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islami bhaichare ka paigam aur मुसलमानों की जिम्मेदारियां

इस्लाम का पैग़ाम इंसानी बराबरी और दिलों की पाकीज़गी का है। मुसलमानों को तक़वा अपनाते हुए अपने भाइयों का हक़ अदा करना चाहिए और हर तरह की ऊंच-नीच से..

इस्लामी तालीमात: मुसलमानों के हुक़ूक़ और तक़वा की अहमियत

इस्लाम एक ऐसा दीन है जो इंसानियत, भाईचारे और मुसावात का दरस देता है। नबी-ए-करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने अपनी उम्मत को ये तालीम दी कि हर मुसलमान दूसरे मुसलमान का भाई है, और उसके हुक़ूक़ का अदा करना हर मुसलमान का फ़र्ज़ है। नीचे दी गई हदीस मुबारक में ये वाज़ेह किया गया है कि किसी मुसलमान की तौहीन, उस पर ज़ुल्म, या उसे हक़ीर समझना कितना सख्त गुनाह है। इसके साथ ही, इसमें ये भी ज़ाहिर किया गया है कि इस्लाम में इज़्ज़त सिर्फ़ तक़वा और परहेज़गारी की बुनियाद पर है, न कि दौलत, नसब या शख्सियत की बुनियाद पर।  

हदीस-ए-मुबारक

हज़रत अबू हुरैरह रदी अल्लाहु अन्हु से रिवायत है के रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया  मुसलमान, मुसलमान का भाई है न वह उन पर ज़ुल्म करता है और न उसे हक़ीर जानता है न उसे बे यारो मददगार छोड़ता है। तक़वा यहाँ है और अपने सीने की तरफ़ तीन मर्तबा इशारा फरमाया। इंसान के लिए ये शर काफी है कि अपने मुसलमान भाई को हक़ीर जाने। हर मुसलमान पर दूसरे मुसलमान का खून, माल और उसकी इज़्ज़त हराम है।  

(मुस्लिम)  

तशरीह और पैग़ाम

तशरीह: وَلَا يُحَقِّرُه यानी न तो मुसलमान को दिल में हक़ीर जानो, न उसे हिक़ारत के अल्फाज़ से पुकारो या बुरे लक़ब से याद करो, न उसका मज़ाक़ बनाओ। आजकल ये ऐब हम में बहुत हैं। पेशों, नसबों या ग़रीबों-अफ़लास की वजह से मुसलमान भाई को हक़ीर जानते हैं। यहाँ तक कि हम में बिरादरी ता'स्सुब बहुत हो गया है कि वो अंसारी है, वो मंसूरी है, वो फ़लाँ है, वो फ़लाँ है। इस्लाम ने ये सारे फ़र्क़ मिटा दिए।  

शहद की मक्खी मुख्तलिफ़ फूलों का रस चूस लेती है तो उसका नाम शहद बन जाता है। मुख्तलिफ़ लकड़ियों को आग जलाए तो उसका नाम राख हो जाता है। आम, जामुन, बबूल और कीकर का फ़र्क़ मिट जाता है। यूँ ही जब सरकार-ए-दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम  का दामन पकड़ लिया तो सब मुसलमान एक हो गए। हबशी हो या रूमी।  

मौलाना जामी फरमाते हैं:  

बंद-ए-इश्क़ शुदी, तरक-ए-नसब कुन जामी।  

कि दर ईं राह फ़लाँ इब्न फ़लाँ चीज़े नेस्त।  

अल्लाह की बारगाह में मुकर्रम 

التَّقْوَى ھھنا: इस्लाम में इज़्ज़त, तक़वा और परहेज़गारी से है और तक़वा का असली ठिकाना दिल है। तुम्हें क्या खबर कि जिस मिस्कीन मुसलमान को तुम हक़ीर समझते हो, उसका दिल तक़वा की शमा से रौशन हो और वो अल्लाह का प्यारा हो, तुमसे बेहतर हो। 

सूफ़िया ए किराम  फरमाते हैं 

सूफ़िया किराम इस जुमले के मानी यूँ करते हैं कि हुज़ूर खातमुन-नबिय्यीन सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने सीने की तरफ़ इशारा करके फरमाया कि तक़वा और परहेज़गारी यहाँ है। यानी तक़वा की कान और परहेज़गारी का मर्कज़ मेरा सीना है। मेरे सीने से, तमाम औलिया और उलमा के दिलों की तरफ़ तक़वा के दरिया बहते हैं। उन सीनों से अवाम के सीनों की तरफ़ तक़वा की नहरें निकलती हैं।  

(मिरक़ात अज़ मुल्ला अली क़ारी)  

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का सीना-ए-अनवर कश्फ़-ए-ग़ुयूब का आइना है। कौनेन में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अता'एं बहती हैं।  

دَمُهُ وَمَا لَهُ وَعِرْضُهُ: यानी कोई मुसलमान किसी मुसलमान का माल बग़ैर उसकी इजाज़त के न ले। किसी की आबरू-रेज़ी न करे और किसी मुसलमान को ना-हक़ और ज़ुल्मन क़त्ल न करे क्योंकि ये सब सख़्त जुर्म हैं।  

(मरात-उल-मनाजीह)

इस्लामी तालीमात: मुसलमानों के हुक़ूक़ और तक़वा की अहमियत

इस्लाम इंसानियत, भाईचारे, की तालीम देता है। पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने मुसलमानों को ये तालीम दी कि हर मुसलमान एक-दूसरे का भाई है और उसका ख्याल रखना हर मुसलमान का फ़र्ज़ है। मुसलमान के खून, माल, और इज़्ज़त की हिफ़ाज़त करना हर मुसलमान की जिम्मेदारी है।

हदीस का सबक, मुसलमान के  हुक़ूक़:

किसी मुसलमान को ज़लील या हक़ीर न समझें। न उसे बे यारो मददगार छोड़ें और न ही उस पर ज़ुल्म करें। मुसलमान का खून, माल और इज़्ज़त हराम है।

इस्लामी भाईचारे का पैग़ाम:

इस्लाम ने जात-पात, नसब और अमीरी-गरीबी के सभी फ़र्क मिटा दिए। सभी मुसलमान, चाहे वह हब्शी हों या रूमी, सब मुसलमान आपस में भाई हैं  

मुसलमानों की ज़िम्मेदारियाँ:

किसी मुसलमान को बुरे नामों से न पुकारें और न उसका मज़ाक उड़ाएं। अपने भाई की इज़्ज़त करें और उसे सहारा दें। यह याद रखें कि जिसे आप हक़ीर समझते हैं, हो सकता है वह अल्लाह के नज़दीक आपसे बेहतर हो।

खुलासा:

इस्लाम का असल पैग़ाम भाईचारा, इंसाफ और परहेज़गारी है। हर मुसलमान का फ़र्ज़ है कि वह अपने मुसलमान भाई के हुक़ूक़ का ख्याल रखे और तक़वा को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाए। अल्लाह तआला हमें इन तालीमात पर अमल करने की तौफ़ीक़ अता फरमाए। आमीन


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