meraj e rasool aur ahle sunnat ka aqeeda मेराज जिस्मानी पर कुरआनी दलाइल

रजब की सत्ताईसवीं रात में इबादत करने वालों को 100 साल की इबादत का सवाब मिलता है। जो शख्स सत्ताईसवीं रजब उल-मुरज्जब की रात 12 रकअत नमाज़ इस तरह पढ़े..

मोहतरम हज़रात आज मेरा उनवान मेराज ए मुस्तफ़ा अलैहिस्सलातु वस्सलाम और हमारा अकीदा है अहल ए सुन्नत वल जमात का इस बात पर इत्तेफाक है कि मेरे आका करीम रहमतुल्लिल आलमीन अलैहिस्सलातु वस्सलाम हिजरत से पहले रजब शरीफ की सत्ताईसवीं रात को जो कि शब ए दोशंबा थी अपने चचाज़ाद बहन हज़रत उम्म ए हानी रज़ीअल्लाहु अन्हा के घर आराम फरमा थे।

अल्लाह तआला ने हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम को हुक्म फरमाया कि सत्तर हज़ार फरिश्तों की बारात साथ में ले लो और जन्नत को सजा दो दारोगा ए जहन्नम को हुक्म हुआ कि दोज़ख के दरवाज़े बंद कर दे हूरान ए बहिश्त को हुक्म दिया गया कि उम्दा और नफीस लिबास ज़ेब तन कर लें तमाम फरिश्तों को मेराज के दूल्हा की ताज़ीम के लिए कमर बस्ता हो जाने का हुक्म दिया गया इसराफील अलैहिस्सलाम को सूर न फूंकने का हुक्म दिया गया और इज़राईल अलैहिस्सलाम से फरमाया गया कि आज की रात किसी की रूह क़ब्ज़ न करें साथ ही तमाम क़ब्रों से अज़ाब उठा लिया जाए हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से ईसा अलैहिस्सलाम तक तमाम अंबिया किराम शब ए इसरा के दूल्हा के इस्तकबाल के लिए तैयार हो जाएं।

मेराज जिस्मानी पर कुरआनी दलाइल

सहाबा किराम और ताबेईन एज़ाम की कसीर तादाद और मज़हब ए जमहूर यही है कि मेरे आका करीम रहमतुल्लिल आलमीन अलैहिस्सलातु वस्सलाम की मेराज शरीफ आलम ए बेदारी और जिस्मानी थी जिस्मानी मेराज पर बेहिसाब दलाइल मौजूद हैं पर यहाँ कुछ दलाइल पेश ए खिदमत हैं मुलाहिज़ा फरमाएं।

1. अल्लाह तआला का इरशाद ए पाक असरा बी अब्दिहि

लफ्ज़ अब्द कुरआन मजीद हदीस शरीफ या अरब की बोली में सिर्फ रूह को नहीं कहा जाता और न ही सिर्फ जिस्म के लिए इस्तेमाल होता है बल्कि रूह और जिस्म के मजमूए को कहा जाता है इसी लिए लफ्ज़ अब्द का इस्तेमाल करना इस बात की दलील है कि मेराज शरीफ जिस्मानी थी।

2. हदीस शरीफ में है कि हमारे आका करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम के लिए बुराक की सवारी पेश की गई थी जिस पर मेरे आका करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम सवार होकर मेराज के लिए तशरीफ ले गए इसका मतलब यह है कि रूह को सवारी की जरूरत नहीं होती हाँ सवारी के लिए रूह और जिस्म दोनों की जरूरत होती है इससे पता चला कि मेराज शरीफ जिस्मानी थी।

3. अल्लाह तआला का फरमान असरा

रात की सैर को कहते हैं असरा का इतलाक उस सैर पर नहीं होता जो ख्वाब में हो बल्कि असरा का इतलाक उस पर होता है जो रात के वक्त आलम ए बेदारी में हो इसलिए असरा का इस्तेमाल होना इस बात की दलील है कि मेराज शरीफ जिस्मानी थी।

4. अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है मा ज़ागल बसरु वमा तगा आँख न किसी तरफ फिरी न हद से बढ़ी।

बसर का लफ्ज़ जिस्मानी निगाह के लिए बोला जाता है ख्वाब में देखने को बसर का लफ्ज़ नहीं बोला जाता इसी लिए बसर के लफ्ज़ का इस्तेमाल होना इस बात की दलील है कि मेराज शरीफ जिस्मानी थी।

5. अल्लाह तआला कुरआन मजीद में इरशाद फरमाता है और हमने फरमाया ऐ आदम तू और तेरी बीवी इस जन्नत में रहो।

अभी मैंने जिन आयत पाक का तरजुमा बयान किया है उसका मफहूम यह है कि जब अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को हुक्म दिया कि तुम और तुम्हारी बीवी जन्नत में रहो तो दोनों जन्नत में रहे इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता अगर कोई इनकार करे तो काफिर होगा क्योंकि अल्लाह के कलाम का इनकार करना कुफ्र है।

तो मानना होगा कि हज़रत आदम अलैहिस्सलाम और उनकी बीवी हज़रत हव्वा रज़ियल्लाहु अन्हा जन्नत में रहे जब इतना मान लिया तो यह भी मानना होगा कि हज़रत आदम अलैहिस्सलाम जिस्म के साथ जन्नत में रहे क्योंकि सबसे पहले हज़रत आदम अलैहिस्सलाम का पुतला तैयार किया गया फिर उसमें रूह डाली गई और उसके बाद जन्नत में रहने का हुक्म दिया गया।

तो जब हज़रत आदम अलैहिस्सलाम और उनकी बीवी हज़रत हव्वा रज़ियल्लाहु अन्हा जन्नत में जिस्म के साथ रह सकते हैं तो जिनके सदक़े में ये दोनों पैदा किए गए हैं उस महबूब ए खुदा अलैहिस्सलातु वस्सलाम का आलम क्या होगा वह जिस्म के साथ क्यों नहीं जा सकते तो तस्लीम करना होगा कि मेरे आका करीम रहमतुल्लिल आलमीन अलैहिस्सलातु वस्सलाम जिस्म के साथ मेराज के लिए गए।

6. अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है और किताब में इदरीस को याद करो बेशक वह सिद्दीक था ग़ैब की खबरें देता था और हमने उसे बुलंद मकाम पर उठा लिया।

इस आयत में अल्लाह तआला ने हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम को याद करने का हुक्म दिया है और यह भी इरशाद फरमाया कि वह सिद्दीक थे वह ग़ैब की खबरें देते थे और उन्हें हमने बुलंद मकाम पर उठा लिया तो जब हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम को बुलंद मकाम पर उठाने का ज़िक्र कुरआन में मौजूद है और हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम जिस्म के साथ आसमानों की तरफ तशरीफ ले गए और जन्नत में दाखिल हुए तो नबियों के सरदार यानी नायब ए परवरदिगार सरकार ए मुस्तफ़ा अलैहिस्सलातु वस्सलाम को मेराज के लिए अल्लाह तआला ने बुलाया तो इसमें हैरत की बात क्या है रब ने बुलाया मुस्तफ़ा अलैहिस्सलातु वस्सलाम गए बेशक अल्लाह हर चीज़ पर कादिर है।

7. अल्लाह तआला कुरआन पाक में इरशाद फरमाता है और बेशक उन्होंने उसे क़त्ल नहीं किया बल्कि अल्लाह तआला ने उसे अपनी तरफ उठा लिया और अल्लाह तआला ग़ालिब हिकमत वाला है।

यह आयत मुबारक हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के ताल्लुक से नाज़िल हुई है आज हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम जिस्म ए खाकी के साथ चौथे आसमान पर मौजूद हैं तो जब हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम चौथे आसमान पर मौजूद हैं और वह दोबारा इस दुनिया में तशरीफ लाएंगे हाँ मगर नबी बनकर नहीं बल्कि उम्मत ए मोहम्मदिया बनकर इस दुनिया में तशरीफ लाएंगे।

तो मेरे आका करीम रहमतुल्लिल आलमीन अलैहिस्सलातु वस्सलाम जिस्म ए अकदस के साथ आसमानों की सैर करते हुए जन्नत और दोज़ख का मुशाहिदा करते हुए अर्श ए मुअल्ला का नज़ारा करते हुए ला मकां पहुंचे तो बिना चूं चरा के इस बात को तस्लीम कर लेना चाहिए।

क्योंकि मेरे रब ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को जिस्म के साथ जन्नत में रखा और हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम को आसमानों पर तशरीफ ले गए और हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम आज भी चौथे आसमान पर मौजूद हैं जब यह सब अंबिया किराम अलैहिस्सलाम अपने जिस्म ए खाकी के साथ इन मुकामात पर तशरीफ ले जा सकते हैं तो अल्लाह तआला ने जिनके सदके में दोनों जहानों को पैदा किया वह नबी मालिक ए मुख्तार नायब ए परवरदिगार नबियों के सरदार अहमद ए मुज्तबा मोहम्मद मुस्तफ़ा अलैहिस्सलातु वस्सलाम अपने जिस्म ए अकदस के साथ क्यों नहीं जा सकते।

बेशक मेरे आका करीम रहमतुल्लिल आलमीन अलैहिस्सलातु वस्सलाम अपने जिस्म ए अकदस के साथ मेराज के लिए तशरीफ ले गए।

सफर ए मेराज उम्म ए हानी के घर से

सत्तर हजार फरिश्तों की जमात के साथ बुराक लेकर जिब्रील अमीन उम्म ए हानी के घर पहुंचे तो देखा कि रहमतुल्लिल आलमीन अलैहिस्सलातु वस्सलाम आराम फरमा रहे हैं अब जिब्रील अमीन नूरी ज़हन से सोचते हैं कि अब सरकारे दो आलम अलैहिस्सलातु वस्सलाम को कैसे जगाऊं अगर नहीं जगाया तो हुक्मे खुदा बजा लाने में ताखीर हो जाएगी रब तआला का हुक्म है मेरे महबूब को जल्दी बुलाकर लाओ अगर जगाया तो सरकारे दो आलम अलैहिस्सलातु वस्सलाम की शान में बेअदबी होगी।

इसी सोच में जिब्रील अमीन थे कि रब तआला का हुक्म होता है ऐ जिब्रील क्या सोचता है तेरे होंठ काफूर के हैं और मेरे महबूब के तलवे नूर के हैं काफूर में ठंडक होती है काफूरी होंठों से मेरे महबूब के तलवे को मस करो ठंडक पहुंचेगी तो मेरे महबूब बेदार हो जाएंगे।

हज़रत जिब्रील अमीन ने अपने काफूरी होंठों से मेरे नबी करीम रहमतुल्लिल आलमीन अलैहिस्सलातु वस्सलाम के तलवे मुबारक को मस किया यानी चूमा जब ठंडक पहुंची तो मेरे आका अलैहिस्सलातु वस्सलाम बेदार हो गए और इरशाद फरमाया जिब्रील कहो कैसे आना हुआ।

जिब्रील अमीन बोले या रसूल अल्लाह अलैहिस्सलातु वस्सलाम खुदा का पैगाम लाया हूं बेशक वह आपसे मुलाकात का मुश्ताक है अल्लाह तआला ने मुझे हुक्म दिया है मेरे महबूब को जल्दी लेकर आओ या रसूल अल्लाह अलैहिस्सलातु वस्सलाम आज आप मेराज के दूल्हा बनने वाले हैं मीकाईल और इसराफील भी हाज़िर ए ख़िदमत हैं और साथ में सत्तर हजार फरिश्तों की बारात है और सवारी के लिए जन्नती बुराक हाज़िर है।

सफर ए मेराज की तैयारी

शक्के सदर यानी सीना चीरने का मोजिज़ा ज़ाहिर होता है आबे ज़मज़म से गुस्ल दिया जाता है मेरे आका करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम जन्नती पोशाक ज़ेब ए तन फरमाते हैं आपको दूल्हा बनाया जाता है चुनांचे अर्श की तरफ सफर की तैयारियां होने लगती हैं सफर ए मेराज का सिलसिला शुरू होने वाला था कि नबी करीम रहमतुल्लिल आलमीन अलैहिस्सलातु वस्सलाम की बारगाह में बुराक हाज़िर किया गया जिस पर हुज़ूर को सवार होना था।

मगर अल्लाह के प्यारे महबूब अलैहिस्सलातु वस्सलाम को उस वक्त अपनी उम्मत याद आ जाती है और आपकी आंखों से आंसू निकल पड़ते हैं जिब्रील अमीन ने अर्ज किया या रसूलुल्लाह अलैहिस्सलातु वस्सलाम क्या इंतजामात में कोई कमी रह गई तो आपने इरशाद फरमाया नहीं मेरे इस्तकबाल के लिए तूने सत्तर हजार फरिश्तों को लाया सवारी के लिए बुराक हाज़िर किया।

तो जिब्रील अमीन बोले या रसूलुल्लाह अलैहिस्सलातु वस्सलाम फिर रोने की वजह आपने इरशाद फरमाया अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की इस कदर इनायतें हैं मुझ पर मगर रोज़ ए कयामत मेरी उम्मत का क्या होगा मेरी उम्मत पुल सिरात से कैसे गुज़रेगी।

इस वक्त अल्लाह तआला ने जिब्रील अमीन से कहा ऐ जिब्रील मेरे महबूब से कह दो कि आप उम्मत की फिक्र न करें हम आपकी उम्मत को पुल सिरात से इस तरह गुज़ार देंगे कि उन्हें खबर भी नहीं होगी।

जब यह बशारत सरकारे दो आलम अलैहिस्सलातु वस्सलाम सुनते हैं तो बुराक पर सवार हो गए जिब्रील अमीन ने रकाब थामी मीकाईल ने लगाम पकड़ी और इसराफील ने जीन संभाली इसके साथ ही सत्तर हजार फरिश्तों के सलाम की सदाओं से आसमान गूंज उठा हदीस में आया है कि बुराक की तेज रफ्तारी का ये आलम था कि जहां तक नजर की हद थी वहां वह कदम रखता था बुराक का सफर इस कदर तेज़ी के साथ हुआ जिस तक इंसान की अक्ल पहुंच ही नहीं सकती ऐसा लगता था कि हर तरफ मौसम ए बहार आ गया है चारों तरफ नूर ही नूर फैलता चला गया और रहमत ए अनवार की झमाझम बारिश हो रही थी।

मस्जिद ए हराम से मस्जिद ए अक्सा तक

अल्लाह कुरआन में इरशाद फरमाता है

पाकी है उसे जो अपने बंदे को रातों रात मस्जिद ए हराम से मस्जिद ए अक्सा तक ले गया जिसके गिरद ओ गिरद हमने बरकत रखी ताकि हम उसे अपनी अज़ीम निशानियां दिखाएं बेशक वह सुनने वाला और देखने वाला है।

आका करीम रहमतुल्लिल आलमीन अलैहिस्सलातु वस्सलाम का मस्जिद ए हराम से सफर शुरू होता है थोड़ी देर बाद हमारे आका करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का गुजर उस जमीन पर हुआ जिसमें खजूर के दरख्त कसरत से थे हज़रत जिब्रील अमीन ने अर्ज किया या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम यह मदीना शरीफ है आपकी सुकूनत की जगह यहाँ नमाज़ पढ़िए आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बुराक से उतर कर नमाज़ अदा की फिर हज़रत शुऐब अलैहिस्सलाम का शहर मदयन आया फिर हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की विलादत की जगह बैत लहम और फिर जबल तूर आया हमारे आका करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन मकामात पर नमाज़ पढ़ी।

हमारे आका करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं मैं मूसा अलैहिस्सलाम की क़ब्र के पास से गुज़रा वो खड़े होकर अपनी क़ब्र में नमाज़ पढ़ रहे थे।

एक बात बताता चलूं कि हमारे आका सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जमीन के ऊपर भी देख रहे हैं और जमीन के नीचे भी देख रहे हैं हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम किस हाल में हैं और नमाज़ पढ़ने की हालत भी मुआयना कर रहे हैं फिर मेरे आका करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मस्जिद ए अक्सा पहुंचे हैं।

मस्जिद ए अक्सा से सिदरतुल मुन्तहा तक

सफर करते हुए जब हमारे नबी सरकार मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मस्जिद ए हराम से मस्जिद ए अक्सा पहुंचे तो पहले से ही मस्जिद ए अक्सा में तमाम अंबिया किराम अलैहिमुस्सलाम हमारे आका करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इस्तेकबाल के लिए मौजूद थे सब अंबिया किराम अलैहिमुस्सलाम ने आपको देखते ही हम्दो सना बयान की और आपकी बारगाह ए अक्दस में सलातो सलाम पेश किया फिर अज़ान दी गई और तकबीर कही गई अंबिया किराम अलैहिमुस्सलाम ने सफें दुरुस्त कीं हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने इमामुल अंबिया सरकारे मदिना सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत आलिया में अर्ज किया कि हुज़ूर मुसल्ला ए इमामत पर रौनक अफरोज हों और नमाज़ पढ़ाएं फिर हमारे आका करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तमाम अंबिया ए किराम अलैहिमुस्सलाम की इमामत फरमाई क्या शान है मेरे आका करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की कि हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से लेकर हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम तक तमाम अंबिया ए किराम मुक़्तदी बनकर खड़े थे और नबी ए आख़िरुज़्ज़मां काबे का काबा सरवरे कौने मकां मालिके मुख्तार नायबे परवरदिगार नबियों के सरदार अहमद मुज्तबा मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इमामत फरमा रहे थे।

फिर मस्जिद ए अक्सा से आसमानों की सैर करते हुए जन्नत दोजख का नज़ारा करते हुए मुस्तफ़ा जाने रहमत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आगे बढ़ते हैं जब सिदरतुल मुन्तहा पहुँचते हैं तो जिब्रील अमीन और बुराक दोनों रुक गए जिब्रील अमीन अर्ज करते हैं या रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम यह सिदरतुल मुन्तहा है मेरा सफर आप के साथ का यहीं तक था अब अगर मैं यहाँ से एक बाल के बराबर भी आगे बढ़ा तो अल्लाह तआला के अनवार ए तजल्ली मेरे परों को जला कर राख कर देंगे या रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मेरी आख़िरी हद यही है अब आप यहाँ से आगे तशरीफ ले जाएँ।

जब हमारे आका करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सिदरतुल मुन्तहा पहुंचते हैं तो जिब्रील अमीन सिदरतुल मुन्तहा में रुक गए और सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से कहा या रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आप आगे जाएं मैं आपकी तरह नहीं हूं और मेरे आका करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तनहा आगे गए क्योंकि मेरे आका सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जिब्रील की तरह नहीं।

सिदरतुल मुन्तहा से अर्शे आज़म

जब सिदरतुल मुन्तहा पर जिब्रील अमीन और बुराक रुक गए तो वहां से सफर के लिए मेरे आका करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में रफ रफ पेश किया जाता है जो सब्ज रंग का था उसका नूर सूरज की रोशनी पर गालिब था आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उस रफ रफ पर सवार होकर अर्शे आजम पर जलवा अफरोज होते हैं।

अर्शे आज़म से ला मकां

जब हमारे आका करीम रहमतुल्लिल आलमीन सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अर्शे आजम पर पहुंचते हैं जो सिदरतुल मुन्तहा से अर्शे आजम तक सत्तर हजार परदे हैं और हर परदे के दरमियान पांच सौ बरस का फासला है अर्शे आजम के ऊपर न कोई मकां है न सामान सब अर्श के नीचे हैं जब हमारे आका करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अर्शे आजम पर जलवा अफरोज होते हैं तो उस वक्त ये कैफियत थी कि सिदरतुल मुन्तहा नीचे सातों आसमान नीचे सातों जमीन नीचे जमीन और आसमान में रहने वाले नीचे बैतुल्लाह नीचे बैतुल मक्दिस नीचे फरिश्तों का काबा बैतुल मामूर नीचे जन्नत नीचे अल्लाह तआला का अर्श नीचे था और कदम ए रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सबके ऊपर।

आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान फाज़िले बरेलवी अलैहिर्रहमा इरशाद फरमाते हैं।

वही ला मकां के मकीन हुए

सर ए अर्श तख्त नशीन हुए

वो नबी हैं जिनके हैं ये मकां

वो खुदा है जिसका मकां नहीं

हमारे आका करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम रफ रफ पर सवार थे सफर जारी था हमारे आका सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आगे बढ़ते रहे बहुत से नूरानी हिजाबात तय करने के बाद रफ रफ भी रुखसत हो गया अब हमारे आका करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तनहा जाने वाले थे साथ कोई नहीं था बुलाने वाली जात खुदा की और जाने वाली जात रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अब जिधर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बुलाया जा रहा है मेरे आका सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उधर जा रहे हैं रब तआला ने अपने महबूब को अपने पास बुलाया और दीद का शरफ बख्शा।

दीदार ए इलाही

हमारे नबी करीम रहमतुल्लिल आलमीन सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जिस्मे अकदस के साथ खुदा की बारगाह में हाज़िर हुए और अपनी आंखों से खुदा का दीदार किया यह मर्तबा किसी और नबी को नहीं मिला सिवाए मेरे नबी के मेरे आका करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने बेहिजाब अपनी आंखों से दीदार किए और हमकलाम भी हुए।

हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ी अल्लाहु अन्हु फरमाते हैं बेशक मोहम्मद अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने अपने रब को देखा।

रसूल अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने फरमाया मैंने अपने रब को हसीन सूरत में देखा फिर उसने मेरे दोनों कंधों पर अपना दस्ते कुदरत रखा इससे मैंने अपने सीने में ठंडक पाई और जमीन और आसमान की हर चीज को मैंने जान लिया।

हदीस शरीफ में है रऐतु रब्बी यानी मैंने अपने रब को देखा

इब्न इस्हाक बयान फरमाते हैं कि हज़रत अबू हुरैरा रज़ी अल्लाहु अन्हु से पूछा गया हल रअ मुहम्मद रब्बह तो हज़रत अबू हुरैरा रज़ी अल्लाहु अन्हु ने फरमाया नाम यानी हाँ देखा।

उलमा ए अहले सुन्नत वल जमाअत के नज़दीक मेरे आका करीम रहमतुल्लिल आलमीन अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने रब का दीदार फरमाया।

शब ए मेराज की इबादतें

अल्लामा सफूरी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं।

रजब उल मुरज्जब बीज बोने का शाबान उल मुअज्जम आबपाशी का और रमज़ान उल मुबारक फसल काटने का महीना है लिहाज़ा जो रजब उल मुरज्जब में इबादत का बीज नहीं बोता और शाबान उल मुअज्जम में आंसुओं से सैराब नहीं करता वह रमज़ान उल मुबारक में फसल ए रहमत कैसे काट सकेगा मजीद फरमाते हैं रजब उल मुरज्जब जिस्म को शाबान उल मुअज्जम दिल को और रमज़ान उल मुबारक रूह को पाक करता है।

हज़रत अनस रज़ी अल्लाहु अन्हु रिवायत करते हैं कि नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने इरशाद फरमाया।

रजब की सत्ताईसवीं रात में इबादत करने वालों को सौ साल की इबादत का सवाब मिलता है जो शख्स सत्ताईसवीं रजब उल मुरज्जब की रात बारह रकअत नमाज़ इस तरह पढ़े कि हर रकअत में सूरह फातिहा पढ़कर कुरआन करीम की कोई सूरह पढ़े और हर दो रकअत पर तशह्हुद आखिर तक पढ़कर बाद दुरूद सलाम फेरे और बारह रकअत पढ़ने के बाद सौ मर्तबा यह तस्बीह पढ़े।

सुब्हानअल्लाह वल्हम्दुलिल्लाह वला इलाहा इल्लल्लाह वल्लाहु अकबर

फिर सौ मर्तबा अस्तग़फिरुल्लाह और सौ मर्तबा दुरूद शरीफ पढ़े तो दुनिया और आखिरत के उमूर के मुताल्लिक जो चाहे दुआ करे और सुबह में रोज़ा रखे तो यकीनन अल्लाह तआला उसकी तमाम दुआएं क़बूल फरमाएगा मगर ये कि वो कोई ऐसी दुआ न करे जो गुनाह में शुमार होती हो क्योंकि ऐसी दुआ क़बूल न होगी।

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से दुआ गो हूं कि अल्लाह पाक मुझे भी और तमाम मोमिनीन को सिरात ए मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमाए और इस माहे मुबारक में कसरत से इबादत करने की तौफीक़ अता फरमाए अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हमारे मुल्क जान और माल की हिफाज़त फरमाए आमीन।

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