सूरह फातिहा की अहमियत व फज़ीलत
सूरह फातिहा कुरआन करीम का दीबाचा व ख़ुलासा है और बड़ी ही फज़ीलतों की जामिअ सूरत। इस के बहुत से नाम हैं और हर नाम से इस की फज़ीलत व अज़मत अयाँ है।
"हदीस शरीफ"
हज़रत उबी बिन काब रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि एक रोज़ नबी ए रहमत सल्लल्लाहु -अलैहि-वसल्लम ने मुझ से फ़रमाया:
क्या मैं तुम्हें एक ऐसी सूरत की खबर न दूँ जिस की मानिंद कोई दूसरी सूरत न कुरआन में है और न तौरात, इंजील और ज़बूर में।
मैं ने अर्ज़ किया, क्यों नहीं, या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु -अलैहि-वसल्लम, ज़रूर इरशाद फ़रमाएँ।
आप सल्लल्लाहु -अलैहि-वसल्लम ने फ़रमाया: अपनी नमाज़ का आग़ाज़ करते वक़्त तुम कौन सी सूरत पढ़ते हो?
चुनांचे मैं ने सूरह फातिहा पढ़ना शुरू कर दिया।
आप सल्लल्लाहु -अलैहि-वसल्लम ने फ़रमाया: हाँ, यही है, यही है।
(मुस्नद अहमद बिन हम्बल: 21133)
"हदीस शरीफ"
हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि हुज़ूर नबी ए रहमत सल्लल्लाहु -अलैहि-वसल्लम ने फ़रमाया:
क्या मैं तुम्हें कुरआन की एक अज़ीम व जलील सूरत के बारे में न बताऊँ?
फिर आप ने सूरह फातिहा की तिलावत फ़रमाई।
तमाम-तारीफ़ अल्लाह-के-लिए जो सारे जहानों-का-पालने वाला है।
(सुनन निसाई: 7957)
"हदीस शरीफ"
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा बयान करते हैं कि हज़रत अबू सईद बिन मुअल्ला बयान करते हैं कि एक मरतबा नबी ए रहमत सल्लल्लाहु -अलैहि-वसल्लम ने मुझ से फ़रमाया:
सुनो! मैं तुम्हें मस्जिद से बाहर निकलने से पहले कुरआन की सब से अज़ीम सूरत की तालीम दूँगा।
फिर मेरा हाथ पकड़ लिया।
जब हम ने बाहर निकलने का इरादा किया तो मैं ने अर्ज़ किया, या रसूलुल्लाह! आप ने फ़रमाया था कि आप कुरआन की सब से अज़ीम सूरत की तालीम देंगे।
तो आप ने फ़रमाया:
'अल्हम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन' यह सबअ मसानी और कुरआन अज़ीम है जो मुझे दिया गया है।
(सहीह बुख़ारी: 4474)
दोस्तों आपने सूरह फातिहा के बारे में हदीस मुबारक पढ़ा और इसकी फ़ज़ीलत के बारे में भी जाना , मुझे उम्मीद है इससे आपको ज़रूर फाएदा होगा और आपकी मालूमात में भी इज़ाफा हुआ होगा!
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