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Allah walon ki ibadat karamat और वफ़ात का वाक़या

ज़ाकिर गुलाम

यह एक ऐसे नेक और परहेज़गार ग़ुलाम का वाक़या है जिसने अपनी ज़िंदगी को पूरी तरह अल्लाह की इबादत और बंदगी के लिए वक़्फ़ कर दिया। उसकी नमाज़, ज़िक्रे इलाही और रातों की मुनाजात ने न केवल उसके मालिक को हैरत में डाल दिया बल्कि येह साबित कर दिया के सच्ची इबादत और अल्लाह से वाबस्तगी इंसान को किस मक़ाम तक पहुँचा सकती है।

अल्लाह वालों की नमाज़ और वफ़ात  

एक शख्स ने ग़ुलाम खरीदा। ग़ुलाम ने अपने आका से कहा: ऐ मेरे आका, मेरी आपसे तीन शर्तें हैं।  

जब नमाज़ का वक़्त आ जाए तो आप मुझे नमाज़ से मना नहीं करेंगे।  

आप दिन को मुझसे ख़िदमत लें और रात को मुझे मशगूल न रखें।  

आप मेरे लिए एक कमरा वक़्फ़ कर दें जहाँ मेरे अलावा कोई दाख़िल न हो।  

आका ने उसकी तीनों शर्तें क़बूल कर लीं। ग़ुलाम ने सारे घर का चक्कर लगाया और एक खाली कमरे को पसंद किया।  

आका ने ग़ुलाम से कहा

तूने यह खाली कमरा क्यों पसंद किया?  

ग़ुलाम ने अर्ज़ कियाا 

क्या आपको यह पता नहीं कि खाली घर अल्लाह तआला के ज़िक्र से आबाद हो जाता है?  

फिर वह ग़ुलाम उस कमरे में रात को (ज़िक्रे इलाही में) मशगूल रहने लगा।  

उसके आका ने एक रात शराब और रक़्स-ओ-सुरूर की महफ़िल सजाई। जब आधी रात हुई तो उसके दोस्त सब चले गए। 

आका उठा और सारे घर का चक्कर लगाया। जब ग़ुलाम के कमरे के पास पहुँचा तो देखा कि एक नूर की क़ंदील आसमान से लटक रही है और ग़ुलाम सज्दे में अपने रब तआला से मुनाजात कर रहा है और अर्ज़ कर रहा है:  

ऐ मेरे इलाही, तूने दिन को मेरे मालिक की ख़िदमत मेरे ज़िम्मे लाज़िम कर दी। अगर मेरे ज़िम्मे यह ख़िदमत न होती तो दिन-रात तेरी ही इबादत में मसरूफ रहता। ऐ मेरे रब, मुझे माफ़ कर।  

मालिक फज्र तक यह नज़ारा देखता रहा। इसके बाद क़ंदील आसमान की तरफ़ चली गई और छत से नूर बंद हो गया।  

आका ने अपनी बीवी से यह सारा वाक़या बयान किया। जब दूसरी रात आई, तो आका और उसकी बीवी खाली कमरे के पास गए।  

उन्होंने देखा कि छत पर क़ंदील उसी तरह लटकी हुई है और ग़ुलाम फज्र तक मुनाजात करता रहा।  

अगले दिन आका और बीवी ने ग़ुलाम को बुलाकर कहा:  

तू अल्लाह के लिए आज़ाद है ताकि तू आज़ाद होकर उसकी इबादत कर सके जिससे तू माज़रत करता है।  

दोनों ने ग़ुलाम को उसकी करामत से आगाह किया जो उन्होंने रात को देखी थी।  

जब ग़ुलाम ने यह सुना तो दोनों हाथ उठाकर अर्ज़ की:  

या इलाही, मैंने तुझसे अर्ज़ की थी कि मेरा पर्दा और हाल ज़ाहिर न फ़रमाना। जब तूने मेरे हाल को ज़ाहिर कर दिया है तो मेरी रूह क़ब्ज़ कर ले।

फिर वह मुर्दा होकर गिर पड़ा। अल्लाह उस पर रहमत करे।

यह वाक़या से हमें सबक़ मिलता है कि अल्लाह के नेक बंदे हर वक़्त अल्लाह का ज़िक्र करते हैं ज़िक्र से गफलत नहीं बरतते। और यही अमल उनके रूहानी मक़ाम को बुलंद कर देता है। यह ग़ुलाम, जो अपनी दुआओं में अल्लाह से अपने पर्दे की हिफ़ाज़त की गुज़ारिश करता रहा, आख़िरकार अपनी वफ़ात से पहले अपने हाल के ज़ाहिर होने पर अपने रब से मिल जाने की दुआ करता है। यह साबित करता है कि ज़िक्र और इबादत का असली मक़सद सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह की रज़ा है।   

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