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islam mein bhukon ko khana khilane ka sawab aur fazeelat

 

भूकों को खाना खिलाना

असलामु अलैकुम दोस्तों इस तहरीर में भूकों को खाना खिलाने की अहमियत व फज़ीलत के बारे में बताने वाला हूं। खाना खिलाने का अमल इतना ज़्यादा पसंदीदा अमल है के इसे अफ़ज़ल इस्लाम कहा गया है।

खाना खिलाने को अफ़ज़ल इस्लाम क्यों कहा गया वजह क्या है?

खाना खिलाने को अफ़ज़ल इस्लाम इसलिए कहा गया है के, खाना खिलाना यह जूदो सखा, और मकारिमे अख़लाक़ की अलामत है, जब इंसान किसी भूके शख्स को खाना खिलाता है, तो इससे खाना खिलाने वाले की अच्छी खूबीयाँ और अच्छे अख़लाक़ का पता चलता है, वहीँ दूसरी तरफ गरीबों को फायदा पहुँचता है, उन्हें नफा होता है, और भूक का सद्दे बाब होता है।

हुज़ूर से अर्ज़ किया गया कौनसा इस्लाम अफ़ज़ल है।

हज़रत अब्दुल्लाह बिन अम्र रदी अल्लाहु अन्हु से मरवी है, के एक शख्स ने हुज़ूर नबी करीम रऊफो रहीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सवाल किया, कौनसा इस्लाम अफ़ज़ल है (यानी इस्लाम में बुनियादी अरकान की अदाएगी के बाद) तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, खाना खिलाना। हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम का इरशाद मुबारक, अच्छा अख़लाक़ अच्छी खूबियां और हुस्ने अख़लाक़ की तरगीब दिलाता है, तंग दस्ती के बावजूद खर्च करना इंतेहाई करम व सखा है।

अल्लाह तआला ने उस शख्स की तारीफ़ फरमाई, जिसने तंग दस्ती के बावजूद ईसार किया 

क़ुरान करीम फुरक़ान ए हमीद में इरशादे बारी तआला है, और अपनी जानों पर तरजीह देते हैं, अगर्चे उन्हें शदीद मुहताजी हो (सूरह हश्र)

यह आयते मुबारका सहाबी ए रसूल हज़रत अबू तल्हा रज़ीयल्लाहु अन्हु के हक़ में नाज़िल हुई, हुआ यूँ के  हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम की बारगाह में एक भूका मिस्कीन हाज़िर हुआ हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने फरमाया, जो इसे मेहमान बनाएगा अल्लाह तआला उस पर रहमतें नाज़िल फरमाएगा, हज़रत अबू तल्हा रदी अल्लाहु अन्हु उन्हें अपने घर ले गए, घर में बच्चों के लिए थोड़ा सा खाना था, बाक़ी कुछ न था, आपने अपनी बीवी से फ़रमाया के बच्चों को बहाने से भूका सुलादे, और खाना खाते वक़्त चिराग बुझा देना, चुनाँचे ऐसा ही किया गया, आप मेहमान के साथ बैठ गए और वैसे ही मुंह हिलाते रहे, घर वालों ने भूके रात गुज़ारी, उस भूके का पेट भर दिया, जब सुबह को हज़रत अबू तल्हा हाज़िर हुए तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत अबू तल्हा रदी अल्लाहु अन्हु को आयते क़ुरानी सुनाई, और खुशखबरी दी के, अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त तुमसे राज़ी हुआ।

वाक्रिआ अहले बेत की इखलास भरी कुर्बानी

हज़रत अली करमल्लाहु वजहु, हज़रत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा और उनके बेटे हसन और हुसैन (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) ने एक मन्नत मानी थी कि अगर उनके बच्चे सेहतयाब हो गए, तो वो तीन दिन रोज़े रखेंगे। जब बच्चे सेहतयाब हुए, तो उन्होंने अपनी मन्नत पूरी करने के लिए रोजे रखने शुरू कर दिए। । पहला दिन इफ्तार का वक़्त हुआ तो उन्होंने रोटी और थोड़ा सा खाना तैयार किया। जैसे ही खाने को हाथ लगाने लगे, एक मिस्कीन (ग़रीब) आकर कहने लगा अल्लाह के नेक बन्दों। में भूखा हूँ, मुझे कुछ खानेको देदो। उन्होंने खुशी-खुशी अपना खाना उस मिस्कीन को दे दिया और खुद सिर्फ पानी पीकर सो गए। दूसरा दिन अगले दिन भी उन्होंने रोज़ा रखा। इफ्तार का वक़्त आया तो उन्होंने थोड़ा खाना तैयार किया। अभी खाने को ही बेठे थे कि एक यतीम (अनाथ) आ गया और कहने लगा अल्लाह के नेक बन्दों। में भूखा है, मुझे कुछ खानेको देदो। अहले बैत ने फिर से अपना सारा खाना उरा यतीम को दे दिया और ख़ुद सिर्फ़ पानी पीकर सो गए। तीसरा दिन तीसरे दिन भी उन्होंने रोज़ा रखा। इफ्तार के वक़्त जब खाने को बैठे, तो एक कैदी आ गया और बोला अल्लाह के नेक बन्दों। में भूखा हूँ, मुझे कुछ खानेको देदो। फिर उन्होंने अपना पूरा खाना उस कैदी को दे दिया और खुद सिर्फ पानी पीकर रह गए। अल्लाह तआला को उनका यह अमल इतना पसंद आया कि इसकी तारीफ में कुरआन में आयात नाज़िल फरमाई और वे अल्लाह की मोहब्बत में खाना खिलाते हैं मिस्कीन, यतीम और कैदी को। (और कहते हैं कि) हम तुम्हें सिर्फ अल्लाह की रज़ा के लिए खिलाते हैं, ना तुमसे कोई बदला चाहते हैं, ना शुक्रिया। (क़ुरान)

1. इखलास (खालिस नीयत) से अमल करना अहले बैत ने सिर्फ़ अल्लाह की रज़ा के लिए यह काम किया। 2. बख्शीश ओर सखावत दूसरों को देना, खासकर गरीबों, अनाथों ओर जरूरतमंदों की मदद करना इस्लाम की अहम तालीमात में से है। 3. सब्र और अल्लाह पर भरोसा लगातार तीन दिन सिर्फ़ पानी पर रहकर भी उन्होंने सब्र किया और अल्लाह की रज़ा पर राज़ी रहे। यह वाकिआ हम सबके लिए एक बड़ी सीख है कि हमें भी अल्लाह की रज़ा के लिए दूसरों की मदद करनी चाहिए और भूकों को खाना खिलाना चाहिए।

दोस्तों भूकों को खाना खिलाना यह ऐसा अमल है के जिससे अल्लाह तआला खुश होता है, राज़ी होता है।


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