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sachai ki barkat quran hadees aur वाक्यात की रौशनी में सच्चाई की अहमियत


सच्चाई की बरकत: कुरान, हदीस और वाक्यात की रौशनी में

सच्चाई इंसान को, आम व खास आदमी का महबूब बनाती है। इस तहरीर में कुरान,हदीस और वाकिआत के ज़रिए सच्चाई की बरकत,फज़ीलत और अहमियत पर रोशनी डाली गई है। जानें सच्चाई कैसे हमें जन्नत का रास्ता दिखाती है और मौजूदा दौर में इसकी अहमियत।
दोस्तों आप यह जान लें कि सच्चाई एक ऐसी शै है जो अपने आमिल को महबूब-ए-आम व ख़ास बना देती है। सच्चाई इंसान को बा-रौब और बारौनक बना देती है, सच्चाई इंसान को दुनिया और अहल-ए-दुनिया से बेख़ौफ़ कर देती है। सच्चाई एक ऐसी सीढ़ी है जो इंसान को मर्तबा-ए-आला के बाम-ए-उरूज पर ला खड़ा करती है।
आप बख़ूबी जानते हैं कि वो सच्चाई ही थी जिसने सिद्दीक़-ए-अकबर को सदाक़त में मुमताज़ बनाया था। वो रास्तबाज़ी ही की दौलत थी जिसने फ़ारूक़-ए-आज़म को अदालत में यकताए-रोज़गार बनाया था। वो सच्चाई ही की जलवा-गरी थी जिसने हज़रत उस्मान-ए-ग़नी को सख़ावत में बेमिसाल बनाया था। वो सच्चाई ही की बरकत थी जिसने मौला अली शेर-ए-ख़ुदा को शुजाअत व बहादुरी में आला मक़ाम अता किया।

कुरान-ए-मुक़द्दस में सच्चाई की ताकीद

क़ुरआन-ए-मुक़द्दस और अहादीस-ए-मुबारका में सच्चाई इख़्तियार करने की ताकीदात वारिद हुई हैं और सच्चों के लिए जन्नत की ख़ुशख़बरी सुनाई गई है। क़ुरआन-ए-मुक़द्दस का इरशाद है:
"या अय्युहल्लज़ीना आमनू इत्तक़ुल्लाहा वकूनू मआस्सादिक़ीन"
(ऐ ईमान वालों! अल्लाह-से डरो-और-सच्चों के साथ-हो जाओ।)

इसलिए कि जो सच्चे होते हैं, वो सादिक़-उल-ईमान होने के साथ मुख़लिस भी होते हैं। जिनकी सोहबत से ईमान का दरख़्त शादाब रहता है, इश्क़ व इरफ़ान की मंज़िल मिलती है, और सबसे बढ़कर ये कि सच्चों की सोहबत से ईमान की हिफ़ाज़त होती रहती है।

सच्चाई की ताकीद हदीस-ए-मुबारका में

और मोहसिन-ए-इंसानियत (सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया कि सच्चाई इंसान को नेकी की तरफ़ ले जाती है और नेकी जन्नत की तरफ़ ले जाती है, और झूठ इंसान को बुराई की तरफ़ ले जाता है और बुराई जहन्नम में ले जाती है।

सच्चाई और सहाबा का अमल मुबारक

दोस्तों! सच्चाई और नेकी की बात चली है तो इस ज़िमन में हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम के ज़माने का वो वाक़या मुलाहिज़ा कर लीजिए। जिसे अहले सुन्नत की मोअत्बर किताब “सच्ची हिकायात” के अन्दर ब्यान किया गया है।
के हुज़ूर के ज़माने में एक सहाबी हज़रत अबू दुजाना (रज़ी अल्लाहु अन्हु) थे उनका रोज़ाना का यह मामूल था कि नमाज़ सुबह अदा करते ही फ़ौरन मस्जिद से घर चले जाते। एक दिन रसूल-ए-पाक (सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम) ने उनसे दरयाफ्त फरमाया  कि तुम ऐसा क्यों करते हो? उन्होंने फरमाया के हुज़ूर: मेरे पड़ोसी के घर में छोहारे का एक दरख़्त है। रात के वक़्त उसके छोहारे मेरे सहन में गिरते हैं। तो सुबह के वक़्त मेरे बच्चे उनको उठा लेते हैं। इसलिए बच्चों के सोकर उठने से पहले ही उन तमाम छोहारों को जो मेरे सेहन में गिरे हुए होते हैं उठाकर पडोसी के घर डाल देता हूँ  के कहीं  मेरे बच्चे उन्हें बग़ैर इजाज़त उठाकर खा न लें। इसलिए  मैं जल्दी चला जाता हूँ। तो कहने का मतलब यह है दोस्तों के सहाबी रसूल के सीने में सच्चाई की लहरें मौजें मार रही थीं। जिसने उन्हें उस नेकी पर आमादा किया, और नेकी ही तो जन्नत में ले जाने वाली चीज़ है। लिहाज़ा सच्चाई की वजह से इंसान जन्नत में चला जाता है।

मौजूदा दौर में सच्चाई की कमी

दोस्तों! लेकिन मौजूदा ज़माने में जब इंसानों की रास्तगौई का जायज़ा लिया जाता है, तो सिवाय चंद के कोई भी सच्चाई के मेअयार पर पूरा नहीं उतरता।जिधर देखिये झूट की दास्तान बयान की जा रही है जिसको देखिये वही अपनी ज़बान पर झ्झूते नगमे सजाए बेठा है और चंद को छोड़कर तुज्जार हज़रात के हालात तो और ना गुफ्ता बिह हैं अपना माल बेचने के लिए खुशामद करते हुए नज़र आते हैं माल की खूबियाँ ब्यान करने में बे जा मुबालिगा करते हुए दिखाई पढ़ते हैं बल्के माल दिखाते हुए सुब्हानल्लाह सुब्हानल्लाह कहते हुए नहीं थकते और मकसद यह होता है के किसी तरह ग्राहक को अपना माल थमा दें खूब चिकनी चुपड़ी बातें करके ग्राहक को फुसला लेते हैं और जहां मुनाफे की तंगी महसूस हुई या खरीदो फरोख्त में में कोई काम अपनी मर्ज़ी के खिलाफ हुआ तो जिस ग्राहक को अभी कुछ लम्हे पहले हुज़ूर हुज़ूर कह रहे थे उसी हुज़ूर को बड़ी बे दर्दी से धुत्कारने लगते हैं चाहे उसका दिल दुखे या टुकड़े टुकड़े हो जाए ज़र्रा बराबर भी उसकी परवाह नहीं करते मुसलामानों किसी की दिल आज़ारी करना याह यकीनन गुनाह का काम है और इस पर झूट बोलना यह और भी बड़ा गुनाह है इसलिए याद रखिये के झूट बोलने वाले पर अल्लाह की लानत होती है झूट इंसान को हलाकत में डाल देता है झूट ने इन्सान तरह तरह की बुराइयों का शिकार हो जाता है और झूट जहन्नम में ले जाने वाली चीज़ है ।

तिजारत और सच्चाई का इनाम

आप पर वाज़ेह होना चाहिए कि जो हज़रात तिजारत के पेशे में दियानतदारी और सच्चाई इख्तियार करते हैं, उनके लिए कितना बड़ा इनाम होता है। एक बार सरकार-ए-अब्द-ए-क़रार(सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम) की बारगाह में कुछ सहाबा-ए-किराम हाज़िर थे। किसी ने अर्ज़ किया:
"या रसूलअल्लाह (सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम)! मैं कपड़े की सिलाई का काम करता हूँ।"
आका (सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम) ने फ़रमाया:
अगर तुमने इस काम में सच्चाई इख्तेयार की, तो तुम हज़रत-इदरीस (अलैहिस्सलाम) के साथ जन्नत में जाओगे।

दूसरे ने अर्ज़ किया: हज़ूर! मैं मअम्मार हूँ।
हुज़ूर (सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया:
अगर तुम अपने काम में सच्चे रहे तो, तुम हज़रत-इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) के साथ जन्नत में जाओगे।

एक तीसरे शख्स ने अर्ज़ किया, या-रसूलअल्लाह (सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम), मैं तिजारत-करता हूँ। बताइए मेरे लिए क्या है?
आका (सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम) ने फ़रमाया, अगर तुमने भी सच्चाई इख्तेयार की, तो तुम मेरे साथ जन्नत में जाओगे।

दोस्तों! सच्चाई इख्तियारकरने की वो बरकतें हैं कि जन्नत की खुशखबरी और बशारतें दी जा रही हैं। अल्लाह पाक हमें सच्चाई इख्तियार करने की तौफ़ीक़ दे।

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