अज़्मत ए वालिदैन दोस्तों आज हम उस नेमत के बारे में बात करेंगे जो अल्लाह तआला ने हमें अता की यानी हमारे वालिदैन। क़ुरान और हदीस की रौशनी में माँ और बाप का ज़िक्र मिलता है उस से अज़्मत ए वालिदैन का पता चलता है। अल्लाह तआला ने कुरान अज़ीम में कई जगह वालिदैन की इताअत और उनकी ख़िदमत का हुक्म दिया है क्योंकि इंसान की दुनिया और आख़िरत की सआदत का दारोमदार इसी पर है।
क़ुरान में अज़्मत ए वालिदैन
अल्लाह तआला ने कुरान में फ़रमाया है वबिल वालेदैने इहसाना यानी अपने माँ-बाप के साथ अच्छा सलूक करो। इस आयत ए मुबारका में इस्लामी तालीमात का वो बुनियादी ज़ाबिता बयान किया गया है जो हमारे मुआशरे को बाक़ी तमाम क़ौमों के मुकाबले में एक मुनफ़रिद मक़ाम अता करती है। इस आयत में बड़े दिलकश अंदाज़ में बताया गया है कि माँ-बाप के साथ कैसा बरताव होना चाहिए।
माँ बाप की ख़िदमत
माँ बाप की ख़िदमत ऐसे करो कि उनके दिल से तुम्हारे लिए दुआ निकले। जब माँ बाप जवान होते हैं तो औलाद उन की फ़रमाँबरदार रहती है मगर जब बुढ़ापा आता है और वो औलाद के सहारे के मुहताज हो जाते हैं तो उस वक़्त औलाद का फ़र्ज़ है कि पूरी मोहब्बत और अदब के साथ उनकी ख़िदमत करे।
अगर वो बीमार हो जाएँ या उनका मिज़ाज चिड़चिड़ा हो जाए तब भी उन की नाज़बर्दारी में कोई कमी नहीं आनी चाहिए।
क़ुरान हमें तंबीह करता है कि माँ बाप के सामने उफ़ तक न कहो। अगर अल्लाह तआला ने तुम्हें उनके बूढ़ापे में ख़िदमत का मौक़ा दिया है तो इसे ग़नीमत समझो। उनकी राहत और आराम के लिए हर मुमकिन कोशिश करो ताकि उनके दिल खुश हों और उनकी दुआएँ तुम्हारे नसीब में आएँ। यही दुआएँ तुम्हारे लिए दुनिया और आख़िरत की सआदतों का ज़रिया बनेंगी।
माँ का मर्तबा हदीस की रौशनी में
क़ुरान के बाद अब हदीस की तरफ़ रुख करते हैं। हज़रत अबू हुरैरा रज़ी अल्लाह अन्हु से रिवायत है कि एक शख़्स ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पूछा मेरे हुस्न-ए-सुलूक का सबसे ज़्यादा मुस्तहिक़ कौन है। आपने फ़रमाया तेरी माँ। उसने पूछा फिर कौन आपने फ़रमाया तेरी माँ। उसने फिर पूछा फिर कौन आपने फ़रमाया तेरी माँ। चौथी बार पूछा तो आपने फ़रमाया तेरा बाप। (मुस्लिम शरीफ)
इस हदीस से मालूम होता है कि माँ का हक़ बाप से ज़्यादा है। क्योंकि वो औलाद को नौ महीने पेट में रखती है, जनने की तकलीफ़ उठाती है, रात-दिन की नींदें कुर्बान करती है और परवरिश के हर मुश्किल मरहले से गुज़रती है। इसी लिए माँ के मर्तबे को क़ुरान और हदीस दोनों में बुलंद किया गया है।
बाप का मर्तबा और उसकी अहमियत
इसका मतलब ये नहीं कि बाप के हक़ से ग़फ़लत बरती जाए। याद रखो वही बाप है जिसने तुम्हारे आराम के लिए अपनी आरामदिह ज़िंदगी कुर्बान की, जो ख़ुद परेशानियाँ झेल कर तुम्हें बेहतर खिलाने और पहनाने की कोशिश करता रहा।
हज़रत रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया अलवालिद औसतु अबवाबिल जन्ना यानी बाप जन्नत का बेहतरीन दरवाज़ा है। अगर चाहो तो नाफ़रमानी करके उसे बंद कर दो या इताअत करके उसे अपने लिए खुला रखो।
एक और हदीस में फ़रमाया गया रज़ा रब्बी फी रज़ा वालिद वसख़त रब्बी फी सख़त वालिद यानी रब की रज़ा बाप की रज़ा में है और रब की नाराज़गी बाप की नाराज़गी में।
इन अहादीस से मालूम हुआ कि बाप का हक़ भी इंतिहाई अहम है और उसकी नाफ़रमानी दुनिया और आख़िरत की रुसवाई का सबब बनती है।
मौजूदा मुआशरे की हकीकत
आज जब हम अपने मुआशरे पर नज़र डालते हैं तो अफ़सोस होता है कि बहुत से माँ-बाप अपनी औलाद से नालाँ हैं। कोई बूढ़ा बाप अपनी बीमारी में कराह रहा है और औलाद उस की परवाह नहीं करती। कोई माँ अपने ही घर में तन्हा और मजबूर पड़ी है और औलाद उस पर तरस खाने के बजाय उसे डाँटती और दूर भगाती है।
दोस्तों अब वक़्त है कि हम इन हालात को बदलें। अपने माँ-बाप को पहचानें, उनकी अहमियत समझें और उनकी ख़िदमत कर के अपने लिए जन्नत का रास्ता आसान बनाएं।
आखरी गुज़ारिश
दोस्तों वालिदैन अल्लाह की दी हुई बड़ी नेमत हैं। उनका ख्याल रखें उनकी ज़रूरतें पूरी करें उनकी ख़िदमत करें। याद रखें के जो औलाद अपने माँ-बाप की ख़ुशी हासिल कर लेती है वो दरअसल रब की रज़ा हासिल कर लेती है।
आओ दुआ करें कि अल्लाह तआला हमें वालिदैन की सच्ची ख़िदमत की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए और हमें दारैन की सआदतों से नवाज़े। आमीन।
सवाल 1: इस्लाम में वालिदैन की अज़्मत क्यों है?
जवाब: क्योंकि क़ुरान में अल्लाह तआला ने फ़रमाया “वबिल वालेदैने इहसाना” यानी माँ-बाप के साथ अच्छा सलूक करो। वालिदैन की ख़िदमत और इताअत अल्लाह की रज़ा का ज़रिया है।
सवाल 2: माँ का मर्तबा बाप से ज़्यादा क्यों बताया गया है?
जवाब: हदीस में नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तीन बार “तेरी माँ” और चौथी बार “तेरा बाप” फ़रमाया। माँ का हक़ इसलिए ज़्यादा है क्योंकि वो औलाद की परवरिश में सबसे ज़्यादा तकलीफ़ उठाती है।
सवाल 3: बाप का मर्तबा क्या है?
जवाब: रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया “अलवालिद औसतु अबवाबिल जन्ना” यानी बाप जन्नत का दरवाज़ा है। उसकी इताअत जन्नत का रास्ता और नाफ़रमानी जहन्नम की तरफ़ ले जाती है।
सवाल 4: वालिदैन की ख़िदमत करने का इनाम क्या है?
जवाब: जो औलाद अपने वालिदैन की सच्चे दिल से ख़िदमत करती है, उसे दुनिया में सकून और आख़िरत में जन्नत में दाखला मिलता हैं। उनकी दुआओं से औलाद की ज़िंदगी में बरकत और कामयाबी मिलती हैं।
