ग़ुस्सा एक शैतानी आग और उससे बचाव के इस्लामी रोशन तरीके

ग़ुस्से की हकीकत क्या है? कब यह इबादत है और कब यह शैतानी? पढ़िए ग़ुस्से पर क़ाबू पाने के वो कारगर नबवी तरीके और दुआएं जिनसे इंसान दुनिया और आख़िरत..


इंसानी ज़िन्दगी में ग़ुस्सा एक ऐसी ताक़तवर और तबाहकुन जज़्बात है जो अगर क़ाबू से बाहर हो जाए तो रिश्ते, इमान और समाज, सब कुछ बर्बाद कर सकती है। इस्लाम ने इस नफ़्सानी जोश को समझने, पहचानने और उस पर क़ाबू पाने के लिए बहुत ही वाज़ेह और कारगर हिदायतें दी हैं। यह लेख हमें ग़ुस्से की हकीकत और उससे बचने के नबवी तरीकों से रूबरू करवाएगा।

ग़ुस्से की हकीकत और उसकी किस्में

ग़ुस्सा नफ़्स के उस जौश का नाम है जो दूसरे से बदला लेने या उसे दफ़ा करने पर अभारे। ग़ुस्सा नफ़्स की तरफ से होता है औ
र नफ़्स हमारा बदतरीन दुश्मन है। ग़ुस्सा अच्छा भी है और बुरा भी। अल्लाह तबारक व तआला के लिए ग़ुस्सा अच्छा है जैसे मुजाहिदीन ए इस्लाम को कुफ़्र पर और माँ बाप को नाफ़रमान औलाद पर। यह ग़ुस्सा इबादत है। बुरा ग़ुस्सा वह है जो किसी पर नफ़्सानियत के लिए आए।

असली पहलवान कौन?

हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है फ़रमाते हैं रसूल करीम अलैहिस्सलात वस्सलाम ने फ़रमाया ऐ (सहाबा किराम रज़ी अल्लाहु तआला अन्हुम) तुम अपने दरमियान पहलवान किस को शुमार करते हो? सहाबा किराम रज़ी अल्लाह अनहुम ने अर्ज़ किया पहलवान वह है जिस को मर्द न पछाड़ सकें। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया नहीं, पहलवान वह है जो ग़ुस्से के वक़्त ग़ुस्से को कंट्रोल करे और अपने आप को संभाल ले। क्योंकि जिस्मानी पहलवानी फ़ानी है और उसका एतबार नहीं, दो दिन के बुख़ार और पाखाने लगने से पहलवानी ख़त्म हो जाती है।
नफ़्स रूहानी क़ुव्वत से मग़लूब होता है। जबकि आदमी जिस्मानी क़ुव्वत से पछाड़ा जाता है। रूहानी क़ुव्वत जिस्मानी क़ुव्वत से आला और अफ़्ज़ल है, लिहाज़ा अपने नफ़्स पर क़ाबू पाने वाला ही बड़ा बहादुर और पहलवान है।

नबी करीम की ख़ास वसीयत

हज़रत अबू हुरैरा रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है फ़रमाते हैं एक शख़्स ने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से अर्ज़ किया कि मुझे वसीयत फ़रमाइए। तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया कि "ग़ुस्सा न किया करो"। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यह बात दुहराई कि "ग़ुस्सा न किया करो" शायद यह साइल बहुत ग़ुस्सा करता होगा। नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हकीम मुतलक हैं, हर शख़्स को वही दवा बताते हैं जो उसके लाइक़ है।

ग़ुस्सा पीने वालों के लिए जन्नती बशारत

हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है, फ़रमाते हैं रसूल करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया, "किसी बंदे ने अल्लाह तबारक व तआला के नज़दीक कोई घूँट उस ग़ुस्से के घूँट से बेहतर न पिया जिसे बंदा अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की रज़ा जोई के लिए पीए।" यानी जो शख़्स मजबूरी की वजह से नहीं बल्कि अल्लाह तबारक व तआला की ख़ुशनूदी के लिए पी ले और बावजूद बदला और इंतिक़ाम लेने के और क़ुव्वत रखने के ग़ुस्सा जारी न रखे, वह शख़्स अल्लाह जल जलालहु के नज़दीक बड़े दर्जे वाला है। ग़ुस्सा पीना तो बिला शुबह कड़वा है मगर उसका फल बहुत मीठा है।
जैसा कि हज़रत अनस रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है फ़रमाते हैं सरकारे काइनात अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने फ़रमाया "मन कफ़्फ़ ग़ज़बहु कफ़फ़ल्लाहु अनहु अज़ाबहु यौमल क़ियामह" जो अपना ग़ुस्सा रोकेगा, अल्लाह तबारक व तआला उससे क़ियामत के दिन अपना अज़ाब रोक लेगा और उस पर ग़ज़ब नहीं फ़रमाएगा।
एक और हदीस मुबारका जो हज़रत मुआज़ बिन अनस रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है में सरकारे दो आलम अलैहिस्सलात वस्सलाम की यह बशारत है कि जो शख़्स ग़ुस्से को ज़ब्त करले जबकि वह ग़ुस्से को जारी रखने की ताक़त रखता हो, क़ियामत के दिन अल्लाह तबारक व तआला उसे सब लोगों के सामने बुलाएगा और उसे फ़रमाएगा वह जिस हूर को चाहे पसन्द करले।

ग़ुस्से का ईमान पर असर

रसूल करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का इरशादे मुबारक है ग़ुस्सा ईमान को ऐसे बिगाड़ देता है जैसे ऐल्वा  शहद को। अगर साहिबे ईमान शख़्स को ना जाएज़ ग़ुस्सा आए और वह बढ़ जाए तो उसका ईमान बर्बाद होने का इंदेशा है या कमाल ए ईमान जाता रहता है।

ग़ुस्से के इलाज के नबवी तरीके

हुज़ूर नबी करीम रऊफ़ व रहीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उम्मत पर अनगिनत मेहरबानियाँ फ़रमाई हैं। दुनिया व आख़िरत की भलाई और बहतरी के लिए लाज़वाल नसीहतें, वसीयतें और हिदायत अता फ़रमाई हैं जिन पर अमल कर के हर साहिबे ईमान कामयाबी व कामरानी की नेअमतें पा सकता है। ग़ुस्से का आना और फिर उस पर क़ाबू पाना, उसे दबाना, उसके लिए नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कई तरीक़े इरशाद फ़रमाए हैं।

हालात बदल लेना शारीरिक इलाज

हज़रत अबू ज़र रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है फ़रमाते हैं रसूल करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने इरशाद फ़रमाया "इज़ा ग़ज़िबा अहदुकुम व हुवा क़ाइमुन फ़लयजलिस, फ़इन ज़हबा अनहुल ग़ज़बु वल्ला फ़लयज़्तहिज"। "जब तुम में से किसी को ग़ुस्सा आए और वह खड़ा हो तो बैठ जाए, फिर अगर ग़ुस्सा दफ़ा हो जाए तो दुरुस्त, वर्ना जिसे ग़ुस्सा आया है वह लेट जाए।

वज़ू करना शारीरिक व रूहानी इलाज

हज़रत अतिय्या बिन उरवा सअदी रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है फ़रमाते हैं रसूल करीम अलैहिस्सलात वस्सलाम ने फ़रमाया ग़ुस्सा शैतान की तरफ से है और शैतान आग से पैदा किया गया है और आग पानी से बुझाई जाती है। तो तुम में से किसी को जब ग़ुस्सा आए तो वह वज़ू करले।
यहाँ ग़ुस्से से मुराद शैतानी नफ़्सानी ग़ुस्सा है। ईमानी रहमानी ग़ुस्सा मुराद नहीं। ग़ुस्से के वक़्त अक्सर शैतानी और रहमानी ग़ुस्से में फ़र्क़ करना मुश्किल होता है। हम गलती से शैतानी ग़ुस्से को रहमानी ग़ुस्सा समझ लेते हैं। जैसे आग हिस्सी पानी से बुझाई जाती है, ऐसे ही बातिनी आग बातिनी पानी से बुझाई जाती है। वज़ू दोनों से मुरक्कब है। इसमें हिस्सी पानी का भी इस्तेमाल है और बातिनी पानी का भी। यह जिस्म व दिल और रूह की पाकी का ज़रिया है। इसी लिए ग़ुस्से की आग वज़ू से बुझती है। यह तिब्बे नबवी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का मुजर्रब नुस्ख़ा है जिससे यूनानी तबीब बे ख़बर हैं।

कलिमात और दुआएं पढ़ना कौली इलाज

नबी ए रहमत सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ग़ुस्से के और भी इलाज बयान फ़रमाए हैं, मसलन ग़ुस्से के वक़्त "ला हौला व ला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाह" पढ़ना और "औज़ु बिल्लाह" पढ़ना।
हज़रत सुलेमान बिन सुरद रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु फ़रमाते हैं हम लोग हुज़ूर खातमुल अम्बिया सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की बारगाह ए बे कस पनाह में रहमत की ठंडी हवाओं से फ़ैज़ याब हो रहे थे कि क़रीब ही दो आदमी आपस में किसी बात पर उलझ पड़े, यहाँ तक कि उन्होंने एक दूसरे को गाली गलौच की। उनमें से एक आपे से बाहर हो गया और ऐसे लगा जैसे अभी ग़ुस्से से उसकी नाक फट जाएगी, उसका मुँह सुर्ख़ हो गया। रसूल करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उसकी तरफ देख कर फ़रमाने लगे "इन्नी ल आलिमु कलिमतन लो क़ालहा ल ज़हबा अनहु मा यजिद, लो क़ाल औज़ु बिल्लाहि मिनश शैतानिर रजीम" मुझे एक ऐसा कलिमा मालूम है अगर यह ग़ुस्सा वाला शख़्स इसे कहे तो उसका ग़ुस्सा जाता रहे। फ़रमाया वह कलिमा यह है कि "औज़ु बिल्लाहि मिनश शैतानिर रजीम" या "अल्लाहुम्मा इन्नी औज़ु बिका मिनश शैतानिर रजीम।
अल्लाह तबारक व तआला भी क़ुरआन मजीद में इरशाद फ़रमाता है "व इम्मा यंज़गन्नका मिनश शैतानि नज़ग़ुन फसतईज़ बिल्लाह" और ऐ इंसान जब तुझे शैतान का असर पहुँचे तो "औज़ु बिल्लाह" पढ़े। इसलिए कि ग़ुस्सा भी शैतान के असर से है।
"ला हौला व ला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाह" और "औज़ु बिल्लाहि मिनश शैतानिर रजीम" ग़ुस्से के क़ौली इलाज हैं और वज़ू अमली इलाज है। ठंडा पानी पी लेना भी ग़ुस्से का इलाज है। लेट जाना भी ग़ुस्से का दूसरा अमली इलाज है। यानी अपना हाल बदल लेना, यानी खड़ा हो तो बैठ जाए, अगर उस पर भी ग़ुस्सा न जाए तो लेट जाए, इंशा अल्लाहुल अज़ीज़ ग़ुस्सा जाता रहेगा। लेट जाने में अपने आप को मिट्टी में मिला देना है, मिट्टी में तवाज़ो है। लेटने से अज्ज़ो ओ इन्किसार पैदा होगी। नेज़ खड़ा आदमी जल्द हरकत कर गुज़रता है जबकि बैठा हुआ या लेटा हुआ आदमी उस क़दर जल्दी कोई हरकत नहीं कर सकता।

भलाई से बुराई को दूर करो

हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है फ़रमाते हैं अल्लाह जल शानहु के उस फ़रमान के मुताल्लिक कि "इदफ़अ बिल्लती हिया अहसन" - ऐ इंसानों, बुराई को भलाई से टाल दो। और अपने ज़ाती मुआमलात में बुराई को भलाई से दफ़ा करो। ग़ुस्से को सब्र से, जहालत को इल्म से, किसी की बदसुलूकी को मुआफ़ी से, कज खुल्की को ख़ूश खुल्की से जवाब दो। जब लोग ऐसा करेंगे तो अल्लाह तबारक व तआला उनकी हिफ़ाज़त फ़रमाएगा। सब्र करना बदला लेने से अच्छा है। लोगों की बुराई को मुआफ़ कर देना सज़ा देने से अफ़्ज़ल है।

आखरी कलमात

रब्बे काइनात ने सूरह आले इमरान की आयत नंबर 135 में जन्नतियों की शान बयान फ़रमाते हुए इरशाद फ़रमाया है यह वह लोग हैं जो अल्लाह तबारक व तआला की राह में ख़र्च करते हैं, ख़ुशी में और परेशानी में, और ग़ुस्सा पीने वाले हैं और लोगों से दरगुज़र करने वाले हैं।
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बारगाह में दुआ है कि वह हमें नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की तालीमात पर अमल कर के ग़ुस्से में अपने आप को क़ाबू में रखने की तौफ़ीक अता फ़रमाए। आमीन। 

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