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sukoon aur raahat अल्लाह की याद में है

आज जब हम अपने समाज व मुआशरे में नज़र ड़ालते हैं तो चैन ओ सुकून और इत्मीनान नज़र नहीं आता है। चैनो सुकून कैसे हासिल हो?


अस्सलामु अलैकुम इस तहरीर में यह बताऊंगा के हमें सुकून व इत्मीनान कैसे हासिल हो और दिल का चैन और सुकून किस चीज़ में है। 

दोस्तों आज जब हम अपने समाज व मुआशरे में नज़र ड़ालते हैं तो चैन ओ सुकून और इत्मीनान नज़र नहीं आता है।

सुकून व राहत मुयस्सर नहीं, 

आज इंसान दुनिया हासिल करने की फ़िक्र में आखिरत से बिल्कुल ग़ाफ़िल हो चुका है खशिय्यते इलाही और खौफे रब्बानी का दूर-दूर तक शाएबा नज़र नहीं आता। यही वजह है कि आज इंसान दुनिया कमाने के लिए हर जाइज़ व नाजाइज़ तरीका अपनाते चला जा रहा है, दुनिया के हासिल और माल व दौलत का अंबार इकट्ठा करने में इतना मस्त व बे खुद हो चुका है कि उसे किसी दूसरी चीज़ की परवाह ही नहीं मगर हैरत की बात यह है कि इतना कुछ होते हुए भी उसे राहत की नींद मुयस्सर नहीं चैनों सुकून नहीं। 

अल्लाह दिली इत्मीनान और सुकून अता फरमाता है।

इसके बर अक्स जो लोग खौफे खुदा को दिल में रखकर इबादत भी करते हैं और अहलो अयाल की परवरिश के लिए दुनियावी कारोबार भी करते हैं जो लोग आखिरत को पेशे नज़र रखते हैं और दुनियावी मुआमलात को भी सुलझाते हुए चलते हैं, अल्लाह तआला उन्हें दुनियावी दौलत से भी मालामाल करता है और दिली इत्मीनान व सुकून भी अता फरमाता है, पता चला की असली इत्मीनान दौलत व सर्वत के अंबार और दुनियावी खज़ानों के ढेर में नहीं बल्कि असली इत्मीनान और क़ल्बी सुकून अल्लाह तआला की इबादत व इताअत में है, जैसा कि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का इरशादे गिरामी है। “अला बिज़िक्रल्लाहि तत्मइन्नुल क़ुलूब” (पारा,13 सूरह, रअद आयत 28)

तर्जुमा: सुनलो अल्लाह की याद ही में दिलों का चैन है (कंज़ुल ईमान)

पता चला के दिलों का चैन सुकून व इत्मीनान अल्लाह की याद मैं है अल्लाह के ज़िक्र में है। इसलिए इंसान को चाहिए के इबादत ए इलाही से ग़ाफ़िल ना हो। इबादत ए इलाही करता रहे, ज़िक्रे इलाही करता रहे। और अल्लाह पाक का एक यह इनाम भी है के जो अल्लाह की याद करता है उसका ज़िक्र करता है तो उसे चैनो सुकून और इत्मीनान नसीब होता है !

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