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नमाज़ पढ़ने की फज़ीलत Namaz ki Fazilat

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अस्सलामु अलैकुम इस आर्टिकल में आप कुरान व हदीस की रौशनी में नमाज़ की फ़ज़ीलत और अहमियत के बारे में जानेंगे।

नमाज़ पढ़ने की फज़ीलत

ख़ुदावन्द तआला कुरआन शरीफ में इर्शाद फरमाता है कि "अकीमुस्सला-तः व आतुज़्ज़का-तः " यानी नमाज़ पढ़ो और ज़कात दो। नमाज़ पढ़ने की सत्तर मकाम में ताकीद की गई है। नमाज़ नहीं पढ़ने वालों के लिए सख़्त अज़ाब बताया गया है। हज़रत नबीए करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से नमाज़ पढ़ने वालों की फज़ीलत में सैकड़ों अहादीस मौजूद हैं। चुनांचे हज़रत सैयदना अली से रिवायत है कि हज़रत हुज़ूरे अनवर ने फरमाया नमाज़ परवर्दिगार की खुशनूदी और फरिश्तों की दोस्ती का सबब है। हज़रत हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया नमाज़ ईमान की असल है और पैग़म्बरों का तरीका है। नमाज़ दुआ की इजाबत है। नमाज़ शैतान को काटने का हथियार है। नमाज़ कब्र को रौशन करने वाली है। नमाज़ कयामत में शफाअत करने वाली हैं नमाज़ दोज़ख़ के अज़ाब से बचाने वाली है। नमाज़ मीज़ान को वज़नदार करने वाली है। नमाज़ पुल-सिरात से ब-आसानी उतारने वाली है। नमाज़ जन्नत की कुंजी है। नमाज़ सब अमलों से बेहतर अमल है। बगैर नमाज़ के कोई अमल काबिले कुबूल नहीं। हज़रत हुजूरे अनवर ने फरमाया, जिस वक़्त मुसलमान खुदा के लिए सज्दा करता है तो हर एक सज्दे के बदले में हक तआला एक-एक दर्जा बुलंद करता है और गुनाह मिटा देता है।  हज़रत हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया फरमाया। "बन्दा जिस वक़्त नमाज़ के वास्ते वुजू कर के खड़ा होता है उस वक़्त सगीरह (छोटे) गुनाहों की पोटली बांध कर फरिश्ते सर पर रखते हैं। जब नमाज़ी रुकूअ करता है तो वह पोटली गिर जाती हैं फरिश्ते फिर रखना चाहते हैं तो हक तआला का इर्शाद होता है, 'ऐ फरिश्ते। वह पोटली सर पर मत रखो, इस लिए कि मेरे बन्दे ने मेरे सामने सर झुका दिया है मुझे शर्म आती है कि वह पोटली फिर उस को वापस दूं। जिस वक़्त मय्यत कब्र में रख कर लोग हट जाते हैं। उस वक़्त चार शोले आग के मय्यत के पास आते हैं। उस की नमाज़ एक शोले को दूर करती है, उसके रोज़े एक शोले को, उसकी खैरात, जो खुदा की राह में दिया था , एक शोले को, और सब्र जो रंज व मुसीबत में किया था, एक शोले को दूर करता है।

नमाज़ी गुनाहों से पाको साफ़ हो जाता है 

रिवायत है कि हज़रत अब्दुल्लाह अन्हु से कि जिस वक़्त बन्दा वुजू कर के खुलूस व आजिज़ी और इन्किसारी के साथ तैयार होकर अल्लाहु अक्बर कहता है तो वह अपने गुनाहों से ऐसा पाक हो जाता है जैसा कि माँ के पेट से पैदा हुआ है।

जन्नत के तमाम दरवाज़े खोल दिए जाते हैं 

अल्लाह तआला फरिश्तों से फरमाता है, कि ऐ फरिश्तो ! देखो मेरा बन्दा सबको छोड़ कर मेरे पास आ गया, मैंने उसके सब गुनाह बख़्श दिए। जिस वक़्त اَعُوْذُ بِاللَّهِ مِنَ الشَّطْنِ الرَّحِيمِ "अऊजु-बिल्लाहि मिनश्-शैतानिर्-रजीम' कहता है तो उसके तमाम बदन के हर एक बाल के शुमार के बराबर नेकियां लिखी जाती हैं। जिस वक़्त सूरह अल्हम्दु पढ़ा जाता है गोया हज व उमरा का सवाब पाता है। जिस वक़्त रुकूअ करता है और سُبْحَانَ رَبِّيَ الْعَظِيمِ "सुब्हा-न-रब्बियल अज़ीम' कहता है तो अपने बदन के वज़न के बराबर सोना चाँदी खुदा की राह में खैरात करने का सवाब पाता हैं जिस वक़्त "समि-अल्लाहु-लिमन हमिदह' कहता है तो हक तआला रहमत की नज़र से उसकी तरफ देखता है। और जिस वक़्त सज्दा करता है और سُبْحَانَ رَبِّيَ الْأَعْلَى "सुब्हा-न-रब्बियल आला' कहता है तो इंसान व हैवानात की गिन्ती के मुवाफिक नेकियां मिल जाती हैं और जिस वक़्त वह "अत्तहिय्यातु' पढ़ता है, तमाम सब्र करने वालों का सवाब पाता हैं जिस वक़्त सलाम फेरता है जन्नत के तमाम दरवाज़े उस के लिए खुल जाते हैं, जिस दरवाज़े से चाहे दाखिल हो। 

हसन बासरी और नमाज़ 

हज़रत हसन बसरी रदीअल्लाहु अन्हु जिस वक़्त वुज़ू करते उनका चेहरा बदल जाता और आज़ा बेइख़्तियार कांपते। लोग दरयाफ्त फरमाते कि आप ऐसे  क्यों हो जाते है? तो फरमाते, "जो परवर्दिगार के रूबरू खड़ा रहे, उसका चेहरा ज़र्द और आज़ा कांपने चाहियें। मालिक के सामने खड़ा रहना मामूली बात नहीं। 

हज़रात अली और नमाज़ 

हज़रत सय्यदना अली रदीअल्लाहु  अन्हु जिस वक़्त नमाज़ को खड़े रहते तो रंग बदल जाता और चश्मे मुबारक से आंसू निकल जाते, लोग दरयाफ्त करते तो आप फरमाते, "यह अमानत उठाने का वक़्त है जिसको ज़मीन व आसमान और पहाड़ उठा न सके, जिसको इंसान ने उठा लिया। अब डरता हूं कि वह अमानत अब अच्छी तरह से अदा होती है या नहीं। इस डर से काँपता हूं।

परिंदे की नमाज़ी के लिए मगफिरत की दुआ करना 

लताइफुल-मिनन में लिखा है कि "जन्नत में नदी के किनारे एक दरख़्त है, उस पर एक परिन्दा है और उस जानवर का नाम "तहीयात' है। उस दरख़्त का नाम "तैयिबात' उस नहर का नाम "सलात" है। जिस वक़्त बन्दा नमाज़ में التَّحِيَّاتُ لِلَّهِ وَالصَّلُوةُ وَالطَّيِّبَاتُ "अत्तहिय्यातु लिल्लाहि वस्सलातुः वत्तय्यिबातु, पढ़ता है तो वह परिन्दा उस दरख़्त से उतर कर उस नहर में गोता मार कर निकलता है और अपने परों को झटकता है और जो कतरे उसके परों से गिरते हैं उसकी गिनती के बराबर हक तआला एक-एक फरिश्ता पैदा करता है, वह फरिश्ते उस नमाज़ी के वास्ते कियामत तक मग़फिरत मांगते हैं।

अल्लाह व रसूल का करम 

हदीसे कुदसी में है कि हक तआला कियामत के दिन नबीए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से फरमाएगा "मैंने बन्दों के ऊपर फर्ज़ नमाज़ मुकर्रर की थी और तुम ने सुन्नत व नफिल नमाज़ पढ़ी। पस हम और तुम ज़ामीन हैं। तुम शफाअत करो और मैं रहमत और मग़फिरत करता हूं" ।

नमाज़ पढने से गुनाह धुल जाते हैं 

हज़रत हज़रत हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया। "जो मुसलमान हुक्म के मुवाफिक इतमीनान से वुज़ू करेगा यानी मुंह में और नाक में पानी लेगा और मुंह धोएगा। सर का मसह करेगा। दोनों कदमों को टखनों तक धोएगा और बाद नमाज़ के अल्लाह तआला को याद करेगा। उसके तमाम गुनाह माफ हो जाएंगे। गोया माँ के पेट से पैदा हुआ हो। हज़रत नबीए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा से फरमाया, पाँच वक़्त की नमाज़ मिस्ल एक नहर के है, जो तुम्हारे दरवाज़े के सामने से जारी हैं। कोई शख़्स उस नहर में रोज़ पाँच दफा गुस्ल करे तो क्या उसके बदन पर मैल रहेगा?" सहाबा ने अर्ज किया, "या रसूलुल्लाह नहीं, मैल नहीं रहेगा।" तो फरमाया, पांच वक़्त की नमाज़ भी इसी तरह है। तमाम गुनाहों के मैल को धो डालती है। जो कोई पांच वक़्तों की नमाज़ कामिल वुज़ू और रुकूअ व सुजूद और कियाम व इतमीनान के साथ मुस्तहब वक़्त पर अदा करे और समझे कि यह हक तआला का फरमान है तो हक तआला उसके जिस्म पर दोज़ख़ की आग हराम कर देगा।

नमाज़ किसी भी हालत में माफ़ नहीं 

हज़रत अनस बिन मालिक अन्हु फरमाते हैं कि "हज़रत नबीए करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की रूहे मुबारक सीन-ए-मुबारक तक आने तक नमाज़ की पाबंदी व बांदी और गुलाम को तकलीफ न देने की ताकीद फरमाई।"

दोस्तों आपने कुरान व हदीस की रौशनी में नमाज़ की फ़ज़ीलत व अहमियत पढ़ी मुझे उम्मीद है इससे आपको ज़रूर फाएदा होगा ।


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