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Talim Aur Parda और बेटियों की तर्बियत


 बेटियों की तर्बियत

इंसानी निज़ाम की सलामती खुशहाली और अमनो अमान में औरतों का बड़ा किरदार है आज अगर बेटियों की तरबियत सही तरीके पर ना हुई तो कल की औरत निज़ामे इंसानी को तह वा बाला करने वाली होगी और निज़ामे  इंसानी की इस तबाही में इस औरत के बाप का बड़ा दखल होगा जिसके यहां यह औरत बेटी बनकर पैदा हुई थी और इस बाप ने अपनी बेटी की तरबियत को नज़रअंदाज़ कर दिया था बेटियों की सही परवरिश बहुत बड़ा कारनामा है इसीलिए अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इस पर जन्नत की बशारत अता फरमाई है

बेटी के बाप का मनसब बहुत बड़ा और ज़िम्मेदारी बहुत हस्सास है

जो शख्स भी बेटी का बाप बन गया उसकी ज़िम्मेदारी सिर्फ बेटी को खिलाना पिलाना कपड़े पहना ना घर की पनाह देना और सेरो तफरीह कराना नहीं है इतना काम तो जानवर भी कर लेते हैं फिर इंसान की खुसूसियत क्या है बल्कि इंसान अपनी बेटी को इन चीज़ों के साथ साथ उसकी तालीम और तरबियत और उसके मुस्तकबिल का सामान करता है दौरे हाज़िर में तालीम और तरबियत की दुनिया पर मगरीबी तर्ज़ हावी है तो जिस बाप को अपनी बेटी का मुस्तकबिल बनाना है वह दौरे हाज़िर की राईज तालीम और तरबियत अपनी बेटी को देता है यह काम तो आज का तकरीबन हर इंसान कर रहा है अगर इस्लाम के मानने वाले भी यही काम करें तो फिर मुसलमान की खुसूसियत क्या है इसलिए हर मुसलमान मर्द और औरत जिनको अल्लाह ने बेटी के मां-बाप बनाया है उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि उनकी हैसियत बहुत अहम हो चुकी है उनका ओहदा बहुत बड़ा हो चुका है उनकी ज़िम्मेदारी बहुत अज़ीम हो चुकी है अगर उन्होंने अपनी बेटी को इस्लाम की हिदायत के मुताबिक तालीम और तरबियत देकर बड़ा ना किया तो मुस्तकबिल में यह निज़ाम इंसानी और निज़ाम इस्लामी की खराबी में अपने हिस्से भर शरीक होंगे और इतना बड़ा जुर्म करके अल्लाह रब्बुल आलमीन की बारगाह में क्या मुंह लेकर जाएंगे कि उन्होंने एक औरत को इस मकसद से हटा दिया जिसके लिए अल्लाह तआला ने उसे पैदा फरमाया था जो मुसलमान भी बाप बन गया वह बहुत बड़ा ज़िम्मेदार बन गया जिसका उसे एहसास करना है और अपनी ज़िम्मेदारी बहुस्नो खूबी निभाने की कोशिश भी करना है मुसलमान मां बाप के ज़िम्मे बेटे बेटियों की शक्ल में चंद इंसान है जो बिल्कुल खाली है ना उनकी अपनी कोई तालीम है ना तरबीयत ना अपनी कोई ज़हनियत ना नज़रिया ना मखसूस ज़बान ना अच्छे अखलाक ना बुरे अखलाक ना अच्छी आदतें ना बुरी आदतें ना अच्छी सिफात ना बुरी सिफात वो हर चीज़ से खाली इंसान है हां उनके अंदर हर चीज़ कुबूल करने की सलाहियत है जहालत बुरे अखलाक़ बुरी सिफात और बुरी आदतों की तरफ वह जल्द माइल हो सकते हैं यानी उन्हें अच्छा बनाने के लिए बहुत तवज्जो और बड़ी मेहनत की ज़रूरत है जबकि उन्हें बुरा बनाने के लिए हमारी बे तवज्जही और गफलत ही काफी है यह खाली इंसान 12-15 साल तक मां बाप के हवाले होते हैं कि इस अर्से में वह जो इंसान बनेंगे सारी ज़िन्दगी वही इंसान रहेंगे वही ज़हनियत रहेगी वहीं किरदार रहेगा अगर इस्लामी ज़हनियत और इस्लामी किरदार का हामिल इंसान ना बने तो बाद में उन्हें इस्लामी ज़हनीयत या इस्लामी किरदार कुबूल करने के लिए खुद से बहुत लड़ना पड़ेगा जिसमें अक्सर वह नाकाम ही होंगे इसलिए हर मां-बाप को यह जानना जरूरी है कि अल्लाह तआला की मर्ज़ी क्या है हम अपनी औलाद को कैसा इंसान बनाएं

इंसानी ज़िंदगी से मुताल्लिक मर्ज़ी ए इलाही

अल्लाह तआला की मर्ज़ी यह है कि इंसान दुनिया में दीन ए इस्लाम के मुताबिक ज़िन्दगी गुज़ारे जिसकी मुख्तसर तशरीह यह हो सकती है कि वह इबादात मामलात और मुआशरात तीनों चीज़ों में इस्लामी अहकाम का पाबंद रहे इबादात में नमाज़ रोज़ा ज़कात हज तिलावत ए कुरान ज़िकरुल्लाह है यानी ऐसी चीज़ें जिसमें बंदे का ताल्लुक सिर्फ अल्लाह से है मामलात यानी खरीद-फरोख्त कर्ज़ का लेनदेन मुलाज़ीमत मजदूरी कारोबार किरायादार ईमानदारी इंसाफ पसंदी हक बयानी सच्ची गवाही मददगारी ईसारो कुर्बानी रहम दिली अफ्वो दर गुज़र यानी ऐसी चीज़ें जिसमें बंदे का ताल्लुक आम इंसानों से होता है मुआशरत यानी मां बाप के हुकूक औलाद के हुकूक बहन भाइयों के हुकूक शोहर बीवी के हुकूक और रिश्तेदारों के हुकूक पड़ोसियों के हुकूक दोस्त और अहबाब के हुकुम और दीगर लोगों के हुकूक यानी ऐसी चीज़ें जिसमें बंदे का ताल्लुक अपने करीबी इंसानों से होता है इबादात मैं अल्लाह पाक की मर्ज़ी यह है कि इंसान रोज़ाना पांच वक्त की नमाज़ पढ़े जिसके लिए 24 घंटे का सिर्फ 6 फीसद वक्त वह भी मुताफर्रीक अवकात में सर्फ होता है जो बार-बार हमें ताज़ा दम करता है साल में सिर्फ एक महीना रमज़ान के रोज़े रखे ताकि नफ्स कमज़ोर होकर रूहानी ताकत मिले और मादे को कुछ आराम मिले और जिस्मानी ताकत भी हासिल हो साल में एक मर्तबा अपने माल का 40 वां हिस्सा ज़कात दे ताकि इंसान खुदगर्ज़ बनकर अकेला ना जिए बल्कि गुरबा और मसाकीन को भी कुछ सहूलत हो जाए और इंसान और जानवर की कमाई में इम्तियाज़ रहे अगर इस्तेताअत हो तो ज़िन्दगी में एक बार हज करें और उस घर की ज़ियारत कर आए जो अल्लाह तआला की इबादत के लिए सबसे पहले तामीर होने वाला घर है जिसके दीदार की तमन्ना हर इबादत करने वाले के दिल में होती है जब मौका मिले कुरान मजीद की तिलावत करें जिसमें नसीहतें अहकाम  इबरत आमोज़ वाकीआत है कलमा तैयबा का विर्द करें दरूद शरीफ पढ़े अल्लाह तआला की तस्बीह और तहमीद और तकबीर बयान करे मामलात मैं अल्लाह पाक की मर्ज़ी यह है कि इंसान रोज़ी रोटी के लिए कोई ऐसा ज़रिया इख्तेयार करे जिसमें दूसरे इंसानों पर ज़ुल्म ना हो मुआशरे का अमनो अमान खतरे में ना पड़े अपनी या दूसरों की इज़्ज़त दांव पर ना लगे जिस के रास्ते इस्लाम ने बताए हैं कुछ बैचे तो ईमानदारी से बैचे कुछ खरीदे तो ईमानदारी से खरीदें मजदूरी करे तो मुकम्मल मजदूरी करें किसी को मजदूर बनाए तो ईमानदारी से मजदूरी दे दे सच बोले झूठ से परहेज़ करें धोखा ना दे चुगली गाली गलौज के ज़रिए झगड़े ना पैदा करें बल्कि कहीं झगड़ा हो तो सुलह कराए बदला लेने के बजाय माफ करें ज़रूरतमंदो को क़र्ज़ दे ताकि वह संभल सके किसी से कर्ज़ ले तो अदा कर दे ताके क़र्ज़ का चलन बाकी रहे अपनी चीज़ें ज़रूरतमंदों को आरियत पर दे दे ताकि उसकी वक्ति ज़रूरत पूरी हो जाए आरियत पर यानी मांग कर ली हुई चीज़ों को बा हिफाज़त वापस करें ताकि बाब आरियत खुला रहे गर्ज़ लोगों के साथ मामलात दुरुस्त रखें ताकि ज़िन्दगी बहुस्नों खूबी बसर हो सके मुआशरत मैं अल्लाह पाक की मर्ज़ी यह है कि इंसान अपने मां-बाप की फरमाबरदारी करे क्योंकि वह दुनिया को हम से बेहतर जानते हैं उनकी खिदमत करें क्योंकि बचपन में उन्होंने हमारी खिदमत की है औलाद की तरबियत करें ताकि वह अच्छे इंसान बने शौहर बीवी के हुकूक अदा हो ताकि मर्द और औरत दोनों हंसी खुशी जी सकें रिश्तेदारों के साथ हुस्न ए सुलूक किया जाए पड़ोसियों के हुकूक का ख्याल रखा जाए ताकि कुर्बो जवार में रहने वालों से खुशगवार ताल्लुकात रहें और एक दूसरे के अच्छे या बुरे वक्त में साथ रहे बीमारों की मिज़ाज पुरसी की जाए ताकि उनका दिल बहले और दूसरों की तवज्जो और मोहब्बत के ज़रिए उन्हें अंदरूनी ताकत मिले किसी का इंतकाल हो तो उनके घर वालों की तसल्ली और ताज़ियत के लिए पहुंचे ताकि मरहूम की कमी का एहसास कम हो जाए और वह संभल सके

इंसान की मर्द और औरत में तक्सीम और मकासिद

इंसान दो सीनफों में बटा हुआ है मर्द और औरत दोनों के ज़ाहिर और बातीन में फर्क है दोनों के जिस्मों में फर्क है ताकत और कुव्वत में फर्क है दोनों के एहसासात और रूहजानात में फर्क है दोनों की अकल और जज़्बात में फर्क है दोनों के तरीके कार में फर्क है यह फर्क अल्लाह तआला ने इसीलिए रखा है कि दोनों के मकासिद में फर्क है दोनों की जिम्मेदारियां अलग-अलग हैं अगर यह दोनों अपनी अपनी जिम्मेदारियां अपनी हुदूद में निभाएंगे तो निज़ाम ए इंसानी अम्नो अमान के साथ बहुस्नो खूबी चलेगा वरना फसाद और खराबी का शिकार होगा निज़ाम ए इंसानी की कामयाबी यह है कि हर इंसान को उसका हक मिले खाना कपड़ा मकान इलाज इस्तेमाल की चीज़ें जानो माल और इज्ज़तो आबरू की हिफाज़त और नस्ले इंसानी की बका के लिए तवालुद और तनासुल का अमल यह तमाम चीज़ें इंसान के लिए ज़रूरी है ताकि वह ज़िन्दा रह सके और अल्लाह रब्बुल आलमीन की मर्ज़ी के मुताबिक ज़िन्दगी गुज़ार सकें और इंसानों का सिलसिला दुनिया में ता कयामत कायम रहे! 

दोस्तों एक घर के अंदर की दुनिया है एक घर के बाहर की दुनिया है घर के अंदर की दुनिया में बच्चे बूढ़े और बीमार रहते हैं घर के अंदर हमेशा एक ही तरह के हल्के-फुल्के काम है जिनके लिए ना ज़्यादा अकल की ज़रुरत है ना ज़्यादा ताकत की बल्कि ज़्यादा जज़्बात की ज़रुरत है खतर पसंद तबीयत नहीं बल्कि अमन पसंद तबीयत की ज़रूरत है खाना पकाना कपड़े और बर्तन धोना घर की साफ सफाई करना सिलाई कढ़ाई या घर की चारदीवारी में होने वाले हल्के-फुल्के काम जिनके लिए ना ज़्यादा अकल इस्तेमाल करनी होती है ना ज़्यादा ताकत बच्चों की परवरिश बूढ़ों की खिदमत और बीमारों की देखभाल देखरेख यह सब काम जज़्बात का तकाज़ा करते हैं इन कामों को करने से जज़्बात की तस्कीन होती है घर की दुनिया अपनों से आबाद है जहां के झगड़ों और साज़िशों में भी कहीं ना कहीं अपनायत भी होती है अब ज़रा घर के बाहर की दुनिया का जायज़ा लें घर के बाहर जवान और ताकतवर इंसान रहते हैं यहां के काम एक जैसे नहीं हैं हज़ारों किस्म के हैं बहुत अकल की ज़रूरत है यहां जज़्बात से चलने वाला नाकाम हो जाता है होशो हवास के साथ चलना है मंसूबा बनाना है मंसूबे की तकमील के लिए तरीके कार तय करना है साज़िशों को समझना है और उनको नाकाम बनाने के तरीके ढूंढना है अमन पसंद के मुकाबिल खतर पसंद यहां ज़्यादा कामयाब है यहां ताकत की ज़रूरत है कमज़ोरियों या बीमारियों के साथ यहां कामयाबी नहीं मिल सकती यह बाहर की दुनिया गैरों से आबाद है यहां के खुशगवार ताल्लुकात और दोस्तियों में भी कहीं ना कहीं अपना मतलब और अपनी गर्ज़ पोशीदा रहती है 

दोस्तों अब मर्द और औरत पर गौर करें अकल और ताकत अल्लाह तआला ने मर्द को ज़्यादा अता फरमाई है क्योंकि उसे बाहर की दुनिया संभालना है और जज़्बात और नज़ाकत औरत को ज़्यादा अता फरमाई है क्योंकि उसे घर की दुनिया संभालना है गौर किया जाए तो जितने आसान काम है वह औरत के सुपुर्द किए गए हैं और जितने मुश्किल काम है वह मर्द को दिए गए हैं मर्द का काम हल चलाकर दाना निकालना है जो बहुत मुश्किल है और औरत का काम सिर्फ उसको पकाना है मर्द का काम माल हासिल करना है जो बहुत मुश्किल है और औरत का काम सिर्फ उस माल की हिफाज़त है जो आसान है मर्द का काम घर बनाना है जो कि मुश्किल है और औरत का काम सिर्फ उस घर की देख रेख है जो कि आसान है मर्द का काम कपड़ा हासिल करना है जो कि मुश्किल है और औरत का काम उसे इस्तेमाल करना और उसकी हिफाज़त करना है जो कि आसान है औरतों पर सारी ज़िंदगी कोई माली ज़िम्मेदारी नहीं रखी गई उसको चुपचाप घर में बैठना है उसके खाने कपड़े और ज़रूरियात का इंतज़ाम बचपन में बाप करेगा जवानी में शौहर करेगा और बुढ़ापे में बेटा करेगा मगर आज की औरत खुद कमाने के लिए बाहर निकलना चाहती है खुद अपना सुकून गारत करके कमाना चाहती है अपना बैठकर खाने का हक खुद ही गँवाना चाहती है सख्त किस्म के काम करना चाहती है सुकूनो इत्मीनान की दुनिया छोड़कर झमेलों और झंझटों की दुनिया में जीना चाहती है और उसको यह कहकर गुमराह कर दिया गया है कि इस्लाम ने तुम को कैद कर दिया है

क्या पर्दे के ज़रिए औरत को कैद कर दिया गया है

एक औरत अगर इस्लामी तालीमात के मुताबिक गोशे पर्दे के साथ घर की चारदीवारी में ज़िंदगी गुज़ारे तो उसे कैद ओ बंद से ताबीर किया जाता है और आज की मगरीब ज़िदा औरत को यह कहकर फरेब दिया गया है कि औरत को कैद कर दिया गया है उसे भी आज़ादी के साथ जीने का हक है यह ख्याल सिर्फ और सिर्फ धोखा है हकीकत यह है कि जिसकी जान और इज़्ज़त आबरू अहम होती है वह अगर अकलमंद है तो अपने मकामो मर्तबे के मुताबिक ही ज़िंदगी गुज़ारता है मज़हबी और हुकूमती मैदान के बड़े-बड़े लोग बड़े-बड़े ओलामा मशाइख पंडित पादरी वज़ीरे आज़म विज़रा ए आला मेंबराने पार्लिमेंट जज मुलकी सतह के ओहदेदार मालदार और मशहूर ओ मारूफ लोग हर एक से नहीं मिलते हर जगह नहीं जाते हर जगह नहीं बैठते कहीं जाते भी हैं तो सिक्योरिटी के साथ तयशुदा प्रोग्राम के मुताबिक जाते हैं लेकिन कोई यह आवाज़ नहीं उठाता कि यह लोग क़ैद ओ बंद की ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं उनको भी आज़ादी से जीने का हक है उनको भी हर जगह जाना चाहिए हर एक से मिलना चाहिए हर वक्त सिक्योरिटी का झंझट नहीं होना चाहिए अकेले भी उन्हें घूमना फिरना चाहिए कोई यह नहीं कहता क्योंकि सब जानते हैं कि उनका मकाम और मर्तबा बड़ा है हर कोई उनसे मिलने और बात करने के काबिल नहीं है उनको बाज़ारों में फिरने की ज़रूरत नहीं है बाज़ार की हर चीज खुद इन तक आ जाएगी उनके मकाम ओ मर्तबे और ज़िम्मेदारियों के लिहाज़ से उनकी जान का तहफ्फुज बहुत ज़रूरी है इसलिए बगैर हिफाज़ती इंतज़ामात के उन्हें बाहर नहीं निकलना चाहिए दोस्तों बिल्कुल यही बात इस्लाम औरत के ताल्लुक से कहता है कि औरत का मकाम बहुत बलंद दो बाला है औरत भी अपनी इज़्ज़त ओ शान के साथ अपने घर बैठकर खाती पीती है और अपनी ज़रूरत की चीज़ें अपने घर के मर्दों से मंगवाती है वह खुद अपने मकामो मर्तबे से गिरकर बाज़ारों में नहीं घूमती वह इतना बड़ा मकाम रखती है कि हर मर्द उससे मिल नहीं सकता उसके साथ तन्हा नहीं रह सकता उससे बात नहीं कर सकता है सलाम भी नहीं कर सकता हत्ता के देख भी नहीं सकता क्योंकि वह औरत है उसका मकाम बहुत बड़ा है उसकी इज्ज़तो अस्मत उसकी जान से भी बढ़कर है उसको देखना उसको छूना उससे बात करना उसके साथ कुछ देर तन्हा हो ना इन सब चीज़ों के लिए औरतों से या तो मज़बूत रिश्ता चाहिए या मज़बूत और माकूल वजह चाहिए अब अगर औरत खुद ही यह चाहे कि वह आज़ाद होकर अपना मकाम हल्का कर ले कोई भी आसानी से उससे बात कर ले बाज़ारों में कोई भी आवारा उससे छेड़छाड़ कर ले उसके जिस्म को धक्का दे दे कोई भी दुकानदार खरीद-फरोख्त के बहाने उस से दिल्लगी और मज़ाक कर ले कोई भी राह चलता मर्द उस से नज़रे मिला ले उसके जिस्म के नशेबो फराज़ का तमाशा देख ले तालीम गाहों में तिजारत गाहोँ में तफरीह गाहाें में दफातीर में वह मर्दों की हवस की तस्कीन का ज़रिया बने तो ऐसा तो ए खातून ए ज़माना ज़रा गौर तो कर इसमें औरत की आज़ादी है या मर्द की आज़ादी औरत जब घर में थी तभी वह बदख्याल बद निगाह मर्दों से आज़ाद थी घर से क्या निकली के उन मर्दों की कैद में आ गई और मर्द आज़ाद हो गए के औरतों को जब चाहे देख ले बात कर ले तन्हा हो ले सब कामों की आज़ादी मिल गई मगर दोस्तों यह सारी बातें एक खातून को उसी वक्त समझ में आएंगी जबकि उसकी तालीम और तरबियत इस्लामी तरीके पर हुई हो उसे बचपन ही से हया और परदे की ज़हनियत दी गई हो उसे बचपन ही से पर्दे वाले लिबास का आदि बनाया गया हो उसे बचपन ही से म्यूजिक और गानों से बचाया गया हो उसे बचपन ही से फिल्मों और ड्रामों की गंदी दुनिया से बचाया गया हो उसे तिलावते कुरान और ज़िक्र ओ अज़कार का आदि बनाया गया हो अगर ऐसा नहीं हुआ बल्कि हमारी बच्चियां गैर मुस्लिमों की तहजीब और तौर-तरीकों को देखते हुए और उस पर अमल करते हुए बड़ी हुई हो तो उन्हें यह सारी बातें समझाना बड़ा मुश्किल काम है

बेटी की तालीम और तरबीयत कैसी होनी चाहिए

आला हजरत अलैहिर्रहमह ने अपनी एक किताब में रहनुमाई फरमाई है जब बेटी पैदा हो तो उसको अल्लाह तआला की नेमत समझे बेटी के सीधे कान में अज़ान और बाएं कान में तकबीर (इकामत) कहे इस अज़ान और इकामत की वजह से बेटी शैतानी खलल से महफूज़ रहेगी छुहारा वगैरह कोई मीठी चीज़ चबाकर बेटी के मुंह में डालें ऐसा करने से उम्मीद है कि बेटी अच्छे अखलाक वाली बनेगी पैदाइश के सातवीं दिन अकीका करें अगर सातवीं दिन ना हो सके तो 14 दिन या 21 वें दिन करें सर के बाल उतरवाए और उनके वज़न के बराबर चांदी सदका करें अपनी बेटी का अच्छा नाम रखे बच्चा पहले सुनना शुरू करता है उसके सामने अच्छी बातें करते रहें ताकि बोलना शुरू करें तो अच्छी बातें बोले बच्चे पहले पहल एक ही लफ़्ज़ बोलते हैं तो उस वक्त उन्हें अल्लाह अल्लाह कहना सिखाएं अल्लाह रसूल कुरान हदीस नमाज़ रोज़ा ज़कात हज नेकी गुनाह सवाब अज़ाब जन्नत जहन्नम इस तरह के इस्लामी अल्फाज़ उन्हें सिखाएं फिर वह कुछ अर्से के बाद जुमला बोलना शुरू करें तो उस वक्त उन्हें कलमा तय्यबा सिखाएं छोटी-छोटी सूरतें सिखाएं रोजमर्रा की दुआएं सिखाएं जब हरूफ को पहचानने लगे तो कुरान मजीद की तालीम शुरू कर दें साथ-साथ उर्दू ज़बान पढ़ना भी सिखाए जब तमीज़ आए तो कामों को इस्लामी तरीके पर करना सिखाए खाने-पीने के आदाब सिखाएं हंसने बोलने के आदाब सिखाएं उठने बैठने के आदाब सिखाएं चलने फिरने के आदाब सिखाएं मां बाप दादा दादी नाना नानी असातज़ा और बड़ों की ताज़ीम और इताअत के तरीके सिखाए जब बातों को कुछ समझना शुरू करें और उनके ज़हन में अपने ख्यालात जमने लगे और वह भी जब अपनी छोटी मोटी राय कायम कर लेने लगे तो उनको इस्लाम और सुन्नियत के अकाइद सिखाएं क्योंकि उनकी फितरत सादा हे और अल्लाह पाक ने उनके अंदर हक को कुबूल करने का मिज़ाज रखा है उनके दिल में हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की मोहब्बत और तालीम डाल दें इसी तरह आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के आल आपके सहाबा अवलिया ए उम्मत और ओलामा ए दीन रदी अल्लाहू अन्हू अजमाइन की मोहब्बत और ताज़ीम सिखाएं जब 7 बरस की उम्र हो जाए तो नमाज़ पढ़वाएं तहारत वज़ू गुसल नमाज़ रोज़ा के मसाईल की तालीम दें अब उनकी उम्र आदतें इख्तेयार करने की है चुनांचे उन्हें सच बोलना सिखाए गाली गलौज करने गीबत करने और फेहश बातें बोलने से बचाएं अपने बहन भाइयों या दोस्तों से बुग्ज़ ओ हसद रखने ना दें उनके अंदर हिरस रियाकारी खुद पसंदी दुनिया की मोहब्बत पैदा होने ना दें बल्कि उनके अंदर इखलास शर्मो हया तवाज़ो अमानतदारी वफादारी इंसाफ पसंदी कनाअत ईसार कुर्बानी सखावत रहम दिली और बहादुरी जैसे सिफात पैदा करें और अगर वह बुराई की तरफ जा रहे हो तो उन्हें डराएं और मुनासिब सजा दें उन्हें बुरे बच्चों और बुरे बड़ों की सोहबत में ना रहने दें नौ साल की उमर से बेटी को अपने साथ या उसके भाइयों के साथ एक बिस्तर में ना सुलाएं ताके अभी से बच्ची को तालीम मिले के मर्द और औरत एक साथ नहीं रहते अब यहां से उसके हया और पर्दा की पुख्ता ज़हनियत और आदत शुरु होगी उसे हर ऐसी चीज़ से बचाएं जो बे हयाई और बे पर्दगी की तालीम देती है आला हज़रत ने फरमाया के कुतुबे इश्किया और गज़लियाते फिसकिया ना देखने दें! दोस्तों गौर करें जब कुतुबे इश्किया पढ़ने से लड़कियां बहक जाती हैं तो इश्को मुहब्बत बे हयाई बे पर्दगी की फिल्में और ड्रामे देख कर वो किस क़दर बिगड़ सकती हैं अंदाज़ा करें पढ़ने से ज़्यादा देखना असर करता है ईश्को मोहब्बत के बे हयाई और बे पर्दगी के अशआर पढ़ना जब बिगाड़ देता है तो किस्म क़िस्म की म्यूज़िक और तर्ज़ो तरन्नुम के साथ जब हमारी बेटियां फिल्मी गाने सुनती हैं तो उनकी हया कैसे बाकी रह सकती है

दोस्तों अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने बेटियों को सुरह नूर की तालीम देने का हुक्म फरमाया है लिहाजा अब बेटियों को सुरह नूर की तालीम दें जिसमे बे हयाई और बुरी बातों से बचने का हुक्म दिया गया है गर्ज़ सुरह नूर मैं अल्लाह तआला ने उन बातों को नाजिल फरमाया है जिनके मुताबिक़ औरत को ज़िन्दगी गुज़ारना है

हम अपनी बेटियों को यह तालीम दें जूंही वो बालेगा हो जाएं गैर तो गैर अपने खानदान के बालिग लड़कों से उनका पर्दा रखें उन्हें साथ रहने ना दें यही सख़्त निगरानी रखने की उमर है जब बेटी बालेगा हो जाए तो उसे शौहर की इताअत और फर्माबरदारी की तालीम दें घरेलू काम काज पकाना धोना सफाई करना सिखाएं कपड़े सीना सिखाएं ताके औरतों के कपड़े औरतें ही सियें हम अपनी बेटियों को सिखाएं के औरत खाना पकाने कपड़े धोने घर की सफाई करने और झाड़ू लगाने में अपनी तौहीन ना समझे बीवी और बेटियों को पालने के लिए मर्द क्या नही करते क्या कभी मर्दों ने एतराज़ किया के क्या हम यही सब करते रहें और हमारी बीवियां और बेटियां मजे से खाती रहें मुश्किलात हम उठाएं और मजे की चहार दिवारी की नवाबी ज़िन्दगी वो गुज़ारें कभी किसी बा गैरत मर्द ने ऐसा नहीं कहा इसलिए औरत को भी यह समझना चाहिए के घर की चहार दीवारी की नवाबी ज़िंदगी में उसको इज्ज़त ओ शान अता की गई है उसके निकाह मैं ताखीर न करे नेक घराने में नेक लड़के से उसका निकाह करदे अगर बाप बेटी को बचपन ही से इस्लामी सांचे में ढालेगा तो चुंके अल्लाह तआला ने औरत के अंदर बहुत हया रखी है इसलिए वो अपने शौहर के सामने भी बहुत झिझक और पसो पेश के बाद ही बे पर्दा होगी और अपने शौहर के अलावा किसी और के सामने बे बेपर्दा होने का तसव्वर भी उसके रोंगटे खड़े करने के लिए काफी होगा फिर हमारी बेटी कुरान के हुक्म , वकरना फि बुयुतेकुन्ना,

अपने घरों में रहो का मिसदाक होगी वह पांच वक्त नमाज़ी होगी नमाज़ छूटे तो बेचैन हो जाएगी रोज़  कुरान की तिलावत करने के बाद ही उसको अच्छा लगेगा और औरादो वज़ाईफ पढ़कर ही उसे राहत मिलेगी घरेलू कामकाज उसकी फितरत होंगे उसे वक्त गुज़ारने के लिए ना टीवी की हाजत होगी ना इत्मीनान और सुकून सुकून हासिल करने के लिए पारको और तफरीगहों में वक्त गुज़ारना होगा वह हंगामे और शोर-शराबे की नहीं बल्कि खामोशियों और सन्नाटों की आदी होगी अपनी इज़्ज़त ओ असमत और पाक दामनी की मुहाफिज़ होगी और मर्दों को भी अपनी पाक दामनी और पारसाई से हाथ धोने का मौका ना देगी

दोस्तों औलाद के बालिग होने तक उन्हें बुराइयों और गुनाहों के मवाके ना मिलने दे कोई बुरी आदत या सिफत उनके अंदर पुख्ता होने ना दें अगर हमने बालिग होने तक उनको संभाल लिया और उन्हें अल्लाह और रसूल की इताअत का आदि बना दिया अच्छी आदतों और अच्छी सिफात का हामिल बना दिया तो सारी ज़िन्दगी वह इसी पर कायम रहेंगे और हम अपनी ज़िम्मेदारी से सुबक दोस हो जाएंगे अगर आज का मुसलमान इस तरीके पर अपनी बेटियों की तरबीयत करेगा तो मुस्लिम मुआशरा एक सालेह मुआशरा बनेगा वरना आज की मगरीब ज़िदा दुनिया में मुसलमान तबाही और बर्बादी के दहाने पर पहुंचकर दुनिया में ज़िल्लत और रुसवाई और आखिरत में अज़ाब और इताब से दो-चार होगा अल्लाह तआला हम सबको नेक तौफीक अता फरमाए आमीन

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