क़यामुल लैल और नवाफिल की फज़ीलत
अस्सलामु अलैकुम दोस्तों आज मैं इस पोस्ट में क़यामुल लैल यानी शब बेदारी, की फज़ीलत व बरकत के बारे में बताने वाला हूं,।
दोस्तों: अल्लाह तआला ने रोज़ाना पांच नमाज़ें अपने मोमिन बंदों पर फर्ज़ फरमाया है, जो बंदा ए मोमिन इन नमाज़ों की पाबंदी करता है, अल्लाह तआला उससे खुश होता है, और उसके गुनाहों को माफ फरमा देता है, पंच वक्ता फर्ज़ नमाज़ों के अलावा, नफ़िल नमाज़ें ऐसी इबादत व बंदगी हैं, जिनके सबब अल्लाह तआला रातों को उठकर नफ़िल नमाज़ें पढ़ने वाले को अपनी बारगाह का क़ुर्ब अता फरमाता है, और आला मक़ाम और बलंद दर्जात पर फाइज़ फरमा देता है। नफ़िल नमाज़ों के ज़रिया रातों को जागने वाले पर, अल्लाह का खुसूसी करम होता है, और बे शुमार फ़ज़्लो कमाल और अजरो सवाब अता फरमाता है, रातों को जागकर इबादत व बंदगी करने वाले का ज़िक्र अल्लाह तआला ने क़ुरान मजीद में फरमाया है, चुनांचे इरशादे रब्बानी है,
والذين يبيتون لربهم سجدوا قياما
तर्जमा: और वह जो अपने रब के लिए सजदे और क़्याम की हालत में रात गुज़ारते हैं।
हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह रदी अल्लाहु अन्हू से रिवायत है, के रसूले खुदा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया,
عليكم بقيام الليل فانه دأب الصالحين قبلكم وقربة الى الله و منهاة عن الاثم وتكفير للسيئات و مطردة للداء عن الجسد ۔ (کنز العمال ج ۷ ص ۷۸۶ )
तर्जमा: रात को जागकर इबादत किया करो, के तुमसे पहले के सालेहीन (नेक लोगों) का तरीका और मामूल है, अल्लाह तआला की बारगाह में कुर्बो नज़दीकी का ज़रिया और गुनाहों से बाज़ रहने का सबब है, गुनाहों का कफ्फारा और जिस्मानी मर्ज़ का इलाज है।
عن ابن عمر قال قال رسول الله صل الله عليكم بصلوة الليل ولو ركعة واحدة فان صلاة الليل منهاة عن الاثم وتطفئى غضب الرب تبارك وتعالى وتدفع عن اهلها حر النار يوم القيامة وان ابغض الخلق الى الله ثلاثة الرجل يكثر النوم بالنهار ولم يصل من الليل شيئا والرجل يكثر الاكل ولا يسمى الله على طعامه ولا يحمده والرجل يكثر الضحك من غير عجب فان كثرة الضحك تميت القلب وتورث الفقر ( مسند الفردوس ج ۳ ص ۱۸ کنز العمال حدیث نمبر ۲۱۴۳۱)
तर्जमा: हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने उमर रदी अल्लाहु अन्हुमा से मर्वी है, के रसूले अक्दस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, रात की नफिल नमाज़ों की पाबंदी करो, अगरचे एक रकात ही पढ़ो, (यानी रात की तन्हाई में कुछ इबादत ज़रूर करो) क्योंकि रात में नमाज़ पढ़ना गुनाहों से रोकता है, और अल्लाह तआला की नाराज़गी की आग ठंडी हो जाती है, शब बेदारी करने वाला कयामत के दिन आतिशे दोज़ख की गर्मी से महफूज़ रहेगा। और अल्लाह तआला के नज़दीक मखलूक में तीन लोग बहुत ना पसंद हैं।
1, वह शख्स जो दिन में ज़्यादा सोता है, और रात में कुछ भी नमाज़ न पढ़े।
2, जो ज़्यादा खाए और बिस्मिल्लाह कहकर न खाए, और खाना से फारिग होने के बाद अल्हम्दु लिल्लाह न कहे।
3, ज़्यादा हंसने वाला, क्योंकि ज़्यादा हंसना दिल को मुर्दा कर देता है, और मोहताजी का सबब होता है।
عن جابر بن عبد الله قال قال رسول الله صلى الله عليكم بصلاة الليل فانه قربة لكم الى ربكم عز وجل وان الله يباهي بكم ملائكته ويحببكم الى خلقه ويدفع عنكم البلاء و ميتة السوء و يطفئى عنكم حر النار ( مسند الفردوس ج ۳ ص ۱۸، کنز العمال حدیث نمبر ۲۱۴۲۸)
तर्जमा: हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह रदी अल्लाहु अन्हुमा से मर्वी है, के रसूले अक्दस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, रात में नफ़िल नमाज़ें पढ़ा करो, क्योंकि रात में नमाज़ पढ़ना तुम्हें, तुम्हारे रब से करीब कर देगा, और अल्लाह तआला अपने फरिश्तों में तुम पर फख्र का इज़हार फरमाता है, और तुम्हें मखलूक की नज़र में प्यारा बना देगा, और तुमसे बलाएं, और बुरी मौत को टाल देगा, और तुमसे आग की गर्मी बुझा देगा।
हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह रदी अल्लाहु अन्हू से मर्वी है के रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया,,
ما اتخذ الله ابرهيم خليلا الا لاطعامه الطعام و افشائه السلام م و صلاته بالليل والناس نيام - ( تنبیہ الغافلین ص ۲۶۲)
यानी अल्लाह तआला ने हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को जो अपना खलील बनाया, दोस्ती के खास मकाम से नवाज़ा, तो उन्हें यह मकाम इस अदा पर मिला के भूकों को खाना खिलाते थे, हर मुसलमान को सलाम करते थे, और उनका यह मामूल था, के जब सारी दुनिया सो जाती, तो आप रात के सन्नाटे में अपने रब की इबादत करते, पूरी रात खुदा वन्द क़ुद्दूस की बंदगी में गुज़ार देते।
हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह रदी अल्लाहु अन्हू से मर्वी है के प्यारे आका सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत उमर बिन खत्ताब से फरमाया,
ناد يا عمر في الناس انه من مات يعبد الله مخلصا من قلبه ادخله الله الجنة وحرم على النار ( مجمع الزوائدج اص۳۰)
यानी ए उमर लोगों में ऐलान करदो, के जो सच्चे दिल के साथ अल्लाह तआला की इबादत करता हुआ दुनिया से पर्दा कर जाए, तो अल्लाह तआला उसे जन्नत में दाखिल फरमा देगा, और जहन्नम की आग उसके लिए हराम फरमा देगा।
यह बड़ी सआदत व खुश नसीबी की बात है, उस इंसान के लिए जिसे अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की इबादत व बंदगी और शब बेदारी की तौफीक़ मिल जाए, और खास तौर पर जिसे रमज़ान उल मुबारक की बीस रकात अदा करने और रब के हुज़ूर क़याम व रुकू और सजदा की तौफीक़ मिलती है। यह तो बीस रकात नमाज़ तरावीह है, जिसे सिर्फ दो रकात पढ़ने की तौफीक मिल जाए, उसके लिए इससे बढ़कर, और सआदत की कोई बात नहीं हो सकती, चुनांचे, हुज़ूर सरवरे काएनात सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया,
ما اعطى عبد عطاء خيرا من ان يؤذن له فى ركعتين يصليهما - ( تنبيه الغافلين ص ۱۵۹)
यानी किसी शख़्स को इससे बढ़कर और कोई तोहफा अता नहीं किया गया, जिसे दो रकात नमाज़ पढ़ने की इजाज़त मिल जाए। यानी दो रकात नमाज़ पढ़ने की इजाज़त ऐसा इनाम व तोहफा है, के इसके मुकाबले सारे तोहफे हीच हैं, और तमाम तोहफों से बढ़कर तोहफा दो रकात नमाज़ की तौफीक है।
हज़रत अबू उमामा रदी अल्लाहु अन्हू से मर्वी है के रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया,
ما اوتي عبد في هذه الدنيا خيرا له من ان يوذن له في الدنيا ركعتين ۔ (کنز العمال ج ۷ ص ۷۷۱ )
तर्जमा: दुनिया में किसी शख़्स को इससे बेहतर कोई भलाई नहीं दी गई के उसे दुनिया में दो रकात नमाज़ पढ़ने की इजाज़त मिल जाए।
हज़रत इमाम मुहम्मद बिन सीरीन रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं,
لو خيرت بين ركعتين وبين الجنة لا خترت الركعتين على الجنة لان في الركعتين رضا الله تعالى و في الجنة رضائی ۔ (ایضا )
यानी मुझे इस बात का इख्तियार दिया जाए, के या तो दो रकात नमाज़ पढ़ना इख्तियार करो, या जन्नत इख्तियार करो, तो में जन्नत को इख्तियार न करके, दो रकात नमाज़ पढ़ने को इख्तियार करुंगा, क्योंकि दो रकात नमाज़ पढ़ने में, मेरे रब की रज़ा व ख़ुशनूदी है, जबकि जन्नत में मेरी रज़ा है।
एक हदीस में मेरे आका करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया,
من صلى ركعتين مقبلا على الله بقلبه خرج من ذنوبه كيوم ولدته امه -
यानी जो शख्स अल्लाह तआला की तरफ कामिल तौर पर मु-त-वज्जह होकर पूरा दिल लगाकर, दो रकात नमाज़ अदा करता है, तो वह शख्स अपने गुनाहों से इस तरह निकल जाता है, जिस तरह वह अपनी मां के पेट से पैदा हुआ था। इस हदीस पाक से मालूम हुआ के वही नमाज़ रब तआला की बारगाह में मकबूल होती है, जो खुशूअ व ख़ुज़ूअ के साथ और अल्लाह की रज़ा के लिए पढ़ी जाती है। चुनांचे हुज़ूर रहमते आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया,
ما من مسلم يتوضأ فيحسن وضوءه ثم يقوم فيصلى ركعتين مقبلا عليهما بقلبه و وجهه الا وجبت له الجنة - (مسلم
यानी जो मुसलमान अच्छी तरह वज़ू करता है, फिर दो रकात नमाज़ पढ़ने के लिए खड़ा होता है, और पूरी तवज्जह के साथ अदा करता है, तो उसके लिए जन्नत वाजिब हो जाती है।
दोस्तों: यह फ़ज़ीलत व सवाब नफ़िल नमाज़ों का है, तो अब अंदाज़ा लगाएं, के फर्ज़ नमाज़ों की पाबंदी करना, और इन नमाज़ों को, इनके वक्तों पर अदा करने का कितना सवाब होगा।
हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया,
ان من حافظ على هؤلاء الصلوت الخمس المكتوبات فى جماعة كان اول من يجوز على الصراط كالبرق اللامع و حشره الله في أول زمرة من التابعين وكان له في كل يوم و ليلة حافظ عليهن كاجر الف شهيد قتلوا في سبيل الله ـ ( مجمع الزوائد ج ۲ ص ۱۲۷ ، انجم الا وسط حدیث نمبر ۶۶۴۱)
तर्जमा: जो इन पंच वक्ता फर्ज़ नमाज़ों की जमाअत के साथ पाबंदी करेगा, तो सबसे पहले, चमकती, बिजली, की तरह पुल सिरात से गुज़रने वाला होगा, अल्लाह तआला उसे जन्नत में जाने वाले, पहले गिरोह के साथ उसे उठाएगा, और हर रोज़ की नमाज़ की पाबंदी के बदले, उसे एक हज़ार ऐसे शहीदों का सवाब अता फरमाएगा, जिन्होंने अपना सर अल्लाह की राह में कटवाया होगा।
मगर आज मुसलमानों की हालत यह है के नफिल तो नफ़िल फर्ज़ नमाज़ों से कोसों दूर हो गए हैं, मस्जिदों को वीरान कर दिए, अल्लाह के घर से अज़ान की सदाएं आ रही हैं, और मुसलमान कान बंद किए हुए हैं हफ्ता में एक दिन जुमा की नमाज़, या साल में ईद व बकरा ईद की नमाज़ पढ़ लेते हैं, तो समझते हैं के अब मज़ीद नमाज़ों की ज़रूरत ही नहीं, मआज़ल्लाह।
वह एक सजदा जिसे तू गिराँ समझता है,
हज़ार सजदों से देता है आदमी को निजात।
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