Baad karbala यज़ीद और यज़ीदियों का हाल

इकसठ हिजरी में वाक़िआ करबला पेश आया और चौंसठ हिजरी में तीन साल के बाद यज़ीद पकड़ा गया।

करबला में शहादत 

नह्मदुहु व नुसल्ली अला रसूलिहिल करीम , अम्मा बअदु फ अऊज़ु बिल्लाहि मिनश शैतानिर रहीम . बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम व ला तहसबन्नल्लाहा ग़ाफ़िलन अम्मा यअमलुज़ ज़ालिमून
(इब्राहीम : 42) सदक़ल्लाहुल अलिय्युल अज़ीम .
बअद अज़ हम्द व सलवत ... इंतिहाई वाजिबुल इहतिराम मोइज़्ज़ व मोहतशम लाइक़ सद तकरीम इज़्ज़त मआब बुज़ुर्गो, दोस्तो और नौ जवान साथियो! ये हक़ीक़त है कि हर सलीमुत तबअ शख़्स हुस्न-ए-किरदार हुस्न-ए-अख़लाक़ से मोहब्बत करता है। ज़ुल्म व ज़्यादती फिस्क व फुजूर से नफ़रत करता है। अच्छे अमाल, अच्छे कारनामों का ज़िक्र करने और सुनने को पसन्द करता है, बुरे अमाल, ज़ालिमाना रवैये को ना पसन्द करता है। दीन इस्लाम इंसानी फ़ितरत के ऐन मुवाफिक़ है। जब नमरूद, हामान, शद्दाद और फिरऔन का ज़िक्र आजाए तो दिल उनसे नफ़रत करने लगता है इस लिए कि ये अल्लाह के दुश्मन, काफ़िर, ज़ालिम, जाबिर, फ़ासिक़ और फ़ाजिर थे उनकी ज़ुल्म व ज़्यादती फ़िस्क़ व फुजूर, बे-दीनी, बद-अमली किताबुल्लाह से वाज़ेह है. हर मुस्लिम उनसे नफ़रत करता है इसके बरअक्स अंबिया, औलिया, सुलहा, शुहदा और अच्छे लोगों से उल्फ़त व मोहब्बत करता है और तालीमात इस्लामिया भी उन्ही बातों का दर्स देती है . इमाम हुसैन व अहल-ए-बैत उज़्ज़ाम से मोहब्बत करना और यज़ीद और यज़ीदियों से नफ़रत करना ही हक़ परस्ती है।

जुल्म और इंसाफ

बिरादरान इस्लाम ! आज मुहर्रम शरीफ़ का तीसरा जुमा है, जो आयत करीमा तिलावत करने की सआदत हासिल की इरशाद रब्बानी है : व ला तहसबन्नल्लाहा ग़ाफ़िलन अम्मा यअमलुज़ ज़ालिमून और हर गिज़ अल्लाह तआला को बे-ख़बर न जानना ज़ालिमों के काम से। अल्लाह तआला को किसी तरह भी ज़ुल्म पसन्द नहीं है।ज़ालिम हमेशा सड़क पर कुत्ते की मौत मरते हैं और जहन्नम रसीद हो जाते जब कोई ज़ालिम ज़ुल्म करता है तो इन्तिक़ाम क़ुदरत में गिरफ़्तार हो जाता है। ज़ुल्म हमेशा अपने इंजाम को पहुँचता है । इन्ना बत्शा रब्बिका लशदीद - (बुरूज) बे शक्क तेरे रब की पकड़ बड़ी सख़्त है। अल्लाह तआला पकड़ता देर से है मगर सख़्त पकड़ता है जब किसी को पकड़ता है तो कोई उसकी गिरफ़्त से छुड़ा नहीं सकता । अल्लाह तआला अदल के पलड़े को झुकने नहीं देता जैसा ज़ालिम ज़ुल्म करता है अल्लाह तआला वैसा ही उससे बदला लेता है। ज़ुल्म इंसानों पर तो दर-किनार हैवानों पर भी ज़ुल्म नहीं करना चाहिए।:

जानवरों पर ज़ुल्म की सज़ा

बिरादरान इस्लाम ! हदीस शरीफ़ में मौजूद है हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इरशाद फरमाते हैं बनी इसराईल में एक औरत थी उसने एक बिल्ली पाली हुई थी वह औरत अपने रिश्तेदारों से मिलने गई और बिल्ली को रस्सी से बाँध गई। उस औरत का ख़याल था कि जल्दी वापस आ जाऊँगी लेकिन तीन दिन तक वापस न आई। अगर बिल्ली आज़ाद होती तो कहीं से खा पी कर गुज़ारा कर लेती लेकिन वह रस्सी से बंधी रही तीन दिन में बिल्ली भूख और प्यास से तड़प तड़प कर मर गई, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम फरमाते हैं जिस औरत ने बिल्ली को बाँधा था जब वह मर गई तो अल्लाह तआला ने उस औरत पर क़यामत तक बिल्ली का अज़ाब मुसल्लत कर दिया वह बिल्ली क़यामत तक उस औरत के जिस्म को नौचती और खाती रहेगी। (सहीह अल-बुख़ारी : 3482)
बिरादरान इस्लाम ! एक हदीस शरीफ़ में आता है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम फरमाते हैं एक बदकार औरत कहीं सफ़र पर जा रही थी एक कुत्ते को देखा कि प्यास की वजह से उसकी ज़बान बाहर निकली हुई थी। बुरा हाल था , मरने के क़रीब पहुँचा हुआ था। उस औरत को देख कर कुत्ते पर रहम आया। कुआँ सामने है लेकिन उस पर रस्सी और डोल नहीं है। उस औरत ने अपना दुपट्टा उतारा और दुपट्टे के साथ जूती को बाँध कर कुएँ में डाला और पानी निकाल कर कुत्ते को पिलाया जब कुत्ते की प्यास बुझी इधर कुत्ते को होश आई उधर अल्लाह तआला की रहमत जोश में आई उस औरत को बख़्श दिया और अल्लाह तआला ने उसे जन्नत अता करदी ( मुस्लिम: 2245)

यज़ीद की मौत

बिरादरान-ए-इस्लाम ! इकसठ हिजरी में वाक़िआ करबला पेश आया और चौंसठ हिजरी में तीन साल के बाद यज़ीद पकड़ा गया। वज़ीर, गवर्नर और फ़ौजें सब मौजूद हैं और यज़ीद उन सब के सामने इन्तिक़ाम क़ुदरत में गिरफ़्तार हुआ। कोई सोच भी नहीं सकता था कि क़ुदरत की पकड़ इतनी जल्दी आएगी और इतनी सख़्त आएगी यज़ीद पर अचानक लक़वे का दौरा पड़ा, तड़पने लग गया, हाथ पाँव ज़ोर ज़ोर से ज़मीन पर मारने लग गया। अल-अतश अल-अतश कहकर पानी माँग रहा था। यज़ीद के ग़ुलाम , वज़ीर, गवर्नर दौड़ कर पानी लाए, यज़ीद के मुँह में डाला लेकिन पानी का एक क़तरा भी गले से नीचे नहीं उतरा, जिसने साक़ी-ए-कौसर के नवासों पर पानी बन्द किया था उसके गले में पानी उतर कैसे सकता है। तारीख़ इस पर गवाह है जिन्होंने करबला में सरकार मदीना के नवासों को पानी पीने नहीं दिया वह ख़ुद दुनिया से प्यासे गए। क़यामत तक प्यासे तड़पते रहेंगे बल्कि हमेशा प्यासे रहेंगे। यज़ीद मर गया फनाफिन्नार हो गया। यज़ीद के बाद उसका बेटा मुआविया इब्न यज़ीद बीमार था गवर्नरों और वज़ीरों की राय से उसे नामज़द कर दिया गया लेकिन मुआविया इब्न यज़ीद की बीमारी दिन ब दिन बढ़ती गई चालीस दिन के बाद वह भी मर गया।

इब्न ज़ियाद का अंजाम

बिरादरान-ए-इस्लाम ! वाक़िआ करबला के छह साल बाद उबैदुल्लाह इब्न ज़ियाद भी पकड़ा गया। ये कूफ़े का गवर्नर था, बड़ा ज़ालिम इंसान था। तारीख़ करबला से पता चलता है वाक़िआ करबला में मर्कज़ी किरदार उबैदुल्लाह इब्न ज़ियाद का था। इब्न ज़ियाद पकड़ा गया, मुख़्तार सक़फ़ी जो लश्कर यज़ीद के लिए क़हर-ए-इलाही बन कर आया। अल्लाह तआला ने यज़ीदी फ़ौजों से इन्तिक़ाम के लिए मुख़्तार सक़फ़ी को मुन्तख़िब किया। बाज़ लोग मुख़्तार सक़फ़ी की बहुत तारीफ़ करते हैं हम अहल-ए-सुन्नत व जमाअत मुख़्तार सक़फ़ी की तारीफ़ नहीं करते क्योंकि मुख़्तार सक़फ़ी ने आख़िरी उम्र में नबूव्तव का दावा किया था और कहा कि मैं नबी हूँ। मुर्तद हो गया , दायरा ईमान से ख़ारिज हो गया। अहल-ए-सुन्नत के नज़दीक मुख़्तार सक़फ़ी जहन्नमी है।
अहबाब ज़ी वक़ार मुहर्रम शरीफ़ का महीना था और मुहर्रम की दस तारीख़ थी । जुमअतुल मुबारक का दिन था और नमाज़ जुमा ही का वक़्त था। दरिया-ए-फ़ुरात का किनारा था मुख़्तार सक़फ़ी की फ़ौजों से इब्न ज़ियाद की फ़ौजों का मुक़ाबला हुआ शाम के वक़्त इब्न ज़ियाद की फ़ौजों को शिकस्त हुई। इब्न ज़ियाद की फ़ौजों की लाशों से मैदान-ए-जंग भरा पड़ा था इब्न ज़ियाद पकड़ा गया और बुरी तरह क़त्ल कर दिया गया।

अम्रू बिन सअद की सज़ा

बिरादरान-ए-इस्लाम ! मैदान-ए-करबला में अम्रू बिन सअद लश्कर यज़ीद का कमांडर-ए-आन्चीफ़ था मुख़्तार बिन उबैद सक़फ़ी ने अम्रू बिन सअद को बुलाया , इब्न सअद का बेटा हफ़्स हाज़िर हुआ मुख़्तार ने पूछा तेरा बाप क्यों नहीं आया। हफ़्स ने जवाब दिया अब वह गोशा नशीं हो गया है। घर से बाहर नहीं निकलता बस अल्लाह अल्लाह करता रहता है। तस्बीह व तहलील करता रहता है। मुख़्तार ने कहा अब वह {रे} की हुकूमत कहाँ है। जिस की मोहब्बत में नवासा रसूल को शहीद किया। हज़रत इमाम हुसैन की शहादत के दिन क्यों गोशा नशीं न हुआ। अम्रू बिन सअद को बुलवाया और जल्लाद को हुक्म दिया उसकी आँखों के सामने उसके बेटे कोक़त्ल करो वह अम्रू बिन सअद ने नौजवान बेटे की ज़िंदगी की हाथ जोड़ कर भीख माँगी। मुख़्तार सक़फ़ी ने अम्रू बिन सअद को कहा। ज़ालिम क्या तुझे अली अकबर पर रहम आया था। अली असग़र पर औन व मुहम्मद पर रहम आया था। अब तेरे बेटे पर कौन रहम करे जल्लाद ने इब्न सअद के बेटे की गर्दन उड़ादी उसके बाद मुख़्तार सक़फ़ी ने हुक्म दिया इब्न सअद को भी अम्रू बिन सअद अपने इंजाम को पहुँचा।

शिमर का अंजाम

अहबाब ज़ी वक़ार ! शिमर जिसने हज़रत इमाम हुसैन को शहीद किया था वह शिमर मुख़्तार सक़फ़ी के सामने लाया गया मुख़्तार ने हुक्म दिया कि पहले इस ज़ालिम के दोनों बाज़ू काट दो। जल्लाद ने दोनों बाज़ू काट दिए फिर मुख़्तार ने हुक्म दिया उसकी दोनों टाँगें काट दो जल्लाद ने दोनों टाँगें काट दीं। मुख़्तार सक़फ़ी ने हुक्म दिया कि शिमर की लाश को घोड़ों के समों से रौंदा जाए शिमर की हड्डियाँ और पसलियाँ चकना चूर हो गईं। मुख़्तार ने हुक्म दिया उसकी लाश को आग में फेंक कर नज़र-ए-आतिश करो। शिमर ज़ालिम की लाश को आग में जला दिया गया। यूँ वह अपने इंजाम को पहुँच गया। इसी तरह लश्कर यज़ीद के सिपाही एक एक कर के सब अपने इंजाम को पहुँचे। ज़ालिम जब इन्तिक़ाम क़ुदरत में गिरफ़्तार होता है तो अकेले नहीं पकड़ा जाता उसके ज़ुल्म में जितने शामिल हुए हैं सब पकड़े जाते हैं। नमरूद अकेला नहीं पकड़ा गया बल्कि अपनी सारी फ़ौजों के साथ पकड़ा गया। फिरऔन अकेला नहीं पकड़ा गया बल्कि अपनी तमाम फ़ौजों के साथ पकड़ा गया। यज़ीद अकेला नहीं पकड़ा गया बल्कि अपने सारे जरनैलों, गवर्नरों, वज़ीरों मुशीरों के साथ पकड़ा गया उसकी फ़ौज के तमाम सिपाही एक एक कर के क़त्ल हो गए । आज इन ज़ालिमों के सरतन से जुदा कर के गली कूचों में फिराए जा रहे हैं और दुनिया में उनकी बेकसी पर अफ़सोस करने वाला कोई नहीं। हर इंसान मलामत करता है। हक़ीर निगाहों से देखता है इन ज़ालिमों की ज़िल्लत पर और रुसवाई की मौत पर ख़ुश होता है। इसके बाद मुख़्तार ने आम हुक्म जारी किया कि करबला में जो जो शख़्स हज़रत इमाम हुसैन के मुक़ाबले पर था वह जहाँ पाया जाए बे-दर्दी के साथ क़त्ल कर दिया जाए। मुख़्तार के सिपाहियों ने उनका तअक़्क़ुब किया जिस को जहाँ पाया क़त्ल किया , लाशें जला दीं, घर लूट लिए, खोली बिन यज़ीद को मुख़्तार के पास लाया गया, मुख़्तार ने पहले हाथ कटवाए फिर आग में जला दिया। सब को तरह तरह के अज़ाबों के साथ हलाक किया गया। इब्न ज़ियाद और उसके जरनैलों के सरकाट कर कूफ़े के गवर्नर हाउस में भेजे गए । मुख़्तार सक़फ़ी तख़्त पर बैठा हुआ था इब्न ज़ियाद और बाक़ी जरनैलों के सर मुख़्तार सक़फ़ी के सामने पड़े हुए हैं। छह साल पहले हज़रत इमाम हुसैन का सर और दूसरे शुहदा के सरउसी जगह मौजूद हैं लेकिन उन शुहदा के सरों पर अनवार की बारिश हो रही थी लोग ज़ियारत कर रहे थे और ज़बान से कह रहे थे ये जन्नती नौजवानों के सरदार हैं। वाक़िआ कर बला इस बात का एलान कर रहा है कभी भूल कर भी किसी पर ज़ुल्म न करना। मज़लूम बन जाना कभी ज़ालिम न बनना, मज़लूम के साथ ख़ुदा होता है ज़ालिम पर ख़ुदा का क़हर नाज़िल होता है। ज़ालिम एक दिन पकड़ा जाता है।
बिरादरान-ए-इस्लाम ! यज़ीद और यज़ीद के हर सिपाही के बेटे ख़त्म हो गए और हज़रत इमाम हुसैन का एक ही बेटा इमाम ज़ैनुल आबिदीन बचा। आज तक सैयद बाक़ी हैं क़यामत तक बाक़ी रहेंगे। हज़रत अब्दुल्लाह बिन हंज़ला गुसेलुल मलाइका फरमाते हैं कि ख़ुदा की क़सम हमने यज़ीद की बैअत उस वक़्त तोड़ी जब कि हमें ये ख़ौफ़ हुआ कहीं उसकी बदकारियों की वजह से हम पर आसमान से पत्थर न बरसने लगें बिला शुब्बा वह माओं, बेटियों और बहनों से निकाह करता , शराब पीता और नमाज़ नहीं पढ़ता था। ( तारीख़ अल-ख़ुलफ़ा )
जब यज़ीद ने देखा मदीने और मक्के वाले मेरे ख़िलाफ़ हो गए हैं तो उसने मुस्लिम बिन उक़बा को बीस हज़ार का लश्कर दे कर मदीना और मक्का पर हमला करने के लिए भेजा लश्कर ने मदीने पहुँच कर वह तूफ़ान बद तमीज़ी किया जिस के तसव्वुर से रूह तड़प जाती है। क़त्ल व ग़ारत , लूट मार, आबरूरेज़ी की वह गर्म बाज़ारी की के तक़रीबन दस हज़ार सहाबा कराम को शहीद किया। यज़ीदी लश्कर ने तीन दिन के लिए मदीने को मुबाह करार दे कर दरिंदगी का मुज़ाहिरा किया। यज़ीदी लश्कर ने मस्जिद नबवी के सतूनों से घोड़े बाँधे। तीन दिनों में मस्जिद में कोई नमाज़ के लिए नहीं आया। हज़रत सईद बिन मुसैयब मजनून बन कर मस्जिद नबवी में हाज़िर रहे, फरमाते हैं , नमाज़ के वक़्त रौज़ा मुक़द्दसा से अज़ान, इक़ामत और जमाअत के होने की आवाज़ सुनता था। और मैं भी नमाज़ अदा कर लेता था।
बिरादरान इस्लाम सरकार मदीना ने फरमाया जो शख़्स अहल मदीना के साथ बुराई का इरादा करेगा अल्लाह तआला उस को उस तरह पिघलाएगा जिस तरह नमक पानी में घुल जाता है। (मुस्लिम शरीफ : 3361)
हदीस शरीफ़ से मालूम हुआ जो शख़्स अहल मदीना के साथ बुराई का इरादा करेगा। अल्लाह तआला उस को तबाह व बर्बाद करेगा।

यज़ीद के जुर्मों की तफ्सील

बिरादरान-ए-मिल्लत यज़ीद का कोई एक जुर्म नहीं। यज़ीद बैक वक़्त अहल-ए-बैत का क़ातिल है। यज़ीद बैक वक़्त सहाबा कराम का क़ातिल है। यज़ीद बैक वक़्त बैतुल्लाह शरीफ का मुजरिम है। यज़ीद बैक वक़्त सरकार मदीना का मुजरिम और गुस्ताख़ है। यज़ीद की हमदर्दी करने वालो और उस को जन्नती कहने वालो तुम यज़ीद के किस किस जुर्म पर परदे डालोगे।यज़ीद की ख़ूबियाँ बयान करने वालों यज़ीद में हज़ारों ख़ूबियाँ हों लेकिन करबला के मैदान में जो अहल-ए-बैत के शहज़ादों का ख़ून हुआ है। उस ख़ून की एक बूँद से यज़ीद की सारी ख़ूबियों पर परदे पड़ जाएँगे। मैं इस बात का क़ाइल हूँ कि यज़ीद इस्लाम मानता था। हज़रत इमाम हुसैन भी इस्लाम मानते थे लेकिन फ़र्क़ यह है यज़ीद अपनी ख़्वाहिशात पर चलने को इस्लाम कहता था। हज़रत इमाम हुसैन क़ुरान के मुताबिक़ अपनी ख़्वाहिशात को ढाल देने को इस्लाम कहते थे। इमाम हुसैन का इस्लाम क्या है? इस्लाम की ख़ातिर वतन, दौलत और अगर ज़रूरत पड़े तो मासूम बच्चों को भी क़ुरबान कर देना यह इमाम हुसैन का इस्लाम है, और यज़ीद का इस्लाम क्या है। हुकूमत , दौलत और बच्चों की ख़ातिर इस्लाम को क़ुरबान कर देना यह यज़ीद का इस्लाम है। इस्लाम की ख़ातिर सब कुछ क़ुरबान कर देना यह करबला के शहीद का इस्लाम है। कुर्सी और इक़्तेदार की ख़ातिर इस्लाम को क़ुरबान कर देना यह यज़ीद का इस्लाम है। दोनों इस्लाम आज भी मौजूद हैं। इस्लाम का मज़ाक उड़ाने वाले भी अपने आप को मुसलमान कहते हैं। सारी रात फ़िल्में देखने वाले और सारी रात गाने सुनने वाले भी अपने आप को सच्चा मुसलमान कहते हैं। इन नाचने वालों और गाना गाने वालों से पूछिए अगर फ़िल्में ड्रामे देखने का नाम इस्लाम है तो फिर बताओ तुम्हारे इस्लाम और यज़ीद के इस्लाम में फ़र्क़ क्या है। यह तमाम बदमाश , अय्याश, डाकू, चोर और मुसलमानों के ख़ून से होली खेलने वाले ज़ालिम क़ातिल यह सब यज़ीद के सिपाही हैं। हर बुराई में मलव्वस होने वाला यज़ीद का सिपाही है और हर ख़ूबी में जान क़ुरबान करने वाला हज़रत इमाम हुसैन का सच्चा पक्का ग़ुलाम है।
बिरादरान-ए-इस्लाम लश्कर ए यज़ीद ने मक्का मुकर्रमा पर हमला किया चौंसठ दिन तक मुहासिरा कर के लोगों को क़त्ल करते रहे। मंजनीक़ों के ज़रिए इतनी संगबारी की कि काबे का सहन भर गया। इन्तिहाई दरिंदगी का मुज़ाहिरा किया। हरम शरीफ के रहने वाले दो महीने तक सख़्त मुसीबत में मुब्तला रहे। काबा शरीफ कई दिन तक बे-लिबास रहा, छत जल गई । यह वाक़िआत रबीउल अव्वल 64 हिजरी के शुरू में हुए। अभी जंग जारी थी यज़ीद पलीद के मरने की ख़बर आई हज़रत अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर ने पुकार कर कहा यज़ीदी लश्कर तुम्हारा ताग़ूत हलाक हो गया, यज़ीदी लश्कर की हिम्मत ख़त्म हो गई, हौसले पस्त हो गए, मक्के वाले यज़ीदी लश्कर पर टूट पड़े, यज़ीदी लश्कर भाग गया और अहल मक्का को उनके ज़ुल्म से निजात मिली। बदबख़्त यज़ीद ने तक़रीबन साढ़े तीन बरस हुकूमत की और शहर हम्स में 15 रबीउल अव्वल 64 हिजरी को उन्तालीस (39) साल की उम्र में आँतों के मर्ज़ में मुब्तला हो कर तड़पता बलकता रहा और मौत को याद करता रहा लेकिन जल्द मौत नहीं आई, मर्ज़ की वजह से जिस्म से बदबू आती रही इसी हालत में वह हलाक हो गया। नापाक और नजिस थी तबीअत यज़ीद की , गुस्ताख़ व बे-अदब थी जबलत यज़ीद की. हद से गुज़र चुकी थी शरारत यज़ीद की, मशहूर हो चुकी थी ख़ियाशत यज़ीद की .यज़ीद की हलाकत के बाद उसके बेटे मुआविया बिन यज़ीद को तख़्त नशीनी के लिए कहा गया तो उसने यह कहते हुए तख़्त पर बैठने से इन्कार कर दिया कि जो कुर्सी अहल-ए-बैत उज़्ज़ाम के ख़ून से रंगी हो उस पर मैं किस तरह बैठ सकता हूँ?। यज़ीद की दास्ताँ यहीं पर ख़त्म हो गई , क़यामत तक उसे दुनिया जाबिर, ज़ालिम, फ़ासिक़ के नाम से याद करती है।
जब सर मेहशर पूछेंगे बूला के सामने क्या जवाब जुर्म दो गे तुम ख़ुदा के सामने
अल्लाह तआला हमें अहल-ए-बैत उज़्ज़ाम से मोहब्बत की तौफ़ीक़ अता फरमाए आमीन।
व मा अलैना इल्लल बलाग़ुल मुबीन

About the author

JawazBook
JawazBook एक सुन्नी इस्लामी ब्लॉग है, जहाँ हम हिंदी भाषा में कुरआन, हदीस, और सुन्नत की रौशनी में तैयार किए गए मज़ामीन पेश करते हैं। यहाँ आपको मिलेंगे मुस्तनद और बेहतरीन इस्लामी मज़ामीन।

एक टिप्पणी भेजें

please do not enter any spam link in the comment box.