ज़ुबान के असरात: मीठे बोल और कड़वी बातों का नतीजा
इन्सान को रहती है, मुहब्बत की ज़ुबां याद। इन्सान, तमाम मख़लूक़ात में अफज़ल है। उसकी सबसे बड़ी ख़ुसूसियत यह है कि उसे बोलने और अपने ख़्यालात के इज़हार की सलाहियत हासिल है। यह अल्लाह की दी हुई बहुत बड़ी नेमत है। लेकिन इस नेमत का इस्तेमाल दो तरीकों से होता है: अच्छा बोलकर या बुरा बोलकर। इन दोनों के असरात का फ़र्क, इन्सान की ज़िंदगी पर बहुत गहरा पड़ता है।
लेहजे में अगर-रस हो तो, 2 बोल बहुत हैं।
इन्सान को रहती है, मुहब्बत की ज़ुबां याद।
मीठे बोल: कामयाबी की कुंजी
इंसान, दूसरे तमाम जानदारों के मुकाबले में. कई इम्तियाज़ी ख़ुसूसियत का हामिल है। इन में से एक यह के, इंसान को क़ुव्वते गोयाई हासिल है। वह बोल सकता है, गुफ्तगू कर सकता है, और अपने ख्यालात व जज़्बात का, अल्फाज़ व जुमलों में इज़हार कर सकता है। इंसान के लिए अल्लाह की यह बहुत बड़ी नेमत है। अपने बोलने की इस सलाहियत को इंसान, दो तरीकों से इस्तेमाल कर सकता है। एक मीठा बोलकर, अच्छी गुफ्तगू करके, दिल नशीं लहजे के साथ, प्यारे और दिलकश अंदाज़ में, खूबसूरत तर्ज़ से, नेक बा मक़सद और बा मानी अल्फाज़, और जुमलों की बंदिश के साथ, के जिससे सुनने वाले मुतास्सिर हों, फ़रेफ्ता हो जाएं, अच्छा तास्सुर लें, और नेक व बा अमल बनें।
कड़वी बातें: रिश्तों का बिखराव
अपनी क़ुव्वते गोयाई के इस्तेमाल का दूसरा तरीका यह है के, इंसान बुरा लहजा रखे, तुर्श और कड़वी बातें करे, तंज़ करे, दूसरों को ज़लील करे, अपनी बड़ाई के अल्फाज़ इस्तेमाल करे, गाली गलौज करे, दूसरों को फटकारे, उन पर गुस्सा करे, या नाज़ेबा अल्फाज़ इस्तेमाल करे। बोलने की सलाहियत का ऐसा इस्तेमाल, इंसान के लिए वबाले जान बन जाता है, वह सबकी नज़रों में ज़लीलो ख़्वार होता है, इज़्ज़त कम या खत्म हो जाती है, रिश्ते बिखर जाते हैं, दोस्त दुश्मन बनते हैं, और दुनिया व आख़िरत की बर्बादी हाथ आती है।
अब यह हम सबका फैसला है के, हम अपनी इस अज़ीम नेमत का, कैसे इस्तेमाल करते हैं, एक हदीस का मफहूम है के, जो शख्स अपनी ज़बान और शर्मगाह की ज़मानत दे, में उसे जन्नत की ज़मानत देता हूं। एक शख्स अक्सर एक दुकान से सामान खरीदता है, दुकानदार दूसरों के मुकाबले में उसे कम कीमत में सामान दे देता है, क्यूं? इसलिए के वह बहुत अच्छे, नरम और दिलचस्प, अंदाज़ में गुफ्तगू करता है. अच्छा लहजा रखना सबके लिए फायदा मंद है। इससे खुद हमारी शख्सियत निखरती है, दूसरे मरऊब होते हैं, इज़्ज़त मिलती और बढ़ती है, और ताल्लुकात तादेर काइम रहते हैं।
चाहे कितना ही कोई, खुदको महज़ब समझे,
गुफ्तगू, ज़र्फ का मेयार बता देती है।
बात करने के दो ही अंदाज़ होने चाहिए, या तो तमीज़ से की जाए, या दलील से की जाए, वरना बकवास तो कोई भी कर सकता है।
नतीजा
बात करने के दो ही सही तरीक़े हैं: तमीज़ से या दलील से। इंसान अपनी ज़ुबान को नेक और महज़ब बनाए रखे तो कामयाबी और मोहब्बत उसका मुक़द्दर बनती है। गुफ्तगू की सलाहियत, अल्लाह की दी हुई बड़ी नेमत है। इसका सही इस्तेमाल, इन्सान को दुनिया और आख़िरत दोनों में सरख़रू करता है।
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