इस्लामी तालीमात के मुताबिक़, इंसान की नेकी सिर्फ़ उसके ज़ाहिरी अमल पर नहीं, बल्कि उसकी नीयत (इरादे) पर भी मुनहसर है। सवाल यह उठता है कि क्या जिसे हम "नेक" समझते हैं, वह अल्लाह के यहाँ भी नेक माना जाएगा? इसका तफ्सीली जवाब जानने के लिए नीचे दिया गया आर्टिकल पूरा पढ़ें।
नेक नज़र आने वाला क्या बारगाहे इलाही में भी नेक है?
सवाल: क्या यह ज़रूरी है कि जिसे हम नेक समझते हैं वह अल्लाह की बारगाह में भी नेक हो?
जवाब: इस सवाल के जवाब में कई पहलू बन सकते हैं।
दुनिया में नेक समझे जाने का पैमाना
एक पहलू तो यह है कि लोग नेक किसे समझें? इसका जवाब यह है कि लोगों के सामने जो "नेक" की तारीफ़ पर पूरा उतरे, शरीअत की रू से हमें हुक्म है हम उसे नेक समझें। एक आदमी हमारे सामने किसी गुनाह का इरतिकाब नहीं करता, तमाम फ़राइज़ वाजिबात और सुनन मौक़िदा अदा करता है और ऐसा कोई ख़ारिजी क़रीना नहीं है जिस की वजह से उस को गुनहगार क़रार दें तो हम उसे नेक समझेंगे और शरअन वाजिब हो गा कि उस के बारे में बद-गुमानी न करें, लेकिन हक़ीक़ी सूरत-ए-हाल इस से मुख्तलिफ़ भी हो सकती है।
दिल की हालत और अमल की कुबूलियत
इस के मुतअल्लिक़ बहुत सी अहादीस-ए-मुबारका मौजूद हैं। क्योंकि अल्लाह तआला ज़ाहिर व बातिन, खल्वत व जलवत, अच्छी बुरी नीयत सब को जानता है। मिसाल के तौर पर एक आदमी नमाज़ी, तहज्जुदगुज़ार भी है, फ़र्ज़ और नफ़्ली रोज़े भी रखता है, सदक़ात व खैरात भी करता है, बल्कि राह-ए-ख़ुदा में जिहाद करते हुए शहीद भी हो गया या वह बड़ा बुलंद पाया आलिम है, लोग उस से फ़ैयज़याब हो रहे हैं, लेकिन मआज़ अल्लाह उन में से किसी में रिया-कारी पाई जाती है तो ख़ुदा की बारगाह में उन का मुआमला जुदा हो जाता है जैसे हदीस-ए-मुबारका में फ़रमायाः
शहीद, आलिम और सख़ी
क़ियामत के दिन सब से पहले एक शहीद का फ़ैसला हो गा, जब उसे लाया जाए गा तो अल्लाह त, आला उसे अपनी नेमतें याद दिलाए गा। वह उन नेमतों का इक़रार करे गा। फिर अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाए गाः तू ने इन नेमतों के बदले में क्या अमल किया? वह अरज़ करे गाः मैं ने तेरी राह में जिहाद किया यहाँ तक्की शहीद हो गया। अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाए गाः तू झूठा है, तू ने जिहाद इस लिए किया था कि तुझे बहादुर कहा जाए और वह तुझे कह लिया गया। फिर उस के बारे में जहन्नुम में जाने का हुक्म दे गा तो उसे मुँह के बल घसीटकर जहन्नुम में डाल दिया जाए गा। फिर उस शख़्स को लाया जाए गा जिस ने इल्म सीखा, सिखाया और कुरआन-ए-पाक पढ़ा, वह आए गा तो अल्लाह तआला उस को भी अपनी नेमतें याद दिलाए गा, वह भी उन नेमतों का इक़रार करे गा। फिर अल्लाह तआला उस से दरयाफ़्त फ़रमाए गाः तू ने इन नेमतों के बदले में क्या किया? वह अरज़ करे गाः मैं ने इल्म सीखाऔर सिखाया और तेरेलिए कुरआन-ए-करीम पढ़ा। अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाए गाः तू झूठा है, तू ने इस लिए इल्म सीखा ता कि तुझे आलिम कहा जाए और कुरआन-ए-पाक इस लिए पढ़ा कि तुझे क़ारी कहाजाए और वह तुझे कह लिया गया। फिर उस को भी जहन्नुम में डालने का हुक्म हो गा तो उसे मुँह के बल घसीटकर जहन्नुम में डाल दिया जाए गा। फिर एक मालदार शख़्स को लाया जाए गा जिसे अल्लाह तआला ने हर तरह का माल अता फ़रमाया था, उसे ला कर नेमतें याद दिलाई जाएँ गी तो वह भी उन नेमतों का इक़रार करे गा। अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाए गाः तू ने इन नेमतों के बदले क्या किया? वह अरज़ करे गाः मैं ने तेरी राह में जहाँ ज़रूरत पड़ी वहाँ ख़र्च किया। अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाए गाः तू झूठा है, तू ने यह सख़ावत इस लिए की थी कि तुझे सख़ी कहा जाए और वह कह लिया गया। फिर उस के बारे में जहन्नुम का हुक्म हो गा तो उस को भी मुँह के बल घसीटकर जहन्नुम में डाल दिया जाए गा।
अल्लाह ज़ाहिर-ओ-बातिन को जानता है
तो पता चला कि बंदों की नज़र में एक आदमी सख़ी है, आलिम है, क़ारी है, शहीद है या कोई भी दूसरा अच्छा अमल करने वाला है, अब हमारे एतिबार से अगरचे वह अच्छा है और हम उस पर बद-गुमानी नहीं करें गे कि फ़लाँ शहीद रिया-कार था या फ़लाँ आलिम रिया-कार है। यह कहना बुहतान और हराम है, क्योंकि हम दिल की हालत नहीं जानते, लेकिन अल्लाह तआला ज़ाहिर-ओ-बातिन दोनों को जानता है, उस ने फ़रमाया है:
* कुल इन्नल मौतल्लज़ी तफिरूना मिन्हु फ़ इन्नहु मुलक़ीकुम सुम्मा तुरहूना इला अलिमिल गैबि वश्शहादति फ़युनब्बिउकुम बिमा
कुंतुम तअमलून *
(तर्जुमाः कह दो कि जिस मौत से तुम भागते हो, वह तुम्हें मिलकर रहेगी। फिर तुम्हें उस की तरफ़ लौटाया जाएगा जो गैब और शहादत का जानने वाला है, फिर वह तुम्हें तुम्हारे अमल बता देगा।)
तो अल्लाह तआला बताए गा कि बंदे क्या करते थे और उन की नीयत क्या थी?
अमल किसके कुबूल नहीं होते?
इस लिए एक रिवायत में है कि अल्लाह तआला ने ज़मीन और आसमान की पैदाइश से पहले सात फ़रिश्तों को पैदा फ़रमाया और हर आसमान के दरवाज़े पर उस दरवाज़े की क़द्र-ओ-मंज़िलत के मुताबिक़ एक-एक फ़रिश्ते को दरबान मुक़र्रर फ़रमाया। पस किरामन कातिबीन बंदे के अमल ले कर आसमान की तरफ़ चढ़ते हैं। तो उन में सूरज की सी रौशनी और चमक होती है यहाँ तक कि वह पहले आसमान तक पहुँच जाते हैं और किरामन कातिबीन उस के अमल को बहुत ज़्यादा और ख़ालिस समझते हैं। फिर जब वह दरवाज़े पर पहुँचते हैं तो दरबान फ़रिश्ता उन से कहता है इस अमल को अमल करने वाले के मुँह पर दे मारो। मैं ग़ीबत पर मुक़र्रर फ़रिश्ता हूँ, अल्लाह ने मुझे हुक्म दिया है कि मैं ऐसे आदमी का अमल ऊपर न जाने दूँ जो लोगों की ग़ीबत करता है। वह मुझे छोड़ कर दूसरों की तरफ़ मुतवज्जह हो जाता है।
फिर दूसरे दिन फ़रिश्ते ऐसे अमल ले कर ऊपर जाते हैं जिन में नूर होता है। फ़रिश्ते उसे बहुत ज़्यादा और पाकीज़ा समझते हैं यहाँ तक कि जब वह दूसरे आसमान तक पहुँचते हैं तो दरबान फ़रिश्ता कहता है ठहर जाओ और इस अमल को अमल करने वाले के मुँह पर दे मारो, क्योंकि इस अमल से उस की नीयत दुनिया कमाने की थी। मुझे मेरे रब ने हुक्म दिया है कि मैं किसी ऐसे आदमी का अमल ऊपर न जाने दूँ जो मुझे छोड़ कर गैर की तरफ़ मुतवज्जह होता है। फिर फ़रिश्ते शाम तक उस पर लानत करते रहते हैं।
किरामन कातिबीन बंदे के अमल ले कर ऊपर जाते हैं और उन से बड़ा खुश होते हैं। उन में सदक़ा, रोज़ा और बहुत सी नेकियाँ होती हैं। फ़रिश्ते उन को बहुत ज़्यादा और पाकीज़ा ख़्याल करते हैं। फिर जब वह तीसरे आसमान तक पहुँचते हैं तो दरबान फ़रिश्ता कहता है ठहर जाओ और इस अमल को अमल करने वाले के मुँह पर दे मारो। मैं तकब्बुर वालों पर मुक़र्रर फ़रिश्ता हूँ। मेरे रब ने मुझे हुक्म दे रखा है कि मैं किसी ऐसे आदमी का अमल ऊपर न जाने दूँ जो मुझे छोड़ कर गैर की तरफ़ मुतवज्जह हो। यह आदमी मजलिसों में लोगों पर बड़ाई मारता है।
यूँ ही फ़रिश्ते बंदे के अमल ले कर ऊपर जाते हैं। वह अमल सितारों की तरह चमक रहे होते हैं और उन में तस्बीह की आवाज़ होती है। उन में नमाज़, रोज़ा और हज-ओ-उम्रा होता है। जब फ़रिश्ते इन अमल को ले कर चौथे आसमान पर जाते हैं तो वहाँ मुक़र्रर फ़रिश्ता उन से कहता है ठहर जाओ और इस अमल को अमल करने वाले के मुँह पर दे मारो। मैं खुदपसंदी वालों का फ़रिश्ता हूँ। मेरे रब ने मुझे हुक्म दिया है कि मैं ऐसे आदमी का अमल ऊपर न जाने दूँ जो मुझे छोड़ कर गैर की तरफ़ मुतवज्जह होता है। इस आदमी ने जब भी कोई अमल किया, उस में ख़ुदपसंदी का शिकार हो गया।
इसी तरह फ़रिश्ते किसी बंदे के अमल ले कर ऊपर जाते हैं। वह अमल इस तरह आरास्ता होते हैं जैसे दुल्हन ससुराल जाने के वक़्त सजती है। इन अमल में जिहाद-ओ-हज जैसे अमल होते हैं। उन की चमक सूरज जैसी होती है। जब फ़रिश्ते उन्हें ले कर पाँचवें आसमान तक पहुँचते हैं तो दरबान फ़रिश्ता कहता है मैं हसद करने वालों का फ़रिश्ता हूँ। यह आदमी लोगों पर उन चीज़ों में हसद करता था जो उन को अल्लाह ने अपने फ़ज़्ल से दी हैं। यह आदमी ख़ुदा तआला की पसंद पर नाराज़ था। मेरे रब ने मुझे हुक्म दे रखा है कि मैं ऐसे शख़्स का अमल ऊपर न जाने दूँ जो उसे छोड़ कर दूसरों की तरफ़ मुतवज्जह हुआ। और फ़रिश्ते किसी बंदे का अमल ले कर ऊपर जाते हैं। उन में कामिल वज़ू, बहुत सी नमाज़ें, रोज़े, हज और उम्रा होता है। वह छठे आसमान तक पहुँच जाते हैं तो दरवाज़े पर मुक़र्रर निगहबान फ़रिश्ता कहता है मैं रहमत का फ़रिश्ता हूँ। इन अमल को अमल करने वाले के मुँह पर दे मारो, क्योंकि यह आदमी कभी किसी इंसान पर रहम नहीं करता था और किसी बंदे को मुसीबत पहुँचती थी तो खुश होता था। मेरे रब ने मुझे हुक्म दे रखा है कि मैं उस के अमल ऊपर न जाने दूँ जो मुझे छोड़ कर गैरों की तरफ़ मुतवज्जह होता है।
यूँ ही फ़रिश्ते एक बंदे का अमल ले कर ऊपर चढ़ते हैं जिस में बहुत सा सदक़ा, नमाज़, रोज़ा, जिहाद और परहेज़गारी होती है। उन की आवाज़ गर्ज जैसी और चमक बिजली की चमक जैसी होती है। फिर जब वह सातवें आसमान पर पहुँचते हैं तो उस आसमान पर मुक़र्रर फ़रिश्ता कहता है: मैं तज़किरा-ओ-शोहरत पर मुक़र्रर फ़रिश्ता हूँ। इस अमल वाले ने अपने अमल से मजलिसों में तज़किरा, दोस्तों में बुलंदी और बड़े लोगों के नज़दीक जाहपसंदी की नीयत की थी। मेरे रब ने मुझे हुक्म दे रखा है कि मैं उस के अमल को ऊपर न जाने दूँ कि यह मुझे छोड़ कर दूसरों की तरफ़ मुतवज्जह होता है। और हर वह अमल जो अल्लाह के लिए ख़ालिस न हो, वह रिया-कारी है और रिया-कार का अमल अल्लाह क़बूल नहीं फ़रमाता।
इसी तरह किरामन कातिबीन बंदे के अमल यानी नमाज़, रोज़ा, हज, ज़कात, उम्रा, अच्छा अख़लाक़, ख़ामोशी और ज़िक्र-ए-इलाही ले कर ऊपर जाते हैं और सातों आसमानों के फ़रिश्ते उन के साथ होते हैं। यहाँ तक कि तमाम रुकावटों को अबूर करते हुए अल्लाह की बारगाह तक पहुँच कर उस के सामने खड़े हो जाते हैं और बंदे के अमल के नेक और ख़ालिस होने की गवाही देते हैं। अल्लाह इरशाद फ़रमाता है तुम मेरे बंदे के अमल के मुहाफ़िज़ हो, जबकि मैं उस के दिल की निगरानी करने वाला हूँ। उस ने अपने इस अमल से मेरा इरादा किया, न उसे मेरे लिए ख़ालिस किया और इस अमल से उस की जो नीयत थी, मैं उसे खूब जानता हूँ। इस पर मेरी लानत है। इस ने बंदों को भी धोखा दिया और तुम को भी धोखा दिया, मगर यह मुझे धोखा नहीं दे सकता, क्योंकि मैं गैबों का जानने वाला हूँ, दिलों के ख्यालात से वाक़िफ़ हूँ। कोई छिपी चीज़ मुझ से पोशीदा नहीं और कोई भी दूर चीज़ मुझ से दूर नहीं। मेरा इल्म हाल के मुतअल्लिक़ भी उसी तरह है जैसे मुस्तक़बिल के मुतअल्लिक़ है और गुज़री हुई चीज़ों के साथ मेरा इल्म उसी तरह है जैसा बाक़ी व मौजूदा चीज़ों के साथ। और पहले लोगों को भी मेरा इल्म वैसे ही मुहीत है जैसा बाद वालों को मुहीत है। मैं हर पोशीदा दर-पोशीदा को खूब जानता हूँ। फिर भला मेरा बंदा मुझे धोखा कैसे दे सकता है? वह तो सिर्फ़ बे-ख़बरों को धोखा देता है, जबकि मैं तो गैबों पर भी बा-ख़बर हूँ। इस बंदे पर मेरी लानत है। अब सातों फ़रिश्ते और साथ जाने वाले तीन हज़ार मलाइका कहते हैं ऐ हमारे रब! इस पर तेरी लानत और हमारी भी लानत। फिर आसमान वाले कहते हैं इस पर अल्लाह की लानत और लानत करने वालों की लानत। फ़रिश्तों की नज़र में वह अमल बिल्कुल सही होते हैं कि बड़े अच्छे तरीक़े से, ख़ुशू-ओ-खुज़ू के साथ नमाज़ पढ़ी है, तकबीर-ए-उला के साथ, बाजमाअत, पहली सफ़ में, बड़ी तवज्जुह के साथ नमाज़ पढ़ रहा था। पूरी नमाज़ में न उस ने बदन खजाया, न इधर-उधर देखा, न निगाह उठाई। उस की क़िराअत की आवाज़ भी बड़ी अच्छी थी। सब कुछ था। लिहाज़ा उस के अमल अच्छे हैं, लेकिन अल्लाह तआला उस के दिल की हालत जानता है कि उस का यह सारा खुशू-ओ-ख़ुज़ू और तवज्जुह और जो कुछ भी है, सब का सब लोगों को दिखाने के लिए है। तो वह अमल मर्दूद हो जाता है।
क़यामत के दिन धोखेबाज़ों का अंजाम
इसी तरह हदीस पाक में है कि क़यामत के दिन कुछ लोगों को जन्नत की तरफ़ ले जाने का हुक्म हो गा, यहाँ तक कि जब वह जन्नत के क़रीब पहुँच कर उस की ख़ुशबू सूँधें गे, उस के महलात और उस में अहल-ए-जन्नत के लिए अल्लाह तआला की तैयार की हुई नेमतें देख लें गे, तो निदा दी जाए गीः उन्हें जन्नत से लौटा दो, क्योंकि उन का जन्नत में कोई हिस्सा नहीं। (यह निदा सुन कर) वह ऐसी हसरत के साथ लौटें गे कि इस जैसी हसरत के साथ उन से पहले लोग न लौटें हों गे। फिर वह अर्ज़ करें गेः या रब! अगर तू अपना सवाब और अपने औलिया के लिए तैयार की हुई नेमतें दिखाने से पहले ही हमें जहन्नुम में दाखिल कर देता तो यह हम पर ज़्यादा आसान होता। अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाए गाः मैं ने इरादतन तुम्हारे साथ ऐसा किया है (और इस की वजह यह है कि) जब तुम तनहाई में होते तो बड़े-बड़े गुनाह कर के मेरे साथ एलान-ए-जंग करते और जब लोगों से मिलते तो अज्ज़ी व इन्किसारी के साथ मिलते थे। तुम लोगों को अपनी वह हालत दिखाते थे जो तुम्हारे दिलों में मेरे लिए नहीं होती थी। तुम लोगों से डरते और मुझ से नहीं डरते थे। तुम लोगों की इज़्ज़त करते और मेरी इज़्ज़त न करते थे। तुम लोगों की वजह से बुरा काम करना छोड़ देते, लेकिन मेरी वजह से बुराई न छोड़ते थे। आज मैं तुम्हें अपने सवाब से महरूम करने के साथ-साथ अपने अज़ाब का मज़ा भी चखाऊँ गा।
नतीजा
इस तमाम कलाम से मालूम यह हुआ कि हमारे सामने जो नेक है हम उसे नेक ही समझें गे और उस पर बद-गुमानी नहीं करें गे। बाक़ी हक़ीक़त-ए-हाल क्या है वह अल्लाह और बंदे का मुआमला है।।
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