहसान किया। इस्माईल को ज़बीहुल्लाह बना कर भेजा इसलिए तुम्हारे ऊपर एहसान किया। मूसा को कलीमुल्लाह बना कर भेजा इसलिए तुम्हारे ऊपर एहसान किया। और मैंने ईसा को रूहुल्लाह बना कर भेजा इसलिए तुम्हारे ऊपर एहसान किया।

लेकिन जब ज़िक्र हुआ मदीने के ताजदार का

मगर हज़रात! जब ज़िक्र करना मक़सूद हुआ मदीने के ताजदार का दोनों आलम के मुख़्तार का सरकारे अबद करार का शाफए रोज़े शुमार का और उम्मत के ग़मख़्वार का तो परवरदिगारे आलम ने क़ुरआने मुक़द्दस में लक़द मन्नल्लाह फ़रमा कर सरकार की अज़मत का परचम लहरा दिया। हज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तशरीफ़ आवरी पर एहसान जता कर सारी मख़्लूक़ में आप को मुमताज़ व बुलंद फ़रमा दिया।

इसी लिए तो सरकारे आला हज़रत फ़रमाते हैं

सब से औला व आला हमारा नबी

सब से बाला व वाला हमारा नबी

अपने मौला का प्यारा हमारा नबी

दोनों आलम का दूल्हा हमारा नबी

क्या ख़बर कितने तारे खुले छिप गए

पर न डूबे न डूबा हमारा नबी

अल्लाह ने हुज़ूर की आमद पर एहसान क्यों जताया

बुज़ुर्गाने मोहतरम! हो सकता है किसी के ज़हन में ये बात आए कि अल्लाह तबारक व तआला ने अपनी बेशुमार नेअमतों में से किसी और नेअमत पर एहसान नहीं जताया सरकार ही की आमद पर एहसान जताया। आख़िर ऐसा क्यों?

तो उसकी वजह ये है कि अल्लाह तबारक व तआला दुनिया वालों और बिलख़ुसूस मोमिनों के दिल व दिमाग़ में ये बात अच्छी तरह बैठाना चाहता है कि दुनिया की सारी नेअमतें अपनी जगह और मेरे महबूब की अज़मत अपनी जगह है। उन्हें तुम दुनिया की और नेअमतों की तरह मत समझ लेना। उनका ज़िक्र ख़ुसूसियत से इसलिए किया जा रहा है ताकि तुम उनकी अज़मत समझ सको और उनकी क़द्र व मंज़िलत का अन्दाज़ा लगा सको। उनकी मोहब्बत से अपने सीने को मदीना बना लो ये तुम्हारी ज़िन्दगी की मेराज है और इसमें तुम्हारी कामयाबी का राज़ है।

हुज़ूर के सद्क़े में हमें सब कुछ मिला

मोअज़्ज़ज़ सामेईन ए किराम! और भला एहसान क्यों न जताया जाए कि सरकार के सद्क़े में हमें सब कुछ मिला है। अगर सरकार की विलादत मक़सूद न होती तो कायनात का वुजूद न होता। ये ज़मीन व ज़मान मकीन व मकाँ, ये सुबह व मसाया शम्स व क़मर ये बर्ग व समर ये शजर व हिजर ये सब हुज़ूर ही का सद्क़ा है।

इस सिलसिले में हदीस ए क़ुद्सी है

"लौलाका लमा ख़लक़तुल अफ़्लाका वल अरज़ीन"

ऐ महबूब! अगर आप को पैदा करना मक़सूद न होता तो न ज़मीन पैदा करता न आसमान।

इसी लिए तो मुजद्दिदे दीन व मिल्लत सरकारे आला हज़रत फ़रमाते हैं

ज़मीन व ज़माँ तुम्हारे लिए

मकीन व मकाँ तुम्हारे लिए

चुनी व चना तुम्हारे लिए

बने दो जहाँ तुम्हारे लिए

दहन में ज़बाँ तुम्हारे लिए

बदन में है जाँ तुम्हारे लिए

हम आए यहाँ तुम्हारे लिए

उठें भी वहाँ तुम्हारे लिए

और एक दूसरे मकाम पर आप ने यूँ इरशाद फ़रमाया

वो जो न थे तो कुछ न था

वो जो न हों तो कुछ न हो

जान हैं वो जहाँ की

जान है तो जहाँ है

रसूल की आमद से आलम में इंक़लाब

बिरादराने इस्लाम! सरकार की आमद क्या हुई कि आलम में इंक़लाब बरपा हो गया। कुफ़्र व शिर्क के बादल छँट गए, ज़ुल्म व ज़्यादती की आँधी थम गई। ताक़त व क़ूव्वत का बे जा इस्तेमाल बंद हो गया। मज़लूमों की सिसकियाँ मुस्कुराहटों में तब्दील हो गईं। औरतों को बावक़ार मक़ाम मिल गया और बच्चियाँ ख़ैर व बरकत का पैग़ाम बन गईं।

रसूल के क़दमों की बरकत

हज़राते गिरामी! जिस रसूल के क़दमों की बरकत ने ज़र्रों को आफ़ताब और ग़ुलामों को इमाम बना दिया। भला उनकी तारीफ़ व तौसीफ़ कौन बयान कर सकता है? मैं क्या और मेरा इल्म ही कितना?

आइए हम और आप मिल कर इल्म व फ़न के ताजदारों की बारगाह में हाज़िरी देते हैं और देखते हैं कि वो क्या कहते हैं।

सरकार के जमाले जहाँ आरा का तज़किरा करते हुए डॉक्टर इक़बाल कहते हैं

चाँद से तश्बीह देना ये भी क्या इंसाफ़ है

चाँद में तो दाग़ है और उन का चेहरा साफ़ है

सरकारे मुफ़्ती ए आज़म हिंद अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं

वस्फ़ क्या लिखे कोई उस महबते अनवार का

महरोमा में जलवा है जिस चाँद से रुख़सार का

अर्शे आज़म पर फ़रैरा है शाहे अबरार का

बजता है कौ नैन में डंका मेरे सरकार का

और सरकारे मुजद्दिद ए आज़म अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं

वो कमाले हुस्ने हुज़ूर है कि गुमाने नक़्स जहाँ नहीं

यही फूल ख़ार से दूर है यही शम्अ है कि धुआँ नहीं

और मुजद्दिद ए आज़म हज़रत जिब्रईल अलैहिस्सलाम के क़ौल की तर्जुमानी करते हुए इरशाद फ़रमाते हैं

यही बोले सिदरे वाले चमने जहाँ के थाले

सभी में ने छान डाले तेरे पाया का न पाया

तुझे यक ने यक बनाया

जिस रसूल के क़दमों की मिसाल जिब्रईल न पा सके उनके रुख़े अनवर की तारीफ़ भला कौन कर सकता है?

मीलाद की महफ़िल रब की रहमत का इहतिमाम

मोहतरम हज़रात! बड़े ख़ुशनसीब हैं हम और आप कि सरकार की महफ़िल सजाए बैठे हैं। आप का ज़िक्र सुन और सुना रहे हैं। अल्लाह अल्लाह क़ुरबान जाइए उस महफ़िल की अज़मत पर जिस का इहतिमाम सिर्फ़ हम ने नहीं किया, आप ने नहीं किया, जिस का इहतिमाम सिर्फ़ शहर वालों ने नहीं किया, देहात वालों ने नहीं किया, मशरिक़ वालों ने नहीं किया, मग़रिब वालों ने नहीं किया, शुमाल वालों ने नहीं किया, जुनूब वालों ने नहीं किया, जिस महफ़िले पाक का इहतिमाम सिर्फ़ अदीबाने नहीं किया, शोअरा ने नहीं किया, उलमा ने नहीं किया, फुज़ला ने नहीं किया, औलिया ने नहीं किया, असफ़िया ने नहीं किया, जिस महफ़िले मुक़द्दस का इहतिमाम सिर्फ़ अंबिया और रसूलों ने ही नहीं किया बल्कि ये वो मुक़द्दस महफ़िल है जिस का इहतिमाम व इंसराम ख़ुद ख़ालिके कायनात ने किया है। इसलिए ये महफ़िल बड़ी मुक़द्दस और मुतबर्रिक है।

जिस से सरकार ख़ुश होते हैं उस से रब ख़ुश होता है

हज़राते गिरामी! बज़्मे मीलाद का इहतिमाम ऐसा अमल है जिस से सरकारे मदीना राहते क़ल्ब व सीना सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ख़ुश होते हैं और जिस से सरकार ख़ुश होते हैं उस से रब ख़ुश होता है।

हज़रत सैय्येदना इब्ने नोमान रहमतुल्लाहि अलैहि फ़रमाते हैं कि उन्हों ने ख़्वाब में रहमते आलम नूरे मुजस्सम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत की तो अर्ज़ किया। या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम क्या आप को हर साल विलादते मुबारक पर ख़ुशियाँ मनाना पसन्द आता है? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: जो हम से ख़ुश होता है हम भी उस से ख़ुश होते हैं।(तज़्किरतुल वाइज़ीन)

मीलाद की महफ़िल की बरकतें

बिला शक्क व शुब्बा सरकार की आमद हमारे लिए रब्ब तबारक व तआला की सब से बड़ी नेअमत है इसलिए इस नेअमते उज़्मा की क़द्र करना हमारा दीनी और अख़लाक़ी फ़रीज़ा है। उसकी अज़मत का चर्चा करना हमारी मोहब्बत का भी तक़ाज़ा है और ईमान का भी।

जो लोग इस महफ़िल का इहतिमाम देख कर नाक भौं चढ़ाते हैं दरअसल उनके रिश्ते ग़ुलामी में खोट है, और उनकी मोहब्बत दाग़दार है। एक आशिक़े सादिक़ और मोहब्बते रसूल की तमन्ना तो वो होनी चाहिए जिसकी तर्जुमानी इमामे अहले सुन्नत ने यूँ की है

ख़ाक हो जाएँ अदू जल कर मगर हम तो रज़ा

दम में जब तक दम है ज़िक्र उन का सुनाते जाएँगे

रहमत और सआदत की दुआ

मोहतरम सामेईन ए किराम! महफ़िले ज़िक्र ए विलादत की बरकतों और फ़ज़ीलतों से दीनी किताबें भरी हुई हैं। उन सारी तफ़सीलात से वाक़िफ़ियत के लिए उलमाए किराम से राब्ता करें मैं तो बस इतना ही अर्ज़ कर के अपनी गुफ़्तगू ख़त्म करता हूँ कि ऐसी महफ़िलों पर रहमते ख़ुदावंदी की बरसात होती है जो लोग उसमें शरीक होते हैं उनकी दीनी और दुनवी मुसीबतें दूर होती हैं और उन्हें दोनों जहान में अम्न व आफ़ियत और राहत व आराम नसीब होता है।

परवरदिगारे आलम हमें और आप को अपने महबूब के सना ख़्वानों में दाख़िल फ़रमा कर दारैन की सआदतों से मालामाल फ़रमाए।

आमीन सुम्मा आमीन।

सवाल-जवाब (FAQ)

सवाल: अल्लाह ने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आमद पर एहसान क्यों जताया?

जवाब: इसलिए कि सारी नेअमतें अपनी जगह हैं, मगर रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अज़मत अपनी जगह है। अल्लाह तआला ने ये जताया कि उसके महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आमद सबसे बड़ी नेअमत और रहमत है।

सवाल: रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आमद से क्या तब्दीलियाँ आईं?

जवाब: कुफ़्र व शिर्क के बादल हट गए, ज़ुल्म थम गया, औरतों को इज़्ज़त मिली, बच्चों पर रहमत आई, और दुनिया में अम्न व इंसाफ़ का नूर फैल गया।

सवाल: मीलाद की महफ़िल मनाने की हकीकत क्या है?

जवाब: मीलाद की महफ़िल वो अमल है जिससे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खुश होते हैं, और जब रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खुश होते हैं तो रब भी खुश होता है। ऐसी महफ़िलों पर रहमतें नाज़िल होती हैं।

सवाल: रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मोहब्बत का तक़ाज़ा क्या है?

जवाब: उनकी मोहब्बत दिल में बसाना, उनकी अज़मत का ज़िक्र करना और उनकी सुन्नतों पर अमल करना यही मोहब्बत और ईमान की पहचान है।

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