इस्लाम एक मुकम्मल और आफ़ाक़ी मज़हब है, जो इंसान की हर राह को रोशन करता है। इस्लाम में हलाल और हराम को वाज़ेह तौर पर बयान किया गया है। अल्लाह तआला ने अपने मुक़द्दस कलाम कुरान-ए-पाक और हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अहादीस-ए-मुबारका में जहाँ हलाल रिज़्क़ की अहमियत को बयान किया, वहीं हराम की सख्ती से मुज़म्मत भी फ़रमाई। एक मोमिन केलिए हलाल रोज़ी न सिर्फ़ दीन-ओ-दुनिया में कामयाबी की ज़मानत है, बल्के आख़िरत में भी निजात का बाइस है।
अल्लाह के मुक़द्दस कलाम कुरान-ए-अज़ीम को देखें, अहादीस-ए-मुबारका को पढ़ें और मुफस्सिरीन की तफ़्सीर और उलमा-ए-किराम के अक़्वाल का मुतालेआ करें तो आप इस नतीजे पर पहुँचेंगे कि जिस तरह अल्लाह तआला और उस के रसूल हुज़ूर शहनशाह-ए-मदीना सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पाकीज़ा और हलाल की फज़ीलत बयान किया है, अहमियत बयान किया है, तरगीब बयान फ़रमाया है और रिज़्क-ए-हलाल का ताक़ीदी हुक्म दिया है, उसी तरह हराम अश्या की मुज़म्मत बयान किया है, वईदें बयान फ़रमाया है नुक़सानात को वाज़ेह फ़रमाया है।
कुरान और हदीस की रौशनी में हराम की मुज़म्मत
चुनाँचे अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है:
(ऐ ईमान वालो! बातिल तरीक़े से आपसमें एक दूसरे के माल-न-खाओ बल्कि यह (हो) कि तुम्हारी बाहमी रज़ामंदी से तिजारतहो और अपनी जानों को क़त्ल न करो, बे-शक अल्लाह तुम पर मेहरबान है।) (तर्जुमा कन्जुल ईमान) इस आयत-ए-करीमा को बग़ौर समाअत फ़रमाएँ और देखें कि अल्लाह तआला अहल-ए-ईमान से, ईमान वालों से ख़िताब फ़रमा रहा है कि अगर तुम सिफ़त-ए-ईमान से मुत्तसिफ़ हो, अगर तुम अल्लाह और उस के रसूल पर ईमान रखते हो तो सुनो तुम आपसमें एक दूसरेका माल नाहक़ और बातिल तरीक़े पर यानी रिश्वत का लेन-देन कर के, डंडी मार के, सूदी कारोबार कर के, अस्ल अश्या में मिलावट करने के बाद फरोख्त कर के, डाका ज़नी कर के, चोरी कर के शराब और हराम चीज़ों का कारोबार कर के, झूठी क़सम, झूठी गवाही, झूठी वकालत, खियानत, जुवा और हराम तरीक़े से हासिल होने वाली कोई चीज़ भी हरगिज़ न खाओ। आगे अल्लाह तआला फ़रमाता है: " यानी उसी तिजारत, उसी कारोबार और ख़रीद-ओ-फरोख्त से हासिल होने वाला माल तुम्हारे लिए हलाल है, जो आपसी रज़ामंदी से हो, लेकिन अगर फ़रीक़ैन में से एक, भी रज़ामंद न हो तो वह हराम है।
हराम माल से सदक़ा में कोई सवाब नहीं
हराम खाने और हराम तरीके से कमाने की अल्लाह तआला ने बड़ी सख्ती से मना फ़रमाया है और उस के लिए जहन्नम का अज़ाब तैयार कर रखा है। मुअल्लिम-ए-काइनात पैग़म्बर-ए-आज़म जनाब अहमद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हराम खाने और हराम तरीके से कमाने वाले के लिए, नाजाइज़ तरीके पर कस्ब-ए-रिज़्क़ करने वाले केलिए, बड़ी सख़्त वईद बयान फ़रमाया है। हज़रत अब्दुल्लाह-बिन-मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है, अल्लाह के रसूल-सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद-ए-आलीशान है: जो बन्दा हराम माल हासिल करता है, अगर वह उस माल को सदक़ा कर दे तो (अल्लाह तबारक व तआला की बारगाह में) क़बूल नहीं होता, और अगर वह ख़र्च करे तो उस के लिए उस में बरकत नहीं और अपने बाद छोड़ कर मर जाए तो जहन्नम में जाने का सामान है।" (मसनद इमाम अहमद)
हराम गिज़ा से पला जिस्म पर जन्नत हराम है
ख़लीफ़ा-ए-अव्वल हज़रत अबू-बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु रिवायत करते हैं कि सरकार-ए-मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमायाः अल्लाह तआला ने उस जिस्म पर जन्नत हराम फ़रमा दी है जो हराम ग़िज़ा से पला हो।" (कन्जुल उम्माल) दोस्तों! आप सरवर-ए-काइनात, शफ़ी-ए-महशर अहमद मुज्तबा मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हयात-ए-तैय्यिबा को सामने रखें जिसे अल्लाह तआला ने तमाम लोगों के लिए उस्वा और आइडियल करार दिया है। और अपनी ज़िंदगी का मुहासिबा करें कि कहीं आप या आप की औलाद पर हराम खाने की वजह से जन्नत हराम तो नहीं हो गई है। आप सब ख़ुद भी हराम चीज़ों से बचें और अपनी औलाद को हराम से बचाएँ और यह जान लें कि अगर आपने हराम कमाई से अपनी औलाद की परवरिश की तो वह औलाद न आप की होगी और न ही किसी और की होगी बल्कि उस का वुजूद भी इस दुनिया में बाइस-ए-फ़ितना होगा।
चालीस दिन के अमल कुबूल नहीं
मुअजमुल-औसत की एक और हदीस है जिस में हुजूर रहमत-ए-आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत सअद से फ़रमायाः ऐ सअद! अपनी ग़िज़ा पाक कर लो मुस्तजाब-उद-दअवात हो जाओगे। उस ज़ात की क़सम जिस के क़ब्ज़ा-ए-कुदरत में मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की जान है। बन्दा हराम लुक़मा अपने पेट में डालता है तो उस के चालीस दिन के अमल क़बूल नहीं होते और जिस बन्दा का गोश्त हराम से पला बढ़ा हो उस के लिए आग ज़्यादा बेहतर है।" (अल-हदीस)
सहाबा ए किराम की ज़िन्दगी
दोस्तों! आप सहाबा-ए-किराम की हयात-ए-तैय्यिबा का मुतालेआ, आप ताबेईन और तब-ए-ताबेईन-ए-इज़ाम रज़ियल्लाहु अन्हुम अज्मईन की ज़िंदगी का जाइज़ा लें और अस्लाफ़-ए-किराम के शब-ओ-रोज़ देखें, जिन की ज़िंदगी हमारे लिए नमूना ए अमल है, जिन के नक़्श-ए-क़दम की पैरवी हमारी कामयाबी का ज़ामिन है कि वह हज़रात किस तरह हराम ग़िज़ा से इज्तिनाब करते थे, और हराम चीज़ों से दूर रहते थे।
आप ख़लीफ़ा-ए-अव्वल सिद्दीक़-ए-अकबर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की मुक़द्दस ज़िंदगी को देखें, एक दफ़ा का वाक़िया है कि अमीर-उल-मोमिनीन सिद्दीक़-ए-अकबर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की ख़िदमत में उनके गुलाम ने दूध पेश किया, जनाब सिद्दीक़-ए-अकबर ने उसे नोश फ़रमा लिया। गुलाम ने अर्ज़ किया, हुज़ूर! मैं पहले जब भी कोई चीज़ पेश करता तो आप उस के बारे में दरयाफ़्त फ़रमाते थे लेकिन इस बार दूध के बारे में आप ने कुछ भी नहीं सवाल फ़रमाया। यह सुन कर अमीर-उल-मोमिनीन ने पूछा कि दूध कैसा है? गुलामने जवाब दिया के हुज़ूर! मैंने ज़माना-ए-जाहिलियत में एक बीमार पर मंत्र फूँका था जिस के मुआवज़े में आज उस ने यह दूध दिया है। जनाब सिद्दीक़-ए-अकबर रज़ियल्लाहु अन्हु यह सुनते ही फ़ौरन अपने हल्क़ में उँगली डाल ली और वह दूध क़े कर दिया। इस के बाद निहायत इन्किसारी व आज्ज़ी से बारगाह-ए-इलाही में अर्ज़-गुज़ार हुए मौला! जिस पर मैं क़ादिर था वह मैं ने कर दिया। इस दूध का थोड़ा बहुत हिस्सा रगों में रह गया तो वह मुआफ़ फ़रमा दे। (इहया-उल-उलूम)
और हज़रत-अब्दुल्लाह बिन-उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा फ़रमाते थे कि अगर तू इस क़द्र नमाज़ पढ़े कि तेरी कमर टेढ़ी हो जाए और इस क़द्र रोज़े रखे कि सूख कर बाल की तरह दुबला हो जाए फिर भी कुछ फायदा नहीं होगा और तेरी नमाज़ और रोज़े क़बूल नहीं किए जाएँगे जब तक तू हराम से परहेज़ न करे। (कीमिया-ए-सआदत)
रिज़्क-ए-हलाल का हुसूल
दोसतों: इस्लाम एक आफ़ाक़ी मज़हब है, इस्लाम एक पाकीज़ा मज़हब है, इस्लाम में मेहद से ले कर लहद तक और माबाद-मौत की सारी चीज़ों का वाज़ेह बयान है। इस्लाम के तमाम उसूल-ओ-ज़वाबित पाकीज़ा हैं और इस्लाम का मतमह नज़र यह है कि एक मुसलमान जिस तरह अपने ज़ाहिर को पाक-ओ-साफ़ रखता है उसी तरह उस के लिए यह भी ज़रूरी है कि अपने बातिन को भी साफ़-सुथरा रखे, पाक रखे। इस लिए कि इस्लाम ने रिज़्क-ए-हलाल के साथ कस्ब-ए-हलाल की भी बार-बार और जा-ब-जा ताक़ीद की है ता कि उस की परवरिश और नशो-नुमा तय्यिब-ओ-ताहिर और हलाल ग़िज़ा से हो और उस के माल-ओ-दौलत में किसी भी हराम और नाजाइज़ आमदनी की मिलावट न हो। चुनाँचे मुअल्लिम-ए-काइनात जनाब मुहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इरशाद फ़रमाते हैं: (कि एक मुसलमान के लिए) फ़राइज़ (नमाज़, रोज़ा, हज और ज़कात की अदायगी के बाद हलाल रोज़ी हासिल करना फ़र्ज़ है। (मिश्कात) यानी जिस तरह ज़रूरियात-ए-दीन और फ़राइज़-ओ-वाजिबात को हर मुसलमान के लिए जानना और उन पर अमल करना ज़रूरी है, उसी तरह अपने पेशे से मुतअल्लिक़ हलाल-ओ-हराम चीज़ों का जानना और उन पर अमल करना भी ज़रूरी है।
पैग़म्बर-ए-आज़म जनाब मुहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम रिज़्क-ए-हलाल की अहमियत एक हदीस-ए-पाक में यूँ बयान करते हैं तर्जुमाः जो शख़्स चालीस दिन तक हलाल कमाई खाता है, अल्लाह उस के दिल को रोशन कर देता है और उस के दिल से हिकमत के चश्मे ज़बान पर जारी फ़रमा देता है।
दोसतोंः हर मुसलमान का फ़र्ज़ है कि वह अपनी रोज़ी हलाल ज़राए से हासिल करे और हराम से बचने की पूरी कोशिश करे। न सिर्फ़ ख़ुद को बल्के अपनी औलाद को भी हराम से दूर रखे, क्योंकि हराम ग़िज़ा इंसान की फितरत को बिगाड़ देती है और उसके अमल पर असर अंदाज़ होती है। अल्लाह हम सबको हलाल रिज़्क़ हासिल करनेकी तौफ़ीक़-अता फरमाए और हराम से बचने की हिम्मत दे, आमीन।
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