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yateem aur betiyon ki parwarish par इस्लाम की रहमतें और जन्नत की बशारत


यतीम और बेटियों की परवरिश और उनके हुकूक

इस्लाम इंसानियत और औलाद की बेहतरीन परवरिश की तअलीम देता है। रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम) की तालीमात हर इंसान को यतीमों और बेसहारा लोगों के हुकूक़ का एहसास कराती हैं। यह हदीस हमें सिखाती है कि किसी यतीम को सहारा देना या बेटियों और बहनों की परवरिश करना न सिर्फ़ सवाब का अमल है, बल्कि जन्नत की बशारत भी है। साथ ही,

हज़रत इब्ने अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हु) से रिवायत है के, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ने फरमाया, जो किसी यतीम को अपने खाने-पीने में शामिल करे तो अल्लाह उसके लिए जन्नत यक़ीनी तौर पर लाज़िम फरमा देता है, सिवाए इसके कि कोई ऐसा गुनाह करे जो नाकाबिले बख्शिश हो। और जो तीन बेटियों या उनकी मिस्ल बहनों की परवरिश करे, उन्हें अदब सिखाए, उन पर मेहरबानी करे यहाँ तक कि अल्लाह उन्हें बेनियाज़ कर दे, तो अल्लाह उसके लिए जन्नत वाजिब कर देता है।  

‘1’ शख्श ने अर्ज़ किया, "ए-अल्लाह के रसूल-सल्लल्लाहु-तआला-अलैहि वसल्लम ,अगर ’2’  को आपने फरमाया, या ‘2’  को यहाँ तक कि अगर लोग कहते, या ‘1’  को तो आका सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम फरमा देते, ‘1’  को और अल्लाह जिस शख्स की दो प्यारी चीज़ें दूर कर दे, उसके लिए जन्नत-वाजिब हो गई। अर्ज़ किया गया, "ए-अल्लाह के रसूल  सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम, कौन-सी ‘2’  प्यारी चीज़ें?" फरमाया, "उसकी दोनों आँखें।"  

(शरह सुन्ना)  

यतीम को खाना खिलाना:

शारह-ए-मिश्कात फरमाते हैं कि खाने-पीने में शामिल करना आम है, चाहे उसे अपने साथ खिलाए-पिलाए या उसे अपने घर में रखकर उसकी परवरिश करे या यतीमखाना बनाकर उन पर खर्च करे।  

शिर्क व कुफ्र, यह गुनाह क़ाबिले बख्शिश नहीं

"ذَنْبًا لَا يُغْفَر" यानी शिर्क व कुफ्र, कि यह गुनाह क़ाबिले बख्शिश नहीं। रब-ए-काइनात फरमाता है,

"إِنَّ اللَّهَ لَا يَغْفِرُ أَنْ يُشْرَكَ بِهِ وَيَغْفِرُ مَا دُونَ ذَٰلِكَ।"

इसी तरह हुकूक़-उल-इबाद भी किसी नेक अमल से माफ नहीं होते, वह तो अदा करना ही पड़ेंगे या हक़ वाले से माफ कराना होगा।  

(मिरक़ात)  

बेटियों की परवरिश का सवाब:

आम तौर पर बेटों से दुनियावी उम्मीदें वाबस्ता होती हैं कि यह जवान होकर हमारी खिदमत करेंगे, हमें कमाकर खिलाएंगे। लड़कियों से यह उम्मीद नहीं होती, इसलिए लड़कियों का पालना और उन पर सब्र करना ज़्यादा सवाब का काम है। लड़की से मुराद चाहे बेटी हो या बहन। उन्हें सिखाने से मुराद है, इल्म-ए-दीन सिखाना, सिलाई-कढ़ाई और वह हुनर सिखाना जिनकी उन्हें ज़रूरत हो ताकि वह किसी की मोहताज न रहें।  

शारेह मिरक़ात फरमाते हैं

साहिब-ए-मिरक़ात फरमाते हैं कि यहाँ जवाब-ए-आला से मालूम हो रहा है कि अल्लाह की रहमतें और उसकी बख्शिशें हुज़ूर सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम के कब्ज़े में दी गई हैं। जिस नेअमत को चाहें, आम फरमा दें।  

(मिरक़ात)  

अहम नुक्ता:

देखो, जो वादा तीन लड़कियों के पालने पर किया गया था, एक उम्मती के सवाल पर वही वादा दो बेटियों के पालने पर हो गया। यह है हुज़ूर सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम का मुक़्तार मिन अल्लाह होना।  

शेख अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी फरमाते हैं:

इस जगह हज़रत शेख मुहद्दिस अब्दुल हक़ देहलवी फरमाते हैं, "तमाम अहकामात अल्लाह तआला ने हुज़ूर-ए-अकरम सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम के सुपुर्द कर दिए हैं। जो कुछ चाहें करें और जो न चाहें न करें, और जिसकी चाहें तख़सीस कर दें।"  

(अशअतुल-लमआत)

दोस्तों इस सब से हमें मालूम हुआ के ,

1. जो शख्स यतीम को अपने खाने-पीने में शामिल करे, अल्लाह उसके लिए जन्नत को लाज़िम कर देता है।  

2. तीन, दो, या एक बेटी या बहन की परवरिश करने वाले के लिए जन्नत की बशारत दी गई है।  

5. लड़कियों की परवरिश और उन्हें खुदमुख्तार बनाने का सवाब बेटों की परवरिश से ज़्यादा बताया गया है।  

अल्लाह हमें इन इस पर अमल की तौफीक अता फरमाए !

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