अल्हम्दुलिल्लाह, हम्द व सना उस ज़ात के लिए जो सारी कायनात का मालिक और परवरदिगार है, जिस के हुक्म के बगैर ज़र्रा भी हिल नहीं सकता। सलात व सलाम उस सरवर-ए-कायनात पर जिन के सदक़े में तमाम आलम को नेअमतें नसीब हुई, जिन की रहमत से जहान-ए-हस्ती को हिदायत और फैज़ मिला।
इल्म-ए-दीन की अहमियत और फज़ीलत
इल्म-ए-दीन की अहमियत और उस की फज़ीलत किसी पर पोशीदा नहीं। जो शख़्स इल्म-ए-दीन हासिल करता है, अल्लाह तआला उस के लिए भलाई के दरवाज़े खोल देता है, जैसा कि इस हदीस-ए-मुबारक में नबी-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि "जिस के साथ अल्लाह भलाईका इरादा, करता है, उसे दीनकी समझ अता करता है।" यह एक अज़ीम उसूल है, जो दीन की तफ़क्कुह और उस की समझ के फ़ज़ाइल को वाज़ेह करता है।
हुज़ूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम अल्लाह के खज़ाने के तकसीम करने वाले
इस हदीस-ए-पाक से यह हक़ीक़त भी मालूल होती है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम अल्लाह के खज़ानों के तक़सीम करने वाले हैं। हर नेअमत उन्हीं के वसीले से बटती है, चाहे वह इल्म हो या दौलत, कामयाबी हो या इज़्ज़त, सल्तनत हो या विलायत।
सही बुखारी की हदीस
हज़रत हुमैद बिन अब्दुर्रहमान ने कहा कि मैंने मुआविया से खुतबा में सुना वो कहते थे कि मैंने हुजूर अलैहिस्सलाम से सुना आप फरमाते थे कि अल्लाह को जिस की भलाई मंजूर होती है उस को दीन की समझ अता फरमाता है और मैं तक्सीम करने वाला हूँ और अल्लाह देता है और ये जमात (इस्लाम) हमेशा अल्लाह के हुकम पर क़ायम रहेगी दुश्मनों से इस को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा यहाँ तक कि अल्लाह का हुकम आजाए यानी क़यामत।
(सहीह बुखारी, किताब अल इल्म, बाब मन युरिद अल्लाहु बेहि खैरा वगैरह जिल्द अव्वल सफहा 16, क़दीमी किताब खाना)
हदीस से मिलने वाले फवाइद
इस हदीस से चंद अहम बातें मालूम होती हैं
1. इस हदीस पाक के अंदर 'वल्लाहु युती' (अल्लाह देता है) में कोई क़ैद है और न ही 'अना क़ासिम' (मैं तक्सीम करता हूँ) में कोई क़ैद है दोनों मुतलक़ हैं इस से मालूम हुआ कि जो चीज़ भी ख़ुदा देता है वो मुस्तफा अलैहित तहिय्यतु वस सना के हाथों से दिलवाता है ख्वाह वो इल्म हो, दौलत हो, माल व औलाद हो, इज़्ज़त व शौकत हो, कामयाबी व कामरानी हो, सल्तनत व बादशाहत हो, विलायत व मा' रिफ़त हो, नुबुव्वत व रिसालत हो, अल गरज़ जो नेअमत भी अल्लाह तआला जिस को अता फरमाता है वो हुज़ूर के ज़रिए अता फरमाता है।
2. इस हदीस मुबारक में ज़माना की भी कोई क़ैद नहीं लिहाज़ा साबित हुआ कि पहले भी जिस को ख़ुदा ने जो कुछ दिया वो हुजूर के ज़रिए दिलवाया आज भी जिस को जो कुछ मिल रहा है वो हुजूर के हाथों से मिल रहा है और कल भी क़यामत तक जिस को जो कुछ मिलेगा वो हुजूर ही के ज़रिए उनही के वासिते से मिलेगा।
बे उन के वासिते के ख़ुदा कुछ अता करे
हाशा ग़लत ग़लत ये हवस बे बसर की है
ज़ाहिर है बाँटने वाला उस वक़्त बाँटेगा जब मालिक ने उस को वो चीज़ दे दी हो जब सब कुछ हुजूर बाँटते हैं और तक्सीम फरमाते हैं तो मालूम हुआ कि अल्लाह तआला ने हर चीज़ मुस्तफा को अता फरमा दी है सारी कायनात उन की मिल्कियत में और उन को उस पर क़ब्ज़ा व इख़्तियार दे दिया गया है कि अल्लाह की अता से जिस को चाहें जो चाहें अता फरमाएँ।
जब नबी के हाथों में खुदा की हर नेअमत मिल रही है तो ज़ाहिर है फिर माँगा भी उन्हीं से जाएगा लिहाज़ा मालूम हुआ कि दीन व दुनिया की किसी नेअमत का भी हुजूर से माँगना और उस का हुजूर से सवाल करना और ये कहना कि या रसूलल्लाह मुझे ये अता कर दीजिए, वो अता कर दीजिए ऐसा कहना न हराम है न शिर्क है न बिदअत।
बाज़ कहते हैं कि हुजूर कोई नफ़ा नहीं पहुंचा सकते लेकिन इस हदीस से साबित हुआ कि हुजूर ऐसे नाफ़े और नफ़ा रसाँ हैं कि सारी कायनात को हर नेअमत उन्हीं से मिलती है।
हदीस मुबारक से मालूम हुआ
इस मुबारक हदीस से कई अहम पेग़ामात हासिल होते हैं, जिनमें सबसे अहम यह है कि इल्म-ए-दीन अल्लाह तआला की बड़ी नेअमतों में से एक है, और जिसे अल्लाह भलाई देना चाहता है, उसे इस नेअमत से नवाज़ता है। इस से मालूम हुआ कि दीन की समझ हासिल करना सिर्फ़ एक इख़्तियारी अमल नहीं, बल्कि अल्लाह की ख़ास तौफ़ीक़ और इनायत का नतीजा है। इसके अलावा, यह हदीस इस बुनियादी अक़ीदे को भी साबित करती है कि तमाम नेअमतों की तक़सीम हुज़ूर-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम के हाथों से होती है। अल्लाह तआला हर खैर व बरकत अपने हबीब सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम के वसीले से अता करता है। यही वजह है कि जो कुछ भी बंदों तक पहुँचता है, वह हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम के वसीले से ही मिलता है।
इस हदीस का एक और अहम पहलू यह है कि उम्मत-ए-मुस्लिम हमेशा हक़ पर क़ायम रहेगी, और मुखालिफ़ीन की कोई चाल इसे ख़त्म नहीं कर सकती। यह इस्लाम की सच्चाई और इस उम्मत की मज़बूती की दलील है।
नतीजा
नतीजा यह निकला कि
1. दीन की समझ अल्लाह की बड़ी नेअमत है और यह उसी को मिलती है जिसे अल्लाह भलाई देना चाहता है।
2. हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम अल्लाह के ख़ज़ाने के तक़सीम करने वाले हैं, हर खैर उन्हीं के वसीले से बंटती है।
3. उम्मत हमेशा हक़ पर क़ायम रहेगी और मुखालिफ़ीन इस का कुछ नहीं बिगाड़ सकेंगे।
दुआ
अल्लाह हमें दीन की सही समझ अता फरमाए और हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम के फ्यूज़ व
बरकात से मुस्तफीद फरमाए आमीन
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