रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िंदगी इंसानियत के हर पहलू में रहनुमा है। आपने अपनी उम्मत को यह सिखाया कि यतीम बच्चों की मदद करो उनकी परवरिश करो यह हमारी ज़िम्मेदारी है। जो इंसान यतीम को अपने घर का हिस्सा बना ले उसे अपने खाने-पीने में शामिल करे और उसकी परवरिश करे उसके लिए जन्नत का वादा फरमाया गया है। इसी तरह इस्लाम ने बेटियों की परवरिश को भी रहमत और सवाब का ज़रिया बताया है। जहाँ समाज अक्सर बेटों को तरजीह देता है वहीं इस्लाम ने बेटियों को रहमत कहा और उनकी सही परवरिश को जन्नत में जाने का ज़रिया बताया। जो शख्स अपनी बेटियों या बहनों को प्यार अदब के साथ पालता है और उन्हें इल्म की दौलत से आरास्ता करता है उन्हें खुदमुख्तार बनाता है अल्लाह तआला उसके लिए जन्नत वाजिब कर देता है।
इस तरह इस्लाम की तालीमात हमें यह बताती है कि यतीम और बेटियाँ बोझ नहीं बल्कि रहमत और नेमत हैं। उनकी परवरिश करना सिर्फ़ इंसानियत नहीं बल्कि ईमान का तकाज़ा है और यही अमल इंसान को रब की रहमत और जन्नत का हक़दार बनाता है।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यतीम की देखभाल करने वाले और बेटियों की परवरिश करने वाले को जन्नत की बशारत दी। क्योंकि यतीम अपने सहारे से महरूम होता है और बेटी समाज में सब्र,रहम और एहसान का पैमाना है। जो शख्स इन दोनों की परवरिश में अपनी मोहब्बत,माल और वक़्त लगाता है,वह दरअस्ल अल्लाह की रहमत और रज़ा को हासिल करता है। इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि इस्लाम ने यतीमों और बेटियों के क्या हुकूक़ बताए हैं,और उनकी परवरिश का सवाब कितना बड़ा है।
यतीम और बेटियों की परवरिश और उनके हुकूक
इस्लाम इंसानियत और औलाद की बेहतरीन परवरिश की तालीम देता है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तालीमात हर इंसान को यतीमों और बेसहारा लोगों के हुकूक का एहसास कराती हैं यह हदीस हमें सिखाती है कि किसी यतीम को सहारा देना या बेटियों और बहनों की परवरिश करना न सिर्फ सवाब का अमल है बल्कि जन्नत की बशारत भी है।
हदीस का बयान
हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो किसी यतीम को अपने खाने पीने में शामिल करे तो अल्लाह उसके लिए जन्नत यकीनी तौर पर लाज़िम फरमा देता है सिवाए इसके कि कोई ऐसा गुनाह करे जो नाकाबिले बख्शिश हो और जो तीन बेटियों या उनकी मिस्ल बहनों की परवरिश करे उन्हें अदब सिखाए उन पर मेहरबानी करे यहाँ तक कि अल्लाह उन्हें बेनियाज़ कर दे तो अल्लाह उसके लिए जन्नत वाजिब कर देता है एक शख्स ने अर्ज किया ए अल्लाह के रसूल अगर दो को आपने फरमाया या दो को यहाँ तक कि अगर लोग कहते या एक को तो आका सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमा देते एक को और अल्लाह जिस शख्स की दो प्यारी चीजें दूर कर दे उसके लिए जन्नत वाजिब हो गई अर्ज किया गया ए अल्लाह के रसूल कौन सी दो प्यारी चीजें फरमाया उसकी दोनों आँखें।
यतीम को खाना खिलाना
शारह ए मिश्कात फरमाते हैं कि खाने पीने में शामिल करना आम है चाहे उसे अपने साथ खिलाए पिलाए या उसे अपने घर में रखकर उसकी परवरिश करे या यतीमखाना बनाकर उन पर खर्च करे।
बेटियों की परवरिश का सवाब
आम तौर पर बेटों से दुनियावी उम्मीदें वाबस्ता होती हैं कि यह जवान होकर हमारी खिदमत करेंगे हमें कमाकर खिलाएंगे, लड़कियों से यह उम्मीद नहीं होती इसलिए लड़कियों का पालना और उन पर सब्र करना ज़्यादा सवाब का काम है लड़की से मुराद चाहे बेटी हो या बहन उन्हें सिखाने से मुराद है इल्म ए दीन सिखाना सिलाई कढ़ाई और वह हुनर सिखाना जिनकी उन्हें ज़रूरत हो ताकि वह किसी की मोहताज न रहें।
रहमत और बख्शिश का इख्तियार
साहिब ए मिरक़ात फरमाते हैं कि यहाँ जवाब ए आला से मालूम होता है कि अल्लाह की रहमतें और उसकी बख्शिशें हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कब्जे में दी गई हैं जिस नेअमत को चाहें आम फरमा दें।
अहम नुक्ता
देखो जो वादा तीन लड़कियों के पालने पर किया गया था एक उम्मती के सवाल पर वही वादा दो बेटियों के पालने पर हो गया यह है हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मालिक ओ मुख्तार होना अल्लाह की अता से।
शेख अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी का बयान
हज़रत शेख मुहद्दिस अब्दुल हक़ देहलवी फरमाते हैं तमाम अहकामात अल्लाह तआला ने हुज़ूर ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सुपुर्द कर दिए हैं जो कुछ चाहें करें और जो न चाहें न करें और जिसकी चाहें तख़सीस कर दें।
नतीजा
1 जो शख्स यतीम को अपने खाने पीने में शामिल करे अल्लाह उसके लिए जन्नत को लाज़िम कर देता है
2 तीन दो या एक बेटी या बहन की परवरिश करने वाले के लिए जन्नत की बशारत दी गई है
3 लड़कियों की परवरिश और उन्हें खुदमुख्तार बनाने का सवाब बेटों की परवरिश से ज़्यादा बताया गया है
इख्तेतामी कलमात
यतीम बच्चे जो अपने वालिदैन की ममता से महरूम हो चुके होते हैं अगर कोई उन्हें अपने घर का हिस्सा बना ले उनके साथ खाना खाए और उनका सहारा बने तो यह अमल सिर्फ़ इंसानियत नहीं बल्कि इस से अल्लाह और उसके रसूल की रज़ा हासिल होती है।
इसी तरह बेटियाँ जो रहमत हैं उनकी परवरिश करना उन्हें इल्म अदब और हुनर सिखाना और उन्हें खुदमुख्तार बनाना यह बहुत बड़ा सवाब है। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि जिसने तीन दो या एक बेटी या बहन की सही परवरिश की उसके लिए जन्नत वाजिब कर दी गई।
आज जब समाज में अक्सर बेटियों की अहमियत को नज़रअंदाज़ किया जाता है हमें इस्लाम की इन तालीमात से सबक लेना चाहिए। यतीम की मुस्कुराहट और बेटी की तरबियत दोनों ही जन्नत के रास्ते हैं।
अल्लाह तआला हमें तौफीक़ दे कि हम यतीमों और बेटियों के हक़ अदा करें उन्हें मोहब्बत अदब और अमानत के साथ पालें और इस अमल से अपनी आख़िरत संवार लें।
सवाल: बेटियों की परवरिश का इस्लाम में क्या दर्जा है?
जवाब: इस्लाम में बेटियों की परवरिश रहमत और सब्र का इम्तेहान है। हदीस में आया है कि जिसने तीन, दो या एक बेटी या बहन की अच्छी परवरिश की, उन्हें अदब और हुनर सिखाया, उसके लिए जन्नत वाजिब कर दी गई। बेटियों को रहमत कहा गया है, ना कि बोझ।
सवाल:क्या बेटियों की परवरिश बेटों की परवरिश से ज़्यादा सवाब रखती है?
जवाब: हाँ,क्योंकि बेटियों से दुनियावी उम्मीदें नहीं रखी जातीं। जब कोई शख्स बेटियों को मोहब्बत, सब्र और जिम्मेदारी से पालता है, तो वह अल्लाह की राह में ख़िदमत करता है। इसलिए बेटियों की परवरिश का सवाब बेटों से ज़्यादा बताया गया है।
सवाल: अगर कोई यतीमखाना बनाए या यतीम बच्चों की मदद करे तो क्या वही सवाब मिलेगा?
जवाब: जी हाँ, जो शख्स यतीमखाना बनाकर या यतीमों पर खर्च करके उनकी परवरिश में हिस्सा लेता है, उसे भी वही सवाब मिलेगा। हदीस के मुताबिक़ यतीम को अपने खाने-पीने में शामिल करना आम है चाहे सीधे तौर पर या उनके ख़र्च में मदद के ज़रिए।
सवाल: इस्लाम में यतीम की परवरिश का क्या सवाब है?
जवाब: इस्लाम में यतीम की परवरिश बहुत बड़ा नेकी का अमल है। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि जो शख्स किसी यतीम को अपने खाने-पीने में शामिल करे,अल्लाह उसके लिए जन्नत को लाज़िम कर देता है। यतीम की देखभाल करने वाला जन्नत में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ होगा।
