qtESQxAhs26FSwGBuHHczRGOCdrb3Uf78NjGuILK
Bookmark

Huzoor se mangne ki taleem | नमाज़ और सजदे की अहमियत | जन्नत में हुज़ूर की संगत कैसे मिले?

हुज़ूर ने मुतलक़न फ़रमाया कि "सल", यानी मांग, यह नहीं फ़रमाया कि फ़लाँ चीज़ मांग कोई कैद नहीं लगाई इससे मालूम हुआ कि सारी काएनात हुज़ूर के कब्जे में है
 

सजदे की कसरत और जन्नत में हुज़ूर की रफ़ाक़त का राज़

दोस्तों! इस तहरीर में हज़रत रबीअह बिन क़अब रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु के वाक़िआ की रोशनी में यह बताने की कोशिश करूँगा कि अल्लाह तआला ने अपने महबूब नबी अलैहिस्सलातु-वस्सलाम को मालिक-ओ-मुख्तार बनाकर भेजा है। अल्लाह तआला ने आपको वह मुकाम अता फ़रमाया कि आप अलैहिस्सलातु-वस्सलाम अल्लाह की अता से, जिसे चाहें जो चाहें जब चाहें अता फ़रमा सकते हैं। 
आज के दौर में कुछ लोग यह गलत फहमी फैलाते हैं कि नबी-ए-पाक अलैहिस्सलातु-वस्सलाम से मांगना शिर्क या बिदअत है, जबकि हक़ीक़त इसके बिलकुल बरअक्स है। आप अलैहिस्सलातु-वस्सलाम से मांगना न शिर्क है, न बिदअत, बल्कि यह सहाबा की सुन्नत और दीन-ए-इस्लाम का हिस्सा है। 
हज़रत रबीअह बिन क़ाब रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु के मुबारक वाक़िआ से मालूम हुआ के अल्लाह तआला ने अपने नबी अलैहिस्सलातु-वस्सलाम को वह मुकाम अता फ़रमाया है के आप जिसको चाहें जो चाहें अता फरमा सकते हैं हुज़ूर के दर से मांगना, उनकी बारगाह में हाज़िर होकर अपनी हाजत पेश करना, हुज़ूर से मांगना, यह न तो शिर्क है और न ही बिदअत, बल्कि यह सहाबा का तरीक़ा और सुन्नत है। 
आइए! इस मुबारक हदीस को तफसील से पढ़ें और इसके मफहूम को समझकर अपनी ज़िंदगी को इसी अक़ीदे के साथ गुज़ारने की कोशिश करें। अल्लाह तआला हमें सही समझ और इस अक़ीदे पर साबित क़दम रहने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए, आमीन।

हदीस शरीफ 

हज़रत रबीअह बिन कअब रज़ी अल्लाह तआला अन्हु फ़रमाते हैं कि मैं हुज़ूर अकरम अलैहिस्सलातु-वस्सलाम के पास रात को ख़िदमत अक़्दस में हाज़िर रहता था एक रात मैं हुज़ूर के लिए वुज़ू का पानी और दीगर ज़रूरियात ले के हाज़िर हुआ तो हुज़ूर ने मुझसे इरशाद फ़रमाया मांग क्या मांगता है मैंने अर्ज़ किया कि मैं आप से जन्नत में आप की संगत मांगता हूँ आप ने फ़रमाया कि इसके अलावह कुछ और भी चाहिए मैंने अर्ज़ की मेरी मुराद तो बस यही है हुज़ूर अलैहिस्सलातु-वस्सलाम ने फ़रमाया अपनी जान पर सजदों की ज़्यादती से मेरी मदद कर। 
(सहीह मुस्लिम, मिश्कात अल-मसाबीह, बाब अस्सुजूद वफ़ज़्लिह) 
इस हदीस से चंद फ़वाइद मालूम हुए। 

हदीस के फवाइद

1. हुज़ूर ने मुतलक़न फ़रमाया कि "सल", यानी मांग, यह नहीं फ़रमाया कि फ़लाँ चीज़ मांग कोई कैद नहीं लगाई इससे मालूम हुआ कि सारी काएनात हुज़ूर अलैहिस्सलातु-वस्सलाम के क़ब्ज़ा व इख़्तियार में है सारे आलम में से जिस को जो चाहें अता फ़रमा सकते हैं, मांगने वाला इस दर से जो मांगेगा उस को वही मिलेगा। 
मांगेंगे मांगे जाएंगे मुंह मांगी पाएंगे सरकार में न ला है न हाजत अगर की है

हुज़ूर से रबीअह ने जन्नत मांगी  

हज़रत रबीअह ने भी दुनिया की कोई चीज़ नहीं मांगी बल्कि दूसरे जहान की एक चीज़ जन्नत मांगी और सिर्फ़ जन्नत भी नहीं बल्कि जन्नत का आला मर्तबा मांगा इसके जवाब में हुज़ूर ने यह नहीं फ़रमाया कि यह नहीं दे सकता बल्कि हुज़ूर ने फ़रमाया कि कुछ और मांगना चाहता है वह भी मांग ले इससे मालूम हुआ कि हुज़ूर की हुकूमत और बादशाहत सिर्फ़ इस जहान पर ही नहीं बल्कि उस जहान पर भी है अल्लाह तआला ने दोनों जहान अपने महबूब के मिल्क कर दिए हैं इसमें से जिस को चाहें जो चाहें अता फ़रमा दें। 

क्या नबी वली से मांगना शिर्क है?

जो चाहे उन से मांग कि दोनों जहान की खैर ज़र ना ख़रीदा एक कनीज़ उनके घर की है हज़रत रबीअह ने यह अर्ज़ किया कि मैं आप से मांगता हूँ इस पर हुज़ूर अलैहिस्सलाम ने यह नहीं फ़रमाया कि यह क्या शिर्क की बात कर रहे हो अल्लाह से मांगो अल्लाह के अलावह किसी दूसरे से मांगना शिर्क है इससे मालूम हुआ कि नबियों और वलियों को अल्लाह की दी हुई ताक़त और कुदरत से देने वाला समझ कर उन से मांगना शिर्क नहीं बल्कि सहाबा की सुन्नत है इस पर हुज़ूर की मोहर तस्दीक़ भी सुब्त है। 
हाकिम हकीम दाद व दवा दें यह कुछ न दें मर्दूद यह मुराद किस आयत ख़बर की है 
दोस्तों: इस पूरी तहरीर से यह वाज़ेह हो गया कि अल्लाह तआला ने अपने प्यारे हबीब अलैहिस्सलातु-वस्सलाम को वह मुकाम अता फ़रमाया है कि आप, अल्लाह की अता से, जिसे चाहें जो चाहें अता फ़रमा सकते हैं। आपकी बारगाह में हाज़िर होकर हाजतें पेश करना सहाबा किराम रज़ियल्लाहु तआला अन्हुम की सुन्नत है, और आपसे मांगना हरगिज़ शिर्क या बिदअत नहीं, बल्कि यह अल्लाह तआला की तरफ़ से अता किया हुआ एक निज़ाम है। 
हज़रत रबीअह बिन क़ाब रज़ी अल्लाहु अन्हु का यह मुबारक वाक़िआ इस बात की खुली दलील है कि नबी-ए-पाक अलैहिस्सलातु-वस्सलाम अल्लाह की अता से अपनी उम्मत को नेअमतें अता फ़रमाते हैं। यह वह अक़ीदा है जिसे खुद सहाबा किराम ने अपनाया और नबी-ए-करीम अलैहिस्सलातु-वस्सलाम ने इसे तस्दीक़ भी फ़रमाया। 
आज हमें भी चाहिए कि इसी अक़ीदे के साथ अपनी ज़िन्दगी गुज़ारें, अपने नबी से मुहब्बत करें, उनकी सुन्नतों पर अमल करें पांच टाइम की नमाज़ों की पाबंदी करें, और अपने आमाल को इस्लाम की रोशनी में दुरुस्त करें। 
नबी करीम अलैहिस्सलातु-वस्सलाम के इख्तियार के सिलसिले में एक वाक़िआ और पढ़ें अपने ईमान को ताज़ा करें।

वाकिआ

हुज़ूर अलैहिस्सलातु-वस्सलाम के बुलावे पर पत्थर पानी पर तैरता हुआ हाज़िर हुआ फिर वापस चला गया। 
एक मर्तबा हुज़ूर अलैहिस्सलातु-वस्सलाम पानी के किनारे तशरीफ़ फ़रमा थे कि अकरमा बिन अबी जहल आया और उसने कहा कि अगर आप (अलैहिस्सलातु-वस्सलाम) सच्चे हैं तो उस पत्थर को बुलाएं जो पानी के दूसरे किनारे पर है वह पत्थर तैरता हुआ आए, और डूबे नहीं। पस हुज़ूर अलैहिस्सलातु-वस्सलाम ने उस पत्थर को इशारा फ़रमाया तो वह अपने मक़ाम से आ खड़ा हुआ और पानी के ऊपर तैरता हुआ आप अलैहिस्सलातु-वस्सलाम की ख़िदमत में हाज़िर हो कर बज़ुबान-ए-फ़सीह अल्लाह तआला के एक होने और आप अलैहिस्सलातु-वस्सलाम के रसूल बरहक़ होने की गवाही दी। आप अलैहिस्सलातु-वस्सलाम ने फ़रमाया, ऐ अकरमा, यह तेरे लिए काफ़ी है? उसने अर्ज़ किया इस शर्त पर कि वह इसी तरह वहीं चला जाए जहाँ से आया था। वह पत्थर वहीं चला गया। (तफ़सीर कबीर, ज़रक़ानी अलल-मवाहिब) 
यह है मेरे आक़ा अलैहिस्सलातु-वस्सलाम का इख़्तियार कि पत्थर को इशारा फ़रमा दें तो पत्थर आपकी बारगाह में हाज़िर हो जाए। सुब्हान अल्लाह। 
नतीजा
अल्लाह तआला हमें सही अक़ीदा रखने और उस पर मुकम्मल साबित क़दम रहने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए। हमें हुज़ूर अलैहिस्सलातु-वस्सलाम की मुहब्बत, उनकी सुन्नतों पर अमल और हमें उनकी शफ़ाअत नसीब फरमाए, आमीन या रब्बल आलमीन !
Listen
Select Sound
1x
* Changing the setting will cause the article to be read again from the beginning.
एक टिप्पणी भेजें
please do not enter any spam link in the comment box.