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Nek aamal: qabr aur aakhirat mein nijat का ज़रिया। कुरान तिलावत, नमाज़, रोज़ा व सदक़ा की फ़ज़ीलत हदीस शरीफ़ की रोशनी में


 नेक काम निजात का ज़रीया हैं 

अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहु। इस दुनिया में हमारा हर अमल हमारे अंजाम का ज़रिया बनता है। बुरे आमाल का अंजाम बुरा और अच्छे आमाल का अंजाम अच्छा जब मुसलमान दुनिया में अच्छे आमाल करता है नमाज़ पढ़ता है रोज़े रखता है सदका व खैरात करता है दीगर नेक आमाल करता है तो यही आमाले सालेहा दुनिया में इज़्ज़त ओ भलाई का सबब बनते हैं और जब इन्तेकाल हो जाता है और क़ब्र में दफन कर दिया जाता है तो यही आमाल ए सालेहा मुर्दे की मदद करते हैं और जन्नत में जाने का ज़रिया बनते हैं, नीचे दी गई हदीस शरीफ से यह बात वाज़ेह हो जाती है के मरने के बाद आमाले सालेह क़ब्र में मुर्दे के मददगार होते हैं और मय्यत को कब्र और आख़िरत के अज़ाब से बचाते हैं। आइए, इस हदीस ए मुबारक को तफ्सील से पढ़ें और आमाल ए सालेहा पर अमल करें। 

हदीस शरीफ़ 

हुजूर नबी करीम अलैहिस्सलातु-वस्सलाम ने फरमायाः जब मय्यत को उसकी क़ब्र में रख दिया जाता है तो उसके आमाल सालेहा उसे घेर लेते हैं। अब अगर अज़ाब उसके सर की तरफ़ से आता है तो तिलावत-ए-कुरआन उसे बचाती है। अगर पैरों की तरफ़ से अज़ाब आता है तो उसका नमाज़ में ठहरना (क़याम) उसे बचाता है। अगर हाथ की तरफ से अज़ाब आता है तो हाथ कहते हैं, 'बख़ुदा यह हमें सदक़ा देने के लिए खोलता था और दुआ के लिए उठाता था, इसीलिए तुझको कोई राह नहीं। अगर अज़ाब मुँह की तरफ़ से आता है तो उसका ज़िक्र और रोज़ा रखना आगे आकर उसे बचाते हैं। इसी तरह, नमाज़ और सब्र एक तरफ खड़े रहते हैं, ताकि अगर कोई कमी रह जाए तो उसे पूरा कर दें। गर्ज़ यह कि उसके नेक आमाल उससे अज़ाब को इस तरह दफा करेंगे, जैसे कोई शख़्स अपने अहलो अयाल से मुसीबत को दूर करता है। इसके बाद उससे से कहा जाएगा के 'ख़ुदा तुझको बरकत दे, सो जा क्योंकि तेरे साथी बहुत ही अच्छे हैं। 
(शरह-उल-सदूर) 

क़ब्र में खुशबू 

हज़रत अब्दुल्लाह बिन सालिब इकरामी रहमतुल्लाह तआला अलैहि एक मअरके में दुश्मनों के हाथ शहीद हो गए। जब उन्हें दफ़्न किया गया तो उनकी क़ब्र से कस्तूरी की ख़ुशबू महसूस हुई। उनके भाई ने एक दिन ख़्वाब में उन्हें देखा तो उनसे पूछा भाई आपके साथ क्या सुलूक हुआ? उन्होंने बताया मेरे साथ बहुत अच्छा सुलूक हुआ और मुझे जन्नत और उसकी नेमतों से नवाज़ा गया। पूछा भाई! जन्नत आपको किस अमल के सबब मिली? और यह मक़ाम व मर्तबा बाद वफ़ात आपको किस वजह से मिला? उन्होंने बताया मुझे यह इज़्ज़त व रिफ़अत हुस्र-ए-यक़ीन, तहज्जुद गुज़ारी के सबब और गर्मियों के रोज़ों की बरकत से मिली है। फिर उनसे पूछा कि यह आपकी क़ब्र से कैसी ख़ुशबू आ रही है? उन्होंने जवाब दिया यह ख़ुशबू तिलावत-ए-कुरआन करीम और रोज़ों में प्यास बर्दाश्त करने की बदौलत है। मैं दुनिया में कुरआन शरीफ की तिलावत करता था और गर्मी के दिनों में रोज़ा रखता तो प्यास लगती थी तो रोज़े की हालत में उस सख़्त प्यास को बर्दाश्त करता था तो आज अल्लाह तआला ने बाद वफ़ात मेरी क़ब्र को ख़ुशबू में बसा दिया है और मेरी क़ब्र मिश्क व कस्तूरी की खुशबू से मुअत्तर है। (शरहुस्सुदूर )

खुलासा 

दोस्तों : हदीस ए मुबारक और वाकिया से यह वाज़ेह हो गया के नेक आमाल क़ब्र में हमारी मदद करते हैं। कुरान की तिलावत, नमाज़, रोज़ा, सब्र और सदना जैसे नेक काम हमारे लिए न सिर्फ इस दुनिया में बल्कि क़ब्र और आख़िरत में भी निजात का ज़रिया हैं। अल्लाह तआला हमें नेक आमाल करनेकी तौफीक अता-फरमाए। आमीन।"
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